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== 84011 - ठाना). 10 पट. 2488 (8010४11४ 81). 8४. 2९. {68

प्रतत्रयटा नाम माध्यमिकवतिः

1.

प्रत्यययरोत्ता नाम प्रधमं प्रकरणं

म्रिये 2) [घ्रार्थमज्जुभ्रिये कुमा्मूताय नमः ।]

~ (8) ग्तद्यावा ¢ (4) ~

पो पविधूतवा्ः तेवद्धीसागरलब्धन्न्मा (^ ~ (5) 3

सद्मतोयत्य गभोरभावं यधानुबुदे कृपया गाद्‌ [1). १५] यत्य दृ्शनतेनांसि पर्वादिमतेन्धनं दृहत्यग्यापि लोकस्य मानसानि तमांसि

1) 0277688 18 208610४0 वप ¶0.: कआव्रकाददा ४/1 १९11४.

2) 09168 16 {10.; णप्ा6 (णप प्रा€ ६008 [९8 0पए8668 0९6 66116 8९८४० वप 7 ४०१} ००7, ए्ा8 (क्ण). १4010 एषववाद्छु/व ; (916. १470141 @1704१०5०{ ६८८ | 1141010 १५६१1114 7/0.

3) 616 29} 2६1, 0619०४6 १1०48१28 १८06०४१४] 78 (प. १६४ ८091).

© © 4) 188. 0 1014740५; 16 1}. न) मदन वनेतववुनुन 4 स्यि 2 &०007706 18 60166 प्रा€ : १५{4द ४४/५५, -- ककव (€2126 781 16 76116) == ४२5८. - 1.68 ९००01९8 १,६०॥88 8076 16 ९०३, ©). एष ९616 1 8 1 ४३६४१ [1. 448. 10, 82707 ८४६४४ प. 1. 138. 18: 6०0 कद्ध , . , नक १10; 5०१९१ 42/00 व0८10/0 1410. {८ ६८ 2६4८दद्ाधवक ५210 ११४८ १4104(40100701@ १1117610 वा 400101411॥

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5) ममम मपय = 90वद्}4+700:0508940.

2 प्रत्ययपरौत्ता नाम [19-

पस्यासमन्ञानवचश्तीधा निघ्रत्ि निःेषभवारितिनां + ्रिधातुर्यभरियमारधाना विनेयलोकम्य सदेवकस्य नागानां प्रणिपत्य तस्त तत्कारिकाणां विवृत्ति करिष्ये। $त्तानपत्प्रक्रिपवाकयन दरं तीनिलाव्याकुलितां प्रस्ना

(5) तत्र \ स्वतो नापि परतो हाभ्यां ' इत्यादि वत्यमाणो शाल [10.2४] तत्य ~ ५५४ (ज नि (6) [न कानि सेबन्धाभिधेयप्रयोननानि \ इति प्रभरे ' मध्यमकावतार्‌विकितविधिना श्रदयज्ञाना- ~ (7) प्रघमचित्तो ६. हतिमािं (9) लेकृते माक हणोपायपुर्‌ःसरं त्पाट्‌ तथागतज्ञानोत कृचा पा-

# >)

1) सय ५. 0" 1776; ४१५४-१६5९१02 ; 1) 166 १९8 60068 == ए740व) 80708 द/4} €. 5८015@ाकव४ (4 ३१. 1 217 91918 1, 1); एण्ड 01008916 पृष्टः एकक्छव्छः == 6016171 १९ 1४ शं€ 70008106 (२. छर.) == ४11४4, ०700086 ९०१९४ (60888016). 2) 810110्9]116 १88 67० 6१६], गण्डा तप एण्पतवा्श९, 7. 205, 0. 31.

3) (1. निनि | शेपभिगु्गुगोस " " " ; ५६204, 16, धना€ 6०016०46 (81077086 @79@, 897 8.87 ¢. 8. 28. 9, ५४१. (07 ०६6००, 1901) ००४6 1858; 88.11. प. 1. 139. 94; ए. ०६. 68. %. &. 10१. 1. 406. 18; प्र 88811161, 5००११०४. 827); 54101700, ११160106 8016 €क्ापन्‌णद्वा6 (4 ४७ 8. १०९. वक == €~ 710101681 0708४०0).

