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प्रतत्रयटा नाम माध्यमिकवतिः
1.
प्रत्यययरोत्ता नाम प्रधमं प्रकरणं ॥
म्रिये 2) [घ्रार्थमज्जुभ्रिये कुमा्मूताय नमः ।]
~ (8) ग्तद्यावा ¢ (4) ~
पो पविधूतवा्ः तेवद्धीसागरलब्धन्न्मा । (^ ~ (5) 3
सद्मतोयत्य गभोरभावं यधानुबुदे कृपया गाद् ॥ [1). १५] यत्य दृ्शनतेनांसि पर्वादिमतेन्धनं । दृहत्यग्यापि लोकस्य मानसानि तमांसि च ॥
1) 0277688 18 208610४0 वप ¶0.: कआव्रकाददा ४/1 १९11४.
2) 09168 16 {10.; णप्ा6 (णप प्रा€ क ६008 [९8 0पए8668 0९6 66116 8९८४० वप 7 ४०१} ००7, ए्ा8 € (क्ण). १4010 एषववाद्छु/व ; (916. १470141 @1704१०5०{ ६८८ | 1141010 १५६१1114 7/0.
3) 616 च 29} 2६1, 0619०४6 १1०48१28 € १८06०४१४] 78 (प. १६४ ८091).
© © 4) 188. 0 1014740५; 16 1}. न) मदन व वनेतववुनुन 4 स्यि 2 &०007706 18 60166 प्रा€ : ० १५{4द ४४/५५, -- ककव (€2126 781 16 76116) == ४२5८. - 1.68 ९००01९8 १,६०॥88 8076 16 ९०३, ©). एष ९616 1 8 1 ह १ ४३६४१ [1. 448. 10, &¢ 82707 ८४६४४ प. 1. 138. 18: 6०0 कद्ध , . , नक द १10; 5०१९१ १ 42/00 व0८10/0 1410. {८ ६८ 2६4८दद्ाधवक ५210 ११४८ १4104(40100701@ १1117610 वा 400101411॥
0९50४ : कणप 57 , . . . . , -- 1,"४6601 7९84९ 11४16781 १६8 वलण्ड 6268 €8४ 1296 १6 (€ 814९. -- 8 ४१1. पर. 11. 20. 88, 68. 97. - १०१९८ 1008 84 ४.8.
5) ममम मपय = 90वद्}4+700:0508940.
2 प्रत्ययपरौत्ता नाम [19-
पस्यासमन्ञानवचश्तीधा निघ्रत्ि निःेषभवारितिनां + ्रिधातुर्यभरियमारधाना विनेयलोकम्य सदेवकस्य ॥ नागानां प्रणिपत्य तस्त तत्कारिकाणां विवृत्ति करिष्ये। $त्तानपत्प्रक्रिपवाकयन दरं तीनिलाव्याकुलितां प्रस्ना ॥
प न ५ (5) तत्र \ न स्वतो नापि परतो न हाभ्यां ' इत्यादि वत्यमाणो शाल । [10.2४] तत्य ~ े ५५४ (ज नि (6) [न कानि सेबन्धाभिधेयप्रयोननानि \ इति प्रभरे ' मध्यमकावतार्विकितविधिना श्रदयज्ञाना- ० ~ (7) ४ प्रघमचित्तो ६. १ हतिमािं „ (9) लेकृते माक हणोपायपुर्ःसरं त्पाट् तथागतज्ञानोत कृचा पा-
# >) ९ न
1) सय ५. 0" € 1776; ४१५४-१६5९१02 ; 1) 166 १९8 60068 == ए740व) 80708 द/4} €. 5८015@ाकव४ (4 ए ३१. 1 217 91918 1, 1); एण्ड 01008916 पृष्टः एकक्छव्छः == 6016171 १९ 1४ शं€ 70008106 (२. छर.) == ४11४4, ०700086 म ९०१९४ (60888016). 2) 810110्9]116 १88 67० र 6१६], गण्डा तप एण्पतवा्श९, 7. 205, 0. 31.
€
3) (1. निनि | शेपभिगु्गुगोस " " " ; ५६204, 16, धना€ ४ 6०016०46 (81077086 ॐ @79@, 897 ए 8.87 ¢. 8. 28. 9, € ५४१. (07 ०६6००, 1901) ००४6 1858; 88.11. प. 1. 139. 94; ए. ए १ ०६. 68. %. &. 10१. 1. 406. 18; प्र 88811161, 5००११०४. 827); 54101700, ११160106 8016 €क्ापन्णद्वा6 (4 ४७ 8. १०९. वक == €~ 710101681 0708४०0).
4) (10. (8) &. 71९81 21018 (त. दकभ्णदाह 1891) 2. 82: 2705245 ६५ 5८८८ कहंढ (९ 4714/07 (प्र. ¶ ४6०१).
8) ४०१९४ 108 7. 12. 13.
6) 0808 ¶' 810.}0 7, 0१०, उता; च्णृ्ट 2 ०8६०४, 1900, >, 27. 226-286.
¶7) ०५/८० ४०१०९ 88 (9.
8) 11 ए़ ४ पञ कन्ढववः (णतशा प वो 00165. -- (00. 61888. 9.4, 212.13; 0 0ए. 1. 110. 4, € 091४7687 ०188 ०४6 8३०११1९. 2. 1. 11 @०- कनीनका १८, रवद्कव); 194. 1. 8, 10 ९४८. -- 7 0. 887. 1416 ; कव्व @011"00दवढ (. प ४1१).
9) नयुम्नपति युयु गुमान, यस == ०५1१व न" १८1१07च्क॥ 2वा0 1"2. -- &. 111१. 1. 469; 118 28. 292. 5.
- 2] प्रधमं प्रकरणं 3
| ८ पमितानीतिं ) ~ व वदाचाधीर्वनागान्मुनस्य विदिताविपरीतप्रन्नापारमितानीतिः कहणया परावबोधार्थं णा-
्रप्रयनं । इत्येष तावच्छाल्रप्य संबन्धः यच्छास्ति व(;] न्तेणरिपूनशेषान् संत्रायते इगतितो भवाच्च । तच्छपनाच्चाणगुणाच्च शारं ' एतदयं चान्यमतेष नास्ति ॥ इति ॥ स्वयमेव चाचार्यो वत्यमाणसकलणात्राभयेयार्थ सप्रयो्ननमुपदूरशयन् तद्विपरोत- घप्रकाशवेन माकात्म्यमुदराव्य ततस्वभावाव्यतिरेकवर्तिने * पमगुर्वे तथागताय शा- छ्लप्रणयननिमित्तकं प्रणामं कर्तुकाम रार ' प्ननिरोधमनत्पाद्मन्च्दमशाश्चते। खनेकार्थमनानार्धमनागममनिर्ममं ॥ यः प्रतोत्यतमुत्पादे "
इत्यादि| [२५] तद् त्रानिहिधाग्रष्टविशेषणविशिषटः प्रतीत्यतमत्पाद्ः शाल्नाभि- धेयार्धः।
1) दू == १५४ == ८९४ (€-0688प8 2. 6): पणां व्०णक्षी{ 62 &6व€€ा॥ 18 7811616 009४ 11 प €णडलहण्डा 1४ २. ?. (0४ ०€ ला 16 88104 १९8३ ला € क्णा९8).
2) 0808 16 ४९१३०६४३ ६1४ 16 54१01८१ दाव (निदभय) €8४ 12 76180 67४16 18
10
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१६504); 11 ४ 0पाः 1५5१८ 16 ००८४ ८०कबद८77द४व १6 ६९8 0€प् र ५७768 (. 20, 86. (01. च ४८०४, 1881). 0918 प $ ३ 2010 (ह, 0. 2. 1. 19: "०९४५0 क्न 210 द0129/414014/07 = 5171000147बक ; 16 5490104व10@ 60081806 € ९९८ ०९ 16 96 68 प्रण 706 ९०१९०216 0ण 76 भाऽधा 16 ४प४. -- €. 50०4016. 2. 2, ००४6 2; &10 1४१2171. 2. 6; & 19 (1€ग7€ 8881 € १९8 वषपर 6 १११८०411 ब7द5 (¶ 211 ४8. (ए.8.8.) 2. 70).
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4) 1.8 इप7ााणा४€ तप 18४02818 7168146 € ९९८ वणा > (्नदलन्ला€४ ९086116 1€ एक ४काप0208; ११९५ 13 78{प्ा€ [76 तप एतत् 288724४, 16 1 20892 68४ 1086} 8180160€ा0# 8880616 (ए 077 (070. ४१ शा. 16).
$) ¶५०१९४ 18 118. १९ ९९४४८ 81817166 तक्षा8 87811 7 8} 2188 ४78 (कि 870]10 1087), € 67००४, 6०१९ वप ४0818०३) ]. 87.
6) प्रभं? 10078 }. 11. 18.
10
4 प्रत्ययपरीता नाम [2९-
सर्वप्रपञ्चोपशमशिवलतणे निर्वाणं शालस्य प्रयोननं निर्ष्ट। ते बन्दे वदतां वरं ' इत्यनेन प्रणामः।
इत्येष तावच्छरोकदयस्य मुदायार्थः ॥
श्रवयवा्धत्तु विभग्यते ' [1,0.8५] तै निरदधिर्नितिधः' तद्गो नित इत्युच्यते । उत्पाटृनमुत्पाद्ः ' श्रात्मभावोन्मन्नन[मित्यर्धः] । उच््त्तिहच्देदः ' प्रनन्धविच्छत्तिरित्यर्धः। शाश्चतो नित्यः ' सर्वकाले स्थौणुरित्यर्थः। एकश्चातावर्ध्चेत्येकार्घो ऽभिन्नर्थः " न पृथगित्यर्थः । नानार्यो ^ मिन्नर्थः पयगित्य्वः घरागतिहेगमः ' विप्रकृष्टदेशावत्थितानां सेनिकृष्टदेशागमन।
(ज ५ ~ ॥ ~ ~ (8) निर्गतिर्भिगमः ' सेनिकृष्टदेणावप्थितानां विप्रकृष्देशगमनं ।
1) एणा 1008 ए. 8, इए. 24 € (णण. 2 उड णा. 30. - (णण. 809४. ए. (6967, 6. ^ ५४१. १6 2867110 1864) 7. 3886. 10: . . . ?@ 0 विव १@- 27/04, , , , गद्मा$वकाा . , „) 27046004, ०द९व$वाी0. ,
2) ४५01 1078 11. 18.
8--3) (68 €311681008 शप १९7१, १8०8 16 #ए6ौक्षं0, 12 0786088700 तप 701 214 1४540141 दव4. -- ४ ०९ 1. 11, 2. 1.
4) 7688101 76प6०॥6 १४8 168 80प्7668 78071811 68, 11170 ह 788? ढ7 - 1118, 1, 8; ^ त्रा ४१8१४१७8) }. 1. पदक ११६०३०६] 211) 2. 16. 3 €. -- ए0९्ढ नका €०६ (101४१71. 1. 839: ‰८ 20४ ऽच्कछापद्ुक्कव्छा क्वकल्कष्त- व्व | प्रववकवा/ वा्वद कद्यः509व॥ ०९१6९ 17 व 5०१; € 1010. 770. 424, 786. -- @&. 1,११द्रर्४६इ79 (०११0१8४ ¶. ३.) 7. 48: कव्छवा० . . , पद्क्काधकः 20104110 74८८४ | ‰॥वद = ५12 7021व7470दा0व7 (14)160१०१0 काच ९. -- 21606 त1806४00 एणाः 1410ददढ € 1४ 57४४. - ©]. ए ०९६४६६7४ 1. 18 (प. १४८०४).
8) }/188.; 51129 (5116११५ ?).
6) प्रणष्ट 701. 8878801, ४. 72 7016 2: शद्कठकव्िद्याव, -- 88778087. 8. 12. 18; प $ दइ 8 १71. 18170. 480. 4 (प्र. 1, 38. 84),
->--29] प्रथमे प्रकरणं $
0), टेतिर्मत्यध (2) ( (3) त्यथः प्रतिः प्राह्यर्थः । उपसर्गवशेन धालधविपरिणामात् '
उपसर्गेण धावर्थो बलादन्यत्र नीयते । ध न ( गङ्गा्तलिलमाधुर्ये सागरेण यथाम्भसा ॥ ' प्रतीत्यशब्दो (5) ~ ~ 3 ८ (6) ४.१ त्यशब्दो ऽत्र ल्यबत्तः प्राप्तावपेन्नायां वतते । समृत्पूवः पदिः प्राइभावाध इति पमुत्पाद्शब्दः प्राइभावे वतते ॥ ततश्च हेतुप्रत्ययापेत्तो भावानामुत्पाद्ः प्रतीत्यतमुत्पा- 5 (7) :॥ तिम = (8) (9) [> श्रपरे तु ब्रुवते ' उतिर्गमने विनाशः ' इती साधव सत्याः ' प्रतिवीप्तार्थः ' इत्येवं = [न ` (10) तदितात्तमित्यशन् व्युत्पा ' प्रति प्रति इृत्यानां विनाणिनां समुत्पाद् ईति वणयत्ति ।
ल © © 1) (0. ५ “* " " @. 010६). 4. 35, €६ 17108 6.7, 7,6. -- ए0णाः ॥०ण४९ ९६५९
01860880, &077087९2 4 7 11 1877 81 0 ¢ 8४२.) 148. १९ 19 8०८. 48. 911. 2352 844. -- प्रण प१1६०0172९९28, रषा (.2.7.3. 1891, 2. 187: 78 8 768 प९९ ण 88८९ 18 &1ए€ा1 {0 {€ €00816€781701 ग {€ पणात् [४८८४8 प0 508}.
2) (0. पुति, 4971400. 1६, ए. कव्, तकाव ‰४ शकद् न वव 14.8.11.
8) ^ 91101. 1६, ₹. दण्थयाल्7दक 1 काददथवु, . 11व ४ ९०547 4क्1 11क0४7द6/0- वल ४४ 0/7 [४- काद] ववकवकाका १(17धएदं 170 19/411740॥ द्यूव दुदर.
4) &. 81418748 पपत7, 2 पा. 4, 18 (प. च४८०४)).
8) 78. पा. 1. 31. - (7188. ११/०८).
6) 4 0110. ए. ए. ववा 5 7त ४४ ददन् 5411द/ 9 १६.
7) ^ 9010}. ए. ४. 27५1४८7४ = 27274८5८ क्7कछवा 17कि१/540 १102 वव.
8) ©. २३.1४. 4, 98.
9 तस्यः €]. 811. 1. 4. 90. € 8 ०1048६1 ९1६61, 016. 8. १०५. 774त7८ (244 02).
10) €€॥#९€ €3]11८8॥00 तप्र 0६ ‰71/ ९8४ ९९116 वण€ ए ए7०० ण प०ाइ & ६ 60008176: €]16€ €8 &{॥10०6€ ष 124 1 1141870 ४०८४१. (90]. 284 0 1) ण 7711० - 80706 8 परता त्ा४ (71150108 (पि 388. 7. 281; ¶ ह1.7.67); 1०४7०4८ ६1०१ 0.628 (1010. 81568810 € 12९16880 ४0€{क९): ०१४८ वौ चह =, 00 कदवव्ष्८ (द्रत वा "चऽक्7@ च . शक्द्छ्वल्य्काा ववापकाःक्द्कदक्ा॥ 54१९९52) 101/2041020104/201 १४710411 1८८72 श््र$द . रक 4८01 17 क" 0/8 =, चक 44 5द वावत धद . {04170 ऽका ४४ = ‰८-21014/44/410 , १ ९१50१ 527 ९द१ , ११4९८517 20200 2/0" 1707 . 54001-१८00847401 5०१407/7/ {7409 (/०1ब&/ब ४ , ५६-0९बा ‰दता, ॥१द १107 दएका"~ 10.11.11. / 1/1 (1/1. 11/11/1111 11/11... ९०४८४ . ११/10 ०११०९९०१ 211 54१14४द्/९1001{ कद 07व09(4/45८1000410दतव7 , १0 ‰2(८बव् 07001014 ९८ ५६१ 4व/५{८ 5400{124104/4111द.
6 प्रत्ययपरीत्ता नाम [१४
तेषां \प्रतीत्यतमृत्पार् वो भित्नवो देशपिष्यामि , यः प्रतीत्यतमत्पाे पश्यति घ धर्म पश्यति ! इत्येवमादौ विषये वोप्सार्घत्य संभवात् समासपदरावान्च स्यान्यायती व्युत्पत्तिः। इर तु [४] चतुः प्रतीत्य दरयार्णि चोत्यते चनुर्विज्ञान \ इत्येवमादौ विषये सातताद्ङ्गीकतार्थविरेषे चतुः प्रतीत्येति प्रतीत्यशब्द् एकचतुरिन्नियरेतुकायाम- प्येकविज्ञानोत्पत्तावभीष्टापं कुतो वीप्ार्थता ॥ प्राप्यर्थस्तनङ्गीकृतार्थविकेषे ऽपि प्रती-
1) वभ). ठि ; 1088, ए०व एकत००,. , - -- (066 कलणाद९ जिणणो९ (- , , क९-
६८/८४ का) == 8४70. प. 1. 1. 5. 2. 13. == ^ 01100. ए. ए. (2862 6) . . . . १7४5 21411240 (त (810) ९४5४० व/१50 का व प१46. . |
2) 1.6 & 2118187 088 ४78 (2०१. 10० रणा, 01. 1909, & ^ ००149. ६. १. 2819 9; -- १०१९४ 10 8.‡ €, ‰€ला€1८}0€8, 218 ०. 2) 16 €॥€ प िणपा€ कलषछणछ€; .41/1051001 द (2110५110 1104011760/4101 ९०व7१5व{९401॥ ९दव क८०८वय (त्मका ४९ 107४८, 21क7९/द, 00वदकटवमक 075 ष्व = उनका पवक वदः 0, ए्हव्वक, 1.1.011... (1111. त // 1... 1. ९१वव7 ८ 1009 १॥/ ५19त 011444९0 ४6११ एवफकष्छव. , . -
९6 गिाण]6 €8६ 00066 17 6 (6080 1008 80 छा. 16 त गृ188 14410004; 0णाः 18. 86606 816 (० वावा १का , , , 8 ए४दवककाा)) (60). 1४1 ए ४६४४४६३ 91; 18 (10108. €), 121 ह ]) 9711170 5? ४8. 60 (प्र. 01469678, एत). 870. 677), 897 ~ ए०६४४ द. 1, 120 (§ 18), & 88११8४7 78887&200 62, 3 (उ. 2. ¶. 8. 1890); 11060६06 तप 7017004 61 वप्र 07445 क70१कदद ००प्§ 68६ 6000 प९ षय ‰ 21110178 क, 4. 191. १.
8) {978 ९68 व€् ड ®€ा01९8) 16 ०४ 1४८ ४ 0976 तपण ९००86, € 0 €+ ]प्रं कर्पण्ला पा 8608 18: 1€पाः (९5४ = व्यव्दुक्छधो 62ा6द्षत्रणा €्7010614प6 एष्य कप 16619016 (1४द/वकः == दिवन).
4) 11606 अह प्राण€ा+च्ना 4 1114). 1६. ए. (284) 5); 00 व४/ धऽ व ४ ९४व्ल- 11/11 711 1 11111 1.11, 3 117 त 1... (वक 1717 7 क्ष्य ९०0०८ (का १४४ १210000 ४42 १00 0४ 17वककल॥ ९ 5१50 [कुवलयं बव्कद्छद्) उककब्छवयं$ क7लणक्ं , ववष क क्क्व १४ 11704 ००0बद्/क८ दवाऽप्एदिकाष्वा॥ ४/ ववा ०१0 0८११४६९, दण€। ९8४ ९6 1211 8887 ६] 5१४३४78) ¶प९]इ 800६ 1९8 80768 {62168 (कद्ध: 18 0501- १६०४87१8) 8906१०88] 7248 28801180 88 {78} 01860168 0808 114 01141. 1६. ए, ९४ 0000868 भप्र कलाल, 008 688816710708 06 16 4776 0808 ४९ 06 7016 -- 8०१1078 {0पदणिं8 16 हाला; (व्यध व्क चक्क ९०10 व/का८ क१० 214904817/0 017 वद ध 51८ एकलव्यं (4 01100. 1. ४, 2279 2).
8) 1,€ 0. परक्तप्ोधः ववत क्वः (व 1क9त, -- पभा९ण०8९8 16660668; 887. दै, [ 2. 72 € ऽप्ोप.) 1४. 33, 67. 86; 01111949 56. 26; €॥€,
6) = वगद्येसपदेसः 01100, ०0700/000400001. -- 1.6 8608 06 66616 0071886
68४ €018116 धय. 16216४00, 7. 8, &.
-20] प्रधमं प्रकरणं 7
„ (1) (1) ~ = त्यशब्दे [1१४. 8४] संभवति , प्राप्य भवः प्रतीत्य पमृत्याद् इति । श्ङ्गीकृतार्थविेषे व्येति ~ 9) (3) द्धिताते न ऽपिं सेभवति ' चतुः प्रतीत्य चतुः प्राप्य चतुः ्ेच्येति व्याव्यानात् ॥' तदितातते चेत्य- शब्दे ' चतुः प्रतीत्य पाणि चोत्पग्यते चतुविज्ञानं' इत्यत्र प्रतीत्यशब्दस्याव्यपलाभा- = -& = वात् समातासद्वावाच्च विभक्तितो सत्यां ' चुः प्रतीत्यं विज्ञाने पाणि च \ इति नि- (8) (य व्युत्पत्ति्भयुपेया पातः स्यात् । न चेदेवं । इत्यव्ययत्येव ल्यवत्तप्य व्युत्पत्तिएयुपेया ॥ (6) वोप्तार्यव (7) [७ (8). [५ (9) स्तु ' त्प्रत्युपसगस्य ' एतेः प्राप्यथंलात् ' समृत्पाद्शब्द्स्य च संभ- , अशी (1) ११. [कप वाधब्ात् ' तांस्तान् प्रत्ययान् प्रतोत्य समत्याद्ः प्राप्य सेभव इत्येके । प्रति प्रति वि-
४) = तमु 2) भेगृ प गृङ्गृसि प्सवः = न्म १000) जमथाकक,
8) = देवयवः (94 = पधा).
4 == पठेम प्श 9०९ 1 पठेमुमुस 16 18 {पपार १6०६००४९) 1. 8. -- २
68 16 80-018870४ 21616 € 76768606 [लं 18 गक ० ता८८ (क्प्ल ; १नई 68४ [१४- 0166 व £€०पता (== ४४),
8) == ४0 [पद्टणन्न णिक, 11९ दणाभ्यति [4 ४९]; 710.; सतुष == #2{70, 16600 8 नं08 8088 एाक8ंऽनाा]91९.
6) 1. द6द् ए 0681706 १6 81 80 पाणाक्नि€ धदभा 9४7 © 8178171 ४1 €8॥ €6 इ€ण]९ 808१2१1१ ९12 (879१), ४०९46 12 21 2108}07847709पात्121720}1 ४788 ए४४ (&४०१]०7, 10० उ णा, णा. 44 ०-- 2990) 1816 १००४ ९8 € ४ 16 6860४ 88886
(ष्कऽनलावणकं , . . ४४ ०११/९) (01. 459 8). 06 गा 12016 1प॥6168881116; हमर रयि पननकुर बसु पसग बे मुहन वसुदे सगुणी श्रमे रुषि 6 पमुप डुमर | ` ` ` ण 1९ 46 कपु (== ५454१00}.
7) 110# == मड
8) = युविष्प, €4०९४1९7४ शलं; एल् 70४ »€ €ण् €०ः68नत76 ¶०४
909, &. ए ०९०००, 10८. (५.
9) रैप
8 प्रत्ययपहोत्ता नाम [४०-
नाशिनामुत्पाट्ः प्रतीत्यपमुत्पाद् इत्यन्ये । इति परव्याब्यानमन्च हषणमभिधत्ते। तस्य =) ४ = १ वेभ्य ( पर्पत्तानुवादाकौशलमेव तावत्संभाव्यते ॥ किं कारणं । पो हि प्रार्थे प्रतीत्यशब्द ` व्याचष्टे नापो प्रतिं वीप्ार्धे व्याचष्टे ' नाप्येति प्राप्यर्थे। किं तरिं प्रतिं प्रार्थे" समुदितं च प्रतीत्यश्द प्राप्तावेव वर्णयति । ~~ दानो 9 9) ~. ~~ 5 तनदानं प्राप्येभवः प्रतोत्यसमत्पाद् इत्येवं व्युत्पादितेन प्रतीत्यतम्त्पाद्श- ~~ ~ ~ ~. (3) (+ ~ व्टेन यदि [1५.49] निरृवेषतेभं विपयार्धपहमर्णो विवत्तितः ' तदा तां तां के- (4) प्रा + न तप्रत्ययतानमों प्राप्य संभवः प्रतीत्य पमुत्पाद् इति वीप्तासंबन्धः क्रियते । श्रय वि- ५ ~ (&) = + ९ ॥ [3भ]शेषपरामशः ' तदा चतुः प्राच्य ब्रपाणि चेति न वोप्तायाः संबन्ध इति ॥ एवं तावद्- भ नुवादाकोशलमाचापंस्य ॥ (6) 4 ~ (6) (7) = ~ वि 10 एतदा [रघुकत ' किं च * घुक्तमेतत् ' चतुः प्रतोत्य पापि चोत्पग्यते चनुर्वि- ड (7 दः ५ गि न ज्ञानमिति ' ्रतरार्थदयासेभवात् ' इति पइक्तं हषण तदपि नोपपय्यते । किं काणं ।
1) 1.6 (10. 11४; 27४5110 दवव्4टवदा. 2) भि == 50101211484 == 5८104८04,
8) 54१११८४१, क. ६. ए. पठदानो) = पद्वक्ष व, 1950 (4 90140. ४, ए. 2321).
` ५ बुपेडगु
6) 110. 162२ = १८४५.
6-6) ८ ग.
7--7) 29118, 0816. . . , शप्रिद्यवा 8४ कव कदा एकक्छल्व च च &4- वव, (णर, $कतकान्ाकवकृककण्यान्कत , ,, वो0.: दे् मे मृ | ॥।२॥ नि पतेम भगु हम पपे (2 9 वेसृसुनसयर्देुमुषाेषु भेद पर" € 168 16€0€8 1661768 १४०३ 8 12 ¶ 2१1१९1४ (01. 45 5, 8१९८ 18 8616 क्ष 2116 पुग दमन == १०2१४), ० ८९ 8४88286 801६ 168 €> [0116१००8 एक०वपो॥68 ण्ड ॥कप४ षा © 21त78117४1 (0. 7, ०. 6), 0766646 एः 168 ००४8 कनन पमुप; ९168{-2-4176, 11116 शलटणला६, क-0क८म४; 66 (ला 6 त6ं क्षा ४०६ 3102 ए 8२1१618,
19प्रप्टणाः 1पंणला6, 29 0008० चप वट € कड ११४८ (7, 7, 8. 1). -- 2. 9.6.
५
8] प्रथमं प्रकरणं 9
कथमनि तच तत्प्रति] सभव इति युचयनुपादानेन प्रतिज्नामात्र्ात् ॥ श्रयापमभिप्रायः त्यात् ' श्रद्रपिादिज्ञानत्य चलुषा प्राततिनीपिति ' बपिणामेव तत्प्रा्तिदरणनादिति ।
एतदपि न वुक्त प्राप्तफलो ऽयं भितुः' इत्यत्रापि प्राघ्यभयुपगमात् । प्राप्यश्दृस्य चा- । व्यश्द्पीयवात् धराये ८ ८.८ ८ । व श्राचाधार्यनागान्नुनेन प्रतीत्यशब्दस्य '
(०९ (3) तत्तत्प्राप्य यड्त्पत्रे [नोत्पन्नं] तत्स्वभावतः ' ~. (९ (९ ~ (5) इत्यभ्युपगमात् । [ततो द्रषणमपि नोपपग्मते ' इत्यपरे ॥ = -गचन्यायितं क (7) ५. = यञ्चापि स्वमते व्यवस्थापितं । कि तर ^ शरत्मिन् सति इद् भवति ध्रस्योत्या- (प) क (8) [क १ (न भ दाद इ्मत्पग्चत इति इंप्रत्ययताथः प्रतीत्यतमत्पादाधं इति । तदपि नोपपग्यत ' प्रती-
1) 2188, ८7001 १८४ ९(2)01 01९5 4000010व 1.9 16लप€ €8४ 0108 4९ ००४- प्य) व्वा 1९ ग. £ र भेम रसु रगु मपणसस "= मा
०7४4 (== 54101014 2) ४८४ ४1/१9 तदद्य 2) 70970788 16 (11. 21209/९1/0117105/८ ९४८ पृ ५ ७ अ गमे 9२ |
38) ५४6 १४०8३ ३१12 81४2.88 प्र) 7४2 28 (क४व्मष्व्द्यःा ४दद्वकयी धक) = एप ४४३2११1४ 71४2, 20 :। 040 णा. 91. 28 1).
4) भविन 9 | गमते गगन $
४) = ०8 8१7९8 . , , ©. 19 0676 {गाप्ा€ 01. 10 & 1 ०6 © ]. 8, १००९ प.
6) 6९ 8४888९6 (0) {क72 , - , 0 वद्वरव्काषणएदवद्छदव) इण [०6४46 णालौ 0878 28108 ?४१1९१618 (90). 489 5) 1४ 2019886 6166 8प४ 2. 8, 1016 ¶.
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8) पष लमत यः चि पदेषु; ५ धर या. 314. 4; ०0४१९. 1, ००९ १ 249. 19; &0114678, 8. १०५. १८८‰0८८व्छ४द; ३४ ण $ ०४४४ पि. 1. 25; 3११२१४१४7९. 8
21. 1. (४80. 4 ०8६००, 1901, ००४6 188) 1#
10
10 प्रत्यपपपतीत्ता नाम [8४-
त्यपमुत्पाटृशब्द्योः प्रत्येकमर्थविशेषानमिधानात् ' तद्युत्पादृप्य [7;४. 4] च विवक्ति- तवत् ।
्रवापि ब्रश प्रतीत्यतमुत्यादशब्द्मभ्युपेत्य शरएएयेतिसकादिवरेवमुच्यति । तदपि नोपपन्न ' श्रवयवाधीनुगतस्यैव प्रतीत्यतमुत्पाटृस्य ्राचार्ेण '
| तत्तत्प्राप्य यत्य नोत्यन्न तत्स्वभावतः' इत्यभ्युपगमात्। व, ` शरस्मिन् सतीदं भवति करसे दीर्ध पथा प्ति '
इति व्याव्यायमानेन ननु तदेवाभ्युपगतं भवति , क्वं प्रतीत्य स्वं पराप्यं कस्वमपे- त्य दीर्घे भवतीति ' ततश यदेव [8] दूष्यते तदेवाभयुपगम्यत इति न युश्यते ॥
इत्यलं प्रतङ्खेन ॥
तदेवे हेतुप्रत्ययापेतते भावानामुत्पाद् परिदीपयता भगवता श्रङेवेकरेतुवि- षमकेततमूतवं स्वपरोभयकृतते च भावानां निषिद्धे भवति ^ तननिषेधाञ्च सांवृतनां पदुधानां पथावत्थितं ांवृतं स्वद्रपमुद्वावितं भवति । स एवेदानीं पांवृतः प्रतीत्यतम्-
। ~~ ~~ ल न 1) 2188. शष्छ्व्वण्; (9. द पुष् ल १
2) पिर दगुषयनेश्ं . प एइ ¶ १०९४) 8. १०८. १८८; ०0086 ॐ ४४ -
0042 (8. १०८. ‰०0% 8). ~ ¶ 871 28291072 118, 7. 543. क ल
9) प. पगम पतेेगु षि, - ©, ए. 7. 1. 44.
4) € वप). 11६. वकर 1४) व5४य 704८. . . -- 6000. 1497 8१४ ~ 278 59. 9; पष १8१४८४8 [प्र 1. 39, 1. 1. 41.
8) 6०0}. ए18०११1728९8., उ प्रा, ४४त. एषः ज 21767, एतत, 2. 169. -- ^ 11401. 1. १. (2817 7): ‰० ८! , , 0 वचद्वडव्मात्वन् , . ऋ्लुव्लपव्णद्ावण (== ४470177८ क्हवद्वा) पवक एकद्रव्य , ,
6) इषाः ऽवथा € उद्व, द. 1 ददार. 8 € शफर; 7010. 8. 95; 8०४1९. ‰. 7, 106 8. १०९.; &118. 264. 8; प 88811161, 298; ए €7०) भाण्डा, 127; € 114 678, 8. १०९. 50210008. -- &10 1४ ए ढ7६. 217 (6 दता भण इत्४ 3४. 8
€8{ &1€ 218, (०णण. 1. 10); 82087 (6. 1891) 372. 8; १6५. 10१४7 286. 99; 2 {71 8६९६६१९ ४१११९1४ (€. 1878) 84. 19; 8 ह. ए, 01. 15.14 € 80 1. 157.
-8४] प्रधमं प्रकरणं 11
त्याटः \ स्वभावेनानुत्यन्नत्ाद् घ्ार्यज्ानापेत्तया नाप्मिननिरोधो विशते " यावत्राप्मिनि- गमो विश्यते ' इत्यनिरोधादिभिरष्टामिर्विेषगिर्विरिष्यति 79.४० । यधा च निरोधा- द्यो न सत्ति प्रतीत्यसमुत्पाद्त्य तथा कलशाल््रे प्रतिपाद् पिष्यति । शरनत्तविशोषणेभवे ऽपि प्रतीत्यतमुत्पाद्प्य ' श्रष्टानामेवोपादानमेषां प्राधान्येन विबादाङ्गभूतवात्॥ 5 यथावस्थितप्रतीत्यतमुत्पाद्दषने सति ्रायाणामभिधेवीदिलतणस्य प्रपचचस्य प- वधोपमात् , प्रपञ्चानामुषषमो ऽप्मितनिति ' प एव प्रतीत्यमत्पाद्ः प्रपञ्चोपशम इत्यु- च्यते ॥ चित्तवे्तौनां च तस्िन्नप्रवृ्ती ज्ञानज्तेयव्यवद्धार्निवृत्ती जातिनर्मरणादिनिरव- शेषोपद्रवर् हितलात् ' शिवः॥ | 10 वघाभिहितिविशेषणस्य प्रतत्यतमुत्पादृस्य देशनाक्रियया ईप्तिततमलात् क- मणा निरदृशः खनिरोधम्नुत्पादमनच्छे्मणा्रतं । खनेकार्थमनानार्धमनागममनिर्मे ॥ यः प्रतीत्यतम्त्पाटं प्रपञ्चोपशमं शिवं । 15 देशयामात तंबुदस्तं बन्दे वृतां वरं ॥'
1) 1५ 86 1866४ १४०३ 1€ 110. 168 62116208 0101668 [0108 ४8४ 7. 4, 5-12. 2) 7020168 110. ५27140८0 ककत्वाव्काव्यव्य$ववमव्6 दका 547४170 11.1.11 8) 21004060, 210100८० 4/4४, &. 108 1. 6, रणा. 9. ~ , 4) ऽणः ९68 व€पड ॥ला7068 €† ]€पा एश6पाः (्लोपावृ €, €. 1009 1870 171 776 (लव, | ९०५50); 4 00140. 1. १, (7 11810178, ए00वत096 ब 9])0218, 1. 5 €४६ 71. 8. 2})-
0604166); 821१ 8027८. 8. 20. 9; पि १३१४01०4 14. 4; 4020422111 84 8121. 8. आ. 2. 9,
8) ¢ २.३०. [ 4. 49. - 77. चिद लुः पकम 9 7. गुप म सन ततेययमन्ुर | नषुगुपमेस भपय | कु
12 प्रत्ययपरोत्ता नाम [30-
वथोपवितिप्रतोत्यतमुत्पादावगमच्च तथागतत्यैवैकप्याविपरीतार्थवादिलं (४. 5४] पश्यन् सर्वपप्रवादां् बा[+*लप्रलापानिवावित्य ^ ्तोव प्रतादानुगत ब्राचर्वोभूषो भगवत्तं विशेषयति ' वदतां वमिति ॥ रत्र च निरोधस्य पूर्व प्रतिषेधः ' उत्याट्निरोधयोः पी्वीपयावस्यायाः तिद्यावं 5 ग्चोतपितुं । वत्यति हि ' पूरवे ्ातिर्धि भवेन् नरामरणमुत्तर । नर्भहामरणा नातिर्भवेन् जयेत चामृतः ॥ इति । तस्मान्नाये नियमो यत्पूमुत्पादेन भवितव्ये पश्चाननिरोधेनेति'॥ इदानीमनिर- धारिविशिषपरतीत्यपमुत्पटप्रतिपिपाद्यिषया \ उत्पादृप्रतिषेधेन निरोधादिप्रतिषेध- 10 सोकर्ये मन्यमान राचारः प्रधममेवोत्पादृप्रतिषेधमारभते । उत्पादो कि परैः परिकल्प्यमानः स्वतो वा परिकल्प्येत ' परत उभयतो ऽचतु- तो वा परिकल्प्येत ॥'तर्वघा च नोपपग्चत इति निथित्यारः ' न स्वतो नापि परतो न दाभ्यां नाप्यरेततः।
~ न (6) उत्पन्ना जातु विच्यत्ते भावाः क्रचन के चन ॥ ९
पेय दगुणेमम | तममेगुन ततृमिमुत || ब्व भगु च
यमेः वेः यथुमेय | ह्गृसपतिसनसकुस सुमे | मुम दुत ङगु `
रकयति || 0 7. ` ' मुगुससुद्ुपु पतिर | 2) 4104 == पवय
£ 9) 16४ 7. 3. -- 1058. ननद णद १११० -- णड व, ठम पन, 4. मैय नु न, ६ 4) (10. द्यं तवयपाव च्चणः एव्व तवव्यद्धा१०१द१॥ 0 बदक्. ४) 16 16716 [1066046 १6€ 18688109 1002 उ. 1.
० ४. यगु्सः मेम बुकुषिस' मेम् | गस ममु भे
(५) [८
4
क [~ ~
भ श. (त.
ः ~
= - प्रथमे प्रकरणं 18 ` तत्र ज्ञाविति कद चिदित्यथः। कचनणब्द् भ्राधार्वचनः ' कचिच्छब्द्पयायः। (नस - केचिच्छनद् ^ (1) =. किचनशब्द् श्राधेयवचनः ' पर्वीवः] ॥ ततश्चैवं संबन्धः ' नैव स्वत उत्यत्ना जातु विच्वत्ते भावाः कर चन के चन । एवं प्रतिज्ञात्रयमपि पो ॥
नन् च ' नेव त्वत उत्पन्ना ' इत्यवधायमाणे परत उत्यत्ना इत्यनिष्टं प्राप्रोति । न प्राप्रोति ' प्रसव्यप्रतिषेधस्य विवक्तितवात् (7). 6०] परतो ऽप्युत्पाष्य प्रतिपेतस्य- मानल्नात् । यया चोपपतत्या स्वत उत्पादो न पेभवति ' ता
तस्माद्धि तस्य भवने न गुणो ऽस्ति कथन् रातस्य बरन्म पुनरेव च नेव युक्त^ इत्यादिना मध्यमकावतारादिहरिणावतेया ॥
1 (न + ८१ ~~ ५५
+ | ० 1 1] गुनु | ४ मम प्न (ममतम | -- € ऽ््४ €8४ 6४6 8०016. 2. 1. 242. 4, 347. 3, 368. 8 € 800 28188. 17. 5, ०६ 18 {7686 68 1००९6९०४ 6187011९. 11 ९8६ 10॥67688३7६ १९ (० 18 प786प्ञशणा वप्र ति एद ४ -8 चा78 [्र. 1. 22; काकाकका0 00 [वव्यदयवऽ४द्वादव्यदकष्; पक्क प्पे - 2}811 1. 4.
४) 7. पुन] रेसःयुः परेः 3 म पिगु | सुम रखयु'पःे के दमस गुन्मन | -- 4८100१44, @0फ€09176 १6 प 21} ०8४ (0० र प्या, णा. 34119: ुनुगुं सुसमं पुरस्नरि पनत |
2) गण. भेषु सुगुगुयः पर्हुपय्दददय ; ५ प. 1, ए, 8. १०९. ०४ ए (2१० 87/47 114115८7, २४४. 2१ २80. 1. 4. 52); प 7 ह ४1०९४ 8. १०९.) १4771 78146 ०1/१7 (प्व 67ब{0 १1४), 57154201 @एव = (@व0 १८ ८ब{4); €. 7 81188. }. 369; 80871211 299. 2; पि एढए ४४. ५2६}. 252. 19, 496. 11, 511. 11; ४. श्र ०६. 199.10; == ०6६9४16 8808 18. -- 2616 81611810 0808 80 ए ४१1१67४
(01. 488 3); ५५९ ५ रेणे मेसुद्पगुगु ति पि पत्नि प | स्पुगुषः पर‰परियैर | 3) == ४418०81१ 2{878 ए. 8. - १०९ धप8८००, 1900, 0. 230.
14 प्रत्ययपरीता नाम [4५--
८ (1) प + वेयध्यी ~ ्राचार्वुददपालितस्ताक् । न स्वत उत्यम्रते भावाः तड त्पाट्वैष्यीत् \प्रतिप्र- ~ (2) ~~ [9 कु. सङ्गदोषाच्च। न कि स्वात्मना [40] विश्यमानानां पदार्वाां पनहृत्पाट प्रयोज्ननमत्ति। खथ (प (न (8) पतप नापेत ' न कदा चित्र जायेत ' इति ॥
>~ (4) -_ ७) प (6) तरेके ह षगामाङ्धः ' तदयुक्तं ' चेतुदृष्टात्तानमिधानात् ' परोक्तदोषापरिष्टाराच्।
1) 1.४ 21801 27818१४६} 06 5०८११३7 211४8 (100; ४747811४ € १,४]1६8 19 16६6०46 ०९ दक ्८कष 7800, ¶ 1. 2. 187) 86 ४०४९९ 0205 78०4}0ण्य 2100 रणा शा. 178--817. (87215102 60081816 प०6 क्ष्मा त€6०1€ @ण॥€ ९6 00८९४ € © 81721777 (. 148). 1.6 [४888 &6 7शु70वपा॥ 16 81668116 16्ल ल €०४ 00 1626 १6 8०१११४7 211४8 0]. 1828 1. 6): ण 6 १6 मदूणाक्डवक्रलः ०००8
82१0118 (1410212104व517 दद ९४ 19 {106; पयि 1 भेयुसयमः गेपः मे दमे ~ 1.४ 766 06 ५९8 प6९पड़ एष्षा21€8 68४ 6000066 एषाः 8 1 8 ए ४१११ ९1६8 (101. 4619-4)
पणा कद०तप्र# ए0णा 16 6०02176, 16 79180106060# १९ ए ०११४8112; रिद् गुणने (= ए८०११४०३11१9) सूस हम पपु गोमु मयस (= श्वाणकू) नै नेमे |" ` स | शप सुगुवमेपम, रुननिन | बस इम भरम् | देष देष मपम | ूमक्गुममर
2) 1188. १0881. -- 050 024९ १४०३ 11).