4) (10. (8) &. 71९81 21018 (त. दकभ्णदाह 1891) 2. 82: 2705245 ६५ 5८८८ कहंढ (९ 4714/07 (प्र. ४6०१).

8) ४०१९४ 108 7. 12. 13.

6) 0808 ¶' 810.}0 7, 0१०, उता; च्णृ्ट 2 ०8६०४, 1900, >, 27. 226-286.

¶7) ०५/८० ४०१०९ 88 (9.

8) 11 ए़ पञ कन्ढववः (णतशा वो 00165. -- (00. 61888. 9.4, 212.13; 0 0ए. 1. 110. 4, 091४7687 ०188 ०४6 8३०११1९. 2. 1. 11 @०- कनीनका १८, रवद्कव); 194. 1. 8, 10 ९४८. -- 7 0. 887. 1416 ; कव्व @011"00दवढ (. ४1१).

9) नयुम्नपति युयु गुमान, यस == ०५1१व न" १८1१07च्क॥ 2वा0 1"2. -- &. 111१. 1. 469; 118 28. 292. 5.

- 2] प्रधमं प्रकरणं 3

| पमितानीतिं ) ~ वदाचाधीर्वनागान्मुनस्य विदिताविपरीतप्रन्नापारमितानीतिः कहणया परावबोधार्थं णा-

्रप्रयनं इत्येष तावच्छाल्रप्य संबन्धः यच्छास्ति व(;] न्तेणरिपूनशेषान्‌ संत्रायते इगतितो भवाच्च तच्छपनाच्चाणगुणाच्च शारं ' एतदयं चान्यमतेष नास्ति इति स्वयमेव चाचार्यो वत्यमाणसकलणात्राभयेयार्थ सप्रयो्ननमुपदूरशयन्‌ तद्‌विपरोत- घप्रकाशवेन माकात्म्यमुदराव्य ततस्वभावाव्यतिरेकवर्तिने * पमगुर्वे तथागताय शा- छ्लप्रणयननिमित्तकं प्रणामं कर्तुकाम रार ' प्ननिरोधमनत्पाद्मन्‌च्दमशाश्चते। खनेकार्थमनानार्धमनागममनिर्ममं यः प्रतोत्यतमुत्पादे "

इत्यादि| [२५] तद्‌ त्रानिहिधाग्रष्टविशेषणविशिषटः प्रतीत्यतमत्पाद्‌ः शाल्नाभि- धेयार्धः।

1) दू == १५४ == ८९४ (€-0688प8 2. 6): पणां व्०णक्षी{ 62 &6व€€ा॥ 18 7811616 009४ 11 €णडलहण्डा 1४ २. ?. (0४ ०€ ला 16 88104 १९8३ ला क्णा९8).

2) 0808 16 ४९१३०६४३ ६1४ 16 54१01८१ दाव (निदभय) €8४ 12 76180 67४16 18

10

60086 १60०0४९ (167 174धर0/2) €४ 17108 पा €४ १6 6००87800 (वक १द्वनः00- -

१६504); 11 0पाः 1५5१८ 16 ००८४ ८०कबद८77द४व १6 ६९8 0€प् ५७768 (. 20, 86. (01. ४८०४, 1881). 0918 $ 2010 (ह, 0. 2. 1. 19: "०९४५0 क्न 210 द0129/414014/07 = 5171000147बक ; 16 5490104व10@ 60081806 ९९८ ०९ 16 96 68 प्रण 706 ९०१९०216 0ण 76 भाऽधा 16 ४प४. -- €. 50०4016. 2. 2, ००४6 2; &10 1४१2171. 2. 6; & 19 (1€ग7€ 8881 १९8 वषपर 6 १११८०411 ब7द5 211 ४8. (ए.8.8.) 2. 70).