1 पेपर्" पयुनयनिदुनः र गेम्हुषगुसयति छर | सूदमर्ये वरगृषो सपण पय्ुमसनमे 0न्चैपत पूण मेद् रः एथ य् ममम भेग्ुषन् मेनु | |
©] क्ष6ढ 12 त186प881070 16 18, 8१४18 एक, 0808 8 ०१११९. 12. 2. 241; 801 881४2881) 7802 ९४ 4 11020. इ. ए. (9. 2827): पककवड्व ष्का" वव(कथ ‰्009/ कादा द्/द09 ०1404517 2/01454706ब1 , व४7/८ 11176 154१८ ८१11 2114" ५14
04/2८ ४१/ 15014541. 4) €6 == 80१8१1१6 - 24421.
5) 70. पृमर्गृम मूर सपे सपदि + युढ्षेसः सुसयमि फेम मयसमपनिडनन् | वुभवननयु्सयतिः शु 0मुवरिर | प्मोदमुभसः पन्गपसः ॥ पुरिकः पगु पदिनुमुमन्म्,
-49] प्रधमं प्रकरणं 15
प्रसङ्गवाकयवरा्चं प्रकृतारधविपर्येण विपरीता्ाताध्यतदर्मव्यक्तीं धर्स्माइत्यनराभ्रावा जन्मताफल्यात् ' अन्मनिरोधाचचेति कृतीत्तविरोधः स्यात् ॥
सर्वमेतदरूषणमयुत्यनाने वये पश्यामः । कथं कृवा ' तत्र पत्तावड़क्तं केतुदष्टात्तान- भिधानादिति तद्युक्तं । किं कारणं ' यप्मात्पर्ः स्वत उत्वत्तिमभयुपगच्छन विष्यमानस्य पुनहत्यि प्रपोननं पृच्छ्यते । स्वत इति केतुवेन तदेव चोत्य्नत इति ' न च विष्य- मान्य पुनरत्पत्तो प्रयोननं पश्यामः ! श्रनवस्थां च पश्यामः । न च वयोत्पत्रस्य पुनज्- त्याट् इष्यते ऽनावस्या] चाप्यनिष्टेति ' तस्मानिहपत्तिक एव वद्: स्वमभयुपगम- विहृति । [70.6४] किं [तन्मात्रेण] चोदिते परौ नभयुवति पतो सतु ्टा्ोपादा- नताफल्यं स्यात् । श्रध स्वभ्युपगमविरोधैचोटृनपापि पटो न निवर्तते ' तदपि निलञ्ञ- तया हेतुदृष्टात्ताभयामपि नैव निवत । न चोन्मत्तकेन सकाप्माकं विवाद् इति ॥
व त तुव प्रर शुम्भ ~~ न+ न ॥ प) 51 नुप मन | र मुग(सोपपिपनयु नप् दुन | ९ म~ सु गनि ~= ४ ि
नप निजुनन | ~ एभांश्ष16 1808 एए १९8. . शुग पपुपरि्गु १९ [णक76 €वृ्ार्भ€ण 880861४: 2145494०]. 007097९ 168 1४883९68 7812118168, 1008 901. 10४.
6) 2088. ०7 कद, -- 26086 ‰ €616 त¶९प्ह6 0701९८0४) 18, ३.
1) 719. == ०४४2. -- 2670086 > ८९४४९ ०76८४०४.
2) 2788. ०४वद्च0, ०९४४2. ~ 700101-0द5 == ०१/०९.
ॐ) 1188. 2८110400110. १
\।
4) {10. = 54479८2०; १6 "676 1008 80 14, 5; 7818 812१8१1१ ४; ०६२7५ ~ 14117811170त1ह{ 06 ९0768107 ४8 प 7. श क€-०४ "7 प९(३)-0४.. .: 818१४१1- ४९2 111 17५4-8 ए९€ण 66 2५4-02 (42/05).
8) ¶10. == १८९८४.
6-6) 8०4०९ १४०३ {1}. छ
7) ० ए्व्वणण््दम). -- 1188. ६०2०0तव०7. -- ग. ठिमस्गुे रुप,
#; 8) (ष्ण. प्त ४ ८०4९; एभ8, ©816. (षव ४४ ९०८. - (17). ६
उमृ गीष षडर
9) 1088. ०५47८८04 7040/क, €. 19078 11. 14, 13. 5. - न06ा€ पपकत 0 ण 06709४76 4१] €8† € (णान्रद्वाल््ण . , ,9.
नै
10
10
16 प्रत्यपपरीता नाम ` अ
(1) त् ¢ त „~ “~ (2) तप्मात् प्रिपानुमानतानेवात्मन घ्राचार्थः प्रकट्यति श्रस्याने ऽप्यनुमाने प्रवेशवन् ।
(8) ५ स न च माध्यमिकस्य स्वतः स्वतन्नमनुमानं कर्त युक्तं पत्ात्तरयुपगमाभावात् । तथोक्त
__ (~~ (9
मापदेषेन
सर्सत्सर्सच्चेति यस्य पत्तो न विश्यते। उपालम्भ्िरेणापि तप्य वक्ते न शकाते ॥ (9) ~ विपरहव्यावर्तन्यां चोक्त ' [5१]
^~ ^^ `
यटि का चन प्रतितता स्यान्मे तत एव मे भवेदोषः। नात्ति च मपर प्रतिज्ञा तस्मात्रैवास्ति मे दोषः॥ यदि किं चिडपलमेपं प्रवर्तयेयं निवर्तयेयं वा परत्यतादिभिधेस्तद्भावान्मे ऽनुपालम्भः ॥ इति । यदा चेवं स्वतच्लानुमानानमिधापिवं माध्यमिकस्य तद् कृतो ' नाध्यात्मिकान्यौ- पतनानि स्वत उत्पन्नानि ' इति त्वतल्ला प्रतिज्ञा पत्यां सांष्याः प्रत्यवस्याव्यतते (1१.
~न, ५ 1) 2188. 50/५7 11४८०. -- व 4 भ 2) 1088. ‰१०४९०४९1%५ %८ ८४. -- 110. (©> वनम 7] म् 801४: काका) ०0५) 4१7 (19161, &6717&प60€0} 3) 10211476 09118 "17. &. 1778 16. 11, 18. 5.
4) ४६] ८४५१6 इश. 25 (78४०) ०प, 14० उणा, 9. 189) ~ ण्ण 17 ०६6००, 1900, ‰, 2. 240.
8) 8181668 29 € 80 (7 ४०} 0 प, त इरा, णि. 828४), १०१९८ 86०१, एवल, 2. 217. == प 27110, 1251. -- 11६॥"€ & 1 ए 8.
6) 1188. ६८4९504.
7) 2788. %1€. (०1९८५००8 १6 2. प्र. ¶ 86०71).
8) 100. 8. उशा; 0114678, 8. १०९. (क नव्य द्सुववद्छाा) ऽकाद्ुक- {१५11492}.
9 7. गुतः गुरसठुमुपन्गुषोस' उनन् ये पननम 0५०. 47४11711 र86 1916800 १6 81 ४१११९] 2; ००प३ 18 1९70व078008 4818 80 €08€717016:
भ्म | प्रथमं प्रकरणं 17
| ध चिं ५)
7०], को ऽयं प्रतिनतर्थः ' किं का्यीत्मकात् स्वत उत कार णात्मकादिति । कि चातः ' वावात्मक्राचचेत ¢ [न्द् तिद्वताधनेः' (न
् \ कार्णात्मकाचचेद् विरदर्धता ' कारणात्मना विग्यमानघ्यैव
(2) रदेन सुपे सगु र्यु्स्य मे मुमान्, मुरो मकमहमस कवुगुधिस ज्व भेदय रसम | पिन | प्पेन्य्ः ममम
रब | 6
, 9 गुम (0.4 गुतगृरूगृस एमिवषेमु मै मेमनुमेपते" युगुसप्स हिणुत सतशमुपस गुमरगुसपम ममम नम् | मेमयरिब्रिर् मेम ह्गुय मेम् पस रत् सूर समसत तिस प" मे | 0)
रिसुर् गुर्सरुढुसगृुभिस [गहब छगु पयत | पयस ५; त (== ‰& 1 07वा्र 11010. -- 1784९: 5410051/00 {4701८ ९दददल्द ४); ९४ €ा8प् +€
शवेन पत्नय मपवे पदगुचिस शवः स्म गुगुगृ पनि [जुरिपम करेयम् पर वगुकरगृमुबुयुसपत्यसः युन श्जैप मवि | जस पवष गु मुसदनिमकमषममर मुवः पसवन पनन पन तिस 1 मेः, र 8४ 1 भद्णाा€४ १6 2०११) ४70211६2 10४0वप एष नरे 6 गुक्] गे
(*०१९४ ?. 14, 11206 8 १€ 12 11016 1)
1.9 0072986 (2--8) ९8४ 7€70वपं४€ एषः © 87 18111४1 1078 2. 2४. 9-- 26. 1. (४-) = णववाददणक्व च वदः कवप$वकणकाकक्दुणावय्ूक्वव्कद्ः १व 76000 ८९४ . ०0 द्छक्व् ९४0 {1410 (१५४८१ {10कव 11८ [18९] 5व#एका1द ९240547. ==. 1/6 [प ए0- 0086, पव्वकदव्मएका, ०7९8 7४8 6, 18766 वपन 06 076 [28 व्या क कट फोर 808 १6 €6 [€प ‰ 176 भत तप गष $& [8१81४ प) 2012]. -- 4 ९6116 090९८४०१, 110 76000008; 11 ४?ए़ 2 288 - [06008780 तप] फरक {209 [पष 0९६] ४ 126६भरत १९ ८९ [१६४] 77 801४6 १९ 1४ 001 €1816166€ [१९ ०९ ग भः§8 |: १००९ 1 ए ४ ४8 ?९९ € €& पणां ९४106 16 भा६& [दवार क्पाद्वप़ दक४।३0द्ध01] ९४ ५०९ 61086 [62188016]. | €--€) = #2 ` {कव ए7ददा-दा11, रवद = {कात ९वाद्, तावद गद्द १८४ द{0904- एष्व ०११४८07 च्ल्व ०४ १10 व्क पद्ध ९१/48 श (वद्व(धमा6०११८०॥ वकद ल्व 9 40547. == 14 भाद पाला प्ण १९३ इदप ए98 ९81 7ोकषप् ए8186; (दा 10 ०0प8 , 01008 ५०६ पफंा€0६ ¶प€ 19 €)086 ०21886 ९6116 ०6706, 2० व417€ ¶प€ 1४ ©1086 ०1 [72118४7 918#, &€8॥ पालः वपला€ प9४88९ 16 807 0प वपां [लका 16 दह्ाःक19४ 0768६ छ 106वप्€ कण [द्धा४,) 01 त106ा6॥ वप दहा]. कणश म 1266016 ववदध्व्य्छुवध्यय) 1 ९8 [कृष्व्लाश्ा6. . , .
1) 2088. 1 द्वध इव्यव . , , रद्वा |. . . गद्वाव्पव वथः. . . |
= ५१ १ = [77 ~~ ~ "१. क मुग् ॥९। ॥, ॥। 1711 (९! । (6) , गु फ ६।। । षै + ९ 1. 5 प | स रुबरलय नत्रम मुन पम् | म् इ सल 2) 71 €8४ वक्षि पप€ 1४ ५7०86 ०768४ 2४8 [70तप४6 क'ना€-फटण6 € १४0४ वृष्टे १ 100४९. - &. 21. 9. ~ दमण). [क हपाा6ा2॥00 ति क़ हक ४६ 2०१६४1१, 197. 10. 9
18 प्रत्ययपरोक्ा नाम ७५
न ^ ५ (2 तिद्रसाघनं सर्वस्योत्पत्तिमत उत्यादादिति ॥ कृतो ऽस्माकं विच्मानवािति 'केतुरपत्य [सिद्रसाधनं
विहदार्घता [वा] स्यात् ' पस्य तिद्वताधनस्य यस्याश्च विहदार्थतायाः परिकरार्थ यत्नं करिष्यामः । तप्मात्परोक्तदोषाप्रसङ्गिव तत्परिहार प्राचा्यबहरपालितेन ५) व. पनीपः ॥ ` |
श्वापि स्यात् ' माध्यमिकानां पत्तकेतुदष्टात्तानामसिदेः स्वतच्लानुमानानभिधापि- तरात्स्वत उत्पत्तिप्रतिषेधप्रतिक्तातर्थसाधनं मा भूडभयसिदेन वानुमानेन परप्रतिक्षीनि- करणं " परप्रतिज्ञायास्तु स्वत एवानुमानविरोधचो्नया प्वत एव पत्तद्ेतुदृष्टात्तरो-
षरङितः पतादिभिर्भवितव्यम् ॥ ततश्च तदनमिघानात् तदोषापरिकाराच्च स॒ एव |
दोष इति ॥
४ नैप सुरः शचुमुयकुमससमु मे कुवम् रुः पड किम जैपनि यै. ~ 818९2४1१68: श€-08-60 ... 110-08-128. -- (भः ०प।९8 1९8 ००8९8
वणां ए7€ा€ा६ 1381888066, एला1९0६ 7818858166 [0९11€8-067168], ए0णा ण+80॥ 4'९11९8 €218॥€0४ 808 12. {0706 १6 ९४०३९. -- 1.४ १०८1९ ०9६८0 १€ 54415247 € १९ ०५447211 €8४ €2 8111766 €1-0688008 }. 21. 11.
2) %0{/0101211010क॑ €8४ 0808 110 0011686 तप 6०0४8 ताल€णाः 16 6 १6 €+€ 51011017 तप 21 241 ए ४701168: 94 दका व्तक्रक४ . , , (16. 11, 26. 1).
9) 719. सुयिपर. मेः रुद्र
4 7. पहुदुपन्युष् म पमु |
5) 0ुष्न०ण, 78०8 5-9.
6) 1.6 गए. 11४ कपु, 00 7895 [70 लक ४7९.
१7) पृग्ष्े पुम्परुरपनि नो हेससुषुपगुपस, न्षुयप' वर्हदय्
[11.11.111 8) &†‡ 1 ‰ 2. 21. 18. -- ए९प४-६॥6: ९८०दकहद्ला॥ 50वद , , , । <, 9) 7079788 (1. -- 2188. वश न्पव्छवाऽक्ान वन्. -- 5९4107 (> ‰ १५५) 2,
1€णा' [0४४ १6 एप€.
= १ प्रथमं प्रकरणं । 19
अच्यते 'नेतेवं । किं कारणम्। यस्माग्यो हि पमर्ध प्रति्नानीते ' तेन स्वनिशयव- दन्येषां निश्चयोत्पाद्नेच्छ्या पयोपपत्यापावर्थो ऽधिगतः वैवोपपत्तिः पर्नीवुपदेषटव्या । तस्मादेष तावत्यायः ! यत्पर “तेव स्वाभयुपगतप्रतिजञातार्थताधनमुषादेयं [5४] । न चायं पटं प्रति [हेतुः] । सेतुदरष्टत्तासभवात् प्रतिक्ञानुताएतयैव केवलं स्वप्रतिज्ञातार्थताधनमु- पाएत्त {ति निहपपत्तिकपत्तामयुपगमात् स्वात्मानमेवायं केवलं विपेवाद्पन् न शक्रोति परेषां निश्चयमाधातुमिति ! इटमेवा्य स्पष्टतर्ट्रषणं यडत स्वप्रतिन्नाताधसाधनाताम- यमिति किमनत्रानुमाम॑बाघोद्धावनया प्रयोनम् ॥
1 पे ( (व घ्रवाप्यवश्यं स्वतो ऽनुमानविरोधदोष उद्वावनोयः ॥
1) 6700086, 11068 1--7. 2) 2188. 425101दव ५७८०, -- 11). 1 - (60णश्य€ाः पफ 2१ ४१४1१81), 1968. 18, 666 ५-046880प३ 7. 28. 0. 3, 1. 11.
3) क. पवि = एणप९०१४, 1० पा्)४, -- एणा ५-१०७७००४, 7, 28, ०.३.
(१४ सेत मोप गिग छर म कम् | गकम सुर सये मेदुर र, ननौ) दमपररवमिः सुण पन्डगम ठ [पस वकिसयनिः दिसु नतन्सयः रपरविगु' क पम्सवणुसि य एमे |
वध8 12 फला 191800 07९73{6 798 ला ९९ वृण पल्ल [वता : ]0रलाइभ १९, पणं भीप्ा९, वण एगफल, -- पणा 788 16 11 0 87118; © (४४९ 16 कृष्डडलणलः
8्ष० 60४ € €इक€016, 1४ एए€परठ वप 60 ण४६ाप् १6 88 010009० 0161806 पप्€ 801 09- 81108107 ॐ 8¶ 2118676, 11 ११०४6 णण वा5द. . . -
8) 10. मेद == 0502001\4४८, ०1 कए,
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6) 2088. 5एद/07कद्द्ाद(1द5दाकव/कएव = (९९व्यवा॥ = 5४01व पदाता द17000
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वप 7€ण€ण( प 0606; ल] ९00४ दवालणा णादला6 2 0076 191800067016019, - (धनं 68 प्र06 एल्ाक्ाःप 6 तप्र 6०08 वा66 प,
20 | प्रत्ययपरौता नाम प
सो सप्युद्रावित एवाचार्ववुपालितेन । [कथमिति चेत्] ' न स्वत उत्यचय्ते भा- वाः , तड़त्पाट्वैयध्यादिति वचनात् । श्न हि तदत्यमेन स्वात्मना विच्यमानस्य परामर्शः। [कस्मादिति चेत्"! तथा हि तस्य [तेयहेणोक्तावाकयस्यैतदिवरणवाकं 'न ` हटि स्वात्मना विग्वमानानां पुनहृत्पाट् प्रयोननमिति । श्रनेन च वाकेन साध्यप्ताधनध- मीनुगतस्य परप्रतिदरस्य साधम्यदष्टा्तस्योपादानम् । तनन स्वात्मना विश्यमानस्येत्यनेन हेतुपामर्शः। उत्पाद्वैयध्यीदित्यनेन साध्यधर्मपरार्धः॥ = ` ४
तत्न यथानित्यः शब्दः कृतक्ीत् । कृतकमनित्ये दष्ट" पथा घटः ' तथा च कृ- तकाः शब्दः ' तस्मात्कृतकलाट्नित्य इति कृतकलमन्नोपनयाभिव्यक्तो रेतः ।
1) € इपु)18 }. 14. 1.
2) 2188. {70 18 50 ४६4 ८१९4. . . वप). १ गु ठेसयुप सदेः ञे नबो र्पुफम म् " " " व८-वन 6011९8]001व 2 ८-24-४ (1९१) € 19 00986 666- 06016 (८52१ %10240000441170/@}. ।
8) 2088. {17८2 7४ वक ५९1 = ‰५४व्द/45#4, . . . . + {वद 0४ ६4544. ,.... ४ ६८17द ॥/ 8/८... . -- 1781-1] € बाला 110६८ एहक्ष्मा; {454 74761@ == द€ €~ 010१४ 16 70४ ४४९ ? -- €. 18 ०06 16660606. ~ 1.४ 768 ्र॥प्00 68 0१०06५4९ 88) प6 8प्राः 16 (06090;
न १ ५ = ८ ०५.५५५ € तरु =. वेसु भुम मदुस्पद्बुपतेः लगु वेनि रमयति नगु एमि == {10 ; १4 1४ 5४01411 ४१व्/49102170}॥ ,॥११41410दव< 00वुकावावा॥ च,
व 54011:5९0 वर 11514540 ०द्ा/45/८ ६८89/क ९९०१४८४9. -- 1.8 7007986 110 ‰४ 50211410. ,,,,,,,.. १००९ 1€द्राट्ढत्णा १6 ६ददव4०4/7 व्य -- (कद्व, = ध. 1108४]. 23. 1: &८{10दद्द0॥ 11094100 5417411/ 0).
4) 810 0. ~ 2188. 4111 ४... . + 7818 ्. 0. 14. 8.
४) एर्€ाा016 पपं १0०6 पा 688 ६०४1९0९; 5747१4८ == 50त7वद ४८द४कद- १८70८; 5271 = ५{240६८४117/८ ; 12111: 16 निं १९ एष्6णताः6 € 6०0४१6६. 18101.
9) 7. सुस मेदटगु पनिद = एषम 7) 1188. ००४10. 1790168 वभ. ००४१ € २66०7 2१९८ प््तव्पकरण्का. तिप, ˆ~ == ०4114/, . ¶ ४71 88. }. 265,
-69] ` प्रथमं प्रकरणं 21
एवमिकापि ' न स्वत उत्यग्चत्ते भावाः स्वात्मना विग्वमानानां (10. 8५] पुनह- त्यादवेय्यात् ' इर स्वात्मना विन्मानं पुरो ऽवस्थितं घटादिकं पुनहत्पादानपेतं दृष्ठ तथा च मृत्पिएडा्यवस्थायामपि यदि [6१] स्वात्मना विग्यमानं घटािकमिति मन्यते तदापि तप्य स्वात्मना विमानत्य नाप्त्युत्पाद् इति । एवं स्वात्मना विग्यमानवेनो- नयाभिव्यक्तेन पुनरत्याटप्रतिषेधाव्यमभिचारिणा केतुना स्वत "एव सांव्यस्यानुमान- विरोधोद्भावनमनुष्ठितमेवेति ॥
तत्किमुच्यते ' तद्युक्तं रेतुद्टात्तानमिधानारिति ॥
न च केवलं रेतुद्टात्तानभिधानं न संभवति ' परोक्तरोषापरिछररोषो न स- वति। कथं कृला ' तांब्या ठि नेवामिव्यक्तव्रपस्य पुरो ऽवत्थितत्य घटस्य पुनर्मिव्यक्ति- मिच्छति † तत्यैव चेक द्टा्तवेनोपाानं सिद्पवात् , घ्नमिव्यक्तदरपस्य च शतत. पापन्नत्योत्पत्तिप्रतिषेधविशिष्टताध्यवात् कतः तिदपाधनपन्नोषाशङ्का कुतो वा रेतो. ्विहदाधताशङ्कति।
तस्मात्स्वतो ऽनुमान[वि]रोधचोद्नायामपि यधघोप्वितदोषाभावात्परोक्तदोषाप- रि्ठारपेभव एव ' शत्यसेबदमेवेत दूषणमिति विज्ञेयम् ।
1) 7. -फयोस हस"
2) प्रभ प्र }. 14. 4. -- 0" भुणट2े8 (10. ९व्रवक 0 १५... .) &. 2. 19, 9. 8.
59 देरैपं स्वर, प्य्ैस सु" गुपयतिन्क0मु पतिर, च| 1०००५ 0740471 17९8 128 {1204 पा४.
4) परभष ऽप2 0. 17. 2. ६
8) न्नी हे ससु'्पतगुपसः निति पठ् (~ == 5०2114001204९14 ०४१०- व104011४41176/ 2 2108.
6) 2088. 40520117४वत, ०7 द्वक४ब्यद. 10. == १0०5210 010447 4.
¶) ब्व: (1). तविं (१०९1) == 168 ¶९प्र ए76पालः€8 ०016८0०8, ©-01€8808 7. 14. 4.
10
~ प्रत्ययपरीत्ता नाम 1 (
घटयटिकमित्यारिशब्देन तिर्वश्ेषोत्पित्सपदाधसंग्रहस्य विवक्तितवाद्नेकात्ति- कतापि प्ादिभिनेव सेभवति ॥ [7५0. 9]
श्रथ वायमन्यः प्रयोगमार्गः ' पुहषव्यतिरिक्ताः पराघाः स्वत उत्पत्तिवाद्निः \ तत एव \ न स्वत उत्यच्चतते \ स्वात्मना विश्चमानलात् ' पुरुषवत्! इतीदमुदारणम्- ४ दारार्थम् ॥
पग्चपि चामिव्यक्तिवाद्नि उत्याद्प्रतिषेधो न बाधकः ' तथाप्यभिव्यक्तावृत्याद- | शब्द् निपात्य ' पूवे पश्ाच्चानुपलब्ध्युपलब्धित्ताधर्म्येण उत्यादशब्दे 60]नाभिव्यक्तरेवा- | मिधानादृयं प्रतिषेधो नाबाधकः॥
कथे पुन्ये यथोक्ताघाभिधानं विना व्यत्तविचारो लभ्यत इति चेत् ' तड़-
1) 2788, 40८1८40209. -- ¶10. ० 2) 150 == 8476८ {07{5५0कदक7 त (वक वदद), १८0४ == 5०19 ०६व/१07ा४ व णच्छ) 1511८ == 2010 (८५5१८८१५ 07ब ददवव.
3) 1144040, €. पि ¶ ह ¶ ४0194 { 47. 6, 48. 4. -- €€ ००९९४ ००५९ ॥6 व<फ्णा- 81121101 €07[1{€ 16 7280106ा€ा1{; €॥ 1000009० €{&70116 97 16 8 2 ¶ 10 ¶ 2 (5६व८ ९104114८ वा) 60116 1€ [1041050 ९४ 168 १68 ववद्छ7द5, 0९7९४ € सल्ला 1'ग्लध०ः ५016 72180006ा€0॥ €8{ टएव्यृदा९व&/१) १००८ ९520117 51908, [पांव प€ 16 वक्रय ९8॥ 57४८.» [०16 १6 ॥. प्र. १ ४ ९०01.] ~ ¶ ४71४ 8. 7. 305
4) (10. ०7161 ददद ९४. ए क्प्ा-] पाक्ष 668 त्प ०8? 60 १०४९. ४) 20188. {१५७८४८८१ ५५4९ ; ०८८व८(१९य१ ५९.
6) 25८ == ८7८४» 11९६0 == 5०014104 %८द्/4070क४का) काक्र == 0४ १८50.
7) 10. == १८ एद दाबका, -- 168 70818805 १९ 1 कषण (पका ि8द्क्िण ०0116 61086 वषा 63816 भा{कंहपाला6#) तप 46 1४ २6५९090 06 14107कदद ०९ 168 21610 [28 : 1008 0170718 १६ 1'4एफ्णछक ९९6 पप6 ००प§ ४7008 व १९ 1410दवद, € 1076 00९0 ग6€ा8 (०४ 27847199). -- €^ 8 ०0016. {. 12. 184, 185; ० 66 एश - 80016761 €8४ १६१६०76.
8) 2088. &417071ब्+ 5४74100 ०1008 5174001 ०१८70. 1.४ €0्पिशं00 अकव == 810 € {764प7€1{6. -- 10. (7 दुर्भ [थ ह्विपनदेरुपमेम् प्, मम शि = | ४ - बु ~र ~ ध र) ० म | १0000004700
५1.21. -- ०९/०5८०४१८द/क) 66606 शवहपपालाप्0ा 10 6260807
व प्रथमं प्रकरणं र 23 च्यते ' भर्धवावयानि' तानि मर्ा्थीनि यथोदितमर्धे संगृ प्रवृत्तानि ' तानि च व्याव्या- थमानानि वधोक्तम्ीत्मानं प्रमूयत्त इति नात्र किं चिद्नपाततं तमाव्यते#
्रसङ्गविपरीतिन चर्विन परस्यैव पेबन्धो ' नास्माकं स्वप्रतिन्ञाया भावात् । ततश पिदततविरोधासभवः \ पत्य च पावदक्बो टोषाः प्रसङ्गविपोतापच्यापग्मते तावदृस्माभिपूमीष्यत एवेति ।
1) 88. वव च्वलाण श्ण, कप. ए न्मु रभु म् दबकेयर्येरय्, । परमुपसः == ,. -पकाभं ऋवा्तवतद्व &0४0कका. . , .. ~ 14४ € ९४०86 ९8६
16 ए88०760€ा†# € 3 ०११३7 2119) ध-१९३88 7. 14. 1; 16 ऋ द्द्छद्कक वण 8676) 6'68॥ 18 णण] 0९ त ह & ह 7] ०३, 7. 12. 18. -- प्रण 016॥. १6 8६.- ९668090) 8. २०९, क1174एकद्द, 17/74. =
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णा 16 १5१4८, #. प्र ए प६५. 199. 116, 8४1४8१27 48088, (४४. १४०३ धप- 8607 1901-2) 7. 13 १ ४५6 ४ भ्र.
4) एाप्ड 1४४ (द्द (7. 15 ०. 4) ९०४6 16 व्रा,
24 प्रत्यपपरोत्ता नाम (6४- ` कतो न् वल्वविपरीताचा्नागात्रुनमतानुाहिण ब्राचा्नुद्धपालितत्य सावका- ~~ क क न ५ 4 (1) शवचनाभिधापिवं यतो ऽप्य पटो ऽवकाणं लभेत । निःस्वभावभाववादिना पत्वभावभा- (1) (न्य विपरीत ^ (2) . (3) ववादः प्रपङ्ग श्रापग्बमाने कृतः प्रङ्विपरीताधप्रसङ्धिता । न दि शब्द् ग॒एडपाशि- . 4) ~~ कि ध (४) ~. ~ का व वक्तार्मस्वतललयत्ति " [10. 9९] किं तं सत्यां शक्ती वक्तर्विवततामनुविधी- £ यत्ते । ततश्च परूप्रतिजञाप्रतिषेधमात्रफलवात्प्रतङ्गापाद्नत्य नास्ति प्रसङ्गविषरीता- ` {~ [न ( ~ ६ धीपत्तिः। ` व निमदेतै ॐ , कि क्ष (न, तथा चाचायो भूवता प्रतङ्गापत्तिमुखेनेव परषनं निराकरोति स्म ' नाकाशं विग्यते किं चित्पूर्वमाकाशलत्नणात् । ५4 न .॥ (प) श्रलत्तं प्रतम्येत स्यात्पूव यदि लतणात् ॥ 10 दपकार्णनिमुक्ते पे पं प्रप्यते ।
नक € (न (8) शरहेतुकं न चाप्त्यथः कथ् हेतुकः क चित् ॥ तय्वधा \
1) 2188. ०१740१7, ०1177१2 ; रा. 8040116. {, 190९ 8. १०९६.
9 ग. सुयपतरस' पंगु पति" दुरम रु - पुनिम गवि चुः = ११०- 3411९000 १७८१ 7व॑21014501440 ८९ ; 80710, € 1607600६ 168 67068 61010768 एण्ड १६६ (0. 28. 8): 1व5ककरक दाक 54१04१7 द0145470् द ब,
3) == नाप्त १€ प्रप, प्वपयलयं १४०8 16 06८7०. 2.99, €. भ. 1. 7. 8. ४०८६, 44१0000 7{414, 41470८0८.
4) 2188. कडध्वककााव/ का, -- (100. सपनमापमेपर येष 6 परमस |
8) ¶ 91188. }. 338.
6) एिण8 18 + ९तक ४2 (28.4) = ८. 7104 ०0170८ (24.8) == ४,
लः पु २ नुपप; १6 1161706 28.4 ८/८ == निव. -- ८711४,
षणः पढ 20158521. 2. 1: कव्व क्का) चक्कर . क, 709, 210 80141 . &41170704दा7/40120८ (7४71८ ० (1140 1117 1705 द् 4/९) 50 11174179.
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8) == 1४. 2. ~ 1/9 1९लपा'€ १6 (078 168 188. 68६ क्ालौष्कका) कान चदद; 06 71676 17119. -- 281४. २१२१९१४३ 18. 9 (7८ (66 एष्य 4. च. 87067९१, 4१४ 19८81819 76. 1016 9). -- 894705त111219 14.89, 288६7870 21270811701९८९८१ द्ग 16.18, 21217 ठ} ढ7 2712 256. 18, 278. 9, €॥८.; क्छ (उक).
-79] प्रधम प्रकरणा 25
भावत्तावन्न निवापो रामर णलक्तणम्। , ^ परसव्येतात्ति भावो हि न रामणे विनां ॥ इत्यादिना ॥ ्रार्ववाकयलादाचार्यवाकयानां मकार्थते पत्यनेकप्रपोगनिष्यततरेतुवै परकि- ल्य्यते ' ब्ाचार्थबुदपालितव्याष्टानान्यपि किमिति न तेव परिकालय्यतते श्रध
व्यादृत्तिकाराणामेष न्यायो [7५] पत्प्रयोगवाकयविस्तरामिधानं कर्तव्यमिति
एतदपि नात्ति ' वियरव्यावर्तनया वृत्ति हताय प्रयोगवाक्यानमिधा- नात्॥ श्रपि चात्मनप्तर्वशाल्रातिकीशलमाजमावि[धिकरर्षया).घङ्गोकंतमध्यमकदूर्शन- त्यापि यत्स्वतन्नप्रयोगवाक्याभिधानं तद् तितहमनेकदोषसमदायास्पद्मस्य तार्किकस्यो पलत्यते । कथे कला । [तन्न] पत्तावदेवमक्तं ' [धरत्र] प्रयोगवाक्छे भवति ' न पर्[मार्धीत] `
1) = उडष्. 4.
2) ए 18 ण4€पाः 46 1४ 76867016 प्र. - ग " " = प्४९.
3) गरुग = ०/५,
4) € {96 806 ¶ण्€ ०076 214०८ (6-१९88०प8 1. 9) 8010 ण्ड्06. -- ९8 16 करवाव) 50 द्ध एद एए672) पण 2 19 08016. - तासु ग == भद 22/4191€,
8) 2006106 5970188 16 (19.
6) 2088. ०4११४४20, ~ परण 2. 16, ०. 8. - 1.8 प 4४19100 रपा, णि] 188-186, ९8४ १९ व 2287} ०४.
प) ए. € 09५. गुव्छतवः, (वण, वक = गप. मैर्
8) 0858. गाकु 0०. ग, रमेन् पशुम प, निर्य == ०१९1८१04 (001८८५14 द.
9) 2188. $ (क्छ्व्व् कव $ धद्व 20 वु०ववशच्छकए्य वद एक्क, वप. ५ वु ग सोश्३ | तेर पुव डु | मुव पत य" + पदेषु वसदस परम् | छिन 06 ए15१78१1१९18४,
760700४ 6-0688प8 7. 17, 1. 1 १6 18 ००६९. %*#
26 प्रत्ययपरीत्ता नाम "क
श्राध्यात्मिकान्यायतनानि [7४.9४] स्वत उत्पन्नानि ' विग्वमानलात् ' चेतन्यवदि- ( विशेषणमपाटी क न ति किमर्धे पनत परमार्धत इति यते ।
लोकसेवत्याभय॒पगतस्योत्पादप्याप्रतिषिध्यमानलात् ' प्रतिषेधे चामय॒पेतवाधाप्र-
^ भङ्गादिति चेत् । तरतशयक्त तेवत्यापि स्वत उत्यच्यन*य॒पगमात्। 5 यथोक्त सूत्रे ' प चायं बीतरेतुको ऽङ्क उत्पख्चमानो न स्वयेकृतो न परकृत नो- भयकृतो नाप्येतुपमुत्पन्नो नेश्चरकालाणुप्रकृतित्वमभावंमूत इति । तथा बोनस्य पतो यथाङ्कृरो न च यो बीत स चैव बरक । न च श्न्यु ततो न चैव तदेवमन्च्् श्रणाश्त धर्मता ॥ इति 10 इहापि बत्यति ।
प्रतीत्य यग्चद्वति न ङि तावत्तदेव तत् । ~~ न ~ ~ ~ (5) न चान्यदपि तत्तप्मात्नोच्छत्रं नापि शाश्रतं ॥ इति । ~ (6) ~~ न~ न ् भ (1) परमतापेनं विशेषणमिति चेत् ' तदयुक्तं ' संवत्यापि तदोयव्यवस्यानमयुपग-
1) 2188. @2{010/0४दव४४. 2) प्रणी 1002 उ. 8.
3) 0808 16 &ढ 118 ४87 088४78४; एणी 8041116. {4 20 12. 142 @. 370. 23). 1188. 219. 10. -- 1.6 (0. [६ (नुवर १क व्रदावककाद्छा0. , , (०6 16 © 2118४.
4) 1,2.11 ६8९18876, 210. 8-४; ९66 8166 €8६ ०६६6 2 त 1. 28, इषा. 20; ५ 11८8 ह 8. 288. 10, 239. 4 ९४ 168 एला्ापृप्€इ # (0८. 606 ए 2112177 ४. 4९७ इप्ा8 17692016 € वा 16 ¶प४प्पल€ हत8 (188. ८7८वव१४ वदद्ुषवीद)) 2 0008 १९ 1176 %((०५व711१बगद -- 6८ पणं ०6 ए४ [98 8808 010€णा€.
8) = रणा. 7 (श्र, १०८९८द0). 0 ०; गुम 1 प्रि ९ गृग्षे ॥ 7) गर्बृभे
-7४] प्रथमे प्रकरणं | 97
मात् । सत्यदयाविपरीतद्नपरियिष्टा एव दहि तीधिका पावड़भयधापि निषिध्यते ता- वद्ण एव संभाव्यत इति । एवं परमतपेत्तमपि विशेषणामिधानं न यन्यते ।
न चापि लोकः त्वत [7] उत्पत्तिं प्रतिपन्नो यतत्तद्पेत्तयापि विशेषणपाफल्यं त्यात् , लोको छि स्वतः परत इत्येवमादिकं वि[79.10५चाहमनवताघं कारणात्कार्मु- त्यत इत्येतावन्मान्नं प्रतिपन्नः ' एवमाचर्वो ऽपि व्यवस्थापयामात ' इति सर्वधा विशे षपएविपाल्यनेव नि शीयते ॥
श्रपि च पदि सवृत्योत्पत्तिप्रतिषेधनिराचिकीर्षृणा विशेषणमेतइपाटीपते " तदा स्वतो ऽतिदाधे पत्तदोष घ्राग्रयातिदी वा हेतुदोषः स्यात् ^ परमार्थतः त्वैतथतु- तरव्यायतनानामनभ्युपगमात् '॥ सृवत्या चतुरादिसदवावाद्रोष इति चेत् । पटमार्घत इत्येतत्तरिं कत्य विशेषणं ॥ सांवृतानां चतुरारीनां पर्मार्घत उत्पत्तिप्रतिषेधाद् ' उत्प-
तिग्रतिषेधविशेषणे परमार्थपहणमिति चत् । एवं तरछेवमेव वक्तव्यं स्यात् ' सादृ
1) (7. प्मृतसकेम पमुप, गृष् ९ वां द्०ािप्ा€ 1४ (16५४९ 4५१८
(४6 श€णनण४ः &%104 द८व = ०54४४९1 वट). 09 एणा त्द्वपाः€: . . , ४ण881 101 &0}8 118 (10 ०6 ५०६ १४ 0160. -- ५१7८2/ब7 द == १] 9 १] | > 2) 2802१8ए1१618?
3) 10. == ५१४५174१. 4) 27495९द7@ 0214 ९ १808 ¶10.; €ण्वटणाा€पौ [एय वाहय,
8) 1/9 1९6९ १९8 1188. 21681 88 ९0818716, ¡6 € 1708 30. 10. 15 (०57वता@- 004०, ९45६4100 ४ 1८५८९). 11 विप, 16 6018, 176 वक्दकान्कान्लवय्, 25८० (€. 28. 4
०051470 धद €. ¶ 911 88. 309; त ए 8 ए ४0. { 68. -- 1110. "7 ४ | क ५१०१
| दुख सपर | गनि मनुपयनिः गृ सगरे म २ चुत | च्,
2 90 १७ एण€ तप्र कत्वा ष्णा३. 6 ०१८९७१८ व्व्रका-वद ०6 ए€प( पषण १९ ९5/0८ 84०९ 18 61086 1162318516 [28 07071क्द्द}; १७ 616) १8०8 12९28९1 6188814९) 4०44१ 1६ प 10४४8 प्र6 ०0-61086.
6) 19. नबो, मुम्, १५ ¶) 200 प्र€ 49018 (1.
10
28 प्रत्ययपरेत्ता नाम [7४-
= क @ ~ ५ ५ [क ( )>~ तानां चत्ादीनां परमार्थतो नास्त्युत्पत्तिरिति ' न चैवमुच्यते ॥ उच्यमाने ऽपि पर्वस्तु- ५०९ परतो सतामेव चलुरादीनामभ्युपगमात् प्र्तप्तिततामनम्युपगमात् परतो ऽपिद्धाधार्ः पत्तदोषः स्यादिति न युक्तमेतत् ॥
सरथ स्यात् ' यथानित्यः शब्द् इति धर्मधर्भिपामन्यमेव गृछते न विरोषः।
1) 2188. , , , 7४९0 5200 , , , 0 दु वठरः कीद्कालद्छ$ष्वदकन्, प शमु धर पन््वयर्थषुगेष `" हसः एमपकरेदुत्' प्ुरसपिदिम् मर | ग्गुसपर एमुयन [पसमप्ुरसनिदठेर् | गुभुमुषि "^
१0245 == ४५5८) ९१९४८ (1. 2), पालि, 7681 इप्र8197166, एतमा (उ ४8९१1६९
8, १०९.); 8011 ४व५३क € नृ0शंप्नना @ [0 प्प्रद5क; 0010108 0 प्॑दणिंह ¶प6 एडम (. 81. 12) € {78वण# [ृष् > -- 1404018, ४. शष &88. ]. 229 (1176 8208 १०९
ग्गुस 0208 16 28826 0180016 16 17.) 6 281. `
वव == 2170८141, 14. प्र इ ०४. 245. 98. 94. -- ए0 पाः 16 8608 4०९ 16 10101 [0168606 १8४०8 0076 [028826) »०17 ¢ 11६28. 257. 7. ¢४व्ण्वल्याव्काद्ाा द, @- शकदाल्ुककााकाा) उवट) इक्क) [र द्विवयूद्ावाा. -- 197६ ए ४६272. 30.16, 39. 5 (०72). -- 80०4016. { 270. 6 ((श्वणाल्ाद). - 01६0४ त. 12. 58. ४८द 0 (दः [045400कर द [041 4१0/0 10८४०द्छक [कच ४ 40174८0 ४०7४ वदऽ वा४ 1४. -- 1111049 25. 11, -- 0]. 168 € 01688108 %७2व2/ 11/70, ददद 21/90/011८, 6 -१6880 0३ 701060४ 011. 65 9, 840, 909, 102 2-} € 8१ > ४. 3 (01. 1659).
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१०१९2 1४ 101 (पि इ 2 $ ४४. {. 68) ० 45/45 कवदाच 54 1९५ € 4. प प४. 199. 88 844.