8) €९#€ 8110176 71874€ १४8 12 ¶€8101 ५6४६११९. -- 1/४ 1९८४प16 ०[‰] €8४ 0०४९०86, ८४? 2. -- (क -+- ४12 == (25८74. 07 (०णभह€ा 4 1 00388 ४, 14. 1; (कवक (5117410 ०८वब} ; ४१४7३१21. 174. 7. -- $णा ¢254, 8०१ 016. 7. 76.5.

4) 1.8 इप7ााणा४€ तप 18४02818 7168146 ९९८ वणा > (्नदलन्ला€४ ९086116 1€ एक ४काप0208; ११९५ 13 78{प्ा€ [76 तप एतत्‌ 288724४, 16 1 20892 68४ 1086} 8180160€ा0# 8880616 (ए 077 (070. ४१ शा. 16).

$) ¶५०१९४ 18 118. १९ ९९४४८ 81817166 तक्षा8 87811 7 8} 2188 ४78 (कि 870]10 1087), 67००४, 6०१९ वप ४0818०३) ]. 87.

6) प्रभं? 10078 }. 11. 18.

10

4 प्रत्ययपरीता नाम [2९-

सर्वप्रपञ्चोपशमशिवलतणे निर्वाणं शालस्य प्रयोननं निर्ष्ट। ते बन्दे वदतां वरं ' इत्यनेन प्रणामः।

इत्येष तावच्छरोकदयस्य मुदायार्थः

श्रवयवा्धत्तु विभग्यते ' [1,0.8५] तै निरदधिर्नितिधः' तद्गो नित इत्युच्यते उत्पाटृनमुत्पाद्‌ः ' श्रात्मभावोन्मन्नन[मित्यर्धः] उच््त्तिहच्देदः ' प्रनन्धविच्छत्तिरित्यर्धः। शाश्चतो नित्यः ' सर्वकाले स्थौणुरित्यर्थः। एकश्चातावर्ध्चेत्येकार्घो ऽभिन्नर्थः " पृथगित्यर्थः नानार्यो ^ मिन्नर्थः पयगित्य्वः घरागतिहेगमः ' विप्रकृष्टदेशावत्थितानां सेनिकृष्टदेशागमन।

(ज ~ ~ ~ (8) निर्गतिर्भिगमः ' सेनिकृष्टदेणावप्थितानां विप्रकृष्देशगमनं

1) एणा 1008 ए. 8, इए. 24 (णण. 2 उड णा. 30. - (णण. 809४. ए. (6967, 6. ^ ५४१. १6 2867110 1864) 7. 3886. 10: . . . ?@ 0 विव १@- 27/04, , , , गद्मा$वकाा . , „) 27046004, ०द९व$वाी0. ,

2) ४५01 1078 11. 18.

8--3) (68 €311681008 शप १९7१, १8०8 16 #ए6ौक्षं0, 12 0786088700 तप 701 214 1४540141 दव4. -- ०९ 1. 11, 2. 1.

4) 7688101 76प6०॥6 १४8 168 80प्7668 78071811 68, 11170 788? ढ7 - 1118, 1, 8; ^ त्रा ४१8१४१७8) }. 1. पदक ११६०३०६] 211) 2. 16. 3 €. -- ए0९्ढ नका €०६ (101४१71. 1. 839: ‰८ 20४ ऽच्कछापद्ुक्कव्छा क्वकल्कष्त- व्व | प्रववकवा/ वा्वद कद्यः509व॥ ०९१6९ 17 5०१; 1010. 770. 424, 786. -- @&. 1,११द्रर्४६इ79 (०११0१8४ ¶. ३.) 7. 48: कव्छवा० . . , पद्क्काधकः 20104110 74८८४ | ‰॥वद = ५12 7021व7470दा0व7 (14)160१०१0 काच ९. -- 21606 त1806४00 एणाः 1410ददढ 1४ 57४४. - ©]. ०९६४६६7४ 1. 18 (प. १४८०४).

8) }/188.; 51129 (5116११५ ?).

6) प्रणष्ट 701. 8878801, ४. 72 7016 2: शद्कठकव्िद्याव, -- 88778087. 8. 12. 18; $ दइ 8 १71. 18170. 480. 4 (प्र. 1, 38. 84),

->--29] प्रथमे प्रकरणं $

0), टेतिर्मत्यध (2) ( (3) त्यथः प्रतिः प्राह्यर्थः उपसर्गवशेन धालधविपरिणामात्‌ '

उपसर्गेण धावर्थो बलादन्यत्र नीयते ( गङ्गा्तलिलमाधुर्ये सागरेण यथाम्भसा ' प्रतीत्यशब्दो (5) ~ ~ 3 (6) ४.१ त्यशब्दो ऽत्र ल्यबत्तः प्राप्तावपेन्नायां वतते समृत्पूवः पदिः प्राइभावाध इति पमुत्पाद्शब्दः प्राइभावे वतते ततश्च हेतुप्रत्ययापेत्तो भावानामुत्पाद्‌ः प्रतीत्यतमुत्पा- 5 (7) :॥ तिम = (8) (9) [> श्रपरे तु ब्रुवते ' उतिर्गमने विनाशः ' इती साधव सत्याः ' प्रतिवीप्तार्थः ' इत्येवं = [न ` (10) तदितात्तमित्यशन् व्युत्पा ' प्रति प्रति इृत्यानां विनाणिनां समुत्पाद्‌ ईति वणयत्ति

© © 1) (0. “* " " @. 010६). 4. 35, €६ 17108 6.7, 7,6. -- ए0णाः ॥०ण४९ ९६५९

01860880, &077087९2 4 7 11 1877 81 0 ¢ 8४२.) 148. १९ 19 8०८. 48. 911. 2352 844. -- प्रण प१1६०0172९९28, रषा (.2.7.3. 1891, 2. 187: 78 8 768 प९९ 88८९ 18 &1ए€ा1 {0 {€ €00816€781701 {€ पणात्‌ [४८८४8 प0 508}.

2) (0. पुति, 4971400. 1६, ए. कव्‌, तकाव ‰४ शकद्‌ वव 14.8.11.

8) ^ 91101. 1६, ₹. दण्थयाल्7दक 1 काददथवु, . 11व ९०547 4क्‌1 11क0४7द6/0- वल ४४ 0/7 [४- काद] ववकवकाका १(17धएदं 170 19/411740॥ द्यूव दुदर.

4) &. 81418748 पपत7, 2 पा. 4, 18 (प. च४८०४)).

8) 78. पा. 1. 31. - (7188. ११/०८).

6) 4 0110. ए. ए. ववा 5 7त ४४ ददन्‌ 5411द/ 9 १६.

7) ^ 9010}. ए. ४. 27५1४८7४ = 27274८5८ क्7कछवा 17कि१/540 १102 वव.

8) ©. २३.1४. 4, 98.

9 तस्यः €]. 811. 1. 4. 90. 8 ०1048६1 ९1६61, 016. 8. १०५. 774त7८ (244 02).

10) €€॥#९€ €3]11८8॥00 तप्र 0६ ‰71/ ९8४ ९९116 वण€ ए7०० प०ाइ & 60008176: €]16€ €8 &{॥10०6€ 124 1 1141870 ४०८४१. (90]. 284 0 1) 7711० - 80706 8 परता त्ा४ (71150108 (पि 388. 7. 281; ह1.7.67); 1०४7०4८ ६1०१ 0.628 (1010. 81568810 12९16880 ४0€{क९): ०१४८ वौ चह =, 00 कदवव्ष्८ (द्रत वा "चऽक्7@ . शक्द्छ्वल्य्काा ववापकाःक्द्कदक्ा॥ 54१९९52) 101/2041020104/201 १४710411 1८८72 श््र$द . रक 4८01 17 क" 0/8 =, चक 44 5द वावत धद . {04170 ऽका ४४ = ‰८-21014/44/410 , ९१50१ 527 ९द१ , ११4९८517 20200 2/0" 1707 . 54001-१८00847401 5०१407/7/ {7409 (/०1ब&/ब , ५६-0९बा ‰दता, ॥१द १107 दएका"~ 10.11.11. / 1/1 (1/1. 11/11/1111 11/11... ९०४८४ . ११/10 ०११०९९०१ 211 54१14४द्‌/९1001{ कद 07व09(4/45८1000410दतव7 , १0 ‰2(८बव्‌ 07001014 ९८ ५६१ 4व/५{८ 5400{124104/4111द.