3) 1. भाप 6181107 (च्छ-ष्कएव्या$व) ए6€णा 86 ए€8प्रफटाः धणं; ¶ पक्षात ए १०८४६ 7706: 411४८, &०एवव्न, 11 2760 16 कावा € 16 काका १88 16 पाः 2८८कृप्भा 26061816 (16 801 == ५€ पणं 8€णलात् . . . &०एकवव्८८ वः &०एवन), € 18 व186प88०0 €8 7008016 फक6 ४१९५ प 2056788176 वृं क्ण २, 11व्य्रक४क € चप 807 168 ०४€- 50१८& 01061608: 16 “52 € 16 न5८वा४१ 11८ 8076 5१44745 ; १6 10606 088 16 688 ३८०६]. ~ ऽणः 19 »816प्रा' १68 ५€ा7168 5दा100/0 6४ ४६९७ १०१९४ 168 ©. 20 3 दपर - ६) ए ४8 च ६7४ 1. 138; 5210९102 ६दकएकद 11109 ०४दव0 14क514) ०८८७८ ‰४ ०५४दव० *¶क न ०४0०0 ४४ द्वद धदव, . . . , , = {10616 13 . . . 00 वाशुप6 भ०प( 66 नण
-89] प्रधमं प्रकरणं 29
विशेषणे ठि सत्यनुमानानुमेवघ्यवदाराभावः स्यात् । तथा हि ' पदि चातुर्मरामी- [न न (1) ~ (न + (न (2) तिकः शब्दो गृ्छते स परस्यापिदधः' घ्थाकाशगुणो गृ्छते स बोडस्य स्वतो ऽतिदः। वे्चेपिकत्य [4 न न (3) तथा शब्दानित्यतां प्रतिजनानानत्य यदि कायः शब्दो गृ्छते स परतो ऽपिद्धः ' (4 ~~ = = प न [1५0 100] च व्यः त स्वतो ऽपिद्धः। एवं पथापंभवं वि[8भुनाणो ऽपि पदि सकेतुकः ~ ~. ॐ) निर्देत (6) ~ ~ € स बौदस्य स्वतो ऽतिद्धः। घ्य निहेतुकः स परृस्यासिद इति ॥ तस्माग्यधान्न धमध- ्ित्ामान्यमान्नमेव गृद्छते ' एावमिद्ापि धर्मिमात्रमुत्पृष्टविशेषणं यदीष्यत इति चेत् । न चेतदेवे '
9 8617 28 8४८} (5दा१21१॥/€102 (द४व्व् दद 10 ००९ददद) 0 06 ताश प+6 18 [०01] 200 1#8 €्८णाभा॥68 (०१(९§क)) फ7दप्ालाः 1४ 96 फपात्रिप्ताठपड गा ०6 -- 0 10- 81८0४7८) [९ 1580९02] 60०९8 1011068 9 816) ल 8प्ध॥ ०0१1६९४, [इणातलापा पाः 06 016 41४, ऋ1€ 02886106 छप त९णाप€ा 181]. .,. ,.
1) ए०णाः 1&व१ला8 276 प 2०001816. ~ €लप्ा€ (6०066 97" 16 ¶1). द् वियः मुपपति
2) 0190728 16 (१0. 5८ ए0वदा5छकऽ्ददाव्॥, 7278 10112, 1. 5 २ सल् | प् => म 3 प् म् ४ | -- 001४008 वप &०एवत १६०8 1९8 01१67868 €60168, एण कए ००४३8१२ 11. 2. 12, 27488६४7 84800. 287.
3) ए0ण' 180१6788116 वप प ४९९४7८४. -- ¶10. 6०णाा€ 1णड 13प्#॥ (. 28, 0. 2);
मु गुढननि मगुकपति 4) ए0ण 16 प भद6््ाा ४. -- ४४०7४ (= व्ण कनदका१वद) &0 वव], 10686 0४ णद्8क ४ (ध. १ 214. 8. 11. 2. 28, 30).
8) 1.९8 6९0०168 76 8१606060 छ ऽपः 16 दका (&कवद)) ण इणः 16 काव (०६१74). २0 168 ०पतत}18168, 12 १९४९० €8॥ व्कलध्द, कदका-१८, ए 01॥ 1008 कदा, 4 (©. श. 4). - ^ 01140 87781 ए. (018. 06 1४ 80८५. 48.) 2699 6. . .५10411}/- कककाककं त्का, (कद्वव , कवर ्र0 ४ 07 दद्द ०४१7; ०1251 दव- एवदव ककशव, वकलदन्द्वक ४ कब , उद्वा दद्द; ब८0 च्व, ०774 दद्व, ववभवछकक्छ्वरव, -- ऽप 12 76800 46 10्रणम ०700०866. -- प इ ए 20110 प 106. 3, 37. 19 (वि ढ़ 8०0817 78). -- तक ४१४7६. 12४7. 388. 19 5ध्वप2८१द्व 01/01 21070 ०११८८४५० 7/८, (णकएवा0 णठ; सवका ९९१, छतत? 2108 १ 7९17 लाव, , ,; कण्ककरका-व (क, , , -१द59/त वद ५(कव्ा" 0४ (0 (णद्) ~ ६५५१. -- 410 ह १8 ९101 ४१४. 786. ~ © ४701978 ४ 81211098 त्त ६४788 1. 2. 28.
6) 1188. 50 41410 155दव0#ब\. (प. म पनयरतष्य मुप पिमं
30 प्रत्ययपरत्ता नाम ` व
- पैप्माग्बहैवोत्पादप्रतिषेधो तर साध्यधरमो ऽभित्रेतः ' तैव धर्मिणत्तदाधारष्य विपयापमान्रातादतात्ममावस्य प्रच्युतिः स्वयमेवानेनाङ्गोकृता । भिन्नो ददि विपयीपावि- पीती । तवद विपर्यातेनातत्सदन गृदधते तैमिर्किणेव केणादि" तदा कुतः सद्रूतपदा- धलेशप्याप्युपलन्धिः । यदा चाविपषीताट्भूतं नाध्यापिते वितिमिर्किणेव कणाद ' 5 तदा कुतो ऽतदरूतपदायलेशप्याप्युपलब्धिर्ेन तदानीं सेवृतिः स्यात् । श्रत एवोक्तमाचार्यपदिः यदि किं चिडपलभेषे प्रवर्तयेयं निवर्तेयं वा। ्रत्यततादििर्यः ' तद्भावान्मे ऽनपालम्भः ॥ इतिं" यतश्चैवं भित्तौ विप्यापाधिप्ाती ' श्रतो विडषामविपरौतावस्यायां विपतेत- 10 स्यापेभवात्कुतः सोवृतं चतुरयत्य धर्मि स्यात् ' इति न व्यावर्तते ऽतिदधाधि पक्तदोषः श्रा्रयासिद्धो वा सेतदोषः५ इत्यपरिद्दार् एवापे । [70.119] निदृशनप्यापि नास्ति साम्ये । तत्र दि शब्दसामान्यमनित्याता] सामान्यं चाविव- ज्तितविशेषे योरपि सेविष्यते । न वेव चलुःसामान्ये शृन्यताशून्यतावादिभयां संवृत्या- ङ्ीकृते नापि परमाधतः ' इति नात्ति निषृरशनत्य साम्यं । 15 यश्चापमसिद्दाधारपत्तदोषोद्रावने विधिः "एष एव सादित्यत्य केतो सिद्वार्धतो- दावने [ऽपि] पोच्यः ॥
1) प. = (पल.
2) ०10०7425, १०77 8 ०4016. {. 239. 10 (== ऽवथा, ०८१्द/क, १10) ; 16 कण16 068 ६८11001-24८5 (1200111८, 7818016 १९३ €) €8॥ 6188814९, &. १५५4. 2485. 8-10, 248. 7.
3) ४०7 ण ]. 16. 9.
4) @&† 2. 24 0. 5.
8) 7188. ९80 ९४ 5वद{्क्दाए79/बा+ 5०7९०. (10. देरस् (मरिन. ट्स उपति ग्ुद्धगुस नुतिः मुदि मु प्यति पर सु व
== - . .05244740०5०461210८ (&. 7. 82, ०. 4). -- ऽक्षयं == ०१वुव१दाव्द४्छ @. 26, भ) ॥
विरा ^,
-89] प्रधमं प्रकरणं 31
इत्ये चैतदेवं यतस्वयमप्यनेनाये यधोक्तार्यो भयुपगतस्तार्विकेन । सत्येवाध्या- त्मि(णकायतनोत्यादका केवाट्यः \ तथा तथीगतेन निरलात् ' यद्धि या तथागतेना- त्ति निर्रिष्े तत्तया ' तव्चधा शात्तं निर्वाणमिति ॥ श्रप्य परोपत्तिप्तप्य साधनत्येरं हष- एमभिदितमनेन ' को हि भवताममिप्रेतो ऽत्र हेव्घः ' सेवत्या तथा तथागतेन र्द शात् ' उत पपमार्थत इति । सेवृत्या चेत्, स्वतो रेतोरसिद्र्थता। परार्वतयेत्' न पत्ना्तनन सद्सदर्मो निवतते पद् । | सद्सड़भवात्मककारयपरत्यधवनिराकरणात् ' तदा ' कथं निर्वर्तको केतुरेवं तति र वन्यते ॥ नवासी निर्वतंको देत ' इति वाकार्धः। ततश्च परूमार्धतो निर्वत्यनिर्व्तकलासिदः ' घ्र पिदधर्घता विहदधर्धता वा हेतोरिति । | यतश्च त्वयमेवानुना [70.110] न्यायेन केतोर् तिदिरङ्गीकृतानेन ' तस्मात्सर्वे वेवानुमनिष वत्तुधर्ोपन्यस्तरेतुकेषु त्वत एव छेवादीनामतिढवात्सवीपएयेव साध- नानि व्यान्यतते । त्यया \ न परमार्थतः पेभयत्तत्परत्ययेभय ब्राध्यात्मिकायतननन्म ' परलात् ' त्यया पटस्य श्रव वा \ न परे परमार्थेन विवक्तिताः चतुरायाध्यात्मिकायत-
1) 2. 2०४९४ 10217678 2 €20086 168 € 7010168 वप्र 70107; 19४ 0270768 ४०१११ ३६०३४, ¶. 2. ^. 8. 1898, }. 108 844. पए ण }. 106 (80०8 16 % 6) 18 21086; 14:7४ ४{४/तक ८7 द्क० [8 प ०7 ९३1४१. 59. 81, 66; €. 2078 7 2₹18)} 19108९8, 40 ०0९, 78 ००४९ 2]. -- गणप वणं छ€०८९ा (कह प०28
^ 716०417 2718४16, १. ए. 7. 8. 1888, . 7) परणं न १0९९१२८४ 2 ^ 7272
10९8: 117 5द/4१॥ वनवा 9214110 1080/4.
2) ४०३ १०0९द प०€ 18800 वृषा, व180768 १०6 कणो0 61९) 07621816 28.
3) 719. == 1114/‰/41070.
4) = 1. 7 (ग. 249).
~~ = ~ ५\/ ~~~
8) (१४. 3 > त्म प्रिमैन्छनु + फेिमति ससु " ": ९५७५-1 1९1 -10/25६4 ८0160124.
6) > 60४]. ०द/4{0१21710 °
7) 19. = 61८.
~~~ ल [नी न~~ ल [र 8-8) (0. पपम् २ मम मन, गमनम अप तननपुमुत मतय मवति
10
82 प्रत्ययपरीत्ा नाम [8४-
ननिर्र्तकाः प्रत्यया इति प्रतीयते" परात् ' त्था तच्नाट्य इति । परवादिकमन्र स्वत एवासिद । पथा चानेन \ उत्पन्ना एूवाध्यात्मिकां भावाः ' तद्विषयिविशिष्टव्यवङारकरणाद इत्यस्य पराभिकितप्य रेतोरपिदर्थतामुद्वावपिषुषेद्मुक्तं 4 श्रय समाह्टितप्य योगिनः £ प्र्ञाचत्तृषा भावयायात्म्यं पश्यत उत्पाद्गत्याद्यः सत्ति पमार्धत इति साध्यते ' त्च तदिषपिविशिष्टव्यवराएकर् णादिति केतोरतिदय्थता , गतिरपयु[9त्पाद्निषेधस्वि निषेधादिति एवं स्वकृतसाधने ऽपि ' [पर्मा्घतो] ऽगतं नैव गम्यते ' शरघलात् ^ गता- धवदिति , श्रधलंदेतोः स्वत एवातिडार्धता पोग्या । नं पट्मावीत]: [साग्रय] चन [उप] पश्यति ' चतुरिन्तरियतात् ' त्यया तत्सभागे +
ल, ~, > मये (9 ~ ै
यनि गुरबुद्चैमकेदु भमुप्फपकेतुपमगु मु मपमुर् सपे | = ०४० ण 1.4... 71111... 1/1, 7. 1 11/11. (11... (1.1.113... 05८८९00 १८८८. -- 1.2 1द८प्ा€ 4 €8॥ 10166888016. -- 1.6 119. 8०९६६०6 18 1९लप्ा€ 741८ (== १८/1९); 70818 १०१९ 16710106 वप्र प0०॥ 1व४व&/व, 887 ४४.१४7 ¢. 8.. 21. 1--2. € 178 ०016 80 1. 2. (01. 229).
1) {19. == द्वव ४४द्वव, -- ४० 16 09. प ० 68४ 0186066 18 ०0 ४00 वप्र वणय
2) 10. == ४10८४
8) 1088. व्व, पप र र्गृषृ पुग भं प पर र उदुप, सषयेप पमन
4) गष. = वश्व.
8) ष. ""' परहुदपननिदुत्पस | (भ) तिमित कभुुमपनः दग्र ध
6) ¶10. == ४ ५५१, -- €. 1016 5.
¶) 1188. ४४ | क70 1०7 5०८० 2 5व 14०. (10. (++ गृतेमङगृ [१1 ९॥
रेप रपति मुवि "^" 8-8) 1088. १ "00 174[14 | 54४7041 ९6४7 ॥4क (व5 कथ 44/77 ६57८4001, (10. सुमु दम्पन वमप दरुसायति मेषे ग]ङगृमः
निः प्रुष, मेठेमे | मेषगे कवये पमेव | सुवेन्नु वे मुरः मृहुनसः
-99] प्रधमः प्रकरणं 38
तथा \ न चतुः [109. 129] पर्त द्रं ' मोतिकलात् + यवत् ।
वर्स्वभावा न मक ' भूतवत् ^ तथ्चघानिलं इत्यादिषु रेवाग्यतिदधिः स्वत एव पोव्या॥ |
सतनादिति चायं हेतुः परतो भेकात्ति । किं सतत् , चैतन्यवनराध्यात्म- कान्यायतनानि स्वत उत्पश्वत्तां ' उतो घटादिवत् स्वत उत्पश्चत्तामिति । घटादीनां & पाध्यसमलाननानिकात्तिकतिति चेत् ' नेतदेवं तथानमिधानात् ॥
प् यष थ | -- 211 1१7५४८४८) = वद४८; = क९-क 20574115 -0व == 14547१८,
8८002192, ०58}
16 ५€इ{6 एका भौ, [शणल्लात6धि०य ९8६ तािला€. ~ प्ण #. प्रप, 109. 43 कष्नशकश्द्रककद) 44 5) 51 २547 दक) 114. 6 5८07 द4८८४. -- 4 00101377 80 ¢ ४1.) 278. १6 12 80९. 48. 8599 1 (४प (०णाः§ त'प0€ 0786९प्$शं० इपर 168 ॥018 @0€णा 78, 8886) 7768601, ये, एठाा7); दद्यादा ११ ९6८12११ 4५१८८ - शव्व्रष्छ, शच्रलककद्याः द 5८९१वा वकलक दद्ध , कव् ९९49४ ध च्ञ कव, , ४ववा वका ०४८८३17 धद) (०४१११) ८८547 द द5॥/८ दव 1450}॥ १ = द्ा्१५१४१ ४नद व वक्वव्$कवी उवददव १ द्वा दव॑रवएकाद्यकाः दवाव, ६8/0९ १5४ ्रक्मीः वव्छ(वकव्यदववाष) कवा {क 21 4/1410007471 कद्वद 5/2व 2 ४४ ०४४- द , 0व्यदवन्कावदषकवाद (2) 9४. ६4८ ववण 5४०४८ वव्न्१ 21010) वक्व, 21 व्दा व वब्वद्, ११5/८ाबव 0 व्का॥ १८४१५ ववदद् 7४5 वदद्ाक7 वपा ९४ . &८द‰/ 8 दकादव्कद्काचा क १८ दरकका0६४) कवं ४१ 01वद7 दरका०४
1) 709*]1८8 ¶10. ~ 2४88. ऽ८शच्छवध्य, -- प्र18०११1 १४६४ (8. 7. 8.) 18. % (वप्रद्ा +च्रदा)॥ १00 2व55व) कद्वद; लव १2 2485व४, वदवरनद्रकत(द == प्र 21760 297 == ^ ४४1 8821107 400. 1 (प 1४ 00लप्भ्णा €8॥ 106016608). ©. 87. प ४7त ए,
^ 8००81) 419.
2) 70"%70188 10. -- 2788. {44/८7 १८6१८.
3) ©07. 16 ए४१80पा6ा7160# वृप्€ व०ा06 1121 & 8 60706 €ड 67716 € 114४4 5व४४कवदाद (प 6४8] 2४171479, 7 ह ४१217 ४१. 31.1) कद्ाव्छव्कद इव्छकन, प्प्पवण्व्य, ०१८4१४५८. -- &101 २ १. 365.
# चै + कै = चै चै ०, ~ कै थ् #ै # #ै १ ॥। ङः ४1
4 0." गुम कगुस नरु पनः वमिति बम् |'' | वेस मेस परमत 0600 0/8 व0॥ 0 ककलट्वाय व्यः5८ | का . , | ४ १4 ऋ्लवम्ाः = ता धहप- 7160४ (50{{षट्) 7168९०४९ ष [0ण४. १९ एण6 १6 118वरलाइ 76 16 वहविपणौ वव्कवमल्लपभव्म॑द, 6४7 19 पप्र€श्णा दक्ाए. , , , चवक वलपाः6 व्लाणां ०66 (241८ == गजम् = परव).
34 प्रत्यपधतीत्ता नोम ¦ [99--
ननु च पथा परकीवेषनुमानेषु ह षनुक्त ' एवं स्वानुमाने्पि यथोक्तद्षगाप्र-
पतङ्गे पति स एषातिदयाधासिदहेवादिदोषः प्राप्रोति ' ततश्च य उभयोटोषिों न तेनै.
कश्चोखयो भवीति सर्वमेतद् षणमयक्तं जायत इति। उच्यते । स्वतत्तमनुमानं त्रबतामयं दोषो नायते । न वयं स्वतत्मनमानं प्रथमत 5 पप्रतिन्ञानिषेधफलवए्स्मदनमानानाम् । तथा दि ' पं चनः पष्यतोति प्रतिपन्नः प तत्प्रसिदेनैवानमानेन निराक्रि ते ' चज्तृषः स्वात्माद्शनधमं मिच्छमि ' परदशनधमाविनाभाविवं चाङ्गीकृतं ' तस्माद् यत्न यत्न स्वात्मादरशनं तत्र तत्र पटृदू्णनमपि नास्ति ' तव्यधा धटे । श्रस्ति च चततुषः स्वात्मादर्णने ' तस्मात्पटूद्थनमप्यप्यू नैवास्ति । ततश्च [10.190] स्वात्मा दू्थनविहद 10 नीलादिपरदणंनं स्वप्रसिदधनेवानुमानेन विहध्यत इति । एूतावन्मात्रमस्मद्नमनिहदाव्थे [9४]त इति कुतो ऽप्मत्पते पथोक्करोषावतासे पतः समानरोषता स्यात्। किं पनट्न्यतरप्रसिद्धेनाप्यनमानेनाप्त्यनमानबाधा । श्रत्ति पाच स्वप्रतिदे-
1) © १४/द्यू/क €8॥ €1॥6 8 97 ए ४४7 ¢ 8.1 ४.8. 142. 9 &4( ९०४7४०7 54010 त050. . . . -- 1.४ 76116 €086€ €8{ €7166 १४०8३ 16 ए९718 लं(€ [का ^+ 17०१११8, 2 3डढप्रो- 110४-8. 1. 6. - ४०7 98 &1०1६११. ]. 841 (81०९९ 252).
2) नवप हेसु. -- ५. फ 988. एण्ववा. 7. 320. ` 8) 2188. }१८//201ब76€.
4) 088 1€ (10. 704047९ ००5१८द्९
ए) 108. 1414८ ९:5५. 1.6 +भ (गुषमे मगा ( । दस ख प, न पु म म) 06 60077716 [98 7€ध्लाा€ा† 12 द0्९लना: 00 91{€ाव् ॥॥) तरि १89]7&8 19०४ 10्!€ 6 €€ वपं इप
9) पष्हुपुपन्ुषप परमुयस. ५ 7) 110. ॥ == 04/८1 (9128 ¶ ४8९१९}. - &. 4. १ एप,
8 प्र." ठञ्
9) 2188. 051 5द्छा द.
-9ण] प्रथमे प्रकरण 35
नेव केतुना ' न परप्रमिद्ेन ' लोकत एव दष्टवात्। कदा चिद लोके ऽर्धिप्रत्यर्धिभ्या प्रमाणीकृतस्य साल्तिणों वचनेन बयो भवति परान्नयो वा ' कदा चित्स्ववचनेन ' परवच- नेन तु न जयो नापि परा्नयः। पथा च लोके तथा न्याये ऽपि ' लीकिकस्यैव व्यवहारस्य न्यायशाल्े प्रस्तृतलात् । प्रत एव च करैशिड़क्तं "न परतः प्रसिद्धिबलादनुमानबाधा ' परसिष्रेव निराचिको ितवादिति ॥ यस्तु मन्यते \ य एव उभयविनिधितवादो स प्रमाणं द्वषणं वा नान्यतः प्रतिददिग्धवाची ' इति ' तेनापि लौकिकीं व्यवस्याम- नरुष्यभीनिनानुमानि। पयोक्त एव न्यायो ऽभयुपेयः ।
तवा हि नोभयप्रतिदेनेवागमेन श्रागमवाधा ' किं तरि स्वप्रतसिदधेनापि।
त्वधीनुमाने तु सर्वत्र [7;0. 199] स्वप्रसिद्धिरैव गरीयसी । नोभयप्रतिदिः ।
1) 7. पनम 19 (भ 3 2417070574द761.
2) &45 {५ %व्व८. , . . . 8808 १०८४९ 11088, ण्ठाः 1170 ह प8 1018४. © २87४0 98818 10171478 08708 क़ ४780278, }. 289 844. 1.6 ४००११816 6200868 €6॥6 {7€&86 46 12 414101457वका४ ऽपरि४ ४ 1४ २211116 तप 7818000€ला६; १८१४८ 8012000 0749 {5१वदा14101 142/९वद1॥ 577८0400 11702 00141171 १1दव58ववा7/@ ४९८८१1 एवमनाक्ताद व्वा 2... 20140170 दव् {74000 7 ददा 41949) 14व् 5/८ 141 @- अववा" 4050) १4 5धव्क्वदाा" ९८४. -- 1 पण इ 71118 16000: , , 71417100 १09 द/ कषद ए१4- ४7१? दक्ष ९5दव7व१द४व१। प्रधा 17457वद7459८ द८०/०' क089 2. . , ए0वण्व्दनादव्व ९४५ 1४ 72 ४१24 2 कावा" ४0 एद्वभ ० 1९११ 54 5१709 ४१/ १्वा1.. == 1४ ४8 01 ०३९६2, 274४बद वदद, 10 20016 ४86 कषय [6 1016) 18 2001४16 07 00४0 9९8 10 > 18608810 1097 € ०९८९४९६ 28 600 ४06 68180186 9 8 ए0००्भ्०ा १. (1. ए. 2४६३, व. 200 48. 306.) 1). ~ ति ए३१४0170प{. 68. 1 व का70 7 कलरव्काद्छवकुः 10 ४ 24504 58वकााव॥ ऽव 1८00 भवदव. 1.8 46091600 वपर एश्द्ा पाद्वह ४ 287 0108822; 4 द 000910007 ६४ 5०7 5{व् 7८ - 110 (= 2787 ह 11 28871८९8. $ ४ 1, 1) ऽण})0086 12 8१ 90788100}01: 5९०1 क- १1400 ९८८ 217(1041९070४41 117व00दवदा06/4101.
3) 2088. # ९४८ 2074४५५.
4) त, रदिगृ्रैमड षदे हुम्पपुगुष = एथर-शुवत्पत०-१७८- ०5172.
$) 110. पेसु मस् == 271४0 == ११५१५८५7 ८11 11611.
6) 1188. ८7 1 110074/411145व4द4्11 6144 १द्4411604. -- 24010147 दद1ढ == नि गस गुप == 4401९100 24116.
36 प्रत्यपमनेत्ता नाम [१४--
^( ५4 (2) _ विस्तद्नमि (3) शरत एव तर्कलत्तणामिधानं निःपरयोतनने ' यथो्वप्रतिद्वपोपपत्या बुदधत्तदनभि- क्षविनेयननातुयरात् । इत्यलं प्रसङ्गेन ' प्रकृतमेव व्याण्यात्यामः । `
परतोऽपि नोत्पग्यतते भावाः ' पराभावारेव । एतच्च ' नदि स्वभावो भावानां प्रत्ययादिषु विग्यते * 5 इत्यत्र प्रतिषाटपिष्यति ' ततश्च फामावादेव नापि पर्त उत्पग्यत्ते। रपि च घन्यत्प्रतीत्य यदि नाम परो भविष्यत् जञापेत तरि बज़्लः शिखिनो ऽन्धकार्ः। सर्वस्य जन्म च भवेत्वलु सर्वतश्च तुल्यं परलमविले [ऽनके ऽपि यप्मात् ॥ 10 इत्यादिना [10] [मध्यमकावतार्त्] पत उत्पत्तिप्रतिषेधो ऽवपतेयः ॥ श्राचायबृद्रपालितस्त व्याचष्टे " न परत उत्पश्यत्ते भावाः ' पर्वतः सर्वसेभवप्र- सङ्गात्। घाचार्यभावविवेको हषणमाङ् ^ तदत्र प्रतङ्गवाकयतात्^ पाध्यपताधनविपर्ययं
1) &. ¶ 21188. 2. 361 € इपर.
2) क. ररन्यि. हिष्रर गुषुखप'
3) ¶). गेल् मतस्य == 0101100 80. 4) == {. 3 (7४ 0]. 22) 1ण४०).
8) 1081168 16 € क्ण. -- ©€॥6 81466 €8॥ 1४ 14० तप € 9). णा; गणाः न- 06888 ]. 18, 7. 3.
6) १० हणा, 91. 1829 1.8 (€. }. 14, ००४6 1); प्श०वपा( 0978 2818९881 ४९1४ ({0]. 499 8) ४१६८ 168 एका 181168: 200 1दक॑0 ४. , . ; 4544 2९400; ऽव्वण्वन , , .
7--7) 2५६ १6 8108१ 9१1१618 मखु देति ७ घुवनिष्पर नयुगपतः नगु पमु पदर | 0 0
अप म ९8 प्र 21 पुग् प~~, स > | धि | ६ गमम गुम # 9 सन य 2/१ (मुम् | पन नद~ १^ | व) ५) न्म न] ५ ४। वननु
-10] प्रघमं प्रकरणं 37
कृतना स्वत उभयतो ऽरेततो वा उत्पचत्ते भावाः कुतथित्कस्य चिडत्यत्तः इति प्रा कूपत्तविरोधः। घ्न्य धर्बतः सर्वसभवप्रसङ्गात् ' इत्यस्य साघनद्रषणानत्तःधातितरात् ' मरतेगतार्थमेतत्
एंतदध्यतगता्घे \ परवमेव प्रतिपादितिबात् ' हषणात्तःपातिवाच्च परप्रतिज्ञाता-
धट्रषणेनेति यत्किं चिदेतत् । इति न पुनर्यत घरास्थीयते ॥
सनिर् दगुस्नमः १ मर नगुग्न नुन्न | गृष्दरमु पन पमसस्य् भस कमसत जवन पुयतिडन | देयम् 9 मेप कपय गुर ¢ सुम न्धेबुयकठेम भेदुयनिदधर | देमि कमु पतेन मेषु पमन | ००४७ ७08१०.
४1४९१४६8 (90). 499 5) 16 ५६26 7168606 068 81127६68 १6 प्र कवप८्टणाः; (४ 89 (पम् = >+ म " @ शः प (८ स~म (ध ठस 2 (८९ पणः ९७॥ ए1०5 [द ])
(© ॐम१ञ्> 4
8) 1.68 फणा€इ १८ 5४८८ ५{4व$/क८ ए0द्४द्) १ दा कव , , , , 80०४ १९३ 274 - 8410६ ्कड (गण 6-4688प8 2. 15. 1), (वा 61९8 प्रक्षा 168 ९011864९०८९३ 1001468; 0९१०३४४ 6 0208 ४8 61020४ 16 07, १००८ 1 78086 ९०१2०४1४ पप्रा. (एमा
` प $ ह ¶ 2700. ०४6 2. 24, ०. 6) - पि इ 2 ए ४४. 12 ४7. 463. 19: ‰/001415९व ८ 1174507744- 8दद्ा\८104101 1१4{45८ब7/4000 5द व ०/४,
1) ४४ ४०१०6 १8०8 16 (9.
2) ¶. == 11/47 द्यू४.
8) "9728 ग0. , , , कव ऽददावय- वद -407क४द्.
4--4) स एन रढरतग्पः मेद्य म परम | बर किरः यष मदि [1४०] प्र | गुने" मृमपरुषमने' दुम सुगृतयेमुपः, यदुप प्ेम 1 11 । ॐ) 58. कव्व काण क, 1.6 पमष तमणृम० पणठ फहुणण लंव्द कृ ०९०१ पक) १250 (व == 168 कभंडणछला!8 6 8०१११7१ इ11६2, (नणय 1. 3);
0818 ० € €0}01€041€; धतं == 66 १०6 ए02*8 ४1१62 ?16४ १6 १६. &. ध. 0688008 }. 89 1. 4.
6) अं कण् क ००९8६ 88 (2४४ 08908 16 पक वपं 00006 वावत (१११) व [1-०४-92].
38 प्रत्ययपहीत्ता नाम [109-
[न ट ५ षे भिहित क ( ४८५१ ४ दाभ्यामपि नोपत्रायतते भावाः ' उभयपत्ताभिद्ितरोषप्रसङ्गात् 'प्रत्येकमुत्पादाता- मथ्यीच्च । वत्ति हि ' 0; द ५ ४ न~ .< (9) स्याइभाभ्यां कृतं इःखे स्यद्केक।कृतं] पटि । इति।
शरङेतुतो $पि नोत्पग्बतते" £ हेतावतति कार्ये च कारणं च न विग्वतेर इति “वत्यमापदोषप्रतङ्ा् › हः गृ्येत नैव च ्गब्यदि हेतुग्रलये त्याग्चदरेव गगनोत्यलवर्णगन्धौ 1” इत्यादिदोषप्रपङ्गाच्च। | 10 घराचार्थवुद्रपालितस्वार् ' शेतुतो नोत्पग्यत्ते भावाः सदा च पर्वतश्च सर्वप्भव- प्रतङ्ात्॥ | रत्राचार्थभावविवेको ्रषणमाह \ त्रापि प्रसङ्गवाकयलात् ^ पदि विपरोतपाध्य-
1) 8०११2811 गु 6 2१ सुचुषन निनपन् न
2) = शा. 9
8) = "7. 4.
4) 110. == ४2८92.
ॐ) ‰ ४१1 $ 87) 81६ ए४{78, ४. 99 (01. 258४ 7); एणाः क ०86००, 106. ल.
6) 8०११४९१8 11४8 (901. 1829 1) भ]0प्6 ऽव्ाए्व्वव्णषाद४क 170405८ ९2. &{†. 61-06880४8 }. 89, 1. 2
गग गृतने ुवमत मु कुषम श बु ुमन्मिपमवदुपम्|मरक नितुश् म् |प्रसरकदुपस जचस ुवम नुनप न विमुन्षुरि [र्षु जस गा शफम् चुप यन | इम निसु यरय पर) ० 91१. मे मे रवृ | हसने धश नयुगनदर | भस सुमृन्वुषुपर् भरर | 1.५ काष्
-101] प्रधमं प्रकरण 89
ताधनन्यक्तिवाकाार्घ (1) ~
॑ इष्यते तैल इक्तं भवति ' हेतुत उत्पश्चतते भावाः कदा चित्कत- शित्कप्य चिडत्यततेः\ प्रारम्भसौपल्याच्च इति । तेये व्यौव्या न युक्ता प्रगुक्तरोषा- दिति॥ ॑
| तदेतर्यक्त र्वोदितपरिरारात्' इत्यपर ॥
(५) = शि. ण श यच्चापीश्ररादीनामुपतंयहार्थे तदपि न युक्त ' ईरषीनां स्वपरभियपततषु यथाभ्यु- ` पगममत्त[10४]भीतरादिति [70.149] ॥ तत्मात्प्रताधितमेतत् ' नापत्युत्पाद् इति ॥ उत्पा- दासेभवान्च सिद्धो ऽनुत्पाशारिविशिष्टः प्रतीत्यसमुत्पाद् इति ॥
रत्रा ' चययेवमनुत्पादादिविणिष्टः प्रतीत्यपमुत्पादो व्यवस्थितो भवद्धिः ' यत्त- रिं भगवतोक्तं । प्रवि्याप्रत्ययाः संस्काराः ' घ्रविन्यानिरेधात्संस्कार् निरोध इति तधा ' भ्रनित्याश्च ते सेस्कार्ा उत्पाद्व्यपधर्भिणः। उत्यग्य कि निरुध्यते तेषां व्युपशमः तुलः ॥
800 १6 1ब<10व्ध:§८ €०ा 7९९6 १818 ए 12 १२१1 १९1६8 9]. 509 5, 7४ 9. 529 8 णप 8001 19४0 पां 1€8 8 ह 1६1 इ ४8 (१181८00 १€ 171४४ €६ १९ 10१५४५४). -- 1.6 7016867 72888९6 ४ 1०846 €८} 96 ४ 7168 1660676116€8.
8) ‰नव४. . ... . (९५ €8४ 16 त€श्लगु€ ण वव 01989728 षदा (षणं 2. 15. 1 €॥ 7. 87, ४. 8). ^ 27€0व१्८ (नााप€ 5दब7१८११४ 1४ िाप्रा€ कलत १0100द0/4701८ द्ध) (== 5247#५ १९७ ३०१११} 211६9}; ०0 ०0६ दपद ववव्कष९,
1) 719. = ५१75४८1९. €}. 15. 1.
2) 2188. @000107450वए01 दद्व ४, ०5८11007 द४द्द ०४.
3) ©९8{-ब-त116 1४ ०४८८ ¶प6 व०ण6 8 ०१११ 811६8 पप 7 दछद्यः व १९ विद्द्य] पा.
4 छन्द्यं यनपचमुपनि>. > ~ भ्र (गुठु्गु), थ ष्ण 7,91.6. 9 79. गुर एर" "^" पप मश्च न पनत वसुव ठ पपर"
6) ए०फप्ा€ व 28शवृण€ तप एति ४8 प 20४.
7) ©४6 ¶808 8. प््टफा 6 पमा8, ©" 44 (86०४६) प, 4.8.) 8९]४. 1898, 7. 300) ४१९८ रका ४०६९8 १४६८८ ®दद , , . | ५02 ४ ऋक्व क्रकं ६८5८ ९५९०८१० 5१.१० ॥)
10
40 : प्रत्ययपरोता नाम [10४
(1) 4 9 क रि {^ 4 (2) तथा ` उत्पादादया तथागतानामनत्पागादा तथागतानां स्थितेवेषा धमाणां धमता । क 5 ~ (४) न क्री थापन्राप्यं न एको घर्मः प्स्थितये पडत चवारं ब्राहाराः । दी धर्मो लोकं पालयतो क्ीश्चापन्राप्यं चे- (4) त्यादि। तधा ' परृलोकादिषहागमनमिनहलोकाच्च परलोकगमनमिति । ५ न = न जितो (5) एवे नितेधादिविशिष्टः प्रतीत्यतमुत्पादो देशितो भगवता ' स कथे न निहध्यत इति ॥
१ 2) भो [न् र् (7) क्क । यत एवं नित्ेधादयः प्रतीत्यतमत्पाटृस्योपलभयत्ते ' श्रत एवेदं मध्यमकशाघ्
1) प्रण 881१४१87 218४8. 21.8 (४2. 0. 141), 8041016. £ 8412. 150 .877.7) 4 01101877 8.1. १. (३०९. 48.) 2310 (३१९८ 18 1€नणा९: ऽ ४९॥/व१ , . ,), 1888. 286. 16; € [0णा 1४ गिाप]€ ५द्वद्व दक. , &11§28. 16. 18, 27810 8. 273. 21. 1.6
~ €\ ~~ ल ~ न~ १1. (ममन सर, ये ४ 61 किमि) ८0007716 18 1९6॑णा€ ९ढ; 11190616 ण86€ {72८00 १6 60प््टो (९§क४) १०६ 646 ४800066. -- 2. ए $ ०४. 94, 15 81६14850 4041740 ५5409492. -- 149 0 प्रा€ १6 19 50 द॑द 468 व71 7145) 1086766 0818 16 @ 8 118 9.7 0 8.8 ४78, € € (०ाप्€ १९8 दना €ा+४॥९प78 18071904 प€8, 9
एष्{16 वप शवाढाहा व7व17१वएव् कद्व; पणो पकाल 4 7&. प. 1. 286, 6 (आ, 184), 8४१. प. 11. 25. 19, ४1108९४४ पा. 2 ९४ दपा.) 1.91 18 १४६8178 144 1 0०6.
2) १9. १0०।९ डुस्युःप,
3) 7018, ¶प४76 छप लण् 0०६8. &. 7087728, 1.22, आ. ४०५. 118, 0110९78 20४, फर 21760 248, 70. 890. § 68, 71, ए १६18१. 509, 21110. त. 1. 261. 4 (व८द० 001८ एद्धद्द्ाद४ 07 द्धक ४८ = 51421020 {0 ४{द4क = 811074८5 = ४द
५५९१ क/८, ‰&१1€ व॑ क0. ,,.,.. » 4 01111. 1. ¶. (8०९..4.8.) 01. 2509 7, # 0१. 1. 68. 17, 81-40-10- 420० प (ण86€ @पं९॥) }. 126, €(८.
4) पणा 1४1 प] ४ कः 42. 72०८-१ एकच 5द्ाक काद [नदा अवन 4201८ ९८2 त्च ८८ ०वव्यव9 ८८. 47 £. प. 1. 2. 51, 1४ ]. 116 ९४ ^ ५0988119
§ 818 (५१९५८ 18४ 1€प्ा€ 547 [== (ष्द््] 7400002). -- € & 11 88. 105, १. 2, 136. 1,
192. 1, 210० ‰&1$8 7४१1१48, 7200.-81, 7. 20 7016, 1१. 1. 462.
8) 1/6 (0. एप प€ 16लपा6 766४016; ००५ काव (न 1.6 8€08
708191४ € 70 १ ऽद्रा०10व7ब. 6) 2788, ‰्॑व ९९का४क) &८व (णद्ध. १) 7). (हप पुस्". निनय 1105-0 == (५५, 62768801 [पऽ ५९८-
14०९. -- «0७७४ [09.66 ¶प€ विलप 6 क्ष तप 700०. ,,,१
-119] र प्रघमं प्रकरणं =
। नोतार्वपत्रा < (स प् प्रणीतमाचर्थिा नेष॑नतार्थूत्रात्तविभागोपदर्शनार्ये। तन्न घ एते प्रतीत्यपमुत्याद्प्यो- त्पादाएय उक्ता न ते विगताविश्चातिमिराना]ल्लवविषयत्वभावपेक्तया ' किं [7). 149] तर्छखविश्यातिमितेषकतमतिनयनन्नानविषयापेत्तया ।
न् = (2) ५ ५ (न [9 | तवर्णनपिनया तूक्तं भगवता ' एतद्धि भित्तवः परमं सत्यं पड़त श्मोषधम 4 ~ (8) निवीणं ' सर्वसंस्कारा मृषा मोषधमाणः ' इत्यादि । (4) ~~ ~ ~ _ (&) = (6) € तथा \ नास्त्यत्र तथता वा ' श्रवितथता वा ' मोषधर्मकमयप्येतत् ' प्रलोपधमंकम- त् (र = (7) प्येतत् ' मृषाप्येतत् ' मायेयं बाललापिनी ' इति । तथा ' ` केनिपलोपनं फेनपिए्डोपमं उषं वेदना बुहुदोपमा । मरीचिपदृशी संन्ना संस्काराः कदली [119]निनाः।
ज ( ( मायोपमे च विज्ञानमुक्तमारित्यबन्धुनां ॥ [इति]. "
= ५ (र न ४ 9 त # ^ (२९ ]
1 नपर" दुदर मदु; रसन कृञ मदु. 0६००.48.4 ०६०4 2.11 (01. 832 16); ४. ए ६. 74. 4, 8०41016. ‰. 1, 8. १०८. १९४्7कद, 2१0. 2१२४ - ४ढ 78, 91. 2589. - €. १३९002{ब12101878 1. 12
2) पम 1708 शा, 1; ५६ 9 ८०4४01९. 12. 2 0. 244. 13) ४१९८ 0"17201718810168 166९३. - &. ॐ. ४ इ प. 245. 907) 908 2115द 91050द14170010ब78.
3) 2788. ४६४ |
4) ००076 भः (7 मे =< 1 च प्लु %२, (=-= ५४८१८८17 ब४द)
8) € &1§ 8. 261. 8 2015द१1050त7 1101८ एब; 21. ए ए ०४. 245. 906
एव्म का; 19110. 11. 261 ८११८ब्द्. , , दह {१८८९१ ११8 210414ब्79499012, १792. प्रका ९८१) ०7८४८, एद्दब्बद्य१49; ३ प ६४801} 8४8 757
6) 21४०4०९८ १४०३ 16 112. ~ € 1811४४१ 18{87> 2909. 4, = 7) 719. ११ (ण1€]). - €. 8४१. त, 1. 148. 5. 8-8) (€ १४०३ 88 ण फ ०५१8017६ ह 8 [. 142 (22, 95) 15) -- १९५ 168 एश 12068; वनद (€. 0. प १ ०४. 139. 2), दव्वन्द्च११द, वदरा ५८००.
9) एण 2. एफप४. 189. 15 द्व्वव्कडद्रबकाक) 3०१1९. 1, 192, ९70, 10६८8 2. 141; 8716 ०१17 2018४16, 81. 58 (ब. 2. 7. 8. 1886); 17९910400कत, ®५47%वक, 0८) 0. प्र ०४, 139, 94. 14. 5,
10
10) 1.6 (9. 2०6 नसनुततन == 1, € (्माक्तप्र€ € 7086: दकः एीष्5ौ" -
3 ५.
8
10
42 प्रत्ययपरीत्ता नाम ` [119-
एवे घमोन् वीत्तमाणो भिततुराहन्धवीर्थवान् (दवा वा पदि वा रत्री प्रज्ञानम् प्रतित्मृतः ५ “ प्रतिविध्येत्यदे णातत सेस्कारोपशमं िवे ॥ इति, नि्रत्मकलाच्च धर्माणामित्यादि। यस्यैवं देशनाभिप्रायानभित्ततया संदेहः स्यात् ' का शत्र देशना तचाव का नु खल्त्वामिप्रापिकीति । यश्चापि मन्द्बुद्धितया नेयाधीं दशनां नीता्धीमवगच्छति ' तयो- हभयोरपि विनेयननयोर्चार्पो युत्तयागमाभ्यां संशयमिष्यान्नानापाकरणार्धमिदमारन्ध-. वान् । ¦ तन्न न स्वत इत्याटिना युक्ति हपवर्षिता । तन्मृषा मोषधर्म यद्रगवानित्यभाषत । वे च मोषधर्मीणः संस्काराः ' तेन ते मृषा ॥' पूवी प्रज्ञायते [7\0. 159] कोष्नित्युवाच मकामुनिः। सतासो ऽनवरामो कि नास्त्यादिर्नीपि पशमे
य 2/0 470८४41 साकषा ष कए 727४ ९ = वाव्ाद्ध 1,101.17. (रसि ससनन् भ ) १1411 54105017081 10 -1010064014-0044901
11171174... सल् समनु) 2/4 व.