6 प्रत्ययपरीत्ता नाम [१४

तेषां \प्रतीत्यतमृत्पार्‌ वो भित्नवो देशपिष्यामि , यः प्रतीत्यतमत्पाे पश्यति धर्म पश्यति ! इत्येवमादौ विषये वोप्सार्घत्य संभवात्‌ समासपदरावान्च स्यान्यायती व्युत्पत्तिः। इर तु [४] चतुः प्रतीत्य दरयार्णि चोत्यते चनुर्विज्ञान \ इत्येवमादौ विषये सातताद्‌ङ्गीकतार्थविरेषे चतुः प्रतीत्येति प्रतीत्यशब्द्‌ एकचतुरिन्नियरेतुकायाम- प्येकविज्ञानोत्पत्तावभीष्टापं कुतो वीप्ार्थता प्राप्यर्थस्तनङ्गीकृतार्थविकेषे ऽपि प्रती-

1) वभ). ठि ; 1088, ए०व एकत००,. , - -- (066 कलणाद९ जिणणो९ (- , , क९-

६८/८४ का) == 8४70. प. 1. 1. 5. 2. 13. == ^ 01100. ए. ए. (2862 6) . . . . १7४5 21411240 (त (810) ९४5४० व/१50 का प१46. . |

2) 1.6 & 2118187 088 ४78 (2०१. 10० रणा, 01. 1909, & ^ ००149. ६. १. 2819 9; -- १०१९४ 10 8.‡ €, ‰€ला€1८}0€8, 218 ०. 2) 16 €॥€ िणपा€ कलषछणछ€; .41/1051001 (2110५110 1104011760/4101 ९०व7१5व{९401॥ ९दव क८०८वय (त्मका ४९ 107४८, 21क7९/द, 00वदकटवमक 075 ष्व = उनका पवक वदः 0, ए्हव्वक, 1.1.011... (1111. // 1... 1. ९१वव7 1009 १॥/ ५19त 011444९0 ४6११ एवफकष्छव. , . -

९6 गिाण]6 €8६ 00066 17 6 (6080 1008 80 छा. 16 गृ188 14410004; 0णाः 18. 86606 816 (० वावा १का , , , 8 ए४दवककाा)) (60). 1४1 ४६४४४६३ 91; 18 (10108. €), 121 ]) 9711170 5? ४8. 60 (प्र. 01469678, एत). 870. 677), 897 ~ ए०६४४ द. 1, 120 18), & 88११8४7 78887&200 62, 3 (उ. 2. ¶. 8. 1890); 11060६06 तप 7017004 61 वप्र 07445 क70१कदद ००प्§ 68६ 6000 प९ षय 21110178 क, 4. 191. १.

8) {978 ९68 व€् ®€ा01९8) 16 ०४ 1४८ 0976 तपण ९००86, 0 €+ ]प्रं कर्पण्ला पा 8608 18: 1€पाः (९5४ = व्यव्दुक्छधो 62ा6द्षत्रणा €्7010614प6 एष्य कप 16619016 (1४द/वकः == दिवन).

4) 11606 अह प्राण€ा+च्ना 4 1114). 1६. ए. (284) 5); 00 व४/ धऽ ९४व्ल- 11/11 711 1 11111 1.11, 3 117 1... (वक 1717 7 क्ष्य ९०0०८ (का १४४ १210000 ४42 १00 0४ 17वककल॥ 5१50 [कुवलयं बव्कद्छद्‌) उककब्छवयं$ क7लणक्ं , ववष क्क्व १४ 11704 ००0बद्‌/क८ दवाऽप्एदिकाष्वा॥ ४/ ववा ०१0 0८११४६९, दण€। ९8४ ९6 1211 8887 ६] 5१४३४78) ¶प९]इ 800६ 1९8 80768 {62168 (कद्ध: 18 0501- १६०४87१8) 8906१०88] 7248 28801180 88 {78} 01860168 0808 114 01141. 1६. ए, ९४ 0000868 भप्र कलाल, 008 688816710708 06 16 4776 0808 ४९ 06 7016 -- 8०१1078 {0पदणिं8 16 हाला; (व्यध व्क चक्क ९०10 व/का८ क१० 214904817/0 017 वद 51८ एकलव्यं (4 01100. 1. ४, 2279 2).

8) 1,€ 0. परक्तप्ोधः ववत क्वः (व 1क9त, -- पभा९ण०8९8 16660668; 887. दै, [ 2. 72 ऽप्ोप.) 1४. 33, 67. 86; 01111949 56. 26; €॥€,

6) = वगद्येसपदेसः 01100, ०0700/000400001. -- 1.6 8608 06 66616 0071886

68४ €018116 धय. 16216४00, 7. 8, &.

-20] प्रधमं प्रकरणं 7

(1) (1) ~ = त्यशब्दे [1१४. 8४] संभवति , प्राप्य भवः प्रतीत्य पमृत्याद्‌ इति श्ङ्गीकृतार्थविेषे व्येति ~ 9) (3) द्धिताते ऽपिं सेभवति ' चतुः प्रतीत्य चतुः प्राप्य चतुः ्ेच्येति व्याव्यानात्‌ ॥' तदितातते चेत्य- शब्दे ' चतुः प्रतीत्य पाणि चोत्पग्यते चतुविज्ञानं' इत्यत्र प्रतीत्यशब्दस्याव्यपलाभा- = -& = वात्‌ समातासद्वावाच्च विभक्तितो सत्यां ' चुः प्रतीत्यं विज्ञाने पाणि \ इति नि- (8) (य व्युत्पत्ति्‌भयुपेया पातः स्यात्‌ चेदेवं इत्यव्ययत्येव ल्यवत्तप्य व्युत्पत्तिएयुपेया (6) वोप्तार्यव (7) [७ (8). [५ (9) स्तु ' त्प्रत्युपसगस्य ' एतेः प्राप्यथंलात्‌ ' समृत्पाद्शब्द्स्य संभ- , अशी (1) ११. [कप वाधब्ात्‌ ' तांस्तान्‌ प्रत्ययान्‌ प्रतोत्य समत्याद्‌ः प्राप्य सेभव इत्येके प्रति प्रति वि-

४) = तमु 2) भेगृ गृङ्गृसि प्सवः = न्म १000) जमथाकक,

8) = देवयवः (94 = पधा).

4 == पठेम प्श 9०९ 1 पठेमुमुस 16 18 {पपार १6०६००४९) 1. 8. --

68 16 80-018870४ 21616 76768606 [लं 18 गक ता८८ (क्प्ल ; १नई 68४ [१४- 0166 £€०पता (== ४४),

8) == ४0 [पद्टणन्न णिक, 11९ दणाभ्यति [4 ४९]; 710.; सतुष == #2{70, 16600 8 नं08 8088 एाक8ंऽनाा]91९.

6) 1. द6द् 0681706 १6 81 80 पाणाक्नि€ धदभा 9४7 © 8178171 ४1 €8॥ €6 इ€ण]९ 808१2१1१ ९12 (879१), ४०९46 12 21 2108}07847709पात्121720}1 ४788 ए४४ (&४०१]०7, 10० णा, णा. 44 ०-- 2990) 1816 १००४ ९8 16 6860४ 88886

(ष्कऽनलावणकं , . . ४४ ०११/९) (01. 459 8). 06 गा 12016 1प॥6168881116; हमर रयि पननकुर बसु पसग बे मुहन वसुदे सगुणी श्रमे रुषि 6 पमुप डुमर | ` ` ` 1९ 46 कपु (== ५454१00}.