1.४ 88166 वृषणं 77€८६6€ (7९114014) € ९९ ४88९6 -- १०९ 1€ 608 € 1086 808 10111081 [16 248 ९४८११ का7141100द्॥ ¶्60101100 €8॥ {78 17607661] ~ 8076 6168 179. 8 इ इए. 8 ० 1€ ४9. 01686016 प6 12606.
1) 2188. }१7८६११९१1४८ व९, 2747४०410/4८4९. - &. & 1६ 88. 1985. 19, 317. 10, 214 1. 5; एषा : 2न{7४८ब70, ०९११1४ (च. 2. ¶. 8. 1884, 2. 72, ^ 28. न. 1४१. 228. 9 € 1०062).
2) ए" 16 7980ण्लाला६ €४ एषषा 1्लत्ा6€; एणी, ए०पाः ९९6 गि ्पा€) च. ^.) 1902, [1 2. 2535, ०. 3.
3) ४५0} (2514191. 4) &-06९88४8 14. 1. 8) 1178 शा. 1. 6) 101४ 21. 1.
149] प्रथमं प्रकरणं | 43
कात्यायनाववदि चास्तीति नास्तीति चोभयं । प्रतिषिद्ध (1) प्रतिषिद्धे भगवता भावाभावविभाविनां ॥
इत्यादिना श्रागमो वर्णितः ।
उक्तं चा्यीत्यमतिमूत्रे कतमे सूत्रात्ता नेयाधीः कतमे नीताः । पे सूत्रात्ता मा- गीवताराय निर्दिष्टा इम उच्यते नेयार्था । चे सूत्रात्ताः फलावताराय निर्दिष्टा इम उच्यते नीताथीः । पावय पूत्रा्ताः शून्यतानिमितताप्रणिङितानमिंस्कारान्नातानत्पादाभावानि- रात्मानिःवचलनिन्ी्निशद्रलास्वामिकविमोत्मुला निर्दिष्टाः " त उच्यते नीताः । इवमुच्यते भदत्त शाएदतीपुत्र नीतार्थमूत्ा्प्रतिशर् णता ' न नेवार्धूत्ात्तप्रतिशरण-
ता इति।
1) 1008 ष. 7 (0188; . . 4 ०50 225८... .).
2) पणी र 888.) 70. 327, 328, १०४ 18 80166 ५०€{&1०6 66 114 18 8¶ 27 2४1 - 0174649: 06 उपलाः) 10 कलाल एठा व) ल-त, फ6 ० [ला पण्णा एदा 86116066 ^ प5त706द€ा एला 77, ग16 : 160, 818६602, 16060, 1676046 ९0860 2००६०18, १€7 प 2०१९1०५९) वा 0०4९०१6 प. 8, फ.) 1686 प्रलाः €00&६€0 प९४
8८012 €ा 9709 ` ॐ 16 श्ण कषटद९, 7. रम् ४. श ग पयुप] म> | भनमम रम म> |
सुगु ९ | गुप | सयुर | गुर चपप| गैरसश्नसपुरः | मैस पुष २ | ङगवः | दसत | रु दमय दगुमसु रमय र | पगम प कुकुरः परपर, मुय दे्गुभु इनि दुम भुस" युत् | ५८
ॐ ता1९5४ = क014-5०{ ४८१९४८0 05 4-0१5-14 - १0471१41 -214 00054 - {द्द 102-४८वव्द द शक्द्ुववव व्वा #द/411९, ‰९5१ ८तदरधक्कपवा7 5वडधद्छाष्ददयटटाचद 9 वा(का0, {८ १९४7 द.
4) 2188. दाक, ०8. व. गुरु मेमनः | पमगुर्धेमेत्पस ५. | हुम पपुरयति ज 4 गुरगुमि -- 1.9 30836 १९ ९९४९ 11886 0978४ ॥0प01€€. ~ २९०६-0, एणा, 10 (च ४8९१1६९), 1742704, 2४, दवा 0,
व्वक्वता, कद्व (0. ३.)) ऽका (@ 2118४. 8.). -- पण्रणडकष्यकद 20. प्रप. 78; @१४{2, 0110101101द101, क070107709(व॥.
9रमुय ४० 719८6 ९००१९०९९, 0 7९] ०४. ~ 1.68 १०४९ 18 प्ऽ88.788, 4.
षप. § 74, 0087088४ प)27808 ना, ^ ०0140. ए. ४, (शि8, एप. 4789), ५४6 य, ^+ 8, 1902, ६. 0. 269.
44 ` प्रत्ययपटीत्ता नाम धि
४ प तथा चायतमाधिर्ल्नूत्रे।
(नीता्सूत्रात्तविशेष जा[11४ुनति पथोपदिष्टा सुगतेन शृन्यता । स्मिन् पुनः पुद्रलपत्पूरषा ~ __ (~ ~(1) ~ ८ (9) € , नेयाधताो जानति सवधमान् ॥ [7४.15] टि (3) १ = क तप्माइत्पादाद्दिशनां मृषाधां प्रतिपादपिते प्रतीत्यसमुत्यादानुरंशनमारन्धवा- नाचार्यः ननु चोत्पादादीनामभावे सति यदि सर्वधमाणां मृषाप्रतिपाद्नाधमिद्मारृन्धवा- ४4 क [न्क [न नाचार्यः ' नन्वेवं तति यन्मृषा न तदस्तीति न सत््यकुशलानि कर्माणि ' तदभावान्न सत्ति 10 इर्गतयः " न सत्ति कुशलानि कमापि ' तदभावान्न सत्ति सुगतयः ' मुगतिडर्गत्यसेभवाच्च ४ [न्वा ¢ ~ ० - नास्ति पंसा इति सवारम्भवेय्यमेव स्यात् । "जः व् = =+. . मनिवेशष्य प्रतिपत्तभविन उच्यते । सेवृतिपत्यव्ययेत्तपा लोकप्येदेसत्यामि प्रतिपत्तमावेन मृषार्धता न {त (6) कि चिडपलभत्त । भावानां प्रतिपायते ऽस्माभिः। नैव वायाः कृतकायाः किं चिडपलमतेपन्मृषा ्रमृषा वा (ख ॐ ध) १२ त्यादिति ॥ शपि च "येन कि सर्वधमाणां मृषीले परिज्ञाते , किं तत्य कर्णि सत्ति 15 संतापे वास्ति \ न चाप्यतो कस्य चिदर्मस्याप्तिबे नास्तिवे बोपलमते।
1) 1088. १९४21742, ०८2१; व). रपति म् । 2) ©€॥€ 81866 €8४ 6166 17४ 8 2 ए. 11 (828 19 70९); €्]€ ४6 86 ॥४0ण?€ 88 0808 19 296 बल॑प्रधाल्फलण एषफा16€ तप 8970 21172} 2 (28९, 1); ० 12 0916; 214 5०४०41101608, €8॥ ©०पाणप्ा6,
8) 1.6 (10. 8 16 एण्पथ्.
4) 2188. ०५१५५८८१; 70. हेससुभुय 9 प ममेमे"
6) 7127076 १४०8 1€ (1).
7) 70. = 2115717.
8) ¶10. = 1411004.
- 129] प्रधमं प्रकरणं 45
योक्त भगवतार्थतकरधमूतर । चित्तं दि काश्यप परिगवेष्यमाणो न लभ्यते षन लभ्यते तन्नोपलभयति : यत्नोपलभयते तंनेवातीते नानागतं न प्रत्युत्यते ! यतरेवातीतं ना- नागते न प्रत्युत्पन्ने तस्य नास्ति स्वभावः ` यत्य नास्ति स्वभावस्तत्य नास्त्युत्याट्ः ' त्य नास्त्युत्पादस्तत्य नाप्ति निरोधः ' इति विस्तर्ः। | यस्त॒ विप्ातानुगमान् [प. 169] मृषावे घनाणां नावगच्छति प्रतीत्यभावानां त्वभावमभिनिविशते ' [12२] सं धमे धिदसत्याभिनि विशादमिनिविषटः सन् कमाएयपि बारोति सतारे ऽपि तेसरति विपयीपावस्यितवान् भव्यो निवाणमधिगततं ॥ |
कि पुनर्मृषास्वभावा रपि पदाथाः संन्तेशव्यवदाननिबन्धने भवतति । तधा मा- याघुवतिस्तत्स्वभावानभिन्नानां " तथागतनिर्भितिशचोपचितकुशलमूलानां।
1) पम्वण षष 3700, 10४1. 562. ~ एम" &115 28. 258. 15 (285, ०. 1); €}. 261. 4; ए ०016. { ड. 106 (. 388. 16).
2) र 9) द्मषृसप्प 4) ©). ५१४५०८0.
1 11 निः >) (मनन, तिगृच्रनत् मनन् नमम | 9 7४. कसमस तनु पदेषपर्, भमन्मपनदेमपकपय मस मनम्, पर. दमु नुन | 9 थिपसम - 0. 1888. 209, ०.7 (४-२४-29) © एषां व्णान्छ४० (4६. प.प. 870. 9 2०४४. 7. 1. 13, 14)
8) 10. = . . . * एावण्षुवकय १177 %षद्द . . . . 50१ द्रवी एकव, ६वद7द- ५९. .... १०४८११८१ ८५१. -- 50170९८ == गुम मस्व मनस्य; /८४०व १ ==. ममन
9) ३ (त. - &. ४1१. 1 2. 521; 212} ह}. 442. 14; ‰ €720, ,०४०३, 2. 225,
0. 1; 1.४7. 22.8; 01१. 166.7; 0. प्रण, 189. 8; ४४0. उणा. 2 ब्ज 20410111046 48110.
46 प्रत्यपपरत्ता नाम [1२०
उक्तं रि दकध्याशयपरिपृच्छमूत्र । तच्चा कुलपुत्र मापाकार्नाटके प्रत्युपप्थिते मा्यीकारनिर्भितां लियं ष्ट्रा कञिद्रागपरीतचेताः पर्षच्छार्वभपेनोत्यायातनाद्पकर- ¦ मेत् ' सो ऽपक्रम्य तामेव ल्ियमशुभतो मनसिकुात् ' श्रनित्यतो इतः शून्यतो ऽना- त्मतो मनतिकर्यात् ' इति विस्तरः ॥
विनये च ' यल्नकारकारिता पन्नयवतिः सद्रूततपवतिशन्या सद्तयवतिद्रपेण प्रतिभासते ' तत्य च चिन्नकारृस्य कामर्गात्यटीभ्ता ॥ तथा मृषास्वभावा श्रपि भावा बालानां पेक्तशव्यवद्ननिबन्धनं भवतति ॥
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1) 91 व् ' " "." == ०7/८८/44९5 1५. © 28886 ९8४
61४6 2१६८ १11211९8, 0470788 16 १४३९४ १६०, 1008 ४१ रश्ा. 14 (म. वरव ९९). -- ^ 417 8 ९४ए 888 प ८०१९०१३ {78 ध एण & 11 888.
2) 24. ४ इ ८४. 245, 886 450 १/० ११९४ त71{८८क७ ४९. -- 8०416 18. 81 (. 271. 92): 17त/25८710/210॥ 72445 ददवा ९८१" ४ दद
3) ८५४८५ == 2811 52१द/4, €. € 1114९78, 8. १०९. @&11 $ 28. 296. 7 ९४ 8 ०4016. 2. शा. 118; ववक्क(0म्द = क० कव्व, उष्वा्काद्यू/ 4९व्माएव 454८कककद/द- 2१/10 0 104116८4 041145/0क 7 == €68॥ पाप्म 4 एकग #8 > 60088676 800 007) 0 ¶०€ ९८ ० 6८16 . , , * ,, -- 104 ९‰ब5 80{ €ापा€168 7 1.-8, 1. 21, 1818 168 16610168 १६९8३ }2788., €016 ८९61168 १९ 1€वा+€णा) 800४ 10८0116668; 14 00149. र, ए. (8०९८. 48, 9. 3079 8) ००8 01106 19 0606 11816: द्यच्छ्रल्छवछव, वद्माण८ (== (प1०), 11647 7वद् ४/० (= 5वएकद््व्या ऽकाष्लः$व17)) 4५.4१०, १141414०, -- 1.6 (गणा०6६०६४776 १७ 8०1९. फा. 118 फलं 86 ४8 ला 887086६. ए०णाः 8ण+{ १०९ 1266046 19 »९78100 ॥96{8106, 11 ०००८ वलट 6९४08: 18, एएलणाला6 ९०116800
2 ८९116 € 14 ०149. ए. (मनत == 50110241) ; 19 8660106 &1086 दिन्प'
(5बव) 9 नरयुत' €&४ नहगाहेमुपः == (4४, 5८०, 10८. ~ @प‰€ पिथदणा३, 2८९९९189. (ण. 8 7, ॐव (08188 7 1.-8. 2. 50): 4५८0८४६५) ०६८०, ९९, ५2५ ४०८८०. ~ ५ 7 धृ€प्8 (वप पापा 16, €1८.) 4.7. प, 1. 406. - 11888. 198. 7-11; 296.
4) 719. १
5) ०४४८४८५ ११०९ 020 € १88 ¶10.; 86 79006 € 66६ 2 16606 16 ५60१6०४
120] प्रधमं प्रकरणं 47
तथार्थ लनरूमूतर घव वल तानि पञ्मात्रापि भिततन भगवतो धर्मदेशना- मनवतरृत्यनवगादमानान्यनधिमुच्यमानानि उत्यायासनेभयः [7). 160] प्रक्रात्तानि । श्रध भगवान् [तत्यां वेलायां] वेन मार्गेणिते भिन्नवो गच्छन्ति स्म तस्मिन् मार्गे दी भिन्रू निर्भिमोति स्म ।
रथ तानि पञ्च भितुणतानि येन (मर्गे) ती दौ मित [निर्मित तेनोपसंक्रामत्ति स्म| उपतक्रम्य ताववोचन् ' कृत्राष्मत्तो गमिष्ययः ॥ निर्भितकाववेचतां ' गमिष्याव श्रावामरएायतनेषु ' तत्न ध्यानपुख+रस्पर्शविकरीर्विकरिष्यावः। वे कि मगवान् धर्मे देशयति तमावां नावतहावे नावगाद्टावके नाधिमुच्यावके उच्नप्यावः संत्रातमापय्या- वहे ॥ श्रथ तानि पञ्च मितुशतान्येतद्वोचन् * वयमघ्यायुष्मत्तो भगवतो धर्मदेशनां नाव- तरामो नावगाष्छामके नाधिमच्यामके उच्तप्यामः संत्रत्यामः संत्रातमापग्चामरे । तेन वय. मरृपयायतनेषु ध्यानमुलत्पशविकरि विकरिष्यामः ॥ निर्मितकराववोचतां ' तेन चायु घ्मत्तः संगास्यामो न विवदिष्यामः। ्विवाद्परमां' हि भमणस्य धर्माः। ५५५५९ ॥ का- त्यायुष्मन्तः प्रकाणाय प्रतिपन्नाः । तान्यवोचन् ' रगदेषमोकरानां प्राणाय वयं प्रति-
1) 1). रगुण मङ्ग पडेगृस ठ गिदब्खु' ~ पण 16 पला ६९216 लं€ 1002 24 उणा. 33. 2) 1.6 प. शण पसमनुृम्ेपमः = 0192000 10769, €. 1९ ४11 ए, 9. 88. 8.
3) 1.68 110४8 €0{16 [0 916€006868, 0210188 1€ ॥€् € 18 लो४द प्रा ४ उ णा. 383. -- १714८, 28108 0. 442. 14.
4) ऽ्ाकसवा्क धमवाव) एणः 0. एकप 245. 649, 255.8. 5 € 11888 200. 18 ० 9. 86०१४11 816०216 1४1.-*. 357. 18 € 11 ₹. 1. 628
8) ०४१४८८४. (7. @&11§ 8. 268. 18 १ १८ श्ववदं ६८८ ९7401010 12001 १145410४ (€. 195. 7, 281. 14) - 1. ए $ ०४. 245. 1189 -- 1.०६प8, ए. 58: 1 शा 0 पर्ल ॐ एशिा€ कणत; कीक णि ताशृूपतीाद् (ए१३१३, 76701266 १४०३ 16 218. 09 ११802) 800४६ 1४; #6€ 86€166 न ४16 1810४ 18 9९१ ०त 16280110, -- ८४४४८व८ == व८का८ १6007 १8०8 16 8875४१४२ ९. (15, 11): कष्कच्छवरछक्को चः. -- 1.68 8 एष्धक्वव्क्वः,) 2121} 0. ति. 1. 245. -- 10प४ 16 0006 86 078ए।6९, 0718 168 71010९8, 90८. 2. 1260.
6) . 1078 01. 1003. के०6 {९६16 681 2017606.
10
।#
48 प्रत्ययपरीत्ता नाम (12४
पन्नाः ॥ [79.179] निर्भितकाववोचतां \ किं पनरायुष्मतां संवित्ते रागदेषमोका वान् तपपिष्यथ ( तान्यवोचन् " न ते ऽध्यात्मं न बिध नोभयमत्तरेणोपलभ्यत्ते नापि तेऽ्य- रिकिल्यिता उत्पस्यते ॥ निर्भितकावतोचतां\ तेन खायप्मत्तो मा कल्पयत [मा विक- ल्ययत] ' परा चाघष्मत्तो न कल्पपिष्यथ न विकल्यपिष्यथ तद न त्यथ न विरत्यथ '
8 यश्च न क्तो न विरक्तः स शात्त इत्युच्यते । णीलमायुष्मत्तो न संसरति न परिनिर्वाति '
समाधिः प्रत्ता विमुक्तिर्विमुक्तिक्षानदूर्षनमावुष्म्तो न संमति न परिनिर्वाति । एभिशा- युष्मत्तो धर्मँतिर्वाणं सूच्यते । एते च धमीः प्रन्याः प्रकृतिविविक्ता "प्री तितामायुष्मत्त संता डत परिनिर्वाणमिति। मा च संतापा “संता का ' मा च स्तायां “घतत परिता- सिष्ट \ यो हि वेत्तायां सत्ता परिनानाति सेन्ताबन्धनमेवास्य तद्व [।१०]ति । संत्ञावेद्-
पितनिरोध॑समापत्तिमायष्म 1 विद् निरोध 10 य्॑मापत्तिमायुष्मत्तः तमापय्यध्वम् । संन्विद् पितनिरोधसमापत्तिसमापन्रस्य मि-
तोनीस्त्युत्तरोकररणीमिति वटावः॥
ध तेषां पञ्चानां भितुणतानामनुपादाीभ्रवे*यशिततानि विमुक्तान्यभूवन् । तानि ` [ए)0. 17] विमुक्तचित्तानि पेन भगरवास्तिनोपसक्रात्तानि ' उपसंक्रम्य भगवतः पाक्त िरसाभिवत्येकातते न्यतोटन्।
1) ©€ 801६ 1€8 €19व् [0101{८1451418व7 5 ; ?०17 7 0.-8. र शा €४ 80 पा ८६8 61668 ‰% 10८. (1116 ४. ४ ए़प४. 4.)
2) 1088. 541097/क ; (0. २२.मेसय
3) 09168 16 (19. 51497210 7४० 147000द100,
4 79. नमु नस" दुरः कन्दः नगगु पति पमसनपमनइ्गुप = अकि 0४०१0040, © 0114678 288 9 4.
ठ) = एदा (काणाः दव्यव्य्छक = > २.
6) 1. 1. (लछफापा6 वणं 0. 100 9); वडा क्ल कका क्द्यूएवा॥क$८ @7दक/व= `
20219€ ६९६5217५ 147८0020. , . . . 7) १/0 7दव्‰/८; (119. विमुपभेद्प्, == ८१९८५. -- 1.16 [17688101 €8६ 716
€0100्९, १०7 1. प $ ८४. 129. 8.
ऋ, ३ चा- + >
ण प्रम प्रकरणं 8... ऋ
शरधावुष्मान् सुमूतिस्तान् भिनूनेतद्वोचत् ' कत्रायुष्मत्तो गताः कृतो वागताः । तेऽवोचन्! न कविद्रमनाय न कुतश्चिदागमनाय भतत सुभूते भगवता धर्मो देशितः ॥ श्राह '
` को नामाचष्मतां शास्ता । घ्राङ्ः ' यो नेोत्यत्नो न परिनि्वात्यति ॥ श्रा \ कयं वुष्मा-
(प् ( ) = ॐ भिरधरमः ग्रतः । घराङ्धः \ न बन्धनाय न मत्ताय ॥ राक् ' केन युवं विनीताः । घ्रा: ' यस्य न कायो न चित्तं ॥ श्रा ' कय युवं प्रयुक्ताः । घाङ्धः ' नाविच्वप्रहाणाय न विच्योत्पा्- नाव ॥ श्राह ' कस्य यूं भ्रावकाः } घ्राङ्ः ' पेन न प्राप्तं नाभिपेनुदं ॥ भ्रा ' के युष्माकं (9) [न न त्रेधा नोपविचर्त्ति [न्व् (न [न्क तत्रद्धचारिणः। ब्राङ्कः ' पे त्रेधातुक्रे नोपविचर्त्ति ॥ भ्राक् ' कियच्चिरेणायुष्मत्तः परि- निर्वास्यत्ति । श्राङ्ः \ यदा तथागतनिर्मिताः परिनि्वास्यत्ति ॥ श्राह ' कृतं युष्मामिः करणीयं ब्राङ्ः ' बरहेकारममकार्पार ज्ञानतः ॥ श्राह ' तीणा युष्माकं त्केशाः। ब्राङ्ः ' ~ 0 ~ (4) मरत्यत्तत्यात्सर्वधर्माणां ॥ रार ' घर्षितो युष्मामिर्मारः । ्राङ्ः ' स्कन्धमाहनुपल- म्भात् ॥ श्रा ' परिचरितो युष्माभिः शास्ता [1. 189] । घ्राङ्धः " न कायेन न वि्चोएि यष्माभिरट्ि [क [र (5) ^ - वाचा न मना ॥ श्राह ' विशोधिता युष्माभिद् ्िणीयभूमिः । [13१] ब्राङ्ः ' ब्रमाहहतां $्रतिातः ॥ घ्राक् ' उत्तोणो युष्माभिः संसारः । ्राङः' षन्च्छताऽशाश्चततः॥ घ्रा! ( ) ष्माभिटृत्तिणीयभमि रि क हि किमगा प्रतिधन्रा य॒ष्मामिर्दतिणीयमुमिः । घ्राङ्ः ' पर्वमरारविनिर्मुक्तितः ॥ घ्रा । किंगा- ध). ~ घ्रागतनिर्भित [भ एत मिन घ्रायुष्मत्तः । घ्राङ्ः ' पंगामिनस्तथागतनिमिताः ॥ इति खायुष्मतः सुमूतेः परिः
1) 28.192}. 22. ११(/701015451/2 एधा . - , ०८47000 व पद्वक४.
2) & ४४8१. ४. 39 10 06: व६८ एाप्फकाकल्वम/ ककड ११यद्ब्एदछवण्ड 62 10 - दद ९४.
3) 00 08००6 16 ०, 16 १० € 1 व्कच्न्छवन्वाव (00. 8101; 4011411. 887. 0808 ¶, ?. {. 8. 1884}.
4) प्रण &1॥६88. 198.10 &४ 11१. 1. 278. 2 € 281. 7, प€ €पप्ाक&ः ४०0 १९ ४५९ दः अआवदकद्ाद, 6०, ११११६४०) 4८८८८१५०. ए0णाः 168 8001668 2081168) 11468, 2. 241 (वए्करकद्-९).
ठ) प. पमगृगभये स सुरससम्, प्रभः 0ापात९२७, ९, १०९. वणक वन्द; &11 8 28. वब १४/५. 6) १५1११५14 =-= सुगु ¶) १. 1. 206.16 कारणदा एकव, , ^ दवकडथद् ०९/ब१॥ क0४, कका कवकृद्, . ~ ६४४४१. 9. प्रा. 8 कारडकाारकका१्/त. ५
10
15
80 प्रत्ययपरीता नाम [13४-
पच्छ्तस्तेषां भिन्रूषां विसत्रयतां तत्यां पर्षदि श्रष्टानां भित्तुणतानामनुपादायाश्रवेभ्यशि- त्तानि विमुक्तानि दात्रिशतश्च प्राणिसक्त्नाणां विरतो विगतमलं धर्मेषु धर्मचततुः वि- शुडे ॥ इति ॥
इत्येवं मृषाप्वभावाभ्यां तधागतनिर्भिताभयां भिक्तःयां पञ्चानां मितुशतानां व्यव-
5 दाननिबन्धने कृतमिति!
उक्तं चायवज्जमएडायां घारएयां । त्था मज्ञग्रीः काएडं च प्रतीत्य मधनीं च प्रतीत्य पहषस्य हस्तव्यायामे [च] प्रतीत्य धमः प्राडर्भवतोति ' अरधिरभिनिरवर्तते ' घ चापरिसेतपो न काएडसेनिभितो न मधनोपेनिभ्रितो न पुरूषदप्तव्यायामतंनिग्रितः । एवमेव मज्जुग्रीरपदिपयासमेहटितत्य पुहषपुद्रलप्योत्पग्बते रागपरिक़ो देषपरिदन्ो
10 मेोपरिदादहः । प च परिदारो नाध्यात्मे न बहिर्धा नोभयमत्तरेण स्थितः ॥
पि तु मजच्रर्यडच्यति मोर् इति तत्केन कार्णेनोच्यते मोक् इति । [10.18] ्रत्यत्मक्तो कि मञ्चप्रोः पर्वधर्ेमेरित्तेनोच्यते मोर इति॥ तथा नरकमुला मञ्ुीः स्वधां इं धारणीपद् ॥ ग्रा । कथं भगवननिट् घाटणीपट् ॥ घ्राद्धे । नरका मज्ञुप्ीना-
1) १९७६-४-0176 ०१18 16118606 16 व7द11€ क111104वक1(व. 2) ४०7 &-068878 46. 6. 8) ¶ 1. [म सरतयिस = ५८८१८१द्द्॑, -- एगंए क 20110, त 372, 378
(587, 524 ^. 7.); ए 81107, 11१० ॐ, 01. 455-474 (4. #. 6. 11. 250); 8 प77.; 10४71. 2. 548. ए पिष््ण€0; १७ (८६४४6 लोष्छित्मा €8॥ 7670 1708 9 इ ह, 13. - डिप्राः 18 रभ्रा पप 0४ 4‰कृक 1808 16216881 2०4701410क@, व00४ लना € 1611१66) ए ०१1८, 1.) ए. 58, 0016 8. ~ 77 द्याव) एणं ए ९1, 10108, 311, 7006; 8पदढ 1, ^ ९१8६1०28 0)8८०पा ३९... ,, 186. ०. 3: लप्रला6 कक्षा 0९98 अं णु दष्ाभ्णा2४6 एगृ6भेप्मा क्णंला का]] इलधए6 28 9 6 ४० ४€ १९०) शंह्णां0५४०८९ ग {€ 006४1069,
4) 27616 6000 918180 [४11४8 211. 8-4. ए) 2088. 50111090, ०108८ र्ठ; 10 र. 1. 483, 486.
6) ९१] १6 160 पा्प्रप४86 हका 9176 0पा 9] पकु€ाः 068 6०668 वषा ०6 १४2161४ 2288 7116पड्» (एप््ाछप).
7) «.. ८६४ &106 १6 18 द्ध्य (एप्पण०प).
--14] प्रधमं प्रकरणं । 51
लपृधग्ननैरसदिप्ीतविटपिताः त्वविकल्पमभूताः ॥ श्राह । कुत्र भगवन्नरकाः समव- स[॥4भ]रृत्ति ॥ भगवानाह । प्राकाशपमवतरणा मज्ञ्रीनकाः । तत्किं मन्यते मज्ञप्रीः स्वविकल्यसेमूता नरका उत स्वभावभूताः ॥ श्राह । स्वविकल्पेनैव भगवन् सवंबा- लपृधणनना नर्कतिर्यग्योनियमलोके सेनानत्ति । ते चासत्समारोपेण इलां वेदनां वेटय- त्ति इःखमन्भवत्ति त्रिष॒प्यपायेषु । 8 पया चाके भगवत्नरृकान् पश्यामि तथा नारके इः्खे । तव्वथा भगवन् कशिदेव पुरूषः सुप्तः स्वघ्रात्तरगतो नरकगतमात्मानं संनानीते ' स तत्र कायितायां "प्रनचलि- तावामनेकपीरषायां ' लोकूकुमथां प्रततिप्तमात्मानं सनानीयात् , त तत्र लां कटुकां तीनां डभ्वां वेदनां वेदयेत् ' स तत्र मानसं परिदा तंनानीयात् [70. 192] ' उच्नसेत् स्नातमापयेत । स तत्न प्रतिविवुदधः समानः धरो डःलमको उ'खमिति ऋन्देत् शोचेत् 10 परवेत् ॥ खय तत्य मित्नक्ञातिसालोकिताः परिपच्छ्युः' केन तत्ते डःवमिति ॥ त ता- न्मित्रज्ञातिपालोदधितानेवं वदत् \ नेरेयिकं इःखमनुभूतं । स तानाक्रोशेत्परिभिषेत् ' शरदे च नाम नैरयिकं इःखमनुभवामि । वृधे च मे उत्तर 'परिषच्छ्य केनेतत्तव इःखमि-
1) ©. ०५१०012 (11. ए इ प. 245, 887, 10. 3) = ०174092 (प. 1६. 7.); ०१ 11988. 180. 4, 2356. 1; (पवण्णुष्य्वएव) २४१6८8४ 202; 1, त्र. 1. 18.
2) प्रभो 4. प १०४. 245. 17४४-6. -- 2918 (7व्/द@्@४ == ५१००४ ०0 9.16 णण (8 ००),
8) {4५१५484 == 1४ 6028706 पण्णा 0006 ए6€प/ एगध (?. प.). - व). षम् म ध \ १ = (एश ]116 1077689.
4) (ण), कषक; दषस ; च एद्ा४१९४१ च9 9.5, तः. 75. 8, 8०416. ए. णा. 89.
४) 8401794, €. ए १7०. 101ए8 409, 21१. 4 १, 681. 6 (२. प्र.); 16 ४४. 11४ 5द- १1104 (=-= ४१९6 ०7&प्थ]).
# 6) 1088. ०८९०४०४; (9. त 4) ५५८५४, 0१. 1. 896. 9,
१
10 कल्पसहस्राणि नरकेषु डःवां वेदनां वेद्यमानमात्माने संन्ानाति।
52 | प्रत्यपपरक्ता नाम [14४
ति ॥ श्रथ ते मित्रन्नातिसालोरिताप्तं पुरषमेवं वदेयुमां मेः पुरूष सुप्तो हि बं "न ब मितो गृाति क चिन्नि्गतः॥ तत्य पुनरपि स्मृतिरृत्पग्चते सुप्तोऽमभूवं । वितथमेतन्मया परिकल्यितमिति + स पनएपि सोमनस्ये प्रतिलभते ।
व्यग्रा भगवन् स पुहषोऽपत्तमारोपेण सुप्तः स्वप्रात्तरगतो नएकगतमात्मानं संतरा-
क् आ (2) ¢ ५ नीयात् ! एू[14ण]वमेव भगवन् सवबालपृथगना श्रद्रागपयवनदाः स्रीनिमित्ते कल्पय-
त्ति। ते ल्रीनिमित्ते कल्पिता ताभिः सार्धे रममाणमात्मानं संनानत्ति । तस्य बालयध- ग्जनस्येवे (1. 190] भवत्य पुष इं त्री मनेषा त्री । तस्य तेन च्छरागपर्षव- स्थितेन चित्तेन मोगरप्येष्टि “ चितं क्रामयति । स ततोनिदानं कलविमविवादं तनन-
(५) ~+ क भ, = [ने कषप ४००१ यति । तप्य प्रइ ेन्नियस्य विर संनापते। स तेन पंज्ञाविपर्यातिन कालगतः समानो बह्कनि
४
तग्वधा भगवन् तत्य पुष्य मित्रत्नातिष्ालोकिता एवं वत्ति "माकरः माङः `
~ = 4 (न (6) चनन ~
भोः पुरूष सुप्तो दि वे " न मितो गृद्धात् कतशित्निगंत इति । एवमेव भगवन् बुदा भग- (7) पिविपर्वत्तानां ~~ न । (नद
वत्तश्तुर्विपर्था्विपर्यस्तानां सद्लानामेवं धर्मे देणयत्ति ' नात्र स्त्री न पुरषो न तलो न
्ीवो न पुरषो न पुद्रलः । वितथा इमे सर्वधर्माः श्रसत्त इमे सर्वधर्माः । विठपिता से
1) 2188. 1८प्व006110५07 06204 ४४. 2) ककव == पेयेयमगुस् == 45८14, ४१6५ व पलवृ्€ € 286.
ॐ) 01201९59 ०54४९७४ 117 71410द ९7१वत, 11701९5" १20 (4 90100. 1. ए. 800. .4.8., 286 ॥ 8).
4) 2188. अनष (= ० = 8160९*. ~ ए. स.). 098 (19. दयप == 01676706. एरसःसु' " " " == 10९50194.
४) 1104514 == गड्गृम, 0006 १6 $ €४ 00 १6 व.
6) 96 1188.
¶) ऽपः 168 ¶प््6 ००१४755, एणी क प8€ ००, 1900, 2. 286 € १०६ 28. 7. 5 4.78. प. 1. 52, &11 8 ह 8. 198. 11, 7116915 7018116, 81. 48, 4 0914}. 7. ए. (8०८.
४
-15२] प्रधमं प्रकरणं 938
सर्वधर्माः ' माघोपमा इमे सर्वधर्माः ' त्वप्रोपमा इमे सर्वधर्माः ' निर्मितोपमा इमे सर्वधर्माः ' उटृकचन्द्रोपमा इमे सर्वधर्मा इति वित्तर्ः ॥ त इमां तथागतस्य धर्मदेशनां भ्रुवा विगत- ` गान् सर्वधर्मान् पश्यतति ' विगतमोकरान् स्वधर्मान् पष्यति श्रस्वमावाननावर्णान् । [17. 209] ते ्राकारात्थितेन चेतसा कालं कर्व । ते कालगताः स[159]मानाः नि- हृषधिशेषे नित्राणधाती परिनिवीत्ति । एवमकं भगवन्नकान् पश्यामि । इति ॥ उक्तं चार्पोपालिपरिपच्छाां ।'
भय दशित नैरपिकं मे सवमह सवेन्नित नैके ।
न च विष्यति किक सब यो च्युतु गच्छति घोरमपायं ॥
न च कार्क् कारण सत्ति पेद कृता ्रमितोमरशत्राः।
कल्यवशेन तु पश्यति तन्न कापि पतन्ति श्रपापित शत्राः॥
1) 9. पप. 10. 14. 16. 2) ¶7४. = व्ादश्कलावााः 1१7९४. 8) 1. = ४८ प्रल्यद॥ क्व इद्याष्वककापकीवाा. . ,
4) 66 #४हा0९0४ 68६ 6४6 2१ णा. 19 € शा. 10. ~ प्ण क्ण 1. 7, णा. 12. 1078117 9117०५०१ भं€6€ 1908 (111८8 8. ९8४ € 08९. (4. 19 ०016 १७ 1. 86० - 0811, 164. 8). - 0676 7 ०१४1४, 17€्णाल) 1९8 8085 17108178 71686 16 8606706 -~> | -~“ | -~~ | --.
8) 1088. 47019/07द/0971, 4701401. . . 19. == (१ कध्वक्कट 2१८ १144८ वा थतां उच्वरवव्डात्क वृण्ड, , .
9) गुरसगा नयगो मदनकल्/ मक्तमु ९दवेमुपति | परवरः सेय एमपम्मुे | ्गुणतै सृफमगोस न्स ब्ग | दुख तिवत मुर दगु ममु मेत् ||
801८; #€ 454-10000-4-451170-15९09१५- दव लद द्त्वा, [१८] द उक; प्मकवदतवः 0५104145 ६6 1द/८ [वकत [वक] [वदत काद (वसद १८ ऽवा,
84 पत्ययपरौोत्ता नाम [159-
चित्रमनोरमसन्नितुष्पाः ध्वर्ीविमान जलन्ति मनोक्ताः। ^ तेपि कारक नास्तिद्ध कथि तेऽपि च स्थापित कल्यव्चेन ॥ कल्यवंशेन विकलं लोकाः सं्ञगंरेण विकल्यितु बालः सो च भको घ्रगो श्रतमूतो मायमरीचिसमा दिः विकल्या॥ इति ।
5 तदेवमेते ऽस्वभावा भावाः स्वविप्यपिविढपिता बालानां सक्तेणदेतवो भव्ति संसार् इति स्थिते #' | यथा च मृषात्वभावानां पदार्थानां सं्तेशव्यवरानहेतुवं तथा मध्यमकाबताहा- दिस्तरैणावपेयं ।
त्राह ' पदि स्वतः पर्त उभयतोऽहेतुतश्च नास्ति भावानामुत्पादृस्तन्न कथम- # = ~~ ~ ~ (8) . 10 विग्ाप्रत्ययाः संस्कारा इत्युक्तं भगवता ॥ उच्यते (10. 20४] । सेवृतिरेव न तच † कि ~ ^ = ~ (9) = + = मिदिर्भयुपगम्यते किं संवृतेव्यवस्थानं वक्तव्यं ॥ इदप्रत्ययतामात्रेण संवृतः सिदिर्*युषगम्यते । न तु पत्तचतुष्टपन्युपगमेन सस्वभाववाटप्रपङ्गात् ' तप्य चायुक्तवात् ' इप्रत्ययतामात्रा-
1) 098, ककादुषिठि, सूद कचान्; त. भगु [पये्र ऽद = ण 15764?
2) ण्व्014 = दमन, ग्छगुम
8) 1188. ण्वम्, एवन्. -- 710. यसः दमन (एद). ~
4) 2188. 210 ©, काद, 5८ ©, 50 ०८. ~ वप. म ५ ।
8) 2088. ०50, , , शद्वु; ०54१1द , , , गवन.
6) ४०7 ©-0688प8§ 46. १.
¶) एणा भ-46880्8 18. 7. 8.
8) 1088. 5८70४ @४द १८... , "9788 16 10. कद्व दण्ठ इवकषछा9" 10 144- ०११ ९व. -- ©०00. 178. (10. 01. 26.
9) ४० ५-4688४8 9. 0. 7 € 8,
15] प्रधमं प्रकरणं 95
भयुषगमे हि सति हेतुफलयेहन्योन्यपेतवरात्नात्ति स्वाभाविकी सिद्धिरिति नास्ति सस्वभाववाट्ः । श्रत एवोक्तं स्वयं कृतं पर्कृते दभ्यां कृतमरेतुके । तारकिकैरिष्यते ४. = > प्रतीत्य ~~ ( ) तार्किकरिष्यते डभ्व लया तुक्त प्रतीत्यत्र ॥ इति । इ्छापि [157] व्यति । 5 प्रतीत्य कारकः कम तं प्रतीत्य च कारकं । ॐ (क्पे दविकारणो (2) कम प्रतते नान्यत्पश्यामः पि ॥ इति ॥
भगवताप्येतावन्मात्रमेवेक्ते । तत्रायं धर्मकेतो यडतास्मिन् सतीदं भवति ' श्र्योत्पादादिदमुत्पग्यते ' पड़ताविग्याप्रत्ययाः संस्काः पेस्काप्रत्यये विन्नानमि- ~ (8) ^ त्याद् ॥ 10
त्र के चित्यरिचोर्यत्ति । श्रनुत्पत्ना भावा इति किमयं प्रमाणत्नो निश्चय उता- प्रमाणन्नः । तन्न यदि प्रमाणन्न इष्यते तदेदं वक्तव्यं ' कति प्रमाणानि किंलनणानि किंविषयापि किं स्वत उत्पन्नानि किं परत उभयतो ऽहेतुतो वेति। ्रधाप्रमाणननः त न युक्तः ° प्रमाणाधीनवात्प्रमेयाधिगमस्य † (70. 219] श्रनधिगतो शर्धो न विना प्रमा- णिरधिगत्तं शक्त इति प्रमाणाभावादृथाधिगमामावे सतति कुतोऽयं सम्यगनिश्चय इति न 15 युक्तमेतदृनिष्यन्ना भावा इति । यतो वायं निश्चयो भवतो ऽनूत्पत्ना भावा इति भविभ्यति तत एव ममापि सवभावाः सत्तीति " यथा चाये ते निश्ययेऽन्त्यन्ाः पर्वधरमां इति तेव
1) न्क्षत्णा ०00 1वलाप्ि066) 7918 (60720. 16 शचा शा. 1.
2) = णा. 1.
8) ४०7 ऽप}7४ 2. 9 9.7.
4) प्रण ९01. ¶४८०४, [४ पपि १०१३0211, 2. 80 द्व्वाणढे १९४८.
$वका; ३४1१8487. 8. 8. 13 - वद्या द्द 19 000१ १८ 5दव744९४; त इ 8 ४४३7४. 845. 11.
86 प्रत्यपपरीत्ता नाम [187-- `
ममापि सर्वभावोत्पत्तिर्म विष्यति श्रध ते नास्ति निश्चयोऽनत्पन्नाः वर्वभावा इति " तदा स्वयमनिग्तप्य परप्रत्या।पनापतभवाच्छाल्नारम्भवेयघ्यमेवेति सत्त्यप्रतिषिद्ाः सव-
भावा इति ॥ उच्यते । पदि कश्िनिश्यों ना[मा]प्माकं स्यात्! त प्रमाणन्नो वा स्याद प्रमाणतनो ^ 5 वा।न बत्ति। किं कारणे । इद्धानिश्चयपेभवे पति त्यात्तत्प्रतिपत्तस्तद्पेनो निश्चयः । यदा लनिश्चय एव ताव् स्माकं नास्ति ' तदय [16] कृतस्तदिहाविहदो निश्चयः स्यात्सेबन्ध्यत्तर् निरपेनतात् खर्विषाणप्य ्रस्वरीघतावत् । पदा चैवं निश्चयस्या-
1) €ए०प्र$ 18९८ [88 १९ [071६९९8 ? 7008 & 0881 1008 ०08 €) 98861008.9 (९8 17] €0 1100०86८ ४ 1 72.४१ १2118117, 880८९ 18 (== ४व्वा एाव्वयन्ला, 46४य- 0१४८ 5४८१7४/१५6९व0 वक = ऽद्वकाक) वडकद्कुद्का) 10४ १८४८९7४८ 5०7 ऽका $नद) €॥ 7600166 8४. 69. छ
(०). प ४६१४३४८४ [. 1. 8 € प्रर.) € पाणौ 168 € 11८४५०08 १€ १ 2 ~ ८980 2.{171412 (72081 ४१. 248. ॐ): इव्ए्वद्ः ९४व धद्व ए = ऽध्वडव्वद्ाव्छषन४४क- ८811०५१4 170411@10219/ ५९११८4५१ 10४, {०4८00४८ {व ४०००६१0 वक ~ 1 . &48%/व ६४ 5८0ब5द ९८८ १5) १25८ [दधद १८ कद्वद; ४४/ चावयव ९९5१0047. -- 1.1 21706 १९३ 011108001€8 ०८401468 €81 €य1वप्€€ ४१९८ ए९न- 8100: ४८१ {१८ "१6410 = 212द14/ 450 200045490 कध; ‰४८्व्/ व्य = आवक 11111111 71111110 112... 11.11.111 11/17 1111 1.111.111 8८7201९: 50 "204 {1८१11019 ०0 4100 &0४ 5८४९१०4९ ४१/१८ १ कव्य १८1८ ४४. -- 2. 6 8706 9 768प्रा0€ 12 01868810 १९8३ §दप10 ४8 61 १९8 द्वक क्षाा11 88, 016 811४-7 01108070016, 7. 208. 20
ल\ © [> न ॥ ( २ पपनम युपय ओ सरपनिःमै-र = २५2 09, 2) 70. गमु र द्ुरपर्येपु स मे सदमन । 2 मद्ण्वो०द्मोकक एणा 8611117्]) 8. १०९. वदत, 20. प फ़ प. 246, 749 (रकाय), 30०4016. 0. षा. 101, 20 0. |
8) 001५. कव्वकाढ; (कण). एषय)३ काश्ववाढ. व. देस, परसदुसः स. पृगृषमेपुषन, 0 परमते = ए. ९००86वृप्लणौ {08 168 6९8, फण 788 0168, 6818160४. प किणः अ क ल ~ ५ गुते सिवगुष नेय बेगञपः ुगनेग छु ~ 1044-2744, €पा€पा' ए0पाः 744.
5) एभप्ते 10 प. दव्द्^ददा० कुत्वम्) = ग पुर भवानि
- 169] प्रधमं प्रकरणं 87
भावः \ तदा कल्य प्रतिद्यरये प्रमाणानि परिकल्ययिष्यामः। कुतो वेषां सेष्या लनं विषयों वा भविष्यति ' स्वतः परत उभयतो [ऽहेतुतो] वा समुत्पत्तिरिति सर्वमेतन्न वक्तव्यमत्मामिः [7)0. 21] ॥
प्येवं निश्चयो नास्ति सवतः ' कथं पुनरिदं निथितच्रपं वाक्यमुपलभ्यते भवतां ' न स्वतो नापि परतो न द्यां नाप्यरेतुतो भावा भवत्तीति ॥ उच्यते ' निधितमिः्ं वाक लोकस्य स्वप्रतिद्धयेवोपपत््या नार्यां ।
किं बल्वार्याणानुपपत्तिर्नाप्ति । वेनितडक्तमस्ति वा नात्ति वेति । परमार्थो चार्व] तूष्णींभावः, ततः कुतस्तत्र प्रपच्चतेमवे धडपयत्तिरनपपततर्वा स्यात्।
यदि च्चारयी उपपत्ति न वपीयत्ति केन वत्तविदानीं परमार्थं लोके बोधयिष्यत्ति॥
न ल््वार्था लोकपेव्यवद्धरिणोपपत्ति वर्णयत्ति ' किं तु लोकत एव या प्रसिद्धोपपत्ति-
। ०८८ ९.७ न (3) ^~ ~ ~ [न [न्क ‹
स्तां परावबोधाधमभ्यपित्य तवेव लोकं बेधयत्ति । पंयेव हि विख्मानामपि शरीरप्र-
विपर्यातानगत गः ४८ ^ 3 ग च्वि षतत
चितां नगता रागिणो नोपलमतते प्रभाकरं चाभूतमध्यारष्य परि
~ ~ ध 4 नतो न~ ~~ न ५ न (4) न~~ ५
` तेषां वैरग्याधथ तथागतनि्मितो देवो वा प्रुभेन्तपा प्राक् प्रच्छादितान् कायटोषानुषवर्ण- (प् ~~ न~ (5) न रस 3, (8)
येत्" सत्यस्मिन्कापि केशा (रत्या]दिना । ते च तस्थाः घ्रुभज्ञाया विमुक्ता वरेहाग्यमाताद्-
1) 1188. 7४45 176१701०; (19. तिदगुसद्ुमसयो- -- ^£. प. ए. 158. 9
^ + ११/११ व 1477८ १द/१00007 द, ^+ 66 81666 81000086 1४ काका प्रवाह. -- 1.6 74170717 ९8४ 1तालणा6) व्पहव्याकश्क्धठ, -- 00 881४ 0 भलया १०९ 1९8 19117. 088 &870671 16 81161166, 1.87 एए. 17. 15 € 80५९७ ५६668 च. ६. ^. 8. 1909, 0. 874, ४. 1.
2) 7070168 16 111. £4510लव् १५८१0000 क {१/१ 04100 610/450001014045 ६व१क 2704 460540007@एव1# ६०.
ॐ) 288. १10508८, ११११८९०८. व10. देषपुयस्
4) ४७8. इक्क, क. तुसु
8) (णक छः 80०4116. ‰, 295. 4 ‰॥ 2}}0. प्र. 1. 90, &118 8. 298, ९॥९.
6) 2088. ०5१07 द/20 ४१5८८; (710. पुरुरपनिः ९स्.मेसः सन पु.पस्
4#
10
98 प्रत्यपमठेत्ना नाम [16४ `
पेयुः । एवमिदाप्यर्पिः सर्वधाप्यनुपलम्यमानात्मकं [16४] भावानामविष्यातिमिरोषदहत- मतिनयनतया विपरीतं [7)४. 2४०] स्वभावमध्याेप्य क विच्च कं चिद्िशेषमतितरां परिक्किष्यति पृथणनाः । तानिदानीमायीस्तत्प्रतिद्यैबोपपत््या परिबोधयत्ति ' वधा विश्चमानस्य घटस्य न मृदादभय उत्पाद् इत्यभयुयेतमेवम्त्पादात्ूर्य विष्मानत्यै विश्च. ` 5 मानन्नान्ना्त्युत्पाद् इत्यवतीपतां । वधा च पभूतिभयो व्वालाङ्गादिभ्यो ऽङकर्योत्प- तिरन्तीत्यभयुपेतमेवं विवत्ितिभयो ऽपि बीबादिभ्यो नात्तीत्यवसोयतां। ` `
्रयापि स्याद्नुभव एषोऽप्माकमिति ॥ एतदप्ययुक्त । पस्मादनुभव एष मृषा * घरनुभववरात् ' तेमिरिकदिचन्द्ाग्बनभावावदिति । ततश्चानुभवस्यापि ाध्यसमवात्तेन
४ (
( प्रत्यवस्थाने न युक्तमिति । 10 तस्मादृनुत्पत्ना भावा इत्येवं तावददिपरीतस्व्रपाध्यारोपप्रतिपततेण प्रधमप्रकरृणा- रम्भः। इदानीं क चिवः कथचिदिशचेषोऽध्याप्तेपितत्तदिशेषापाकरणार्धं शेषप्रकरणारम्भः' (4) | "कक, ^ म 9 - क 1 प्रतोत्यममत्प त्ये? ५ गत्तृगत्तव्यगमनारिकोऽपि निरवशेष विशेषो नास्ति प्रतोत्यसमत्पा्येति प्रतिपाट्-
१५ नाध ॥
न~ न ~ (© . ~ भ्रव स्यादेष एव प्रमाणप्रमेयव्यव्ात लोकिकोऽप्माभिः [79.221] शाल्रेणानुव- @ = = (6) ककि ^ नाशितो 15 णित इति॥ तदनुवर्णनत्य तरिं फलं वाच्यं ॥ कुतार्विकः त नाशितो विपरोतलतणा- १
1) 1.68 2188. भ0प्॑ला† 14454) वपं 7801476 १४०३ 16 ¶10.
2) 10. == १1521110.
3) 1/6 (19. 1966 16 168 7018 10107056 वत14/०6००1 097 ०4४८४. (पमा | भ-0688प8 1. 8.)
4) 01४701४6 1.
६) 76 06 8278 06 पपत] (क्क 11 ९8४ ¶्ट8#0ा, णं पणा ९४॑ 107]€५१०४. -- (१0. रिकिस्गुगे पमपरुमसु == 08101 द:4101 (75८16.
6) ग, गने प 1
--16] प्रधमं प्रकरणं 59
भिधानिन तस्यास्माभिः म्यलक्णमुक्तमिति चेत् ॥ एतदप्ययुक्त । यदि हि कता वििर्विपरीतलततणप्रणयनं "कृते लक्यवेपरीत्य लोकस्य स्यात् , तदर्ध प्रयता. फले स्यात् ' न चैतरेवमिति व्यर्थं एवावे प्रयत्न इति । शपि च \ यट प्रमाणाधीनः प्रनेपाधिगम[(7भत्तानि प्रमाणानि केन परच्छ्ष्तत इत्यादिना वियरव्यावतन्यां विहितो दोषः। तद्परिरारात् सम्यग्लक्षणग्योतकलमपि नास्ति। किं च यदि स्वपामान्यलत्षणदयान रोधेन प्रमाणदयमुक्तं " यत्य तल्लतणदये किं ल्त्थ॑मत्ति ' श्रथ नात्ति । प्रस्त तदा तदपे प्रनेयमस्तीति कवे प्रमार्षयं । श्रध नात्ति लके ' तदा ल्नणमपि निराश्रयं नात्तीति कथे प्रमाणदंय । वत््यति दि ' लक्तणापंप्रवत्तौ च न लत्यमुपपग्चते। लह्यस्यानुपयत्तौ च ल्तणप्याप्यसेभवः ॥ इति ॥
1) पप. ्गुगेन्मय = का.
नां छ 2) "9078 110. %10१4४वद (2; " ' " अ उम. +~ " "` ~ 3) प्रणा 2. 16 ४. 5. (0 भानः 0 पाः 16 8€08 1 8. 31 १6 18 ४181808१ -
४878117 (== ४वा एवछवयक्ाा १1092) 101147दवा ९० 5४दा 4141८) 2१८९ 017001द10द४पु/ 0४ द्वव सद्व दवद). 0४6 ग्लाशं०ा नकक्ष०6 (वपं व०णा6 11001680
यगु पप्यस) 0768६ 288 7 17166. 4) एषा, (णो, प्र पमा; पम प, मकमुषुढे
8) ६44410414001. , . = सुुप्यसः गन्म गृ्षमि्ु्परुणस == 1/0 ०0514 101411९0 दरदः . . .. - 8118 67086 ॐ 1४4०९116 भु 9्{1601606 16 5धव्द5१८ € 16 55१04 ९8 प 1०5४८, 1 710प8 शिप्रा 9108, ०प४6 16 क्षारा) 8 पपं 6071- 081 16 5४ 5द१@ (19 1401९004) ९४ (लोपं वणं (नण 16 ऽद्वप 64१@ (2७ 704- ऋ€94), प्या ॥078्ा6 74170 पणं ६0081586 18 ९1086 >, 1४4४6116 90916006 168 06 [51045 (३2०५ 7व7९४व). (८०60 १०८ इ 821४-1] वहप्ड 11८71045?»
6) ४०7 ©0-0688008 90]. 209 (10. 269 च१्.). ~ 21 कद्नव) प्रद्तप्ं एण्ड 08४ एष्य रपुम, 2 16 0णः €वणार्श€ण४ मरम् म्-
¶}) = ए, &
10
60 प्रत्यपपरोत्ता नाम [179-
श्रय स्यात्न लत्यतेऽनेनेति लक्तणं ' कि तरि कत्यल्युयो बलमिति कर्मणि
+ (प ~ 9 तेनेत (3) = [3 ल्युट कुर्व लत्यते तदिति लत्तणं ॥ एवमपि तेनैतध्य लत्यमाणतासेभवायेनैतल्लत्यति तत्य करृणप्य कर्मणो ऽर्घाततरवात् \ त एव रोषः (7५. 28१] । |
श्रथ त्यात् ' ज्ञानस्य कणवात्तत्य च स्वलत्तणात्तभावाद्यमदोष इति ॥ उ- च्यते । इक भावानामन्यासाधारृणमात्मीयं यत्स्वद्रपं ततस्वैलत्तणं , तख्यथा पृथिव्याः काटिन्यं वेद्नाया विषयानुभवो विज्ञानस्य विषपप्रतिविक्प्तिः तेन कि तललत्यत इति कृता प्रसिदवानुगतां च व्युत्त्तिमवधू वर्मताधनमभ्युषगच्छति । विज्ञानस्य च करण- भावं प्रतिपग्यमानेनेतयुकतं भवति स्वलत्तणस्यैव कर्मता स्वलक्तणात्तरस्य करणभा[79]-
1) 8१. ना. 8. 118. -- गष, ठेपयमुतमेषनिरत 2) 1088. ६८110 ९४०११. -- {९11८ 11846 १४०३ 119.
3) 0 ध]0168 (10. ६९११८४४व.
4) 06001४00 6128814९: प ए ह $ 8017100 {. 15. 19.
8) 768 णा्08 ©128814०९8. -- एणाः 16 कु" १6 16€फलणौ ६76, एणाः 70१7760६ 881२४३7९. 8. 21, 5, 8०41016. {. 827. 19, &11 8 8 8. 245. 8 (पकए ९868 9101068), 72111. प. 1. 188. - ^ 01140. ६. ए. (8०८. 48.) 241 0 7: श्ध्वककाछ- 40व ४४; &11 888. 288. 10. -- 4 01140. ए. ए. (8. 87००४) 28 8; श्ुद्धावाः 70" १ पदु१द१5141147 444 , . , 0700" ४0511047 , १/0 १र/ ०१७१४५११ 77 क् 0101141, € 80९. 48. 2899 8 भ्ठ 00 वव्थद्िद्" ११०११ द्कटक्ावा॥ 62 10४.
6) एड 600]. -- 2088. {९180 ४ {वक ४ 110 [ब60/416. -- (0. पपृपपनउ्र | = © =, ७.१ न ७८1 तो क ५ $ ५ ५९४ न. छप सुर |'''त्रर पदुगृकिपै' रगो हक" गुर पमुप देषु रनबौमकमु पो एषम | र्यतु गुगुसप' सुर दे ससुषरुतयनतति """ = पणव 1० १0 १072 1९040 ६८ [वय59/1९, [. . 11170007) ] [द्79१/१, ०९दद१द/द १११1486, , . , , ४४८) 71170 $ध्वाच्ूक॥ , , , 9८ एकां 3रव्न6१210, 27058द्द7द॥ ०१४ कद१॥ ८८, , - + -- ९72९१7१४
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7) == 6
17] प्रथमं प्रकर्णो 61
वयेति । तत्र यदि विज्ञानस्वलत्तण करणे तत्य व्यतिरिक्तेन कर्मणा भवितव्यमिति स एव दोषः । |
श्रध त्यात् ' त्पधिव्यादिगते काठिन्यादिकं विज्ञानगम्यं तत्तस्य कर्मीप्त्येव तच्च स्वलत्तणाव्यतिरिक्रमिति ॥ एवं तण्डिं विन्ञानत्वलन्नणप्य कर्मलाभावात्प्रमेयतं न स्थात् ' कर्मदरपत्यैव स्वलत्तणत्य प्रमेधतरात् । ततश्च दिविध प्रमेयं स्वलक्षणं तामा- न्यलक्ञणं च॑ \ इत्येतदिशेष्य वक्तव्ये ` किं चितस्वलतं प्रमेयं यल्लत्यत इत्येवं व्यप- दिश्यते ' किं चिप्रमेषं "यल्लच्यतेऽनेनेति व्यपदिश्यत इति ॥ श्रथ तदपि कर्मसाधनं ' तदा तत्यान्येन करणेन भवितव्यं ' ज्ञानात्तरस्य [). 28४] कर्णमभावपरिकल्यनायाम- नवत्थादोषश्चापम्यति । |
्रध मन्यते स्वसंवित्तिरस्ति \ ततः ध्वसेवित््या म्रहात्कर्मतायां पत्यामस्त्येव
न | [अ = ५०९१ ~ ) ~ वित्तिनिषे ~ न ५ ्रेयातर्भाव इति ॥ उच्यते ' विस्तरेण मध्यमकावतारे ` स्वंवित्तिनिषेधात् ' स्वलक्षणं
1) 16 70. ०6 प्ाक्वृणठ 298 16 इला (गवाय) = ९व६५१८5व). = 788. ०5८५८४०, ०8114, ०8८: न्ब ५) ग् विस्म परमः न्मे मठम् गुम्षमे येरि द्व परमम् == 5४८16१८0 = ९८८ = 11171द{द , 4१/८४ 804154१4 दता 4१0407क०व8, -- 21) == ८4.
2) # 00४}. -- 2188, 5क्कद्ाव्यवः5१८११ 10074 दकव०८८5४८, ,.,..., . प. डति मप् वेषमन] रगो मः इुरकमडेगुभे गु" """ सह्य गुरपमपदः विस उवप नमेः उमदुगु शहुपुयन्यु सुसनस == 52१1 ब54१410॥ ९क , ४४ 50 वदकवा)॥ 01 क ॥70166/41. , , , ४४ ०१० दात + (1.111.111. 11.311...
3) 1188. ११ ५(४)॥१५०. 11). गर्नु ॥ परम 4) 10898. ववक्ना1४74०50 सुग पमरप ४) 0470188 (110. {८5 ४44/द 5४८०.
6) प्रभौ 5८12 }. 18, 1. 3. €}. 01. 282 9 2. == गुन, न्ना एर
10
62 प्रत्यपपरोत्ता नाम | (नि~.
प्वलन्नणात्तरेण लल््यते तदपि स्वपेवित्या इति न पुश्यते । पि च ' तदपि नाम ज्ञानं
£ | स्वलतणव्यतिरेकेणापिदेसंभवाल्लत्याभावे निराप्रषलत्तणप्रवृ्यतभवात् तर्वथा ना- स्तीति कृतः स्वसेवित्तिः
तथा चोक्तमायर् लच्डपरिपृच्छापां । स चित्तमतमनपश्यन् [189] चित्तधारा पय-
^^ ^ ^^
घते कृतय्ित्तस्योत्पत्तिरिति । तस्यैवे भवति । श्रालम्बनें सति चित्तमुत्पग्यते । तत्किम- न्यदालम्बनमन्यचितत ' श्रथ पदेवालम्बनं तरेव चित्तं । पदि तावदन्यदलम्बनमन्यच्चित्ं
~ ~ ५1 ~ ~.6) तदा दिचित्तता भविष्यति । श्रय यदेवालम्बनं तदेव चित्त ' तत्कथं चिततेनं चित्तं समनुष-
(7) ननं (8) ~ श्यति । न च चित्तं चित्तं समनुपश्यति । त्चधापि नाम तवैवातिधारया तैवापतिधारा न
४. \ मरन्, == ६0871कव 050४८ 5०8411९0६५९४, -- णः 1४ 5045070 06४ (== ९5११४८-
04012), १०६०6 €88671€] १68 १ ०६688, १017 8007668 €668 0. 62, ०. 3, & ०07६ 11876000 त 827१४१४7 ९8०8; (08600 1901-2), ०0168 70--72; १९१३०४४. 91702127 298. $
1) 110. == ६८व 0 140/क 5045101४ 1469464 ४. . . 2) 2788. {4047 - 1). गृष्
8) @प६1806 प१९प्लि1€ #816 वप पर्गदपडेगृस' (2४६1812); पपश्पद९
01018100 तप्र ४1101. ^. #. 6. 9. 218, -- (066 नंपव्0 9 66 ४9४९ 08" ए प - 10४, 10४1. 561. -- पर 2804116. 2. ४4 12. 18, &119 88. 288. 1, 76068 (9 1686. 76166 ॐ 124 7 1101. ए. ४. 4०९ ल णा6 04. 8 60१11 681 16 ग€ऽपाक व ्०€ ९०0 8100). -- 0. ४ ¶ ०८. 65. 88; पि ४0110 28. 4 (4. 7. 265-516).
4) 1188. ` € एप्ाा०र्णा लवण! 540९. -- ग). ८पनपुगुप हे सनुममत्तर पसः 8) 0/2 = ९/४ € ध -6880प8 श) -- 071]. 1.४0 ४६. 51.10 100 (कव 8४८८१८{५९०1ब[0व7 (४८47 दढ 41450000; 59. 16 5४4०4} /व72४1(८4द7/ 1104101, , -- ए प100 प: 16 ्रभालाश्ाा १6 19 60866 ०प 16 1'€श1, - @4बदव्द == बढ
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6) 816 1088. -- &11 ६ 28, (285. 8) € 80०4016. ॥.. , , ०१201 कवा. , . ¶) 316 2788, - &1 828. 6४ 8०१16, 7. १८ ‰ कवा, 8) 08}1£8 110. (4.
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- 189] प्रथमं प्रकरणं 63
केतं [र (र न ~ (1) ~ न= {निनन शक्यते देत ' न तेनैवा ङ्गल्ययेणा तेवा ङल्यमं शकते प्र ' एवमेव न तेनव चित्तेन ५ ५ ~ 9 (2) य् तदेव चित्तं शके द्रष्ट । त्येवं योनिशः प्रयुक्तस्य या चित्तस्यानवस्यानतानच्डदाणाश्च- (3) [३ ~~ ~ (4) तता [५४.२५५] न कूटस्था नाहेतुकरी न प्रत्ययविहद्धा न ततो नान्यतो न सिव ना- ~ (5) ५ ५ ~ ~ 4 न्या तां चित्तधारा चित्तलतां चित्तधर्मतां चित्तानवत्थिततां चित्ताप्रचारतां चित्तादृ ष्यतां ~ ~ ५ ~ ~ ~~ (9) 1. ~ चित्तस्वलत्तणतां तधा नानाति तधा पश्यति यधा तथता न च निरोधयति । तां च चि- त्तविवेकतां तथा प्रतनानाति तथा पश्यति ' इयं कुलपुत्र [बोधितच्चप्य] चित्ते चित्तानुप- (1) मिति ष्यना स्मृत्युपत्थानमिति ॥ तदेवं नास्ति स्वपेवित्तिस्तद्भावात् किं केन लक्त्यते ॥ ` किं च मदेन वा तल्लत्तणं लक्त्यात्स्यदिभेदेन वा । तन्न पदि तावद्धेदेन तदा लत्याद्वित्रबादलन्नणवल्नत्तषणमपि न लनणं । लत्तणाच्च मित्रवादलत्यवल्ल्यमपि न
1) &€९8 €&€1}0168 80०४ 1041468 9 प 2 ८४802६1 (21278४1 379. 8, पिए ए ४.१. {22. 255. 28, 466. 19. -- &118 88. 285; ०. 5. - 3 प्र 27 £ 21 ए1188. 235 1९, -- &10 ४१811. 287.
2) 1088. ०8१2144 @1100९10८द ८९. ~ च€ 0१086 (601द€ाः . = . . {25/04 ११४८510 द, 101८660 1142, ०(@(0क६क, , . ; 19 १678101 1106476 70३ ए 178१116 6616,
3) 8 10४8. ४]. 18; 1 इ ४ व€णड €8[६८९8 १९ १४४८: प्व514(4 कद, छन्ना 219. - पग 01218; 7 26) 8787६४19. 1. 105; 014९१. 9€1&, ८००११४३ }. 879. 106
4) 1188, १054800 = गे गृ मए,
8) 1188. १7, शमठ, शमएककवाठ. -- (0. रतिपतेः.
(0 देप, दपततुन्प' तिणि == 01710 &17द एव72 नव्य ठद्यणं धणलाकदछद2 01प्ठ- #क, {कत नव, ४८१४. , .
7) 1188. 4/४ १677६/0, 1640 वणं 8 प्र ०06 8१०. ~ (10.; ससु रिप सुमुयकरपन्सगुज्गु परि मुम प्स सुगा पतः = ^. भात १6107 १५वव77. -- ©}. 01. 8. (ए; ए ९7} 1911781 248, 255; &11 ६88.
09. उ, 0. 228. १०४९6 2; प ४8८11९6 1899; ८०416. 1. 1058-6; ४18०१4१) 1- 1 ४&&४ (4. २. 7. 8. 1886, ए. 1092-4, 151. 158).
10
64 | प्रत्यपपरीत्ता नाम [189
लत्त्ये । तथा लत्याद्विन्रवाल्लत्तणस्य लत्तणनिरपेत्तं लत्यं स्यात्तत न तल्लत््यं लत्तण- निरपेनवात् खपुष्पवत् [1 8] ॥ श्रधामि त्र लह्यल्षणे ' तदा लतणाटृव्यतिरिक्तबाल्न- लणप्वात्मवदिकोयते लतत्यत्य लत्यता । लत््याच्चाव्यतिरिक्तवाल्लतत्यप्वात्मवल्लत्तण- मपि [10. 240] न लत्तणस्वभावं । पथा चोक्तं '
लत्याल्लतणमन्यन्चे् स्यात्त्लत्यमलन्तणं ।
तयोरभाव्रोन) न्यते विष्पष्टं कथिते बया ॥ । इति" न च विना तत्तवान्यतेन लक््यलतणपिद्धावन्या गतिरस्ति ' तथा च वत््यति '
टकोभावेन वा सिद्धि्नानाभावेन वा पयोः। |
न विच्यते ' तयोः सिद्धिः कथं [नु] लल् विश्वते ॥ इति ॥
प्रथवोच्यते ' [अरवच्यत]या पिर्म विष्यतीति चेतरैतदेवं । श्रवाच्यता डि नाम परस्परविभागपरिज्ञानाभवे पति भवति । यत्र च विभागपरिज्ञाने नास्ति ' तत्रेदं ल णमिदं लत्यमिति विशेषतः परिच्छापेभवे सति दयोरप्यमाव एवेति । तघ्पाट्वाच्य- तयापि नास्ति सिद्धिः।
म्रपि च" यदि न्ताने करण विषयत्य परिच्छदे कः कर्त " न च कर्तारिमत्तरेणास्ति
1) 8181166 000 14666. -- 27812}. 10. 91 1८450१0500078४619व 15८१९८१ ९॥41124111) [ब:5४5४८07क४४य [0154400 ००य धद. -- प्राः 168 1800048 तप्र [व5कव € तप [वा ४/८, ण्ण पि ए ह ए ४३7०१817 (२४८28 19]) 24800887 2) 1. 28. 1.6 807९ १००4714 छ 460४; ॥वऽददाठ( नल 4वद्11द १4 15006४८0; वा कक्दव्ााद 1410 ` 71/28... 14.11.10
2) == 1. 21.
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8) न) 1 नुन न ~न, ठ मै -- 00]. 80~ 116. {. 297. 9 . . , 87८1 ९07/८5 ६८४१०४११४४न१४८द१7/20 ४९/2१ ॥धवद्व्काद्छापकका १1211400 १९९१८४४. -- 1211 ए 21 ए 2101४ (ए दण कहा) 1. 238. वनवा ४व१॥ 5कएव 1८164१८९८6 € ९०९८व 1 11701 7057द व 4101, -- ४ € 21 91810 ६97 प 284. 5. 04वह- 1 1.111.118. / 14.11.110. 1111. 1. 11/18. 1/1... (111 {८94 , ६कद् ८४ १पका, 27९15९7८ -76वद्धूवटला" ५77८41045८ 11८ € ए1८व 9125 04ब्व 11.91. 4.8... 2.1. 111. 1.1;
199] ` प्रथमं प्रकरं 65
करणादीनां संभवः ददिकरियायामिव ॥ श्रव चित्तस्य तत्र कर्त्र परिकिल्य्यते \ तदपि न युक्तं वस्माएूर्थमात्रदशनं चित्तस्य व्यापारो य विरोष।दर्णने] चैतपानां। तत्रार्थदष्टिर्विज्ञाने तदिोषे "तु चैतपाः।
इत्यभयुषगमात् । एकस्यां दहि प्रधानक्रियायां साध्यायां याप्वं गुणक्रियानिर्व- तविदारिणाङ्गीभावोपगमात् कर्णाटनां करणादिवं [79.25१] न चेक त्ानविज्ञानपोर- का प्रधानक्रिया ' किं तर्धर्धमान्नपरिच्छत्तिर्वित्तानत्य प्रधानक्रिया ' ज्ञानप्य वर्धवि- शेषपरिच्डेद् इति नास्ति ज्ञानत्य करण(19 भृते नापि चित्तस्य कर्तृं " ततश स एव दोषः ॥
शरध स्यात् ' घ्रनात्मानः स्वधर्ा इत्यागमात् कतुः सर्वथाभावात् ' कर्ताएमत्तरे- णापि विग्चत एव क्रियादिव्यवक्हार् इति ॥ एतदपि नास्ति ' घ्रागमस्य सम्यगर्घानवधार्- पात् । एतदेवोक्तं मध्यमकावताे ॥
1) 1088, ऽककरल्वव. -- वा. योरपि सगुसयुमस पस्य (1८. मिमे
9 दुः इरया श्रये 9 ७०४७. 7. तेन" दुढुमतुरः दुमो | दतः उरस सेमसयिस् ड | == , . .{4व7(९5ब्ध ६५८ -- 011" 61-0९888 11, 1016 4
ए ४०1११प६. 14. 4; ऽणवरकीणटवकाद्ः कक कद; (का १111 0१४, ९ ४०९७४511 19101 5५24441. -- ¶ ९१३१६११1] 2६870 278. 26. - 9१02४४४४ प णा. 8. ~ ^ 0119411. 1. १. (8. एप८००प) 9. 289 शद्धा ०108 वाध" ४८5१८11द7(014114104101; ९८९०१ द१/45 ६४ ९व वड ९१८९७०१1 ब१८द्क्व््. -- प्रणा १०६२३४८४ 1. 48--44 (माद्दा द्5क (क एणदव्द््) उक्ष; कलव्कव्द- वावाव्वना 0 वावकादाकद४द. . , , 171 7411097 क४ ‰054 71 (810 धा द] 3).
०). ^ 9011411. ए. ए. ल€ 701.-8. पर्णा (. 41) कारन्दाव्माककद कटय [54१02] . 777161149॥ ८८54५८10 ^ ४८57 क(९$० १व्रकहदवह १५8० द्क14114१011 74११८८१ ८दव, ~ 07 ^ ##123811017 291, 308 € 1€8 10168 १€ ४" 210 ए 8 ४१148 ४ 701. 8४1 - ९1 4, 8. -- 1.6 धद ्१५ €8॥ 1806 १ 49211, &-१९880प३ 8 ¬ इ ४. 16 ४६द- 11.1.11 1
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10
66 प्रत्यपपरौता नाम [19४-
श्रथापि स्यात्" यधा िलपुत्रकस्य णहीरं रोः शिर इति शरीरशिरेव्यतिरि क्तविशेषासंभवेऽपि विशेषणविशेष्यमावोऽस्ति ' एवं पृधिव्याः स्वलक्षणमिति स्वल- तणव्यतिरिक्तपृथिव्यपेभवेऽपि भविष्यतीति ॥ नेतदेवमतुल्यवात् । णरीरशिदशन्दयो- र बुब्यादिपाए्यादिवत्सर्माविपदा्त्तरतपि्ताप्रवत्ती शरोरणिर् शब्दमात्रालम्बनो =. वुयुपंनननः तरचारिपदाधत्तिपाकाङ टव वर्तते ' कस्य शरीरं कप्य शिर् इति । इत- केऽपि विषेषणातररसंबन्धनिराचिकोरषया शिलापुत्रकराक़विररेषणध्वनिना लौकिके. केतानुविधापिना प्रतिकरतुः काङ्ामपद्धततीति युक्तं । इर तु काडिन्यादिव्यतिरिक्रिपृधि- व्याग्तेभवे [10. 257] तति न युक्तो विशेषणविरेष्यभावः।
तीर्धितिर्व्यतिरिकतंलच्यायुपगमत्तद्नुरोधेन विगेषणाभिधानमडइ्टमिति चेत् '
1) ४. ४१४. 245. 1109. -- 122} 30211813, 1. 9. - 8109018१. 00.
84. 27, 148. 1: १०१ (कव्य, (्वक्छष्ावछव (व्यद्रव्ा) 1054590 (वक्वा; ९0768 8008 176{8]70114प९8 [णं] 817४] : 0 7916 वला ऽकापट कवलः कणालेलः 06 कत् [048 088९88१९ ए€पीप्रा॥णं ३8] तपाल] १४३ तल [वला सं्छडकथपणशाफपणद्] कंवल 1९९1, ४९161८8 १९४० &€0€081971त 10 8लं€ा' 2९08612 [१. 1. १€ ¶1268860€, १४88 त 1९006 व16 81(प९ 18४, ] लााप्९०१९0 [€], पणत् 1681910 116 [7 8016060 8९] णपा €ो06 4 प8व7प्८रइक्€ा8€ एणा, € शलालाहा १16 ॥02089€01€1€ 10€०४॥४॥ 1 १४8 6 € कशत
` १६8 0886880 एला ्धणा३8९8 2९16166 कपत. पला काचा कलाः 88{: पल म-
"4 0 2) 1138. ० 2१0¢2410141°. -- ¶10. ' ' ' सगुखयान्न् रुग् ` 8) 088. ६५44100 क् 4१47, २५2 द2/1000°. -- खमन पगृ सपति ९ ९॥ रङ्ग | गृरणू नु ५ | स्वारभस क ॐ {4-50 ए€ण॑ प्लणाकष्ट्ल |
2044-2, 1०-10-21044, 11 8'07070०86 > [6 ]-(08 (धधा == €] -4818), €† ००३ 808: लप 10716 1161]7ह€०४ (10-8८-02 एवदाक्द् {ब ) €ण+6€ात [7100066 16 ००४ 1616 € 8€ 4611806: 19 {€€ त€ वृप्?. . .9
4) (कि ४ नि २पुगि"प ' ' " &209९-}8 (0) 0०९६-9) 7760606 १6१९-१ == "0517414 -- स्) 2083 16 67 त€दक{ला' 12 [60866 ¶०९ [16 "0॥ ४€।€ | €8 फ 6€- ताक्लाला € 18000 ३१९९ पण वल्लक.
5) प, रवकव्तनः ९. ग, नकेमुगुदि' सुपुमपर, [पसश्वरसनि
-190] प्रथमे प्रकरणं 67
नैतदेवं । न हि तीर्धिकपरिकल्यिता युक्ति विधुरः पदार्थाः स्वतमपेऽयुपगतत न्यायाः । प्रमाणत्तरदिरप्यमयुपगमप्रतङ्गात् ।
रपि च पद्रलादिप्रज्प्तिवत् तैशरीरोपादानप्य शिलापुत्रकस्यीपादातुलों किक - व्यवकाराङ्भूतस्य विरेषणस्याविचा्प्रसिद्प्य 'तद्वावात् ' शिरउपादानत्य च राक- हषादातुः [19४] सद्वावादृपुक्तमेतनिदर्थनं ॥ ९
शरोर शििव्यतिरिक्तप्यार्घात्तरस्यातिदेस्तन्मात्रप्योपलम्भात् तिदमेव निट्शन- मिति चेत् ' नतेवे । लौकिके व्यवार् इत्थेविधीर्प्रवृत्तेरविचारतश् लीकिकपदार्था नामत्तित्ात् । पैव ठि बरपादिव्यतिरकेण विचार्यमाण घ्ात्मा न संभवति श्रपि च लोकेवृत्या स्कन्धानपुदायात्याप्तिवं ' एवं एाकणिलापुत्रकयोरपीति नात्ति निशं नसिद्धिः॥ एवं पृधिव्यादीनां पश्चपि काठिन्धारिव्यतिरित्तं विचार्यमाणं लच्ये नास्ति 10 लत्यव्यतिरेकेण च ल्त निरभ्रं तथापि सेवृतिरेवेति ' प्यर् पे्तया तयोः तिया सिद्धिं व्यवत्थापयांबन्वुराचापाः । ्रवश्यं चेतदेवमःयुपेयं ‹ श्रन्यथा हि तेवृतिहप-
1) 0णड 8प्पमा§ ॐ 27616 त 8प€8 [एकह 88 ¶प्6 16 1व4/क6त 6४ 114191८ १1190, ४ 88१07 16 {47 व (?). -- ४ 011 ५1-१688०8 69. 1.
2) ० सगुन, १.
3) 1088. 5, 5४८, 11€8{ 88. {78वप्रा{£ १8६०8 19 १९६18700 ध068106€ €४ [€ €॥6 €०४146 (0. &४-ए7०). -- 1१10. = 2 ९ @१‰८-दद2114 -०(€54१4 [58/4] [वषप्ा2९४/०- = ` एववा -4८ 1014514 4104 [5/4] दव -67[0 १7 [१/५], = &०८-12 4144 - [8/५] "दवक्} 11106 न 2ववाद-दव४-072 7@04-णवयं 5दवए्लएदा॥ 10141 {19क0॥ {कव् ०४५4101.
4 पष, वणण्ठावाव्कदकन्कृकव्दर, -- का. मु'टुगुसष गुयषय "^" एम्
१० 1 न पविः
5) णच = दुम
6) १०" 6091८ श्ण.
7) # == 00015200121१८१९.
ॐ
68 प्रत्ययपङ्ता नाम | [19४-
पत्या न विद्येत \ [10.96१] तदेव तत्त्वमेव स्यातन सेवृतिः॥ न चोपपततया विचार्षना- णानां धिलापुत्रकादीनामेवासभवः \ किं तरपि वत्यमाणया युत्ता उपबेद्नादीनामपि नास्ति सेभव इति तेषामपि सेवृत्या शिलापुत्रकादिर्वनास्तित्वमास्येे स्यात् + न ैत- देवमित्यदेतत्॥।
रय स्यात् ' किमनवा ृत्ोलतिकेधा "नेव हि वये सर्प्रभौीणप्रनयव्यवन्हारं सत्य- मित्याचत्महे ' किं तु लोकप्रतिदधरेषामुना न्यायेन व्यवस्याप्यत इति।
उच्यते। वयमप्येवं ब्रूमः ' किमनया सृत्मेत्तिकया लीकिकव्यवक्रिऽवतीरिकया' तिष्ठतु तावदेषा विपर्ामात्रापादितात्मभावततताका पेवृतिरममतूणां मोत्ावीक्ककुशल-
1) छम = नितु्' = एष.
११ विम. नुने गुद भण
3) 2188. ०0071070 १०त510{०८0॥ 2517९0/4001. -- पष. गेषृ कयत सगुः पतमेर् गुहु एमपमपमयदेम दुः [सपरमयनपुनप |
4 1 रय्जण् तालम भृण्यटः दसूदुस' वगु इुमयन्सयकुृमः निप्प पयुमतररह्गुपयस् कसय, कमुपस देपुनिस' एरसदुःवहनि' पन्यम | = चथ वा पव्वनवककतककाणुषव्छतक्वक्) ककन णदाषका्द- {77८ १/*दा514001 कषित 2) £ {04 ९४८ /4०व5 ९/1,
8) = ० णाः 168 {णाकप्०08 ला प्त (एकक, सल्दवधल,
० क्कणद, प्क); एणाः 8041016. {. 378. 9 ९४ 2 पा. 54; &11॥ 58. 82. 18, 191. 6, 267. 15, 269. 9; 11४. 330. 9. ©. 11 ₹. 1. 522, 11. 498.
6) 2788. ककव 01400042. ~ ग). पुम् गनि याद्वियु ष्म (01 स 1.19 ॑
पर) 1188. 17057दद४४" ९5द, ९४८. गप). = 2 तृगुशरत ६)
8) प१९४४ शह0९16 (२, छ.) १०९७ १88 16 ९०70086 #व&4९.
9) 2188, 11015०440वाक, ०व् दव (रदुखुपयेय).
9 प्रधमं प्रकरणं 69
भूजलोपचयेतुर्यावनन तत्त्वाधिगम इति । भवांस्वेतां सेवृति[९0०]परमार्सत्यविभागड वि - टग्धबद्धितया क चिडपपत्तिमवतावान्यायतो नाशयति । सोऽरं सवृतिपत्यव्यवस्यावि- चत्तएयाल्लोकिक एव पत्ते त्था सवृत्येकदेशनिराकरणोपक्िप्तोपपत्यत्तर ्रमुपपत्य- त्रेण विनिवर्तयन् लोक वदध श्व लोकाचारात्यरिथिश्यमानं भवत्तमेव निवर्तयामि न तु तवति ॥ तप्माग्बदि लोकिको व्यवद्धारस्तदावश्ये [1;. 26४] लत्तणवल्लत्येणापि 5 भवितव्यं " ततश्च स एव दोषः। चरथ पर्मार्थस्तदा ललत्याभावाल्नत्तणदयमपि नाप्तीति कतः प्रमाणदयं ॥
शरध शब्दानमेवं क्रियाकारकपंबन्धपूर्विका व्युत्पत्तिनद्गीक्रियते । तदिद्मति- काष्ट \ तेरेव क्रियाकारकतंबन्धप्रवतिः शब्दैभवान् व्यवदति शब्दार्थे क्रियाकरृणादिकं च नेच्छूतीति ' श्रो बतेच्छामात्रप्रतिबदप्रवृत्तितो भवतः ॥ | 10
यदा चैवं प्रमेयदयमव्यवस्थितं तदा [स्व]ामान्यलत्तण[]विषयत्वेनागमादीनां प्रमाणात्तरवं ॥
किं च घटः प्रत्यतत इत्येवमादिकप्य लीकिकव्यवकरष्यातेमरद् नार्षव्यव- काएाभ्युपगमान्चाव्यापितौं' लन्तणस्येति न युक्तमेतत् । |
1) गप, == कवुकाषकाका ११०.
2) वषा. = (नाक्वाल्वदष्छदतता -- [कावा = येम
= ~ ५ 4... ~
59 गन वुनविकगुसय नन मर श्न मकनुकरेतये पुडमे म धनुषे सुस करम गुणयेत मपरमुय मदमु | = ८ शण 71111171
4) . . 45001447, एण 61-4९8808 71. 8. -- वक्व == निवृत ॥ 0 पति" 9 मठपयषेषन्' ननु | नेषु स्मे भेरगससि -- ५ = चणम्
== 06514.
70 प्रत्ययपरीत्ता नाम [२0१--
प्रथ स्यात् ' घटोपादाननीलादयः प्रत्यत्ताः प्रत्यततप्रमाणपरिच्छपतात् । ततश्च ययैव काणि कारयोपचौरं कृता बुद्धानां सुल उत्प इति व्यपरिश्यते ' एवे प्रत्यतनी- लादिनिमित्तकोऽपि घटः कारये कारणोपचा कृता प्रत्यत इति व्यपदिश्यते ॥ नेवंविधे विषय उपचारो युक्तः । उत्पादो हि लोके मुखव्यतिरेकेणोपलन्धः ' त च पस्कृतलने- 5 एस्व[१०णुभावाद्नेक इष्करशतद्ेतूबाद्मुल एव \ त सलं (1, 279] इति व्यपदिष्य- मानोऽसंबद एवेत्येवेविषये पुक्त उपचारः । घटः प्रत्यत्त इत्यत्र त॒ न हि घे नाम कञ्चि- पयोऽप्रत्यत्तः पृथगुपलन्धो य्योपचाहात्प्रत्यतवं स्यात् ॥ | नीलादिव्यतिरिक्तप्य घटस्याभावादीपशारिकं प्रत्यतवमिति चेत् ' एवमपि सृत- ` शमुपचासे न युक्त उपचर्थमाणत्याश्रयस्याभावात् । न हि लर्विषापतैतपयमुपचर्पति। 10 चपि च ' लोकव्यवहार्ाङ्गभूतो घटो पदि नीलारिव्यतिरिक्तो नास्तीति कृता तप्यौपचारिकं प्रत्यततवे परिकल्प्यते ' नन्वेवं सति पृथिव्यादिव्यतिरेकेण नीलादिक- मपि नास्तीति नीलर प्यीपचाचिकं प्रत्यवे कल्प्यतां । यवोक्तं।
1) 70. ४०४. 245. 571--578. ।
2) 1188. ९10244०. -- 11). भनककुदुमम ठे ^~ पम ठस -- प्ल ]016 €1४881प८€, ४18०१010. हणा (प्र 21160) ३०११187, 194); एक 18 68116 @18{67८6 16८86 1४ ००868 666९, वण 2 6 एणी, 0.8 पतत्) 8 8 ९४11९ 18] ए ९८१86 1६ 1€8प्1#8 10 17711688. -- -4 0 11101. 7. ए. (8०९. 48.) 2418 2; 800014८ंक = 5410100100क(८ 5411वएद्/€ {274१८ 4४०८ व, 501क 8; = $ककरद 5०16 "वबा {द्वच ८४. -- 17808666 १९ ९५4400८ कवव ९8६ प्र = ब5१क (1 0.- 8.
1. इर) एषा 6व्ला८८९ः एष्वकानकद० (४0400107 (०१०1५, 2. 10. 8). -- 1468 2] 0116४008 तप्र 700६ 58%{7व, 4 १४1 ४821. § 99 & 301.
3) ४०7 (0 शध्6 णा.
4) [६ पुषः ठस == {0521400 51८1101 ४४ == 5८ 5074 ४४, `
8) 70. ए एप, 248. 688. -- ^ 0114 1. 1६. १, (806. 4.8.) 3899 7; (4८2८ 0400 2 111...
6) 2188. {4610500} १५१८८०0४ -- 710. नवर्भुर
7) == ११] ९४६०९1४, 417४१९१९, शष. 14 (प86००) 1900, 2. 240); 616 0218 16 (०. तप ४41 क़ ४7 81३2१३६. 344) 5.
-200] प्रधमं प्रकरणं 71
पादिव्यतिरेकेण पधा कुम्भो न विश्चते। वावुदिव्यतिरेकेण तथा पं न विग्यते ॥ इति । तप्मादिवमादिकप्य लोकव्यवद्ारृस्य लत्तषणेनापं्रद्ाद्व्यापितव लन्नणप्येति । तचविद्येलञपा हि परत्यतलं घटीनां नीलादीनां च नेष्यते ॥ लोकेवृत्या लभ्युपगत्त- व्यमेव प्रत्यत्तवं घटादीनां ॥ यथोक्तं शतत । पर्वं एव घ ऽदृष्टो ढे दृष्ट दि नायते। यात् कस्ततलविन्नान घटः प्रत्यत इत्यपि ॥ एतेनैव विचारेण सुगन्धि मधर मृड । प्रतिषेधपितव्यानि सवापयत्तमबदधिना [70.270] ॥ इति ॥ श्रपि चापरोताधवाचिवात्प्रत्यत्तशब्द्स्य मात्ताद्भिमवो ऽधः प्रत्यत्तः ' प्रतिगत- 10 मत्तमत्मिन्निति कृवा घटनीलादीनामपरोत्ाणां प्रत्य्तवे सिद भवति । तत्परिच््-
1) &€ व61-6101& (2) ९8 {18 पा† € 7086 १४०३ 16 (10. -- एना पि एषद्फषए्द. 42. 15 844. 1 018८088101 १९ 19 16001107 तप 1क्व्§८ १०१०६८९ एश ए ३३0 87त्1 प्र, 750 वाक४व 17414/ वऽ §102 (2). पि ए ह ए ४१. ५३६४7. 154. 91, 352. 18, 100. 18 घ्व 1... 1.21 12. 11/11. {४८5१0 11451९4 . व च? 47459 ४४/०८ द(0/क९) 20 ६४ {210 00 द्द @0वष्कए: ६80 ९८दा 2574142 = 4704001711745411४द07 ८११, = 50000101द{96वा0 = ०१८१ = 7 वल्वववण्च्छाच्छन्. 0) -- ४० 1002, 2. 74, 0. 6. -- 1.6 8९] दवएन्द्ध०कृव (आण णव्य- कब), €88९0पलााह€॥ 1णाता718016 (20 १04541005470 6/0), €8॥ 74{1/ब1:58व.
(४) == {८० ^ १६१दव् ° १2१८१ = 74141598. (9) 1.6 कवक ०९ उप]ग6 ४8 1९ धफल (एदल 2-28३18, १०77 }. 67 1. 7); 11 16581816 ¶प€ 0918 1४ 10 व1त5४वदा (कणा 2. 74 9. 1), ९९8 ४ व7१८ वण्व्दद्ादाका. -- 1/6 5क01वडक, 16 शापा) ०९ एप ९९ 5/4 १९ 19 €0108188&766, ८9 16 अंणपा+806€ 11681 [४8 {722 ; € € एला वप्र एप - 606 शव्द ०७/८1 (8 ०१11९. 0. 12. 22).
2) (9016 शा. 1. 2. ~ एमा फ 288111९1, 332 (864) 8008 § 8.
3) 1188. 07040 5/0 . . . . 0 द ६८ 3/4 1 १1८ (दव्य कवत 9) ,,.. कव” एववाऽव ४ व. -- ५. युम ठे | वमस, विम् मर भेतुर | सुमायाः ममु सुम' वेसु | देेपुरेगुषय सुगु र|
4) प्रणा 41१61868 € 0116५008 € 701014९8 १४०३ दि ए 2 ए ४1०८४) प0कफााला 219८३8६} 808701. 186. 19 (5व१ ब6८1 0 काच्र/०0बदुव९); पि ए चकष. 30. 4
72 । प्रत्यपपरत्ता नाम , [9४
का[शभृस्य त्तानस्य तृंणतुषाधनिवत्प्रत्यनकारणलात् प्रत्यत व्यपदिश्यते ॥ पस्वत्ततत ' प्रति वर्तत इति प्रत्यब्दं व्ुत्पार्यति तप्य ज्ञानस्येन्द्रिपाविषयता द विषपविषव- ला]च्च न युक्ता व्युत्पत्ति \प्रतिविषये तु स्यात् प्रत्यर्थमिति वा ॥ प्रघ स्यात् ' यघोभयाधीनापामपि विज्ञानप्रवृत्तावाग्रयस्य प्टम्दतानुविधानादि- ^ 8 ज्ञानानां तदिकार्विकारिवादाधपेणिव व्यपदेशो भवति ' चतुर्विज्ञानमिति एवं प्च- ्यर्थमय प्रति वर्तते, तथाप्यत्तमत्माभरित्य वर्तमानं विज्ञानमाग्रयेग। व्यपदेशात् प्रत्य- तमिति भविष्यति । दृष्टो साधारणेन व्यपदेशो मेरोणब्दो पवाक “ति ॥ | नेतत्पूर्वेण तुल्यं । तत्र हि विषयेण विन्ञाने व्यपदिष्यमाने ब्पविज्ञानमित्येवमा- दिना विज्ञानषटरस्य भेदे नोपटर्थितः स्यात् ' मनोविज्ञानस्य चुरारिविज्ञानैः संरेक-
(15८5४ व्848/८ 7018 ४54१/द11 ९११८४ = 11474540. . , ; 107व4क ०१1 कका" 7 क व- 15401); पि ए क ४१. 120). 64. 26; 68. 6. 19. (00. पि ए ढक 2010. 7, 15 [ककव दधवा! 80, , ,; क द्१।५1५१॥ ९व १४९ ब11100000011द001 (0 वद59/व) १4 ६ 0 {- 10000861द90: 4१९धव 1४. , , १ 11वक्धइद्व त्त [ब5941९. -- 45@ == 0109016 068 8608) एण 1462 तप प 218 86871४8 (१208 व. ‰. 4. 8. 1899 }. 507).
1) (70. {144४, ("5044४, ‰ 2111. प. 1. 259. 28. 30. 9 मैस मे' सृप्रि पसम म्ेमवतिदर यु | पुवः पुचस्म्
१ €\ € "म् ~न न == 1.6 (दरेण 122 [28 [0 एव 1९8 868, 728 ला 168 शक, > ५
~~ ~~ ~~~ "~~ ~~~ ल ५५ € ल ~~
3) एवच मबव निमि २ वक्म <म्. म १ निनयन +भ 11 8... . 1.8 ०6वणा €8† ता0िला€ ४ €द्पााावप्ला.
4) 2८ == पु -- १14114८ == भुम
8) (ण}). प ए फ ११३11. ५३४}. 74. 16: ‰4102 (वऽ इद = ककाुववीरलाद ततव) ४/८ (लाइव धद, . , ,; ९९00 /क17क श क्रनद्ल7१त ९१ववकक्कत 49 क्क १007101 ४. ,..
6) 1188. 2144284, -- (11). पदे यस.
7) प एह ४१४. 34. 16 = ?1एद्वद्१५8 00171 दद्दा 1१24१014 क16 १ ?{श्दवाए7 9" ०४०4दह(४/८1९, 19 {४ ०5 दवा 2ा4१९द एद९१द १४ववकवक(व वणक्छपनव
8) 2088. 841126८.
-४४] | प्रथमे प्रकरणं 73
1 त् जत्तानमित्यकति (9) विषयप्रवृत्तत्ात्। तथां कि नीलारिविज्ञान [79.95१ विज्ञानम त्युक्ते साका एव श्र ~ कितितनरपो ~. (3) नमाकोस्विन्मानस (> क्स त्ययान्ञायते किमेतद्रूपीन्दरियनं विज्ञानमादोप्विन्मानसमिति । प्राश्रयेण तु व्यपदेशे (4) ९ नवर तिद्ध मनोविज्ञानचतरािविज्ञानविषयप्रवृत्तिसभवेऽपि परस्परभेदः सिद्धो भवति । ~ (5) न इह तु प्रमाणलन्नणविवत्तपा कल्पनापोहमाज्रस्य प्रत्यत्तवाभ्युपगमे पति विक- (6) . न~ तदिशेषलाभिमतवादसाधार्णकारणेन ~ (द =^ (8) नवि ~ (५९ ल्पकादिव तदिशेषलाभिमतवादाधारणकारणेन व्यपदेशे सति न किं चित्प्रयो्नमुष- लत्यते । प्रमेयपरतच्लायां च प्रमाणसंब्याप्रवृ्तो प्रमेयाकाहानकारितामा[। णुज्रतया च (9) ~~ न = न््रिपे ~. चिं तमासादितात्मभावसत्ताकयोः प्रमाणयोः स्वद्रपस्य व्यवस्थधापनानरन्दरियेण व्यपदेशः किं चिडपकरोतीति सर्वथा विषपेणिव उ्यपंदेशो न्याय्यः ॥
(10) ~
सेके प्रत्यतशब्दप्य प्रतिदवादिवतितेर्थे प्रत्यर्धशब्दप्याप्रतिदवादाभ्रपेणिव
1) १88. 10व7 15 शल्काणडवुवञाद ०४०, -- नरु खम यप सगु हर समसन" सुषुय दम पग.मेसनयः बस पहुपुममि | 9 मेय" रेपः सुर परस्य पेद-द्' विशु
8) 0&णाप्०ण १6 7011817 8 त7 ४1; वक्ष्यतः दव्पूव्कव्नकृद वतव. ष्णाः धिह 90194प 108. 3, 8. 20; 28191, 07 {16 ४१४10181 01116 तिणढड- 14, च. 4. 3. ए०णफभ्क, 1. 56; € एणः 168 अप्€8 80८९8 881९ 2१274813; 0०८५०10, ००४6 152. ~ ४, ¶ ई ०४. 199. 69-68.
6) दुमवगु पयसः = ण्पणएव्य.
7) (000). १५4०(९548/0. -- ग). अ
8) 0०06 [09 008 {7018 ९0168; 7४146 5४०8 (0.
9) 1188. 50१1१५०, 54१92१2०. -- रय = 1021. -- पभ 68. 8.
10) 2788. वान. . . . . 11.11. 11.11. (11.14.111 11.21 11.11.911. १७५५... -- प. पदिनुदेयषु वहेमवनपवदुमपनिः नुमेच मनमृसुमछे ङगु स्य हुगुषसप ठम सूर | दुमन्षस वसुपते म गुषृषनि ठ" मुमि 0
ॐ ५
74 | प्रत्ययपरीत्ता नाम . [४-
व्युत्पत्ति प्रीयत इति चेत् ' उच्यते , घ्रस्त्ययं प्रत्यतशब्दो लाकर प्रमिदधः। स तु यधा लोके तथा्मामिहच्यत एव । पथाप्थितलोकिकपदार्धतिर्स्करेण तु तद्युत्पदि क्रिय- माणे प्रतिद्शन्द्तिर स्कार प्रि स्यात् ' ततश्च प्रत्यतमित्येवं [न] स्यात् । एकस्य च चतुर्व्नानस्यैकेन्कियत्तणाग्रयस्य प्रत्यत न स्यादीप्ा्मिवात् ^ एककस्य च ५ ५ प्रत्यत्तवाभावे बह्हनामपि न स्यात् ॥ | कल्यनापोषत्येव च त्तानप्य प्रत्यतलभ्युपगमात् ^ तेन च [7५0. 98४] लो- कस्य सव्यव॑कारामावात् ' ` लीकिकत्य च प्रमाणप्रनेयव्यवक्छार्स्य व्याष्यातुमि- टात् ' वर्रेव प्रत्यतप्रमाकल्यना संन्ायते ॥ चतुरवितञानसामाङ्गो नीलं जा. नाति नो तु नीलमिति चभिमस्य रत्यत्लत्तणामिधानार्याप्रस्वतवात् \ पञ्चा-
^^ ^^ +^ +^
1) 2745६वदद = 0फा8 प9्ा8 16 10. -- [नव्धावरव्वकहं == कलानाला€ ^ पाश्रूाा6, ९1616 ४18 ^ पइवाप्लाः 2९९12886) 17, ०7 शालला 896 [ल्€ 6 ल€णक्षपां हाल 10 अल अ 081४ (फ 888. 882 == 564. 1).
2) १७8. 27010/4170409 ४ ९४९११ शुका, -- वृ. गुनि. मतमु सुमः (+ निर मेः भुम |
3) पमष पढ 2010१. 12. 2 844.
4) नहिगाेमुपति प ्र3गम मेदुपिठुन -- (010१५४५7 == फल्#- 161€ 86वाणद्पाहट (क 288. 882 == 864. 3). ८ ०
5) घ्रः |
6) 1188. ४४ ९204171454. -- 1.8 166 नण @ 6०९ &76 ९0716616, (97 ४ एत १० द्दकाष्व. -- तभ, भेगुे हुम पन्मेसः गुर मयस समय गेम तभर्ये भ्र, ् २ परमते विसु नुन पनः" =... श्वकः च (अकण-तप)
४ 2041150४. 061 व्टभा४ €8॥ 6116 4'9]188 114 11141 2178 088 एए 20174प 0 चर 2}0 91 -
8 8881] 1६869 (४४१. 2740 ©, 01. 10690) ४१९८ 18 एशाक्षा1€ सिमरि १3 (5111) प्र 8 प76 79 मत ढ् ममे ए ससु रमु-मस्प ९॥ परु
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-229] प्रघमं प्रकरण 78
नामिन्द्ियवि्ञानानां जउवप्रतिपाद्कलाच्च , नागमाद्पि कल्यनापोषस्यैव विज्ञा नस्य प्रत्यत्तत्मिति न युक्तमेतत् । तस्माल्नोके यदि लल्यं यदि वा स्वलत्तणं''सा- मान्यलत्तणं वा सर्वमेव सात्ताइपलमयमानवाषपरतं ' घतः प्रत्यत्तं व्यवस्थाप्यते त- दिषवेण न्ञानेन पक । दिचनदराटीनां ततिमिर्िक्षानपेतयाप्रत्यत्ततं ' तिमिरिका्यपे-
तया तु प्रत्यत्तवमेव ॥
परोत्तविषयं तु ज्ञा[2९०]नं पाध्याव्यमिचारिलिङ्गोत्पत्रमनुमानं । तत्ताद्तोन्निया- धविदामाप्तानां यदचनं प ब्रागमः। पादष्याद्ननुमूतार्घाधिगम उपमानं मीर गवय इति यधा^
तेव प्रमाणचतुष्टवाल्लोकध्यार्थाधिगमो व्यवस्थाप्यते ॥ |
तानि च परृष्परपित्तया तिध्यत्ति ' सत्मु प्रमाणेषु प्रमेयाधाः ' सत्तु प्रमेपर्ेषु प्रमाणानि [70.29१] । नो तु खलु स्वाभाविकी प्रमाणप्रमेययोः िदिरिति तस्माल्ली- किकमेवात्तु पथादृष्टमित्यले प्रसङ्गेन ' प्रस्तुतमेव व्याघ्यात्यामः ' लोकिक एव एर्ने
स्थिव बुद्धानां भगवतां धर्मदेशना ॥
वला, 7८ 11740 तदा्दा४ १४ ९1207201 = वशव्छाक॥ ००१/00(4४54/0741907त2- 9कव (वतका ४ [07 वुकदऽदाा] ५८छ४व, १८ थ शका च, १4 व7व171400 ऽव प्द- १ ४६ ९12270/91 व४कए7दक४ एवद् १0515 110441-47 4707 45ल्का द त्दम्न१ह- 209 ५ ५९४८. (एणाः दिक द्क2017त प) 9. 10.) -- 4 01140. 1. ४. (8०५. 48.) 241 8 5. १८११०८१1 शवदााः पदुक्कषद/ ८0774710 णथदकव्त/ ० 17ब7; ऋद्रका ४४
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10
76 प्रत्यपपरोत्ता नाम ` [शव
खनत्ाङ्ः स्वधृध्याः । ददुकतं न स्वत “उत्यव्यतते भावा इति त्नुक्तं स्वत उत्पत्तिेषर््यत् । यञचो्तं न“ दाभ्यामिति ' तद्पि युक्तमेकांशविकरधात्।। श्रेत स्वेकात्तनिकृष्ट इति तत्प्रतिषेधोऽपि युक्तः । यत्तु वल्विद्मुच्यते नापि धरत इति ' त्युक्त ' पस्मात्पर्भूता एव भगवता [भावा]नामुत्पाटका निर्दिष्टाः ' चलार्ः प्रत्यया केतुशरासम्बनमनत्तं । तैवाधिपतेये च प्रत्ययो नाप्ति पञ्चमः॥ २
1) <न शेय्षु @. 8०१1५. £. 249. 9 (द. 4) ० ९८ ल€, वव8 18 ०प९]6€
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-22४] प्रथमं प्रकरणं 77
तत्र निर्वर्तको रेतुरिति लक्षणात् ' पो हि पस्य निर्व्तको बोनभाविनावप्थितः त तस्य केतुप्रत्ययः । उत्यश्यमानो धर्मो येनालम्बनेनोत्पग्यते स तत्यालम्बनप्रत्ययः । का- रृणस्यानातरो निरोधः कार्यस्योत्यत्तिप्रत्ययः ' त्था बोनस्यानात्त्ते निरोधोऽङ्क्- स्योत्पादृप्रत्ययः यस्मिन्. तति, यद्ववति तत्तस्याधिपतेषमिति त एते चचार प्रत्य- याः॥ ये चान्ये पुरोौतरनातपशान्नाताट्पस्त एतेषेवातत्ूताः । ग्ररादपस्तु प्रत्यया एव न संभवत्तीति । श्रत ए[2९४]वावधार्पति ' प्रत्ययो नास्ति पञ्चम इति ॥ तस्मादेभ्यः परूते*यो [7;४. 297] भावानामुत्पत्तिर्स्ति परत उत्पत्तिरिति ॥
श्रननोच्यते \ नैव हि भावानां पर्मूतेभयः प्रत्ययेय उत्पत्तिरिति । यस्मात् '
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78 प्रत्ययपहीत्ता नाम ` (श
न ह स्वभावो भावानां प्रत्ययादिषु विग्यते ।
न~ न् [क्प (1) श्रविख्माने स्वभावे पर्भावों न विग्चते ॥ इति । ३
यदि हि रेलादिषु परमूतेषु प्रत्यवेषु समस्तेषु व्यस्तेषु व्यप्तपमस्तेषु हेतुप्रत्य- याम्य न्यत्र वा क्त चिद्रावानां कर्याणामुत्यादातयू सच्च स्यात् + स्याततभ्य ॐ- 6 त्पाद्ः। न चेवं पडत्यादातपू्वे संभवः स्यात् । पदि स्यादत चोत्पादवेवण्यं च स्यात् , तस्मान्न चास्ति भावानां प्रत्ययारिषु स्वभावः । रविश्वमानि च स्वभावे नास्ति पर्भावः। भवने भाव उत्पाद्ः ' परेभ्य उत्पाद्ः परभावः " स न वि्यते । तस्माट्यक्तमेतत्
पर्(भूतेभ्यो भावानामुत्पत्तिरिति ॥ श्रध वा भावानां का्ीणामङ्कुराटीनां बी्ादिष प्रत्ययेषु पत्स्वविकृतद्भपेषु ना-
10 त्ति स्वभावो निर्हैतुकल प्रसङ्गात् । तत्किमपेततं परव प्रत्ययाटीनां ' विष्मानयोरेव कि तैत्नोपर्मारकयोः पस्प- पत्तं पर्वं ' न चेवं बीनाङ्करयोर्धोगपययं । तप्माद्विग्यमाने [11.309] स्वभावे कार्याणां परभावः पर्बं बीजनादीनां नास्तीति परृव्यपदेणाभावादेव न परत उत्पाद् इति । तस्मा- दगमामिप्राानमिज्ञतेव परस्य ' न हि तथागता युक्तिविहदं वाक्यमुदारत्ति । श्राग-
15 मस्य चामिप्रायः प्रागेवोपवर्णितः॥
१ ममयम रनम वे | ठेमपक्ुमम दसनत | सवृ पृस परमेषुद् | गुनु प्पसयः मपृत -- पणर भाव०३ 86. 8 -- (णण). &118 88. 358. 8 ककव 0व17॥ 14 इव, 5१्वदाद1 क्रा 054८ 0 ९4४? -- 148 7101100 वप ववद €8† 0186४66 0). र ४,
2) 1188. 520001४1. (11). सगुखपयसः यामुुरकगुषि 3) 5१74047 5 ठः == एरय नणुनय
9 = गक हुुपसगृष
8) 04170 (ठ रस्ुमः) 8671016 10९९६.
289] | परथमं प्रकरणा त
तरेवं प्रत्ययेभय उत्पादवादिनि प्रतिषि क्रिपात उत्पाद्वादी मन्यते " न चततू- त्पा[४३१]यः प्रत्ययाः सातादिन्ञाने जनयत्ति ' विन्नानबनिक्रियानिष्पार्कवातत प्रत्यया | ता चं क्रिया विज्ञानं जनयति । तस्मात् प्रत्यपवतो विज्ञानञनिक्रिया विज्ञान- निनं न प्रत्ययाः । यथा परिक्रिया शरोदनस्येति ॥
न्यते,
(5) क्रिया न प्रत्यपवती ।
पदि क्रिया का चित्स्यात्ता चत्तरारिभिः प्रत्ययैः प्रत्ययवती विज्ञानं ननपेत्। न बस्ति । कधं कृ ' इ क्रियेयमिष्यमाणा बाति वा विज्ञान इष्यते भ्रनाते वा बाय- मानि बा । तत्न नति न युक्ता ' क्रिया हि भावनिष्याद्का " भावश्ेतिष्यत्नः किमस्य क्रियया '
जातस्य जन्म पुनरेव च नेव युक्तं " इत्यादिना च मध्यमकावति प्रतिपादितमेतत् ॥ ्र्ातिऽपि न युक्ता
कर्जा विना जनिरियं [7,४. 80४] न च युक्तद्रपा '
1) प्रभौ 6-१९888 7. 77 7. 7 1. 2.
2) 1188. एकरवकाछत. - वमा, युप म्स गुर"
3) 01788. (वक्ाब12०. - (9. र पयेमय परमुरो टम वे भ क न ^9| | 4) रिपुसकमुेः रकिदुयति खत ~ 10१5-6 द१# == प८९-फां०९) प८८-एष्लः (¶ ४8९16), प्रा्ं8 == इदालाषला €ं8 (8८10711४) = एंड ९णं+ 9 [ल्प (7 688०4709). ~ ॥४5/॥८4-0@ 0 ‰1810व-00 == 0 ९००1६ 7 एमा फाला, -- कद्र ट =~ 14.141.
-- ©€8॥ 18 ९88०१ वृ (16 ड 6पा४, € आना ४8 168 1१द१द/व5 १९ 19 (8801; {€ € €॥६,
8) ए6ण167 248 वप व पच्ट16€ इत्॥४.
6) प्रणीष -4688४8 18. 8. -- (9}). २78} 8 ]0., ५१६६6 118 28. 262. 19 १दा\८१॥ ^ + * १११११८९ वाब /0कीव{871 १८८१११४ व ९2१८110411110459/4.
80 प्रत्ययपरोत्ता नाम ` (शह
इत्यादिवचनात् '॥ न्ायमानेऽपि भावे क्रिपा न संभवति ' जातानातव्यतिरेकेण नाय- मानाभावात् । योक्त" ायमानार्धत्नातवरान्नायमानो न तायते । शरध वा जायमानं सर्वस्यैव प्रसव्यते ॥ इतिं ॥ 5 यतश्चेवे त्रिषु कालेषु जनिक्रियाया घ्रपभवस्तत्मान्नात्ति सा ॥ श्रत टवाद । क्रिया न प्रत्ययवतो \ इति । | विशेषणं नास्तीति विना विशेष्यं । इत्याटिना प्रतिपादितमेतन्मध्यमकावतर । न रि बन्ध्यायुत्रो गोमानित्युच्यते ॥ ग्येव- मप्रत्ययवती तष्टं भविष्यतीति । एतदप्ययुक्तमित्यार ' 10 नप्रत्ययवतो क्रिया । यदा प्रत्ययवती नास्ति तद कथमप्रत्ययवती निर्हेतुका स्यात्। न हि तत्तुमयः
पदो न युक्त इति विर्णमयो ऽभयुपगम्यते । तस्मात् क्रिया न [१8०] भावन्ननिका ॥
पत्रा ' यग्चेवं क्रियाया श्रसेभवः प्रत्ययास्तरि नका भविष्यत्ति भावाना- मिति। उच्यते " 15 प्रत्यया नाक्रियावत्तः। यदा क्रिया नात्ति तदा क्रियाररिता श्रक्रियावक्ते निर्दैतुकाः प्रत्ययाः कथं ज- नकाः ॥ श्रध क्रियावत्त एव जनका इति । उच्यते । |
1) 7 ४१12181 ११४78 पा. 19 (21786०0, 1900, 0. 282). 1.# 81966 € 6166 (प €#€ 6168808 (0108. 2 2 ४1. 1 (01, 172 9).
2) 8१866 01 1046066६.
3) ए. 57. -- 2188. ०१९७५१५१ "दकं ९०४द एष्टव्या, . + ,०११द ४९९ ऋ, -
4) 70616 782 तप पृपश््ला€ इत्र ४.
8) 1.68 10188. 1681160४ 61076 र्) (1/९) € णा१४ (0०५१८) 3970. प. पा, 187. 9) = म् == 86111661168, &70068 6188 (8 ८10 710४). -- 1४71३ ए8६818
88. §: , , , 4740 (कषक; ९०५१ (711 बब, ०८१८४१४, वद, . . (ष्णा €1-068808). 6) (708६706 808 पप्र ऽत्र.
-23?] प्रधमं प्रकरणं 81 र %1) 41
(1) क्रिपावत्तश्र तत्युत् ॥ 8
नेति प्रकृतेनामिसबन्धः । उतशब्दरोऽवधाटणे । तत्र क्रियाया रभाव उक्तः ' कथं क्रियावह प्रत्ययानामिति ॥ यथा च [7}. 319] विज्ञानन्ननिक्रिोक्ता ' एवं परिक्रिपा- दृषोऽपि भावा उक्ता वेदितव्या इति नास्ति क्रियातोऽपि समुत्पत्तिमावानामिति भवत्यु त्ादाभिधानमर्धशून्ये ॥
रत्रा । किं न एतेन क्रियावत्तः प्रत्यया इत्यादिविचरिण । यत्माच्चतुरटीन् प्रतत्य प्रत्ययान् विज्ञानाद्यो भावा नावन्ते' तस्माच्चतुरादीनां प्रत्ययलं तेभयश्ोत्पादो विज्ञानादीनामिति ॥ एतदप्ययुक्त मित्या ।
उत्प्यते प्रतोत्येमानितोमे प्रत्ययाः किल ।
(र || "~ (8) पावन्नात्पग्यत इम तावन्नाघ्रत्ययाः कथय ॥ प
यदि चज्रादीन् प्रत्ययान् प्रतीत्य विज्ञानमुत्यग्बत इत्य्येमे प्रत्यया उच्यते ' ननु पावत्तदिक्नानाव्यं कां नोत्पग्यति तावदिमे चत्तरा्यः कथं नाप्रत्ययाः । भ्रप्रत्यया टृषेत्यमिप्रायः। न चाप्रत्यपेभय उत्पत्तिः सिकताभ्य इव तिलघ्य ।
9 उब हेममयः भत् | हैमने उत मे | उपोष्य टे म' पव् | उपशमे एम तमेत ||
2) िवस्गु रदी == @९ १0५5 17700116...
9 नुक्गु च शेम मयस म् देति पदग् डमु उम गुगुम | दिव, ओ. 9 1 | 1 नमे, 29 भे || 8०१0१ ढ11४2, 1859 1; 802१9१1१९8, 578 7; 4 [४००१ 2, 408, एपा४ 19 एकाक; रर मेयम == ४४५१४ 10८ 24/011171016.
06 १९8 07168 6818616718114 68 १6 ९6 80701876, नर १6 ₹०१४€ १९ 19 त191९८- ४१०6 फटता कणा, 80116814 दए. [द. 114; 294 (९४ १८ णद [ष्, व 2 {7050 3411107वहव१ ? 2%41/2ए0क४८ दं १7570, 17 द5क९व१॥ ६०४०1 ९०/०7, एमा 1४ प. 348. 20. -- प ए 7४३४728 11. 1. 41, 1४. 1. 39.
10
10
82 प्रत्यपमेत्ना नाम : (शक
श्रथ मते ' पु्वमप्रत्ययाः सत्तः किं चिदृन्ये प्रत्ययमपेत्य प्रत्यय प्रतिषग्यत्त इति । (1) प ४५१ ज एतदप्ययुक्त । पत्तपरत्यात्तमप्रत्ययस्य प्रत्यपवेन कल्प्यते ' तरपि प्रत्ययते त्यस्य ~ [नपि जापि ~ (2) ^~ ~ क्प प्रत्ययो भवति । तत्राप्येषेव चित्तनेति न युक्तमेतत् ॥ किं चेहे[२५भमे चततराटयो विज्ञानस्य प्रत्ययाः कल्प्यमानाः ततो वाल्य कल्प्ये- नप्ततो वा ' सर्वथा च न युत्यत [77). 31] इत्याह । । - श ५ ~ ~ ~ निवातो नेव सतः प्रत्ययो ऽध्य युब्यते।
कप्मादित्याद् । ॑ प [नक (8) ग्रतः प्रत्ययः कत्य सतश्च प्रत्ययेन कि ॥ ६
श्रततो सछवत्याविग्यमानत्य कथे प्रत्ययः स्यात् । भविष्यता व्यपदेशो भविष्यतीति चेत् । नेवं ' । भविष्यता चेद्यपदेण इष्टः शति विना नास्ति दि भावितास्य ४. इत्यादिनोक्षदोषवात् ॥ सतो ऽपि विश्मानत्य लन्धनन्मनो निष्फलैव प्रत्यय- कल्पना ॥
1) 7020168 (19. 17/45 {5/८ -- 1.6 ००प्१९दप 27 ४व‰/८ 4०७ 100 80])70086€ 10 1671416 2747244 (९6४ 1017ब4//, . . , . ४ =:
2) 2183. ८914 व६ १५. , . (10. > == 0८८, १४ १0८१८... . प्रण ^ ६८९ 8. ४०८. ८१10१. ।
१ मेमनः छम दम पर | ठे भै उर्व मषक | मब गरब ठै २ नयु | पसि टुमेस' बेग | ०० श्ण ९५ ०४६ ०५ प्या. 20, -- 8०११९४7 8&11४8 185 6; 818४2१४1४62 588 1. -- 07098 19 8181166 87 - ४४१. 8. 14. 18; १८ 5@{व, ॥4१व्ना$द. . .
4) @०. 4 00100. ए. ए. (80८. 48.) 2288. 2: . . . एालण्यण्छुद ऽवश्र्वक . . . 2१००5 १/ ४/४ = 5411072 = 2017 व९(व7 12/द८ , , ,; 1९8 € दए76881008 ऽवशः वध 8011151८0"048, ०4497 वल्कं 8006 0011668 60776 ९ शा [0168.
8) = 14४१ 27४1१४१४, ए. 58 (8४066 01186 ०००8 14111616 &॥€ वप 27८8६००) ~ 00 ह्ण = नकु युर. एण भ. ६, ए. ऽण]016€४४.
-24 २] प्रथमे प्रकरणं 88
एवं समस्तानां प्रत्ययानां कर्पोत्याट्नातामर्घ्ेनाप्रत्ययलम्द्राव्य \श्रतः परं व्य- स्तानामप्रत्यपवं प्रतिपाग्यते ॥
श्रनरा । पय्यप्येवं प्रत्यपानामसेभवः ' तथाप्यस्त्येव लत्नणोपटेशात्प्रत्ययप्रति- दिः। तन्न निर्व्तको केतुरिति" ललणमुच्यते रेतुप्रत्ययस्य \ न चाविश्यमानस्य लन्नणो- पदेशो यक्तो बन्ध्यासुतस्येवेति ॥ उच्यते ' त्यद्ितुप्रत्ययो वदि तत्य लत्तणं स्यात् ^ घ-
त्मात् ¦ १ # तत्नापनं \) †/॥ ५/0 = (~ € (~ न सन्नासन्न तद्सन्धरमेी निर्वर्तते यदा ।
निवतको न 9 न + ~ (~ =~(2) कथं निर्वर्तको हेतरेवं सति हि युश्यते ॥ ७
तन्न निर्वर्तक उत्पाटकः ' यटि निर्वत्यी घी निवर्तित तमत्पाद्को हेतुहत्याद्- पेत् ' न तु निर्वर्तते ' सदतडभयद्वपत्य निर्वत्स्याभावात् ॥ तत्र सन्न निर्वर्तते विग्यमा- नवात् । श्रसन्नप्यविग्यमानवात् [79. 9२५] । सद्पन्नपि पर्स्पर्विहदस्येकार्थप्याभा- वात् " उभवपत्ताभिरितदोषलाच्च ॥ यत एवं कांस्योत्पत्तर्नाप्ति केतुप्रत्ययोऽप्यतो नास्ति । ततश्च यडुक्ते ' ललणेभवादि्यते हेतुप्रत्यय इति ' तदेवं तति न युन्यते ॥ इदानीमालम्बनप्रत्ययनिषेधार्थमाक् ।
1) 4 ०५००४१४ बुर ठ रपति दरे == १९0८1474 44१८~ 71 11.1./2
9 गॐ 1 ल पसि स्र | भेर सुर पमेर भेगुप् > ।
[ष न ल क्व पये यु लुम य | ग मम् मेःरषुसस || ०९ ण वण्णणट 12 16८पाटः द्वक १५८1द0 06" ४ ९४१] 52 1८ & 441९. -- ए ०7 6 -46880४8 1. 13. -- 06 इत्च ४ ९8६ 616 €-4688४8 7. 31. 6 € ४१ पा. 20.
3) प्रणी 2. 76 7016 ¶7. -- 41६०१0४४: समेषु" लम् ढे रमे
ल [नी देशस : [दवाव 2 ए0पा प्र प ह्6 प एनंणौ वगुणप. -- पि 21 -
110, न 1173. 1174. ~ 7212०2९४ 68 18प्€पा' वणा ॥&16. € पा लगा ४8 41401 0५१0 च्र$ढ (12०१०) 140 26४9) ९४ 06 88 पू; 11 ए 9 0०6 षड १6 प्1०1- ४४१९ १४ (०1१2४108), 249 (ह्वा. 1.४ १०८०6 ९8४ 0प४6€ 146 91181€ : 91 168 8101168, 01 168 €0}00868 4400068 ०6 }€प्रर्€ा४ €॥6 ०}€४ १6 18 €08188806€. -- ऽणः 19, 166- पपा ब्१2५१८ (एदा काद११170द)) १०7 11 १, 1. 470.
84 प्रत्यपपोता नाम . [१५४-
॥ । ६ (1) ~ प परनालम्बन एवाधि तन् धमं [५०] उपदिष्यते
1
। ~ 4. . श्रथानालम्बने धर्मे कुत ब्रालम्बनं पुनः॥ ए
इष्ह सालम्बनधमांः कतमे ' सर्वचित्तचैत्ता इत्यागमात्। चित्तचेत्ता येनालम्बनेनोत्प- `
त्ते पधायोगे बरपादिना स तेषामालम्बनप्रत्ययः ॥ श्रये च विग्यमानानां वा परिकिल्प्ये-
5 ताविग्यमानानां वा ॥ तन्न विग्चमानानां नार्धप्तदालम्बनप्रत्ययेन ' धर्मस्य स्ुत्यतच्यथमा- लम्बनं परिकल्प्यते ' प चालम्बनात्पं विग्यमान एवेति । शरविवमनालम्बने धर्म स्वात्मना परसिदे किमस्यालम्बनयोगेन परिकल्तयतेन ' इत्यनालम्बन एवायं सन् विष्मानो धर्मः चिततादिकः केवले सालम्बन शृतयुच्यते भवद्विः स्वमनीषिका, न वस्यालम्बनेन क- शित्संबन्धोऽस्ति ॥ श्रयाविग्यमानप्यालम्बनं परिकल्प्यते । तदपि न युक्तं ' ्नाल-
10 म्बन [7)0. 82४] एवायमित्यादि। श्रविग्यमानत्य हि नाप्त्यालम्बनेन योगः।
1) 7188. 5 वाव, ककावदकनत.
9 पमन दषः तु समेषु १ | मेरुम म् कष सष | स ङसः ठे" रमेगुस मे | दमेगृसएसिपर् गुचः नदयुर् || प्यारा एवष एषः तोप्तणा 068 ए ह्य ६8, १० उणा, -- 41१4०019 7४ गु सते (80 7१९३१ 788 प्रकत; 8०१११ ०7811६४ पमु वि कसे (८४7 ०९४४ 798 पपा,
2) १९ 18 88 1060106 ९९४ ढ&808, 4७ 616 988 812 ए ४४1१618. -- 000}. 1) 1.- 821 1185. 1508. (8४168 08६ 02१6 ४ ०८०7180४ ०0}€6॥ ण कण्ण == ऽद्वा
११५१९). {€ ‰ 1809 १९ 19 7 0.-871 ९8 लं॥€, 0 भण ९8 16 &३ 8178 (श्म पठमभिस)
एधा 818१४१1 १6€]६४ (101. 609४). -- 41६६००2 9 (400 8) == . . . 9८ 741101@ ९175, 1८ /ब100047 द्र. -- पणा ए 2८02१200 प 12. 3. 5.
4) == 2126068 @&पतवप्ताप्टा. (3 27111027 , १. र.). 5--8) ऊषः स पमेगुसयः भेर, मे | परमत रिषन. तप पढ |
बखपुर स]"तु'गि' == ५११104१4 ९४द्४/द१॥ 5८1009 ९४०वव१(४/व्वत धल्व,
- २4४] प्रधमं प्रकरणं 88 भ्रनालम्बन एवायं सन् धम उपदिष्यते ' भवद्धिः सालम्बन इति वाकवरोषः। ्रधानालम्बने धर्मि कुत घ्रालम्बने पुनः। भरधशब्द्ः प्रभरे ' कत इति केतो । तेनायम्ः ' श्वैवमनालम्बने धर्मे ऽत्यविग्यमाने मचः कुत घ्रालम्बने । ्रालम्बनक्रामावादालम्बनत्याप्यमाव इत्यभिप्रायः । कथं तष्टं सालम्बनाित्तचे्ताः ' सावृतमेतल्लन्तणं न पाटूमार्थिकमित्यरोषः॥ इदानों समैनत्तरप्रत्ययनिषेधार्थमार ।
श्नुत्पत्रेषु धर्मेषु निरोधो नोपपग्यते।
0 | 5
(४ 5
1 , ८ = | (4) नानत्तरमलो युक्तं निर्दे प्रत्ययश्च कः॥ ई
1-1) ब स र्ेगुखममेद न, ठ | परमयः $ युय ठे ठम, ठेस केवन्वद्मते | रमिगुस्पयुरयससयनः वेसदवनुः गुण श्ुगुमते
== 41८01010 410 १द[417104197 5८0४ 21 क ९४व ९7484009" १4वद(४व८; ३द्यद११८११द ४४ ००८९5.
2) 1.6 710# लाक7एवकवप (रमेगुसपमयेम प) | 000१९्४प्. ` 8) ०16 ६९३४९ ०6 8110८ 48 5८7142104101472 (मद्धस्पनेमकतगृप) € ववावाद; ए्णा7 0. 76 ०. 7. - 61०86 १6 114 ४००18१8; देमगुपति | रठ
ठ य्न मद्यते दुमथेसइ न= क१ववाद01द/व/0 900कदवा कषा. -
0270728 1४ १60 पाप्म १५ ००४८ ६९३९, == द८१८३४/ 2111110 24707, (णपा कश्हर ४०1088१४ 1४. 1. 14... 9 वटव एद्गवकाव्मःत० दधवा, व11040100व€ 0 एवकार ४/7 ४८. एधि ४000 15 ९ इपार.). -- ए 210१. इ. 1 (4 {{12- 2४08, 2. 183); एण्यः € 16 54171 {ब1१1८८लद0, 10प्क्लणुध्00 १९ 19 86116 १९8३ 10706018 101९11६ल(पा३, 1९8 41079188 76076 अप्व प्र्डा€ा१ ॐ 18 ¶०९६॥०0 : © ९6 81214188 21186 भ]€ 176 ९6 211९४ 81186 2१6 110 ९८३8९? (7 $ 8 7 8१148, 8600018 017 38०११18५ 8611€1).
4 देसहुसस शरैस म' धमम् | नगुगृप नविरपन मः रयु | गदर तेमु म रेसृष | शुग छम धर गरि धम |
86 प्रत्ययपरीत्ता नाम ` [४४-
तन्न पश्चिने श्रोकत्यर्घे पादृव्यत्ययो द्रष्टव्यः ' चशब्द [59] भिन्नक्रमो निदे चेति । तितैवं पाठः ' निरे च प्रत्ययः कः ' नानत्तरमतो युक्तमिति । श्रोकबन्धार्थे वे. वमुक्तं ॥ तन्न काएणत्यानत्तरो निरोधः कार्यप्योत्पादृप्रत्ययः पमनत्तरप्रत्ययलनतणं ॥ 5 शरन विचार्यते । घनुतपत्रषु धर्मेषु कार्थमूनेषङ्करादिषु निरोधो नोपप्यते कारणस्य [71. 389] बीनदः । यदैतदेवं तदा कारणस्य नितोधाभावाङकरत्य कः समनततएप्रत्य- यः॥ श्ानुत्पत्रे ऽपि काये बीननितिध इष्यते ' एवं तति निरुडे बोननेऽभावीमूतऽङ्कर्य कः प्रत्ययः । को वा बो्निरोधघ्य प्रत्यय इति ॥ उमयमेतदृरेत॒कमित्यार ' निरे च का प्रत्यय इति । चण्दोभुत्यनशब्दपित्ः । तेनातुत्यने चाङ्के बीनाोनां निरोध 10 इष्यमाणे ऽप्युभयमेतर्रेतुकमापग्यत इति नानत्तमतो युक्तं ॥ श्रथ वा न स्वतो नापि परत इत्यादिनोत्पाो निषिद्धस्तमभिपैधायाह । श्रनुत्यतेष धर्मेषु निरोधो नोपपय्यते।
नानत्तमतो युक्तमिति । शरपिच 15 निरे प्रत्ययश्च कः॥ इत्यत्र पूवंकमेव व्याव्यानं ॥ ८
[र्य [क (1) (~ भ 8 (न (2) #- {~ इदानीमधिपतिप्रत्ययस्वद्पनिषेधायमादह । [बोनारोनां] भावानां निःस्वभावानां न पत्ता विग्यते पतः।
( . {~ त्प (~ ~ (3) सतीद्मप्मिन् भवतीत्येतनेवपपय्यति ॥ १ ॥ ९०
1) 5०५१८ 68६ [88 धव प्रं४ १६०३ 16 (1061.
2) 70270168 16 {106॥810.
9 सुस्त रन पदिममेदद्वमसयै | एत्य बुरडर पसमेषद्| रु ए पस न न पुः वे | उप वेव मपय
-25१] प्रधमं प्रकरणं 87
इक यत्मिन् सति यद्ववति'तत्त्याधिपतेयमित्यरधिपतिप्रत्ययलत्तणं । भावानां च प्रतीत्यतमुत्पन्नवात्त्वभावाभावि कृतप्तब्बदृस्मित्रिति का एवेन व्यपदिश्यते ' कुतस्त- श्चद्दिमिति कार्वलेन । तस्मान्नास्ति लन्नणतोऽपि प्रत्यसिद्धिः ॥
त्रा [77. 880] ' त्नाद्भयः पदादिकमुपलभ्य पददस्तच्चाद्यः प्रत्यया इति [25४] । उच्यते । प्ाद्फल प्रवृत्तिरेव स्वद्वपतो नास्ति कुतः प्रत्ययानां प्रत्ययवं ते- 5 त्स्यति । यधा च पटादिफलप्रवृत्तिर्सतो तथा प्रतिाद्पन्नाद् ।
न च व्यत्तप्नमस्तेषु ्रत्येष्विति तत्फलं ।
र् ९ ऋ = (4) प्रत्यवन्यः कथ तच्च भवन्न प्रत्यवघु पत्। । १९
तत्र व्यस्तेषु तत्तुतुरीवेमततरणलाकरारिषु प्रत्ययेषु पदो नाप्ति ' तत्नानुपलम्य-
~
मानात् \ कार्णबज्ाच्च कार्यबङतप्रसङ्गात्। समुदितिष्वपि तल्नादिष नास्ति पटः " 10 ्रत्येकमवयवेष्वविव्मानलात् ' एकस्य कार्यत्य लएडण उत्पत्तिप्रसङ्गात् । तस्मात्फ-
~ (5) ~ लाभावान्र तन्ति प्रत्ययाः स्वभावत इति ॥
मरव्रा्दपि तत्तेयः [प्रत्यपे*यः प्रवर्तते ।]
1) ए ०११४7211 20९: ‰45701170 ककव ‰470 200 ए7वण्व४.
2) ८0 ्0व मुष, ८१ ५८८/401 गुरव (1888. 28. 14. 117. 8: 2 2811681 201 त्रला{0 7016 10 88४037४). -- परभष 2. 76 ०. 7. - ^ ५०१8४१४ 4 सुन योरपि, ्मखेस् == ०८1१0001107ब४ 4/0 ` काद्वावद्ल 1704171.
3) 5४८१0 07681 88 0 प्रा 805 16 {1).
4) लैषडमस स ०५16 | (न्स तु दे भे ढे | ठम कमस ठ शि मेप | म ्ं टमुपयिसः दिर म | 8०११६४१ ३111४ 00 (18827) रि = (ध 801४ 12 16€6पा€ 9४८ ४१/५७८०.
2) 5४८ दवय ०१68४ [98 {180४ १४08 16 (19.
88 प्रत्यपपरोता नाम [७४- इत्यमिप्रायः स्यात् । कि [न ८ ¢ -) ) घ्व्रत्ययेभयो ऽपि कप्मान्नामिप्रवर्तत फलं ॥१२ न ~ पानानि = = ~ (2) [तराभिप्रवर्तति रप्रत्ययेष्वपि नास्ति ते ' श्रप्रत्येभ्योऽपि वीरणादिभ्यः कस्म
पट इति नाप्ति फलप्रवृत्ति स्वपतः ॥ 5 = श्रत्राह्। य्नन्यत्फलं त्याद्न्ये च प्रत्यवाप्तदा किं प्रत्ययेषु फलमस्ति नास्ती- ति स्यार्चिता , नास्ति तु व्यतिरिक्त फले , किं तर्क प्रत्ययमयमेवेति ॥ उच्यते। फलं च प्रत्ययमये प्रत्यवाश्चाप्ववेमयाः । [719. ३4४]
~ 4 4 ~ (5) फलमप्वमपया पत्तत्प्रत्यपमयं कथं ॥ ९३
| पदि प्रत्ययमयं प्रत्ययविकार्ः फलमिति व्यवत्याप्यते तद्युक्गं । पस्मत्तेऽपि घ्र- ४ [9 ~ ~ ~(6) = _ 10 त्यया श्रस्ववेमपा श्रप्रत्ययस्वमावा शइृत्यर्ः ॥ तततुमयो कि पट इत्युच्यते । स्यात् पठे यदि
1) 1088. वा7द5दव द्यू एथ दलद्कुः वध्वमट 27० ४ वाकव्व्ः $. 00704/40/९5 4. , . -- 7079078 7106 एला8ं0 0619176, 16 ऽत्र 2 (0 € वम 7766606 19 17986 $ 4779011], 50/द) 194प्था1€ ४016860 ९४ 76 06 वृप्ठ इणः 168 व€पड ए7लणा€ा§ 8088.
07970168 0006 ग€ा8700) 176वाध्०0 168 1 11188 (00 उ एना) & 18 पदवप्रहण
1९ 8०१११०7 81148 (1887 7): र, रेपुस"यु ४ भेम ए | रे दुगुष्यस | ^^ | रममेमेपस ग निगुतु ् | उ 78 ठ ओ मेनेन | 1.4 1४०४११४ (418 5) € 818९8१1१ 618 (620 8) 119€0॥ 16 एष्ट 8208; ज, मे भेद्प, र] 8808 1५ 7606600 वप्र फणौ वाद.
2) ४०८१४ == २5
8) 5४८47 ०४4०९ १४०६३ (19.
21 पमस ठु
१ तपषु ठम -र्वूमय् | ठेगमम' सगुण व पवग समिसथिस सुः गुम | मेषि दिष्म नैम पव् || पणय प्वण्णौण 11४ 2 प; व९-19 व९-11क . . , ~ 7010-0 == 5407 ४८. -- 174 1 १४०१०0४ फ 2; ए पत- १४] ह 11४8 € 81 हए १७६8 18९0४; 11/15 70949) १091458 १0/40.
6) 1. = {८८ {05 {414741144/2 १४५.
-6 ५] प्रथमं प्रकरणं 89
तत्तव एव स्वभावसिदाः स्युः ' ते कोशमया(श्रशविकाा न स्वभावतिदाः , ततश्च तिभ्यो- ऽस्वयेमये(भयो श स्वभाविभ्यो यत्फलं पटाण्यं तत्कथ तततुमयं भविष्यति ॥ यथोक्तं [२५ पटः कारणतः सिद्धः तिदे कारणमन्यतः।
तिदिर्थप्य स्वतो नास्ति तदन्यन्ननपेत्कथे ॥ इति
तस्मान्न प्रत्ययमयं | 1
फलं सेविग्यते ॥ शरप्रत्ययमयं तर्छस्त्। +. नाप्रत्यपमयं फलं । सर्विधते।
इति तत्तुमये घद्। पो नास्ति तद्। कथे वीरृणमयः स्यात् ॥
रत्नाङ् । मा भूत्फलं ' प्रत्याप्रत्ययनियमस्तु विगते । तथा च भवान् ब्रवीति ! 10 थ्चतत्फलं प्रत्ययेभ्यः प्रवतत श्रप्रत्यपेभ्यो ऽपि कत्मात्नामिप्रवतत इति । न चासति फले पट्कदाव्ये तनततवीरणानां प्रत्ययानां प्रत्ययलं युक्तं , श्रतः फलमप्यस्तोति [1,0. 341] ॥ उच्यते । स्यात्फलं यदि प्रत्ययाप्रत्यया एव स्युः ' सतति टि फल मेऽस्य ्रत्यया डमेप्रत्या इति स्यात् । तच्च विचार्यमाणो नास्तीति ॑
1160५
(7) ६ फलमावत्त्रत्यवात्रत्यवाः कृतः कृतः ॥ ९8 18
1) 2188. १06५१4४2, ९१४2, (100. रमसे पढम समृ „+ क
2) #6€7ा€ न्धना १४०३ ए ०११०४} 811६8; 1899 1. - ए0पाः 168 व€ण्ड वथ 01678 2088, ९071}. & १०१ ४६३8४ ४२४1, १० णा, 279 5.
8) कुस"पमु् = ‰/ 210.
4) 1.6 ६6४९ तप्र इत्र 2 €8॥ 6189017 १9017165 16 ५06४. 9) वेति न्पुयि न्मु मति पवि द ्मनयु = ४005 ०५१४ १५41८४१४. . . . . 6) ‰५{५ == रश, €&(०€ १९ 20118 १९ एषः €॥ १९ ल0देए6€. = ~ ठ... ॥ 0 (८. 9 „४ 79 १ बेर दैवेन यनमं भेम देवम रमं सुः यै| दमभे त्मवुमेगयमन् | केमममे हेमः गुष तुर |
6 नैः
10
90 प्रत्यपपरौना नाम [९6४
~ (1) प्रत्यया्ाप्रत्ययाचेति समासः ॥ तस्मान्नास्ति भावानां स्वभावतः समुत्पत्ति रिति। । (०९ [9 ~ (2) पथोक्तमायर्लाकरसूतर । ध ४ शून्यविश्य न हि विग्यते क्र चि ' प्रत्तरौति एकुनस्य वा पद । = ~ (5) “~ < १: यो न विग्रति सभावतः क्त चि ' सो न नातु परृरेतु मेष्यति ॥ [रप् (6) यत्य नेव दि सभाव लभ्यति ' सो ऽतभावु पर्पच्चपः कयं । (7). ५ ^~ (स न न (~ परस्वभावु पं किं जनोष्यति ' एष देतु सुगतेन दे शितः ॥ ~ ~. (8) ~ ~ ~~ वं घमं श्रचला दृं स्थिता ' निर्विकार निह्पद्रवाः शिवाः। शः (9) ~ ५४ ड ्रत्तरोत्तपधतुल््य ऽन्नानका ! तत्र मुद्ति लगे घ्रत्नानक्र ॥ [> ¢ (10) ५ „५ ^~ [य शेलपवत यधा श्रकम्पिया ' एवे धम श्रविकम्पियाः सदा ।
प ~~ प 011... त~ नो च्यवत्ति न पि चोपपय्ययु ' एवे घमणा निनेन दशिता] ॥
1) 5४वफकदटवव‰ ०18 १४०३ 1€ (119. ।
2) 1६ 9०१}०प7, 74०, णा. गि]. 338--456 (९९१, 0. 218). - प्रणए ५।-4९8- 8008 8४4 ४1171. 6. - 2,४17@६कषा४ ९81 प्रा १६8३ 8८;2€ [गा€8 १€11प्९प्रड <€ प्रा€768 १४०३ 16 11०४३, ८08}. 1 (1९८०, 2. 4). ~ 0616 2 ६१०११8४३ ----~----~~ |
3) 2088. ४९४९. (110. बुत् ग" श्रय शगु भे मे == 5901800 (४८17) ०0४ (१4/४४ १ ००/४९. 4) 1088. ०78९, ०18९, 5४; €. 211१. 11. 341. ऋ. 8) पुतन नि वेर रि पस-मेमुय == 45000420 व0£ 100 द्व © 5४० १४० ५६व/ब{९. 6) 1188. 070101410/04/41 ; १€ 7616 5ध्वएदल्छव €ग1796 [0णा' 16 76016. 7) 2188. ८५) 2414101. -- 07217? 190. 8) ©९8४-४-411€ ¶०€ 1४ ०४{प76 726 १९३ व71110005 €8{ 0676 बलवद. 9 मस्य भेदः एणः 0१. 1. 84. 19, २9) 9 इ 7. 275. 19 ‰0वढ. , , , 90१४ 41८11002 व्युद्धमद ब वदद्, द८्वह. . . . 10) ९४९1 १904. 11) 188. ‰४, & (&. 12011316 एवा), ४५११. 12) 1188. दाव 7वक; = +वार; 0, रसाहुमसः + == ९४५१ ११४५११४.
-26१] प्रधमं प्रकरणं 91
इत्यादि । तथा योन पि ज्ञायति ना चुपपग्ची ' नो च्यवते न पि नीति [6१] धर्मः । तं जिन् देशयती नरसिंहः ' ततर निवेश्िं घवशतानि॥ ` पल्य प्भावु न विति कथि ' नो पर्भावतु केन चि लन्धः। नात्ततो न पि बाद्धिितो वा ' लभ्यति तत्र निवेशपि नाधः ॥ 5 शात्त गती कथिता सुगतेन ' नो च गती उपलभ्यति का चि। तत्र च वोर्सो गतिमुक्तो [7. 85०] ' मुक्तक मोचयती बजसलान् ॥ इति विस्तर्ः॥ ॥ इत्याचार्वचन्दरको्तिपादोपर चितायां प्रसनपादायां मध्यमकवत्ती प्रत्ययपरीत्ता नाम प्रथमे प्रकरणं ॥ 0
1) 1.6 6706 7867६ 68 6१४६ 8 7. 6. ~ #€॥1€ 7 ०१1 81४ -------~~- | 9 देन" वरग - एयर (व दा, 6): पवन मणय पवकः
3) 1.९6पा€ [0167901९ ४ (ला7€ ¶प€ प०पऽ 2018 20166 7. 1.
92 गतागतपरोत्ता नाम (-
1.
गतागतपरो्ता नाम दितोयं प्रकरण
तरार \ यग्रप्युत्याप्रतिषेधात्प्रतीत्यतमुत्पाद्स्यानिरोधािविशेषणसिद्धिः तथाप्यनागमानिरभमप्रतीत्यसमुत्यादतिद्यये लोकप्रमिदगमनागमनत्रियाप्रतिषेधाधि किं ` ५ चिड़पपत्यत्तमुच्यतामिति ॥ उच्यते । पदि गमनं नाम स्यानिवतं तद्गते वाऽ्वन्नाति परिकस्प्येतागति गम्यमाने वा । सर्वधा च न युव्यत इत्याह । गतं न गम्यते तावद्गतं नेव ग॑म्यते ।
= + ४ ~ (8) गतागतविनिमुक्तं गम्यमानं न गम्यते ॥ १
ततरोपर्तगमिक्रियमध्वनातं गतमित्युच्यते । प्राविश्यमानं वर्तमानगमिन्रिधवा
10 गम्यत इत्युच्यते । यद्रतमृपर्तगमिक्रिषे तदतमानगमिक्रियायोगवाचिना गम्यत इत्यनेन शब्देनोच्यमानमतेवदमिति कृवा गतं तावद्गम्यत इति नं युव्यते । तावच्छ्देन च प्रति- पषेधक्रमं षपति ॥
। 1
1) ए०११४१ह1119 1908 1,
2) ४ ग &1-068808 }. 58. 10.
8) भेषु समि मे ९, | मद्रि नर कुप भेद्| सरः सूर म सन" मनिगुसपर | कमसमम, मर" रजु || 1 ५ वव्णष० तव %@} €॥ 000 व.
4) 7188, 01द/वछक १८१८०210. -- एणा 1708 8 ए. 14 (01. 469 श्ण 06४४).
-2] दितीपे प्रकरणं 98
श्रगतमपि' न गम्यते । श्रगते खनुपननातगमिक्रियमनागतम्च्यते ' गम्यत इति च ` वर्तमानं , श्रतोऽना[99]गतवर्तमानयोरत्यत्तमेद्ाद्गतमपि (7५४. 5४] गम्यत इति न यत्यते । पश्चगतं कथे गम्यतेऽथ गम्यते न तद्गतमिति ॥ गम्यमानिऽपि नाप्ति गमने यस्मात ' गतागतविनिर्मकतं गम्यमानं न गम्यते । 5 इ्ह हि गत्ता पं देशमतिक्रात्तः स तस्य रणो गतो ' यं च नातिक्रात्तः सोऽस्या- नागतः। न च गतागतव्यतिरकेण तृतीयमपरमध्वनातं पश्यामो गम्यमानं नाम । पतशचैवं गम्यमानं न गम्यते ' गम्यत इति न प्रज्ञायते ' तस्मान्नास्ति गम्यमानं । श्रतो न तद्रमि- क्रियया विश्यति न गम्यत इति नास्ति गम्यमानेऽपि गमनं ॥ य त्या्रतुर्गच्छ्तो यश्रणाक्रात्तो देशः त गम्यमानः स्यादिति । नैवे ' चरणयोरपि पटमाणुांवौतवात् । 10 ्र्गल्यगावत्यितस्य परमाणोः पी देशः त तप्य गतेऽत्गतः। पारपयवस्थितप्य चरम- पमाणोर्यं उत्तरो देणः त तस्यागतेऽ््गतः। न च परमाणुव्यतिरैकेण चरणमसिति तस्मा- न्नास्ति गतागतव्यतिरेकेण गम्यमानं । पथा चेवं चरणे विचार् ' एवं परमाणुनामपि पू्वापरदिग्भागसबन्येन विचार्ः कार्य इतिं॥ ्रथार्धगते गम्यमानं , उक्तमुत्तर लायमान- विचरे । तप्माद्रम्यमानं न गम्यत इति तिद ॥ 15 तन्नाद् [10. 369] । गम्यत टव गम्यमानं ' इ दि चेष्टा यत्न गतिस्तत्र गम्यमाने च सा पतः।
(ल् ~ [र् (5) न गते नागते चेष्टा गम्यमाने गतिस्ततः॥ ९
1) 2788. 0८4व{वक॥ ४४.
2) 2188. 5217141द॑वण्ठा, ऽदीक्वद४्ल, -- ?. भ, +*52101407का0.
3) ४ 38०१४1९. 1. 47.
4) ४०7 6-१९88०8 2. 80. 8.
9 गरम गु बदु च्वि] दे पर गुरेन कमपि] गु्क्रः भेषु मर्षः मेस्| रेन प्म स्प एत् |
94 गतागतपरीत्ना नाम : * [नि
तत्र चेष्टा चरणोत्तेप।प]रितेपलत्तणा। यतो ब्रन्रतो गततर्यत्र देशे चेष्टा गतिस्तत्रैव भ 1 प प्क = क (त टे ' सा च चेष्टा न गतिऽध्वनि सेभवति नाप्यगते किं तु गम्यमा[ध णन एव ' ततश्च गम्यमाने गतिः । पन्न दि गतिहपलभ्यति तद्गम्यमानं ' तच्च गमिक्रियया श्राव्यते । [न्ख ) [न्स मि्तनि (1) ^ (वाः ~ तस्माद्रम्यमानमेव गम्यत इति ॥ एकोऽत्र गमिज्ञानाधः ' घरपर श देणात्तपंप्रात्यर्धं इति ॥ 8 एवमपि परिकल्प्यमाने गम्यमानं न गम्यत इत्याद ' गम्यमानस्य गमनं कथं नामोपपत्स्यते ।
(स दिगमनं [ऋ ~ (2) गम्यमाने दिगमनं पदा नेबोपपग्यते ॥ ३
इह दि गमिक्रियायोगदेव गम्यमानव्यपरेशमिच्छेति भवांस्तच्च गम्यत इति ब्रवीति । एका चात्र गमिक्रिया ' तया गम्यमानव्यपदृणो भवतु क।ममधनो ' गम्यत इति 10 भूवः क्रियासंबन्धो गम्यमानप्य न पुन्यत इति ॥. गन्यमानत्य गमनं कधं नामोपयपतस्यते ॥ कारणमाद्ह । गम्यमाने दिगमनं यद्] त्रैवोपपग्यते ॥ इति गम्यमानमिति गम्यत इत्यर्थः ।*दिगते गमनं दिगमनं । एकत्या गमिक्रियाया 15 गम्यमानमित्यत्रोपयुक्तवाद्धितोयाया श्रमावाच्च ' गम्यत [7५0. 96४] इत्ययं व्यपदेशो
1) (०णाफश्ष€ा 116070010&16 १९8 70018 {वद्यूकठ, 5१८1. [वी नयौ । => ॥ ~) ९ ८ 9 ररम स्तत (मुपम् व| हिश्मुमु कवपुपरच्छुर| गुरुक सिं २७१ ॥ > एवा ल [न्न नगु ममत | पमुमत निसु भेर | == ०८१1१, 14 वव 240 ‰ववद् १८९०००५ व४क८ (1 १० उ णा € 168 (06768). ~ 1 विण एएहि 6616 1600. -- प्र भंए 168 0168 8प्रो १811168 €† 1४ 1086 ९११८ (८१06014 (7. 98. +).
3) 1.6 पएक€क्षण ॥्8व पं (०06 धं -1688प्8 (एणा? 106 2) ९४ भं ०४6 रनुपमेप्,
पुं मे नव्य 151 पयत = शका वका्दककादीदका, उप ककाणकाप्ावा ।
4--4) 66४6 1011886 12९8; [88 ६20 प्र ४6 त878 16 पभ) €भ्ण,
-28] दितीपं ध 95
विना गमनेन पदा नैवोपपच्चति ' तदा गम्यमाने गम्यत इति परिपूणी वाक्य नास्ती - त्यमिप्रायः । गम्यमानमित्येतावन्मात्रमेव संभवति दितोपक्रिाभावात्, न तु गम्यत इति ॥ शरघ गम्यत इत्यत्रैव गमिक्रियापंबन्य इष्यते । एवं सति गम्यमानव्यपदेणे नात्ति तरिपातेबन्ध इति न परपूर्णतौ वाकार्ध्येत्यारः । 5 गम्यमानत्य गमनं पस्य तस्य प्र््यते ।
= = ४ = ~ (9) शते गतमेम्यमानं गम्यमानं दह गम्यत ॥ 8
वल्य वादिनो गम्याभुमानस्य गमनमिति पत्तः ' गम्यमान संन्नाभूते गमिक्रि- पाशन्ये यो गमिक्रियामाधेयमूतामिच्छति ' तस्य पत्त कते गतेगम्यमानमिति प्रसन्यते ' गतिर् च्ितं गमनं स्यात् । यत्माटृस्य गम्यमानं दि गम्यते । हि शब्दो यस्मादर्थे । प्माद् 10 गतिर्ितमेव गम्यमानं सत्तस्य वादिनो गम्यते ' गम्यत इत्यत्र क्रियोपयोगात् । तप्मा- इतिर् हितं गम्यमानं प्रपव्यते ॥ श्रधोभयन्नापि क्रियासेबन्य इष्यते गम्यमाने गम्यत इत्यन्न च । एवमपि गम्यमानस्य गमने प्रसक्तं गमनदयं । |
एष्य ड ( ।, पन तङम्यमान च वच्चान्न गमन पनः ॥ प 15
1) 20974प€ € 1298॥€18व € १४०8 2361110 & ४; एणाः 16 8678, एग 7१८ - 00) ०१{7व.
2) गुरो रमयन रप देए वरमुमत स मेष्यन | भुग्न नुने गुःगेडर| ग्नम रवर पञ |
9) पर, वान्छाचात, - 10. सनरस्य (= श्ववच्च ० ३ ऽव ा८ ; ०१ ९768९1९ 16 इरण -क -- अकष == १0१-९९8-79.
4) पुम न्युप एसुममे नेयुष प्रेस सुय रुन्> | गुरणेसः दु कामु गुर | वर स्नुत गुर ममते
96 गतागतपहोत्ता नाम ` (७५-
येन गमनेन पोगाद्गम्यमानव्ययदेशे प्रतिलमतेऽध्वा तदेकं गमनं । तत्र गम्यमाने ऽधिकरणमूति दितोयं गमनं पेन सोश्ा गम्यते । एत्मनदं गम्यमानस्य गमने तति प्रसक्तं ॥ |
भवतु गमनदयं ' [1,0. 87५] को दोष इति चेत् । श्रयं दोषो ' प्मात् '
दौ गत्तारी प्रप्येते प्रसक्ते गमनदपे । `
किं पुनः कारणं गत्तदयप्रसङ्ग इत्याह ।
= क ~.(2) गत्ता 1 तिरस्कृत्य गमनं नोपपश्चते ॥ ६
क- न श ४4 + ¢ १ ¢ पंवस्थि पप्माद्बश्यं क्रिया ्वप्ताधनमपेत्तते कर्म कतारं वा । गमिक्रिया चेवं कतपवत्थि- ताभ्तो गत्तारमपेत्तते । नास्ति चैकस्मित्ेव गच्छति देवदत्ते दितीयः कर्ते ति । रतः कर्त
10 यामावान्नास्ति गमनहयं । ततश्च गमरनानं | ग म्यत इति नोपपग्यते ॥ ।रेथल 8 "आ, > ~ (3 < १ ^~ 3) [र् $ # । तद रव स्यात् ' यदायं देवदत्तः स्थितः त॒ नानु] भाषते [ननु] पश्यति ' नान्] तदेको
ऽनेकक्रियों दृष्टः । एवमेकस्मिन् गत्तरि क्रियादये भविष्यति । इति [४8४] ॥ नेवं । शक्तिं कारको न द्रव्यं ' क्रियमिदान्च तत्साघनस्यापि शक्तेः सिद एव
मेद्: । न हि त्थितिक्रियपा वक्ता स्यात् ॥ दरव्यमेकमिति चेत् । भवत्वेवं " न तु दरव्यं
0) पुप्यति गनिरयुनपते स्म्य दुत दया कषामा ववकावा- 200०207८. -- षृढ = बवदा, त, 6-1०8००8 97. 4, 99.11.
2) नब" गुम "स्युः युनि निुनम | नेगुध्प ठ" ८" गपि ह; नन | गरम वुपमेुम य| नुत त्वरय मेनयुनड् | १७०५१४० 20 कव वा- क.
8--3) @&##€ 72886 8006 0808 18. श्छाशंला चएकक्षण€ वपं ४: सव्व) प्रमद. ,., -- 1188. . , , अक 50 १4 ९1 द्54/८ वष्वतं शव (ववद. , , .
-28४] दितीयं प्रकरणं 97
कारकः \किं तर्द शक्तिः ' ता च भिवत एव । श्रपि च सदृशक्रियादयकार्कत्वं नेवदि- कस्य दष्ट, रतो नेकस्य गतरगमनदयं ॥ श्त्रार् । पग्यप्येव तथापि गत्तरि देवदृतते गमनमुपलभ्यते देवदत्तो गच्छतीति व्य- पदेशात् ' ततश्च विगश्यत एव गमने गमनाग्रयगततृपद्रावात् ॥ उच्यते । स्यादेव पि गम- नारयो गत्ता स्यात् ' [न लिप्ति। । कथमित्यार् (१. 970] । £ गत्ता चेत्तिरस्कृत्य गमनं नोपपग्बते ।
गमनेऽप्तति गत्ताध कृत एव भविष्यति ॥ ७
गत्तामत्तरेण निराश्रयं गमनमपरित्यक्तं ' ततश्च गत्ता चेत्तिएस्कृत्य प्रत्या- ्याय गमनं नास्ति ' श्रतति गमने कुतो निर्देतुको गत्ता । परतो नास्ति गमने ॥ त्रा । विगत एव गमनं तदतस्तेन व्यपदेशात् । इद्ध गत्ता गमनेन युक्तः तव्यो 10 गाच्च गच्छति । यदि गमने न स्याद्रमनवतो देवदत्तस्य गच्छतीति व्यपदेशो न स्यात् ' दृणडाभावे दृपिडव्यपदेशाभाववत् ॥ उच्यते । प्याद्रमनं यटि गच्छतीत्येवं व्यपदेशः स्यात् । स्मात् ' गत्ता न गच्छति तावटगत्ता नेव गच्छति ।
५५६ तीयो [न्न (५) न्यो गत्तुरगततुश्च कप्तृतीयो हि गच्छति ॥ 15
1) 1088. ्रकाव्पधकाण; 10978 0008 87008, (०ााप्रा€ [ण 03४, येपर्े
2) कव्वद(व) 700४ ०0१९६. -- पारेगु सेषु ९ 16116 18 1€ल॑प्र€ १०१. {९४86 (2५5 = द्यम).
9 दषे मेपत्|
4) गभे द्युः मेदुर रयु" रुरव, मे प्युन> | रबी मेषम् शु््| एमयकरषद्ः गुध च्छन्
9 रेकेगु शति मे त्वद नबुवयमेद् ननुप भेष्| निगुय शं यमिमे गो गमम गुरकेगु पुर |
98 गतागतपरोक्ता नाम ` (श9-
इक गच्छतीति गत्ता ' प तावन्न गच्छति ' पथा च न गच्छति तथोत्तरेण ्रोक- ज्रपेण प्रतिप्वि्यति ॥ श्रगत्तापि न गच्छति । शरगत्ता हि नाम पो गमिक्रिपारितः। गच्छतीति च गमिक्रियायोगप्रवृत्तः शब्द्ः । प्च[2भुतावगत्ता कथं गच्छति ' शध गच्छति नासावगत्तेति ॥ तडभयव्यतिरि क्तो गच्छतीति चेनिवं ' को ठि नाम गततुरगततु-
5 विनिर्मुक्तस्तृतोयोऽप्ति यो गच्छतीति कल्प्येत । तस्मात्नाप्ति गमन ॥
त्राह । नागत्ता गच्छति नाप्युभयर ङितः [70. 38१] ' किं तरिं गततैव गच्छर-
तीति ॥ एतप्यतत् । किं कारणं । यत्मात् ' ॑ गत्ता तावद्रच्छतो ति कथमेवोपपतत्यते ।
न नेच) ~ (1) गमनेन विना गत्ता यदा नेवोपपग्यते ॥ १
10 गत्ता गच्छतीत्यत्र वाक्य एकैव गमिक्रिया ता च गच्छ्तोति व्यपदिश्यते । गत्तेति तु व्यपदेशे नास्ति दितीया गमिक्रियेति । गमनेन विना गत्ताऽगच्छन् गत्तेति यदा न सैभवति तया गत्ता गच्छतीति न युव्यते । कामं गच्छतीत्यस्तु ' गत्तेति तु न सेभ- वतीति तद्युक्तं ॥
श्रथ गतियोगात्सगतिक एव गत्ता ॥ तथापि दितीयगमिक्रियाभावाद्च्छतीति
15 उ्यपदेशो न स्यादित्या । पत्तो गत्ता गच्छतीति स्य तस्य प्रसत्यते ।
त ^ (8) गननेन विना गत्ता गत्तुगमनमिच्छ्तः॥ ९०
0 गरक सतु भेदुयन्पे| त्लोव रवपुकम मेनछुर द| रे नतु नवतिः केष| दिश्य र्ः छुर् |
9 गुरगोः दगुणः सरवेवव| सवत देन रलुमेदपदि| सुरते पम पर घपप्यु्े| नुतं फर न्न्
-29१] दितीधं प्रकरणं 99
` वादिनो मिक्रि (न तानि 1. (1) स्य वादिनो गमिक्रिपायोगादेव गत्तेति पत्तः ' तस्य गत्तुगमनमिच्छतः सागमन]- गत्तव्यपदेशादरमनेन ४, > = 8) ~ गत्तृव्यपदेशाद्मनेन विना गत्ता गच्छतोति स्यात् ' दितीयगमिक्रियाभावात् । श्रतो गत्ता ~ ~ न न न ~ त् न ४०५९ ~ (3) गच्छतीति न युब्यते । गच्छतीत्येतप्याव गत्तेतिशब्दो गमनेन विना गत्तेत्यन्र वाको ॥ शरघोभयत्नापि गतियोग इष्यते गत्ता गच्छतीति । एवमपि ।
गमने दे प्रपव्येते गत्ता पग्यूत गच्छति । | ६
गतेति चोच्यते येन गत्ता सन्यच्च गच्छति ॥ ९९
पेन गमनेन [1,9. 88४] योगादर्ेतयुच्यते व्यपदिश्यते तदेकं गमनं । गत्ता भवन् यच्च गच्छति यां [29] च गतिक्रियां कोति ' तरेतद्रमनदयं प्रसक्तं ' रतो गत्तुदयप्रसङ्ग ४अ गच्छतीति क इति पूववदूषणं वक्तव्यं । तप्मान्नास्ति गच्छतीति व्यपदेशः ॥
्त्राक् । यग्बप्येवं तथापि देवपत्तो गच्छ्तोति व्यपदेशपद्वावाद्गमनमस्तीति ॥ 10 १ ४. (5) | [ टि नेवं । प्मादेवदत्ताग्रयेवेषेव चित्ता किमतो गत्ता तन् गच्छति उतोऽगत्ता गच्छति तद्य- तिरिक्तो वेति सवधा च नोपपग्मत इति यत्किं चिदेतत् ॥
` अरत्राक् । विग्चत एव गमनं तदारम्भद्वावात् इर् देवदत्त स्वित्युपमदेन गमन-
1) रिव पतरि' पहः रिमुपष्दनपरुस"्पस ग्
2) ©. 10 ८ &411६दं (वल्लव १८ 4४८१९. 4८८ कह १८ & १४१८ . 4०८८१४८ द्ध ९45411९, . . . 2918, ©216. 40 वव८लाकत् १40 2/2.
3) ©°९8४-४-4116; १8४०8 18 0101886 (१0419671 ०१११द (0012, 16 700४ वव्मण्यद > 16 8९8 06 ९९ परा0 वटक (१९ 19 7286 (412 ववन्थक).
4 गविने न्ववं "वुं शयु] सुप पुरिसु धम ज्छुमे| गुर बो[स] नविम मन्मिय सुर | नतुपियुरसस गुर नुप
€
8) 2188. ०@(१/4१00 १4000 ८१५६2 == म > मे
100 ` गतागतपरत्ता नाम | [29४-
न नकर्महभेप्रवाहारिकमारभति ~ (1) _ (त व मारभते । न चाविश्यमानकृर्मरोे ॥ उच्यते । स्याद्रमनं यदि तद्म एव स्याग्रस्मात् ' | गते नारभ्यते गतत गततं नाएभ्यतेऽगते ।
न (ष् न (2) नाएभ्यते गम्यमाने गत्तुमारभ्यते कु ॥ ९२
5 पदि गमनाहूम्मो भवेत्तदते वाध्वन्यारभ्येत ' [प्रगते वा] ' गम्यमान वा ॥ तत्न गते गमने नारभ्यते ' तद्धि नामोपर्तगमिक्रिये । पदि तत्र गमनमाएभ्येत तद्रतमित्येवं न स्याद्तीतव्तमानयो्विंधात् ॥ श्रगतेऽपि गमन नायते ऽनागतवर्तमानयोर्विशेधात् ॥ नापि गम्यमाने तद्भावात् क्रियादयप्रसङ्गात् [10.99०] कर्तृदयप्रपङ्गाच्च ॥ तदेवं सर्वत्र गमनाहम्ममपश्यन्नार् ' गतुमाएभ्यते कुरेति ॥ |
10 यथा च गमनेन तेमवति तथा प्रतिपादयन्नाह । न पूर्व शमनाएम्भाद्म्यमानं न वा गतं।
प् (द # (4) पन्रार्भ्यत गमनमगते गमनं कृतः ॥ ९३
इर देवदत्तो यदावस्थित घ्राप्ते स तदा गमनं नाएभते । तस्य गमनाएम्भात्ू् न गम्यमानमध्वत्नातमत्ति न च गतं यत्न गमनमाएभ्येत । तस्मादतगम्यमानाभावदिन-
इ: क । ।
1) 3५ ध पत्मन् तनि, ४ -- 2188. 1१८०71८, 10८71#@ -- 270९दक/क == + 0116068 2€ण (2. फ़) = 9 पकृकटाः 0 0पालाष्षातालाौ प्रऽप्श्च]़ ग (०णा -- 01676 0070008781801 ए, 8प व6ोण्; उ. 2, इ एणा. 25 (कश्य ४९ 72४01474}. एमी
81248181 81008018 240188४१. 1. 475, ए. 240; 0. 1488, ए. 624; 1 ॥2१8४- 8118१810 472, 0. 726 ((०पणपवृण् एषा क. 6. 4. ए ४९०४).
9 सेनः रपम" दुम मेपुदे | मसर" ०९" सुम भेम | पपुमनि' वमन 0रपुममृम्| गुर्" निर्गुणः इमपम देत्
8) 1188. 04084 (01471091 क. | ,
4) नुषः इम्तिः हम्] गम्" रुपः ईमन्ययुरय| पनम मपु मनप मेत्| मनर सनुत गुनि एत् |
-80१] दितीषं प्रकरणे ` 101
योन गमनार्म्भः ॥ घव त्या्यव्यपि [309] गमनारृम्भात्पूर्वे न गते न गम्यमानं तथाच्य- गतमस्ति ' तत्र गमनारम्भः स्यादिति ॥ उच्यते । श्रगते गमनं कृतः । श्रनपत्ातगमिक्रि- पमनारृब्धगमिक्रियमगतं । तत्र गमनारम्भ इत्यतंबहमेतदित्याद ' श्रगते गमनं कृत इति ॥ |
यच्यपि गतागतगम्यमानेषु गमनारूम्भो नास्ति गतागतगम्यमानानि तु तत्ति। न चाति गमने एतानि पव्यत्त इति ॥ उच्यते । स्याद्रमने पग्येतान्येव स्युः । तति हि गमि- क्रियाप्राहम्मे पन्नोपरता गमिक्रिया तदरतमिति परिकल्प्येत ' पत्र वर्तमाना तद्रम्यमानं ' यत्रात्नाता तदगतमिति । यदा तु गमिक्रियाप्रारूम्भ एव नास्ति \ तदा
गतं किं गम्यमानं [7५0. 99४] किमगतं किं विकल्प्यते ।
न ८ (1) खरटृष्यमान श्रापम्भे गमनस्यैव सवधा ॥ ९8
प्राह्मेऽनुपलमभ्यमानि कि निष्याध्वजे परिकल्प्यते \ कुतो वा तच्यपदेशकारृणं गमनमित्ययुक्तमेतत् ॥
श्रत्राक् । विग्यत एव गमनं तत्प्रतिपक्ततद्रावात् । यत्य च प्रतिप्नोऽप्ति तद्- स्ति ' श्रालोकान्धकारवत् पाहावार्वत् संशयनिश्रयवच्च । श्रस्ति च गमेनस्य प्रतिपत्तः स्थानमिति ॥ उच्यते । स्याद्रमनं यदि तत्प्रतिपत्तः स्थाने स्यात् । कथमिरेदे स्थानं गत्तुरगतुस्तद्न्यस्य वा परिकल्प्येत ' सर्वधा च न युत्यत इत्याक्।
| गत्ता न तिष्ठति तावद्गन्ता तेव तिष्टति । घन्यो गततुरगनतुश् कस्तृतीयोऽ्य तिष्ठति \। ९५
न
0 ननुम इमपदतमसरपत्| ‰ भे स्प एम स | अनयः रे कुं कमम 3| मक डेवेगु द्मपकग्|
9 रेणुं पव मै चरमे] न्नुपवमेमं सूय भेय्| श्लु सुय मितम गुक| गायुमस गुरनगुं दुग पनुरः |
10
18
102 गतागतपरोत्ता नाम [809-
यधा गत्ता न तिष्टति तथोत्तरेण श्नोकेनाष्यास्यति॥ खगत्तापि न तिष्ठति" स कि तिष्ठत्येव ' तस्य किमपर्या स्थित्या प्रपोजनं । एकया स्थित्याश्त्ता श्रपर्या तिष्टती- ति स्थितिदयप्रसङ्गात् स्थातृद [80]यप्रसङ्ग इति पूर्ववदोषः ॥ गलगत्तुर कितशान्यो नास्ति ॥ | | $ त्राह । नागत्ता तिष्ठति ' नापि गतुरगत्तशान्यः , कि तरिं गतैव तिष्ठती- ति ॥ नेवं ' प्मात्। गत्ता तावत्तिषटतीति कथमेवोपपत्स्यते । [70. 409]
~ [ष् +). गमनेन विना गत्ता यदू नैवोपपग्यते ॥ ९६
यदायं तिष्टतीत्युच्यते तदा त्थितिविशोधि गमनस्य नास्ति ' विना च गमनं 10 गत्तृव्यपदेशो नास्ति । चरतो गत्ता तिष्टतीति नोपपग्चते ॥ घन्राङ । विच्यत एव गमनं [तान्निवृत्तिद्वावात् । इक् गतेर्निवर्तमानः स्थितिमा- रभते । गमनाभावे तु न ततो निवर्तित ॥ उच्यति । स्यादरमनं यदि तन्निघृत्तिरेव स्यात् । [न स्ति] यस्मात्। न तिष्टति गम्यमानान्न गतान्नागताद्पि।
15 तत्र गत्ता गतादृध्वनो [न] निवर्तते गत्यभावात् ' श्रगतादपि गत्यभावदिव । गम्यमानाट्पि न निवतते तदनुपलब्धेर्गमिक्रियामावाच्च । तस्मान्न गतिनिवृत्तिः ॥
४ गुरढ नर्वुपमेपुपर् मे| क्नु नवम् भेनदुर द| सेषु भुव कुरर वेष दष 0ववयषम नुन |
"= ©
2) दमभे एप्॑-6प6 8्ण8-710प्8 1011 46 76शा 4808 16 (6४6 ९९6 णि.
7116 पणा »४ १6 80). ॥
3) 1.2 166्णा€ १व एकव 68४ वलाला6 [षा 16 #एकद्षण 1400-0 पपं (०68- एणा ४ काठकं १6 प०प्र€ (णाल ध76. 1 ९8६ वारिना वणतछवणा९ 19 ०6६४० (१८ १070८ वादक); पा8 19 8701836 068 (६ ह 711 88 06 1268146 98 11}06- एलपञछाना ६, -- ४० 6-0168808 }. 104. 8. 15.
819] दितीयं प्रकरणं 103
श्रत्राङ् । यदि गमनप्रतिदन्दिस्थित्यभावाद्तिर्सती ' एवं तिं गमनप्रपिद्यये ल्थितिं साधपामप्तत्सिद्धो गमनतिद्धिः । तप्मादिग्त एव स्थानं प्रतिदन्दिसद्ावात् ! स्थिते प्रतिदन्दि गमनं ' तस्ति ' ततश्च स्थितिर्पि प्रतिदन्दिसद्वावात् ॥ एतद् प्ययुक्कं * प्मात। [गमन] से प्रवृत्तिश्च निवृत्ति गतेः समा ९७
रत्र हि पद्रमने स्थितिसिद्ये वर्पितं तदरत्या पमं गतिद्र षणेन तुल्यमित्यर्थः । यथा गत्ता न तिष्टति तावदित्यादिना गतिप्रतिद्ये स्थितेरहेतत्वेनोपात्ताया [7,0. 40४] दरषणमृक्तं ' एवमिकापि स्थितिप्रिद्ये गमनस्य) केत्त्वेनोपात्तस्य स्थता न गच्छ् ति तावदित्यादिना श्नोकदयपाठपरिव्तिनं रूष वक्त [91भव्यमिति नास्ति गमनं तद्- भावात्प्रतिदन्दिनी स्थितिरपीति । एवं तावद्गमनं गत्या तुल्यं प्रत्याव्येयं ॥ ख्व स्यात् ' विद्यत ट्व स्थानं तदारम्भपदरावात् । इह गत्युपमदेन त्थानमा- ए्यते " कये तन्न स्यात् ॥ उच्यते । संपरवृत्तिश्च गतेः समा वाच्या । तत्र पधा पूर्वे गते नाएभ्यते गत्तमित्यादिना गमनारम्मो निषिद्धः एवमिरापि ' स्थिते नारभ्यते स्यात् स्यातं नाम्यतेऽस्थिते । नाट्भ्यते स्वोयमाने स्वातुमारम्यते कुर ॥"
४ पुमनस' विगुपन मेत्छुते| सर सुर ससस एर मोठ | नुव युर मे र्गृयः मूर | हग न पपन मे तु द्र भद्रम् |
2) 820४110 & ए: प्रणा. 72४8९. 7160४ 0€]श्ह्॥^
3) ©€8॥-2-0176: 57 द्द व 44८ द ढणवद वडद्द %व८व (वल्क, १1/८४ ॐ दा ०51776४ ९@ ८5 1710 (८7 ०८८ व४ ; 517 ढः ६द्४्य्द् दकव 7408 ९४०- ०5 /41९, 5112016144 (7?) ९११५ 57 दक वद १८१४०६८९.
4) == 812१1451 460, ₹०77 €1-46880प्8 2. 104. 1,
8) 1. 19.
6) © $ ४, 60076 €6पड़ पपं शप्र्छाौ (@. 104. 8 6{६.), 88 1प्ऽ पप ¶्८णड ०९ 008 १078 76811068 ४०8 € 7016 7666606, ०6 (० 0॥€ श्रां 168 कल्क ध्रः25 1611688
4०९ 19 एथा80॥ ५061क्ष०९ तप त्ा9 7४] 2०818 € 1€ (नगगा ००३ 168 {0 ८०००३१४९,
10
15
104 गतागतपरोत्ता नाम | [8॥४--
इत्यादिना श्रोकन्नयपरिवर्तिन स्थानप्रवत्तिएपि गतेः समा ॥ स्थाननिवृत्तिरपि
गतिनिवृत्या समा प्रत्याव्येषा । यधा गतिनिषेधे ' | न तिष्टति गम्यमानान्न गतात्नागताद्पि ' इति गतेद्घषणमुक्तं ' एवं स्थितिनिषेधेऽपि ' 5 न गच्छति स्थीयमानान्न त्थितात्रास्थितादपि ।
इति गत्या तल्यं [11. 419] दूषणमिति नास्ति स्थितिः। तद्भावात्कतो गति प्रतिपत्तत्थितिपद्राववादिनां गतेः सिद्धिरिति ॥
श्रपि च पदि गमनं स्याद्रतुव्यतिरकेण वा स्यादृव्यतिरकेण वा । सर्वधा च वि- चायमाणं न सभवतीत्याद ।
10 पटेव गमनं गत्ता स एषेति न युत्यते ।
॥ ~~ ~~ ~ (2) श्रन्यटव पनगत्ता गताछनतन युत्यत ॥ ष्ट
कथं पुनन यु्यत इत्या । पदेव गमनं गत्ता स एव दि भत्ेषदि।
न (8) एकीभावः प्रत्यत करतुः कम॑ण एव च ॥ ९९
\ 15 पेयं गमिक्रिपा सा पद् गत्ताव्यतिरिक्ता नान्या स्यात् ' तद्य कर्तः क्रियापाशचै- कत्वं स्यात् ' ततश्चेयं क्रिपां कर्तेति विशेषो न त्यात्। न च च््दिक्रियायाण्ङकतध कत्वं । श्रतो यदेव गमनं स एव गन्तेति न यत्यते ॥
1) 1.6 पदवप्लाहणः पहक्षंण ३ [प व एवाव == (40 म ~~,
१११० 0 1 सर भे शवत| गवि 3१ ० र म इ
9 गाधिनः पमु गुर पबेम| रेषे स्वव पेमप्युन्| उेदवरथं प चमत ठर गुनु नपु |
4) 1188. ९149, ०८८१५१९. -- 7 9 2४ प]. 7, 3: व्व" कवक १९.
-31] दितोषं प्रकरणं 105 मरन्यत्वमपि गत्तगमनयोर्थधा नास्ति तथा प्रतिपाट्यत्नार । भ्रन्य एव पुनर्गत्ता गतेर्यदि विकल्व्यते ।
४ १ ¢ ~ (1) गमनं स्यादृते गत्ग त्याद्रमनादते ॥ २०
दि हि गत्तगमन[81 णृयोरन्यत्वं स्यात् ' तदा गमननिरपेक्तो गत्ता स्यात् ¦ गत्तु- निरपेत्ं च गमने गृ्खेत पृथकिसद्रं घटादिव पटः । न च गन्तुः पृथक गमनं गृद्छत 5 इति । श्रन्य एव पुनर्गा गतिरिति न पुब्यत इति प्राधितमेतत् ॥ तदेवं ।
ट्कोभावेन [7४.41४] वा सिद्धिनानाभावेन वा ययोः।
चनन ~ + ^~ (9) न विग्यते तयोः सिद्धिः कयं नु खलु विग्यति ॥ २९
य्ो्गत्तगमनयोर्यधोदितेन न्यायेन एकोभावेन वा नानामावेन वा नास्ति तिदिः! तयोरिदानीं केनान्येन प्रकारेण सिद्धिरस्तु । श्रत घ्रा ।तवोः सिद्धिः कथे नु बलु विग्यत 10 इति॥ नास्ति गत्तगमनयोः सिदिरित्यमिप्रायः॥ `<
भरज्राद । इर देवदत्तो गत्ता गच्छतीति लोकप्रपिदं । तत्र यधा यक्ता वाचं भाषते कर्ता क्रियां करीतीति प्रसि ' एवं या गत्या गततेत्यमिव्यत्यते तां गच्छतीति न यघोक्तदोषः॥ तदप्यसत् । यस्मात् ।
गत्या ययोच्यते गत्ता गतिं तां घ न गच्छति । 16
4 4 11 19911 मेसुतः सुप सुर | न्तु पमेपतिः ननुम चुर ||
9 कृं सि शूहिपुम द| गमस गृकुनपदपरः१| गु वनु एस्मेगुर | देस 5.४1 > ८९ | € लं-१९३७8३ ]. 64. 8.
106 प्रत्ययपरीत्ता नाम ` [भ
न~ स गत्तत्यभिच्मत्यति {.1.(1) यया गत्या देवदृत्तो गतेः । स गत्ता संस्तां [तावन गच्छति न प्रा- प्रोति पटि बा न करीतीत्यर्धः।
यस्मान्न गतिपू्ीऽत्ति।
गतेः पूवी गतिपूर्वः । यदि गत्ता गतेः प्व तिद्ध स्यात् ' स तां गच्ैत्। कथ । 5 यस्मात् २ न ( 3) ८ कि (4) कच्चित् चिद्धि गच्छति ॥ २२
कशिदेवद्ततः किं चिद््धात्तएभूतं मामं नगर वा गच्छतीति दृष्टे । न चेवं यया गत्या गततेतयुच्यते तस्याः पुवं मिदव्रपो गतिनिर्पेततो गत्ता नामाप्ति यस्तां गच्छत् ॥ शरघ मन्यपे पया गत्या गत्तेत्यमिव्य्यते तामेवासी न गच्छति ' किं तरिं ततो. 10 ऽन्यां गतिमिति ॥ एतटृष्यप्यस्मात्'
गत्या ययोच्यते गत्ता [व 42१] ततोऽन्यां [४२५] त न गच्छति ।
न न न (5) गनो दे नोपपग्येते यस्मादेके प्रगच्छति ॥ २३
~ अनन €
६ 1) भम >म्]व म "7 -- 1.९ रवप्लालट्णाः पएलवाण ४ [पः . , . ४४ द/त८ 5 120 १८ (0९वव४ १0 17071018.
9
थ द् देर रपर ्खुनवेगु | द्रः नम्] नरग3र| शु्विषुं पुरु रनु, रुर | ।
8) 14 08]7&8 168 2788.
9 तुः गुर बोस" तनुव महद्] ननु य्" दे" पु मेद्| गुरः 3 वु पिः हम मे| गुर बेग गुरु प पु |
1 गु तनुत गृसव' यु] श्यः गुिससु' मे' >वप१्|
-32०] द्ितोपं प्रकरणं 107
यया गत्या गत्ताभिव्यन्यते ततोऽन्यामपि स गत्ता तन गच्छति " गतिदयप्र्- ङ्गात् । पया गत्या गत्तामिव्य्यते गत्ता सन् यां चापरां गच्छतीत्येतद्रतिदयं प्रसक्तं । न चैकस्मिन् गत्तरि गतिदयमित्ययुक्तमेतत् । एतेन वक्ता वाचं भाषते करता क्रियां करो- तीति (1) ६९ तोति प्रत्युक्तं ॥ ` तदेवं । 5 पद्ूतो गमनं गत्ता जिप्रकारं न गच्छति ।
ति ॐ ^ ह ~~ (2) नातद्रूतोशप गमनं [न्प्रकारं स गच्छत ॥ २8
गमनं [तद्] द्रूतः त्रिप्रकार न गच्छति ।
तन्न गम्यत इति गमनमिकोच्यते । तत्न सद्भूतो गत्ता यो गमिक्रियायुक्तः.। घत- दूतो गत्ता घो गमिक्रियारद्धितः । सदसदरूतो प उभयवत्तीयन्रपः। टवं गमनमपि िप्र- 10 कारं गमिक्रियासेबन्धेन वेदितव्यं ॥ तत्र सद्रूतो गत्ता सद्रूतमतद्रूतं दसद्ूतं निप्रकारं गमनं न गच्छति । एतच्च कर्मकारकयरत्तायामा्यात्यति । एवमतद्रूतो ऽपि गत्ता त्िप्र- कारं गमनं न गच्छति ' सदृपद्रूतोऽपोति तत्रैव प्रतिपादपिष्यति । पतथेवं गत्तगत्तव्य- गमनानि विचायमाणानि न सत्ति " ५५ तस्माद्तिश्च गत्ता च गत्तव्यं च न [19.420] विगते ॥ २५ 15
1) ए978, ©216. 2170 पवा; (कण), एकव प्कुकाा, (9. सनत्
9 नवमि पिमे | श्वि इसगङधमय्, कतं मे उत| मपपम समेषु रे धर| स्तु मनुम्. (तुभे
3) 2188. 11117171}
4) 971४6 णा,
9 परमुर्रमणेङ्ुय पनः | श्तु दमवृहमद्' तुं मद| २8 स्ति सूर प्यं सृ | क्तुपछत' एस्
108 प्रत्यपमरोत्ता नम । [8४०
पधोक्तमर्ातयमतिरिदशमूत | घरगतिरिति भदत्त शाएदतीपुत्र संकर्षणपद्मेतत् । गतिरिति भदत्त शाएदतीपुत्र निष्करषणपट्मेतत् । पत्र न सेकर्षणपद न निष्कर्षणषदे तदार्थाणां पद्मपट्योगेन ्ननागतिरगतिश्ार्याणां गतिरिति ॥ यदि बीतमेवाङ्करे क्रमति बीनमेव तत्स्यान्न पटकः शाश्रतदोषप्रसङ्गश् । 5 ब्रधाङ्करोऽन्यत ्रागच्डरति [32] ' | प्रहेतुकदोषप्रपङ्गः स्यात्न चाेतुकत्योत्पत्तिः र्- विषाणस्येव ॥ परत एवाङ भगवान् । बीजस्य सतो यधाङ्करौ न च पो बोन स चेव शङ्को । न च श्न्यु ततो न चैव तदेवमनच्ेद श्रणा्नत धर्मता ॥ इति 10 ` मुदरात्प्रतिमुद दृश्यते मुदरपेक्रात्ति न चोपलभ्यते । न च तत्र न चैव तान्यतो एवं सेस्कार् भनुदेदशाश्ताः ॥ इति [च त्था । ्रार्णपृषटे तथ तिलपात्रे निीतते नारिमुषंमलकृतं |
9
`: 1 ऽपरा 16 ० 0वनकड1व, एणी &11§ 88. 278. 4 ९४ 8006९
\ &11€€8 }. 11, 0. 6.
2) ¶6 €&098€ा*€ 12 1९66 068 1188, 60077166 797 2. ४ ‡ ०४. 228. 15. 16 ७ 80०411९. 2. ४ 7. 9 ष्कष्वकी © द्यू कवकाददकााद्छाषः , , वारकदध्व्ाक्ा/ १21" ¢20वद४१/करव ९5४ कददाः, -- ऽपः 18४ ऽव का, १०7 16 78६९ & 11 - 8187088 प्#18 06 व. 4 8. 1902, 17, 2. 272 ०. % 6-46888 7. 25 १. 8. 1.6 ० 80001112019418 ९8 60010१6 0४०8 271 ए, (. 442) ए0णः प्ाक्षःप पला 16 28886 १०८०९ एतना 2 ०6 भ्(16.
3) = 1४11४४१. 210. 4-४; भा 6106888 2. 26, ४. 4.
4) == 1४11४8१. 210. 8-9; न४€ 2804116. {. 342. 8 € &11§ 88. 229. 3 १०१०४ 708 2011008 18 16€नौप्ा€ © [पला ए76द्प्णा फहपवप्ठ (@ पण 0669] [7टे8; उककरडक्छव ^१५५८/८द८(कधव॑द्य॥ 2प 16 १6 ३4 अदद" / 2190676८ बद्व). -- १४410 60168700
न, 8 प्क्ष ५.५ (== 0102/0116}), 4।। == 417८. 00 08606 18 कथवादहक्क्ाम
11 0878 16 ६६८}6॥, 01 0878 17€ल06.
8) ©€8 १९ 8180668 (61668 (9). रा, न्द 9४.) 807 62781068 वप 8 8718 - 011" 8]8, 2. 29. 4-9 १€ 126वा्०ा € 1४ 3. (1, 8.
6) द्धद्व) व्द१व1) 166पाः€ 60116606. 16 + €8४ १००16 ऋआ ९०५४5व 09788 18081016 तप 76व0प्लणलण( 06 % €0 880861६ 8768 १० धा€ 066 € 060१ १०१०6 (09867५0० १6 4, ६ 67०).
-82ए] दितीपे प्रकरणं 109 ~ ¦ (1) ~. प्रधाविता ~ नप सो तत्र एागं ननपित्व बालो प्रधावितो कामि गवेषमाणो ॥ (2) चिन ~ ^ (५ मुलस्य संक्ात्ति यदा न विग्यते बिम्बे मुं नैव कदाचि लभ्यति । ५ ) व क १ = ५०५ मूषो यथा सो नयेत गं तथोपमान् जान सर्वधर्मान् ॥ इति ।
तथार्यतमाधिरीसूत्रे ऽपि] ।
तद्धि कालि सो दशबलो [ख्रानघो = माधि निनु भाषते दमु त । पुपिनोपमा मवगती सकला न (7) ~ (8) द नद्ठिकशिन्ायतिन चो म्रियते॥
न च सु लभ्यति न नोव नरो
इमि धर्म^'केनकटूलीपद्शाः [५४. ५३०] । मायोपमा गगनविश्युतमा
ट्कचन्दरसेनिभ मरीचिप्तमाः॥
1) 1.68 2088. 001160४ एव. 2) दुन = {17८ 3) दसद " " " == द्द ‰411क४८ 1104918 १4471.
4) 6116 10व16कप्रन = €8॥ एप्प 9 16 भ0€ध्रध; त81116पा'8 168 81811668 वपां 801१९0॥ 8071 76760668 प €0प्रा§ तप (966 (09. 12, रश, इत्या वव 0.) ९६ 19 80८6 ९8४ १०९14078 0007166. ।
8) प्र 9206; व्यद; 7218 {1}. म्बु 6) 2188. 21044४८; "1४18 110. सुपुपतिरतुपः -- 5वदुव्यद 01681 [088 8016.
#। 7) 2१, == 114.
8) 2188. ८4, ४०, ©. 9) 2188. ४१1९८, ९1100, वाव, वावा. 10) ककव == ४वकत, एणं (धोवदद्द, (९)1419/4) (०)54% (2), 118 88, 57. 9, 204. 15) 329. 18; 210४. 1, 463. 4.
10
110 प्रत्यपपीत्ता नाम १५ (32)
न च श्रप्मि लोकि मृतु कथि नकते पटृलोक संक्रमति गच्छति वा । न च कमं नश्यति कदा चि कृतं पलु देति कृष्णशुभ स्तो ॥
न च शा्यतं न च उङ् पुमो न च कर्मतेचुं न चापि स्थितिः न च तो पि कृत पुनरास्पुशति न च श्रनयु कव पुन वेद्यते ॥
न च संक्रमो न च पुनागमनं
न च सर्वमस्ति न च नास्ति पुनः। नच दषटित्थानगतिषुदिरि
न च ततर चारसुपशात्तगति ॥
६
1) = क्व कव्व. -- 5, तम्वा, आवन्वन) शा, नितुस" तु" श == 21८1९१0 144.
2) 24100 (== ५111) 0681 ४8 {180४ १18 1€ ४०९।११.
8) = ४
4) 2-804८. = [नना एशप्री€ा (860४1191).
8) 2188. 4११४ व, (व. -- 1.6 पलक 8 ठु मुतु) काणुका (०0०86 & 9 06 19 1106 [766606016€}.
6) व05(4 0114५.
7) 1188. ४2, #० = स्ति
8) 2788. ८०५०. -- (1). सेमस'रठ, सर्युप्य न्य न्ह्गृुप भेर | 0
5011४०१८ 0170(20614 4107. -- र्दुस्य (9768 70०८९३४ पड} == ८८८, १०००६ 7 168
1621468 व्णणा€ 6वृप्रएक्ल्णौ ४ (वाल == ए6भुल्नाप्णहु, णन्ला6वपह (2 6011108).
~ व स
-88४] दितीयं प्रकरणं 111
पुपिनोपमं रि तिभवं विक्र लघुमण्नम ----- मायताध्भुमे 4 न च श्रागते न च इोपगतं शूल्यानिमित्त तद् संततियो॥
्रनुत्थाद् णातत ्रनिमित्तपद् पुगतान गोचर् निनान गुणा बल धारणी दृशबललान बलं बधानियं वृषभिता पमा ॥
1) == ध्व == ?146 == रयम == ०52८. ल (> 2) 1088. 2114401100101041{/6112 १० ॐ3 रिपुः मप्णु सपम् जनं {8
0१५०१५१५ 0१४४4001 १५25१140 == {44100701 4017200001 01076 १०१?
3) 088. 5041011<79#6. (४ ४ ३ ईप् ९ त्रः (श ०९ (| ०९ == 50१1- (1.1.111... 14.1.11. 11171
4) 8८४९८: ८१#४दवद.
8) 088. 5८41200, 420८; (1). किमिः एठनम् 1806 19 [6€ल्पा९: 4४02. १711 (80105147) 0५१7.
6) 6९6 116, 4818 16 +€ 80, €8† 1४ [7लणांट'€ € 18 81866.
7 शुपस' पुर गदु दमस पर मे ददस"यदुनि पस = एकः भाम १०११४४८ ९वक४क = वककएकवकाक! 2, -- १९ 8इण]०86 ¶०९ 1066 तप काप्यं वका 0९ इपोण€ 16 पा० 5075-2 (दव व्ठ).
8) = एववा ^ १0/40 == ए४ववद्तका१ ४40 == र, ब स^सकुस्'
8
112 प्रत्ययपरीत्ता नाम | (88० ` वरशुक्तधर्मगुणसंनिचयो / गुणक्तानधारणिबलं पमं । कदरीविनुर्वणवि्धि; परमो वर्पञ्चभिन्नपतिलाभनयः। इति विस्तरः ॥ इत्याचार्थचन््रकीर्तिपादोपर् चितायां प्रप्तपादायां मध्यमकवत्तौ गतागतपरौक्तं
नाम दितीपं प्रकरणं [४. 48४] ॥
1) 1188. ध्ववदु्छद्रक, ९१८८ ४प्रक, ०४१४दृक्द. 2) 36800078: (८1042144.
3) , ५6 ८ एण 11१. 1. 425. 4) ९/४ == यु त
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1476 दव वक व४९ 9 0लन्-क < ` १2०१८६॥१५8० 15१वदा१ ४० । वा ११११... ल 21.8 9 [९ 4९ 18. 3 (1 11 410८1९2 36.18 ५ १ ५१६ ` » €. 36. 19-39.1 14176 28. 4 8प ]6प 16 14. 5 9 18.7, 21.18 2 16 16 11.14, 13.5 ५: वद क वद् चु कलाव | 1
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- 38९] तृतीयं प्रकरणं 118
1.
चलतरादौन्द्रियपरो्ता नाम तृतीयं प्रकरणा रत्रा । यग्यपि गतिश्च गत्ता च गत्तव्यं च न विश्रते ' तथापि प्र्वचनिद्यपेतया रष्दरष्टव्यदृशनादीनामस्तिमास्येयं । तथा चामिधमं उच्यते । दर्शनं श्रवणं घाणं रसनं स्पर्शनं मनः।
इन्दरियाि षडेतेषां टव्यारीनि गोचरः ॥९
~ [कष् (3) तस्मात्सत्ति दशनादीनि स्वभावत इति ॥ उच्यते । न सत्ति । इद दि पश्य- तीति दर्शनं चतुः तत्य च तरपं विषयतेनोपदिष्यते । पया दर्षनं उं न पष्यति तथा ` प्रतिपाद्यत्नार् । + | ^ ` , + द [र [न (4) स्वमात्मानं दशनं दि तत्तमेव न पष्यति ।
न पश्यति यदात्मानं कयं दरत्यति न पश्यति यदात्मानं कयं दरयति तत्यरान्। २
1) 21406204 == 1 ्वलतपा९. -- 28} ९०१79119 179 ४ ्र8वफ४ 16 ९०. 16066760 ॥€ €€ ल08 70४6 १88 ए ०१११18६ प €. 1.1४. 2. 1760.
शङ्क फ दमय च| छनपनडष पर निगु पेत सृप दुषु दुर्गुण | सुम न प जुयन्गुस | ० उराः कल्वन-508 9 रिगु मेषु ने रिकम् व्िपन्युपय प्ेमुष्य = भान व्ण कष व ९८१४९ 10/1४.
4) 2188. 5८ द्वफक््ी४. , , . - {011९0 ९४८. . .; ६३16० ८21512 [1४ दैक ९व, ८ {176 प्प त 018 का 86109.
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9 द्व ३ रलो सगुणे मे| वे द्रैप मनकरत| गुरमेगुं पद|
नि म्प | म गुकवेगुगुनि # रः र | 1१० उणा: १ -क8 ए1144-96द, क ४ 1५-20 € (८0-2794 दव -1द + [14-एवल.
10
114 चतुरादीन्दरियपरीक्ञा नाम ` न तत्र तदेव दर्शनं स्वात्मानं न पश्यति स्वात्मनि त्रिधाविरोधात् । ततश्च स्वा- त्माूर्णनाच्छ्रोजौिवत्रीलािकं न पश्यति । तस्मात्रापिति दशनं ॥ । यथ्चपि स्वात्मानं दूधन न पश्यति ' तघाप्यगिवत्परन् ब्रत्यति । तधा स्लधिः पर्त्मानमेव टरति न स्वात्मानं , एवं दषा णान परानेव उत्यति न स्वात्मानमिति ॥ 5 एूतदृप्ययुक्तं यस्मात् ' न पयाप्तोऽगिदष्टातो टृशनत्य प्रसिद्पे।
योऽयमपनिृष्टात्तो दृशनस्य प्रतिद्धये भवतोपन्यप्तः ' स न पर्याप्तो नालं न समधी न युव्यत इत्यरथः । यस्मात् ' (र (4) पदूर्शनः स प्रत्युक्तो गम्यमानगतागतिः ॥ ३ [7५. ५५५]
10 दह टूर्धनेन बतत इति सदर्थनः। योऽ्यमप्िदृष्टात्तो द्शनप्रसिद्धये भवतोपदि टः । सोऽपि सदह एृशनेन ाष्टात्तिकार्थेन प्रत्युक्तो ह् षितः । केन पुनरित्याद ' गम्यमानग- तागतिः। यथा गतं न गम्यते नागते न गम्यमान ए्वमयिनापि दग्धं न द्छते नाद्धं दृश्यत इत्यादिना समं वाच्यं ॥ यधा च न गतं नागतं न गम्यमानं गम्यते ' एवे '
न दृष्ट दृष्यते तावद् नेच दृष्यते ।
16 दष्टादष्टविनिर्क्त दृष्यमानं न दश्यते^।
इत्यादि वाच्यं ॥
1) 66 1061706 8 पर ४8. १.) 1. 48; 8041016. {, 1. 18, 2. 261. 8. 2) (९४४6 (णण 9४807 72006116 1९ +वडवन्का ५१११४ (8 ०१01८. भा, 61).
3) प" 60-0688प्§ 84. 6 9 श्त स्वातन्त्र मेः येम मेः मुष" सपम्] मः, मुर मर पुमयप्स| रेमे व्रम् चमु त्
) ४०77 6-468808 11. 1
6) प€ १०१४ [४8 ९6 ९00186८ (०णाा€ प€ दच्छद, 06 98 8 त्08 27490 रणा (कचाक्ण तकृ क 8 ३111188).
34४] ततीषं प्रकरणं 118
यथा च गत्ता न गच्डृति तावदित्या्कत । एवं न द्धी एरति तावदित्यादि वाच्यं । एषं न द्रष्टा पश्यति ताबरित्यादिनािदृष्टा्तेन सह गम्यमानगतागतिर्थस्मा- त्समं द्र्षणमतोऽपरिवदर्शनतिदहिरिति न युब्यते ततश्च सिद्धमेतत् ' स्वात्मवदशंनं परा- नपि न पष्यतीति ॥ पदैव तदा ' नापष्यमानं भवति पदा किं चन दृ्ने। .. ४
४ तेवं ~ (9) दशनं पश्यतीत्येवं कथमेततत पुष्यते ॥ 8
यदा चैवमपश्यन्न किं चिदर्शनं भवति ' तदनीमपष्यते दृ्शनत्वायोगात् त्तम्भा- द्वित् पश्यतीति दृर्शनमिति व्यपदेशो न पुत्यते ॥ यश्यपि दणनशब्द्दनत्तरं शरोकबन्धा- नुरोधेन (1५४. 4५४] दर्शनं पश्यतीति पाठस्तथापि व्याष्यानकाले पश्यती{94१ति र्णनमित्येवं कथमेततत यु्यत इति पदितव्ये ॥ 10 किं चान्यत् ' इ पश्यतीति दृशनमित्युच्यमाने दर्शनक्रिया दृ्णनस्वभावस्य वा चलुषः संबन्धः परिकल्प्येत ' श्दर्शनस्वभावत्य वा । उभयथा च न पुन्य इत्यार्। पष्यति द्धनं नेव तेव पर्यत्यदृरणनं।
(4) अ क ९ न र्शनस्वभावस्य तावदु शि क्रियायुक्तस्य भूवः पश्यतीत्यादिना सेबन्धो नोपपग्ते' टशिक्रियादयप्रङ्गात् " दर्धनदयप्रतङ्गाच्च । श्रदृशोनमपि न पश्यति । टृशोनक्रियार् दित- 15 लादृङ्ल्यमवदित्यमिप्रायः ॥ पदा
1) पभ ल -4688ण8 11. 8.
2) 188. 110 00041121 व9/क८ कद , , , ९००1 20 व47{व14001 4/८ च्छव, -- 7४. रेषु सगुक मे सेषु शै" रिगु प्रैकमे त्र
8) गृरक डुनत्प भे र| ्िपप्वेय म परमे (0 ये. रेसयुर | दे रर रेबृसन्पन स्युर् ||
4) ०7५" 21454१८ (7 ३४}. 1, 1087).
116 चतुरारीन्दियपरीत्ता नाम
पश्यति दर्शनं नेवं नैव परुयत्यद्शनं। तदा" ॥ , दशनं पष्यतीत्येवं कथमेतत्त पश्यते ॥
इत्यनेनेव संबन्धः ॥ ये तु मन्यते निर्व्यापारं ₹ीदं धममा्नमुत्पश्चमानमुत्पग्बत इति '
5 नैव किं चित्कशिदिषयं पश्यति क्रियाया अभावात्तप्मादशनं न पश्यतीति सिदमे- तत्प्रताध्यत इति । श्र्रोच्यते । पदि क्रिया व्यवक्राङ्गमूता न स्यात् ' तदा धर्म- मात्रमपि न स्यात् ^ क्रियाविरकितवरात् लपुष्पवदिति कुतः क्रिपारदितं धर्ममात्रं भवि- ष्यति । तस्माग्यदि व्यवदारत्यं घर्ममात्रवत् क्रिपाप्यभ्युपगम्यतां ' रथ तच्चिन्ता तदा क्रियावदर्ममात्रमपि नास्तीति भवताभयुपगम्यता ॥ वधोक्तं शते ।
10 क्रियावान् [70.45०] शाश्चतो नास्ति नास्ति सर्वगते" क्रिया।
| निष्क्रियो नाप्तितातुल्यो ^ नेरात्म्यं किं न ते प्रियं ॥ इति। तस्मान्नायं विधिबीधक, परस्य ' नाप्यप्माकं सिद्साधनदोषः॥
1) 1] ण९्ा36 788 06 कावा, १6 १८९४८ (कणप 6-१688४8 7. 96 1. 18) 1०46. 6040९0६ १6 18 1/2. ए ०7 18 8180606: क्य 54०४८७० अज्नद वक्वाः {व 1110/क, एष" 4852000 (व इकछव द्वद इवाव ९०८४व्॑ट (6६6 ए ०4016. 7 18. 6, नरह १01० १प एच ए२7 ४३8) 110 उ 9. 1189, एभथा्चणलाौ १००8 81217217, 861. 8 ५९१३०१81] ४१४7, 278.9, 2०78१ ह7118 170.10, ए09४- १९९४8३३ 18817, . 809) == «(08 168 81) श्छ्वा88 8011 70076ा#2768 € (6000९60४ अत्त - एप्ला 12260009 श्च फनशा6ा+&06? 16पाः त6€णयः (®) ९१68४ 1266 (= 16 न 0606 16 16812 वप ९0001९56 [52401] १६8 6३868), &168६ 66 4०० शृना6 अपं 19 कषंऽ- 88.166 (16 8४ १67९७ प १68 60ील्€0॥8 तःप €ी€( 008॥6ा6ण) >. 8 क १९६१४०९१ 1971 (600. 9. 3.) 184 121८1041} 5०९४ व८ ४४ ४८८६१, २74४८ 1९5 (त्वा क्काा) द४क10द0क¢क८ 21410400 १४४ (९४, , , -- 149, 16लप्ा€ दद्वप! 116 97211 600077066 87 16 "060 ४९८02; ए४९वद-24-0 0 ए४८व-00 = प्ल कव
ॐ 00 16616606 18 7621106 (दव्यरवलत्णद, ४८८क/द), 11 शिप्रा १06 णलः 19 ए 068 5001872/व5 (== व7८11000401 कद); €18114 4547045) 118 76 800६ 07 (ब868 (4) ०) ९०868 (272); 8 1070६ 06 एप १6 19 ए्€ा106 १6 1९ सु€1९०९6 (४व्णकीन्छदस्वा क) 00041010 == 1102. ~ ए ०7 1 67100 8४1१४४74. 8. (४४. ०0६6 87) (वव 1४ 00कणव61८0॥ 6६ च. 4.8. 1908, आ 2. 376.
2) ॐ. 17. ~ पणं ०8६०४, 1900, ॥. 239. 2 गुहु सुः युप मेषु 4) 1188, १4 १५140; 1878 #0 6 भे म् मदु्सः
४) 1088. ४९४ 14 ८०. ~ (0. = 45द्व वका 454@ पष्क 204 एक | 14.13 |
89
-34४] | ततीयं प्रकरणं 117
श्ना । त्रैव दि पर्यतो[94४]ति दूर्शनमिति कर्तसाधनमभ्युपगम्यते \ किं तिं पश्यत्यनेनेति दूर्णनमिति करणताधनं । ततश्चोक्तरोषाप्रतङ्ः । पश्चानेन दृणनेन करणभूतेन पश्यति त दरष्टा ' एष च विग्यते विक्ञानामात्मा वा ! कर्तृतद्रावाच् दृणन- मपि सिदमिति ॥ उच्यति । व्याव्यातो दशनेनैव द्रष्टा चाघ्युपगम्यतां ॥ प
यधा स्वमात्मानं दरशन कीत्यादिना दर्नस्य द्वषणमुक्तमेवं इ षटरपि दर्णनवदरूषणं वेदितव्यं । त्धा ' स्वमात्मानं नव दरष्टा दशनेन विपश्यति । न पश्यति परात्मानं कथे तत्यति तत्पर्न् ॥ इत्यादि वाच्यं ' तस्मादशनवद्रष्टापि नास्तीति तिद ॥ ` - ` शत्रा । विग्बतं एव दरष्टा तत्वर्मकरेणपद्वावात् ॥ इद यन्नास्तोति न तस्य कर्मकरपो विग्येते तग्बया वन्ध्यामूनोः । चस्ति च द्रष्टुः करणं टर्नं दरष्व्यं च कमं । तस्माच्छेतवदिग्यमानकर्मकार पो विच्यत टव र्टेति ॥ उच्यते ' तैव हि ्रष्व्यद्शने विच्धेते तत्कृतो ष्टा त्यात् । द्रष्टसाेते हि दरष्टव्यदर्धने (10. 45४] › स च निद्प्य- माणाः! । | [तिरस्कृत्य] द्रष्टा नास्त्यतिरस्कृत्य च दशनं ।
इद दष्टा नाम यदि कश्चित्स्यात् ' त टृ्नतपित्तो वा ्यानिर्पे्तो वा । तत्र यदि दर्शनतपित्तोऽतिरस्कृत्य दृनमिष्यते \ तथा तिदस्य वा दृशनापेत्ना स्यादृ्िदप्य वा । तन्न सिद्धो दरष्टा न द दूर्धनमपेततते ' किं सिस्य सतो द्रष्टः पुनदूषनापेतता कुर्यात् '
४ ब्य कषु मे| ब्रुप्मेवुय मेनन क| ब्पकरपुठस ब्त पर| दंमदन्सयमृपुपन मपय | 2) ¶ भ" -१4688४8 1, 3.
8) 7081728 16 ४96€॥भ. ~ 1.6 ग्ला 681, 0 16 प्रमं, 176.
16
15
118 चतुारीन्ियषतते्त नाम ५ (8५०-
न हि पिद पुनरपि साध्यत इति। श्रथातिद्धोणेततेत ' घ्सिद्तादन्ध्यापुतवदर्ने नपित्तते। एषं तावद् तिरस्कृत्य ट्षं[9 भुनमपेत्य दरष्टा नात्ति ॥ तिरस्कत्यापिदर्शननिशयेतता- दित्युक्त प्राक् ॥ तेवं तिरस्कृत्यातिरस्कृत्य] वा दृर्नं पटा दष्टा नात्ति तदा '
व्य दर्णनं चैव दरष्यसति ते कुतः ॥ ६“
५ दष्टपति निरैतु रष्टव्यदृने न संभवत इति कुतस्तत्सदरावाद्रृष्ट प्रे त्स्यति॥ | प्रन । वियते एव दरष्टव्यूथने तत्कार्यतद्वावात् । तत्न ' प्रतीत्य मातापितरौ यथोक्तः पुत्र्भवः।
= प्रतीतयैवमक्तो ~ ५ ) चते प्रतीत्येवमुक्तो विज्ञानपभवः॥ ०
९ = सि 10 इति ष्टव्यं टृ्नं च प्रतीत्य विन्ञानमुत्यथ्यते । जाणा सेनिपातात्ता् (6) श ट (प) 1 [ते (4 ९ ¢ ( ) वर्श स्यर्ततन्ा वेदना ' तत्प्रत्यया तृष्णेति ' एवे चार्थपि भवाङ्गानि इष्टव्य-
1) 96 2088. ~ 14116 08168 16 ४५०6५४४ ५ 01051 100 544८४
9 मश्ुरस ब्रं एतमेव | ब्रत सुनसयन्युर छन व्रि भमु 1.1.911
१ दिक य १ मव. भेषु सूर गुकुगुस र्ेमुसस| दुमपननसन्य रनुरपर वमत |
4) ४011 ध-१688प8 , 6, 7, 4.
४) @०€18 801६ 668 708? 70918 16 8प्द्ा धा &7118 008 10 कवाश्व्ल- 110160१८, 20 ०१210015) 30 ०८4१० वप51. (4 90141. 1६. १, 2412). - 02118 त प्८९8 १०८६५९78 10 16 1114-2 का/क १९/*४ददद, 2० 16 व (अच्छरन्वे) 80 16 14100020 ४६०९]; 807४ ९३३68; 2014104 -910व17/द, १; 681 66४; १4000 ०४११८.
¡ 9) रगुप त ग परब्र - 4. ४०५. 109. 59 कवय, 106 इदशादणव)
106 ५12574४८. -- & 115 28. 221. 3 € 7016: 5दकदएव॥ १4110४द्द्१क१ा. -- 1 क > प्णो8 7570४45 (एद्धा2, 011998, 2१19), 119. § 56.17. -- 1.7 23616 कद्वव ९8६ 86116 (क५- द्यः); 4 0111011 1६. ४. (80०6८. 48.) 01. 808४ 6. ~ ८0 ऽत्र ४ 61४6 1914. 276 9 8; ऽद कणव काव्याद 1440006 &कश्वव ९४८ (क ‰2४बव ९५ #च्दध १००९ [प्र ॐ 0186088701
-35४] तृतीयं प्रकरणं 119
[10.46 भुदूषनकेतुकानि विश्यतते । त्मात्कार्यसद्वावाद्रटव्यदृषने वियते इति ॥ उच्यते । स्यातामिति यदि विज्ञानादिचलुष्टपमिव स्याग्यस्मात्' ्रष्टव्यद्शनाभावादिज्ञानाद्चतुष्टपं । नाप्तोति। इह दष्टभावादृष्टव्यदू्नेऽपि न प्त इत्युक्तं ' श्रतः कुतो विन्ञानारिचतुष्टपं विज्ञानस्पशंवेद्नातष्णाष्यं । तस्मान्न सत्ति विज्ञानानि ॥
घ्न्रादह । सत्येवेतानि तत्कायपतदरावात् । इद्ह तष्णाप्रत्ययमुपादानमित्याद्ना उपादानभवनातिनर्मरणारिकं विनज्ञानादिचतुष्टपाडत्पचति ' तत्मात्त्ति विज्ञानादीनि तत्कार्यद्वावात् ॥ उच्यति । स्युकूपादानादीनि पदि विज्ञानादिचतुष्टयमेव स्यात् । यदा त् दष्टव्यदू्शनाभावादिज्ञानारिचतुष्टयं नैवात्ति तद् ' उपाानाीनि भविष्यत्ति पुनः कथं ॥ ८"
न सत्युपादानादीनीत्यर्ः ॥ इटानों दर्णनवच्देषायतनव्याव्या[ॐ४]नातिदेशा- माद । | ू
४ 70008 १७ 14726: 16 ऽकदककक्द्दः १च०0 १6 11471091 (लवा लकाः वदद) © 16 १ €2{6176 (018, पप्रा) 807६ 4112674045. -- 1.6 ९००४४८४ €8{ 52574४ब ०४०६ 16 र्] 0ह)४ €8४ 570४2102) व्९(2१द7 1016144/4.
7) #. ४ प४. 245. 1140 (दवष व्ढ ०८८०११2. 4 01141. 1, १, (242४. 3) ९०७१५१5 410157007 (८711 21{‰०८दद्/व९: (व6 ११540180 ४८९५१९१, -- 81 19 ०८वव्द 0810 तप ऽव) ८०60४ [0€ण+-दा]€ 676 5005 द०णा€ 16 त६ ००४८ ६62४९? 1.4 9 0140377 81०९४ व186प्८९ € €ी€॥ 16 ऽव्ानव्म्व एव (अपराप्ा४806116) € 16 44१/4- वव्व्ब्फाद्छक (लक्षण १6 ९४०86 ४ ९6४): 1 गपा ९ 1 व्मद्क ९8६ शाप्ा४क४1€6 २, 11५४८ वणा ९8६ 88, (8४०86 (1606 तप नए).
8) सप्तिः + 9 यदे. ~ एणः ^ 01147. ४११६०1४ (7. ए. ¶. 8. 1884) श, 12, 16 एकवणवकाद्नप्नः न.
४ प्रर भेदि ©> | देम'पतेस य सगस्प" पवि पुमन् ठे तनविमृभरगुस | दशप पगुपमनयुन ||
2) पन प्रग" ६८770104, 5. ०८.
10
120 चतुरारीन्दियपरीत्ता नाम | 11
व्याव्यातं श्रवणं प्राणं रसनं स्पर्शनं मनः।
2 (अ क तश्रोतव्यकारि (1) ! ˆ दरधनेनैव जानीषच्छ्रोत च॥ इतिं । ९
उक्तं दि भगवता।
न चततुः [1५9. 46] प्रतते वरे मनो धर्मान्न वेत्ति च। 5 एतत्तु परमं पत्यं यत्र लोको न गाक्ते ॥ सामग्या दृशं यत्र प्रकाशयति नापकः। ्राोपचाशमूमिं तां परमार््य वुद्धिमान् ॥ इति । तथा"
चतुथ पतीत्य पतः चलुविजानमिरोपनायते ।
10 नौ] चततुषि प निभतं व्रत्रातति न चैव चतुषि ॥ नेत्म्यश्ुमा्च धर्मि ये तेघात्मेति शुभाश्च कल्पिताः। विपप्ैतमपतदिकल्पितं चत्ुविजान ततोऽपि तायते ॥