7) 110# == मड

8) = युविष्प, €4०९४1९7४ शलं; एल्‌ 70४ »€ €ण् €०ः68नत76 ¶०४

909, &. ०९०००, 10८. (५.

9) रैप

8 प्रत्ययपहोत्ता नाम [४०-

नाशिनामुत्पाट्‌ः प्रतीत्यपमुत्पाद्‌ इत्यन्ये इति परव्याब्यानमन्च हषणमभिधत्ते। तस्य =) = वेभ्य ( पर्पत्तानुवादाकौशलमेव तावत्संभाव्यते किं कारणं पो हि प्रार्थे प्रतीत्यशब्द ` व्याचष्टे नापो प्रतिं वीप्ार्धे व्याचष्टे ' नाप्येति प्राप्यर्थे। किं तरिं प्रतिं प्रार्थे" समुदितं प्रतीत्यश्द प्राप्तावेव वर्णयति ~~ दानो 9 9) ~. ~~ 5 तनदानं प्राप्येभवः प्रतोत्यसमत्पाद्‌ इत्येवं व्युत्पादितेन प्रतीत्यतम्‌त्पाद्श- ~~ ~ ~ ~. (3) (+ ~ व्टेन यदि [1५.49] निरृवेषतेभं विपयार्धपहमर्णो विवत्तितः ' तदा तां तां के- (4) प्रा + तप्रत्ययतानमों प्राप्य संभवः प्रतीत्य पमुत्पाद्‌ इति वीप्तासंबन्धः क्रियते श्रय वि- ~ (&) = + [3भ]शेषपरामशः ' तदा चतुः प्राच्य ब्रपाणि चेति वोप्तायाः संबन्ध इति एवं तावद्‌- नुवादाकोशलमाचापंस्य (6) 4 ~ (6) (7) = ~ वि 10 एतदा [रघुकत ' किं * घुक्तमेतत्‌ ' चतुः प्रतोत्य पापि चोत्पग्यते चनुर्वि- (7 दः गि ज्ञानमिति ' ्रतरार्थदयासेभवात्‌ ' इति पइक्तं हषण तदपि नोपपय्यते किं काणं

1) 1.6 (10. 11४; 27४5110 दवव्4टवदा. 2) भि == 50101211484 == 5८104८04,

8) 54१११८४१, क. ६. ए. पठदानो) = पद्वक्ष व, 1950 (4 90140. ४, ए. 2321).

` बुपेडगु

6) 110. 162२ = १८४५.

6-6) ग.

7--7) 29118, 0816. . . , शप्रिद्यवा 8४ कव कदा एकक्छल्व &4- वव, (णर, $कतकान्ाकवकृककण्यान्कत , ,, वो0.: दे्‌ मे मृ | ॥।२॥ नि पतेम भगु हम पपे (2 9 वेसृसुनसयर्देुमुषाेषु भेद पर" 168 16€0€8 1661768 १४०३ 8 12 2१1१९1४ (01. 45 5, 8१९८ 18 8616 क्ष 2116 पुग दमन == १०2१४), ८९ 8४88286 801६ 168 €> [0116१००8 एक०वपो॥68 ण्ड ॥कप४ षा © 21त78117४1 (0. 7, ०. 6), 0766646 एः 168 ००४8 कनन पमुप; ९168{-2-4176, 11116 शलटणला६, क-0क८म४; 66 (ला 6 त6ं क्षा ४०६ 3102 8२1१618,

19प्रप्टणाः 1पंणला6, 29 0008० चप वट कड ११४८ (7, 7, 8. 1). -- 2. 9.6.

8] प्रथमं प्रकरणं 9

कथमनि तच तत्प्रति] सभव इति युचयनुपादानेन प्रतिज्नामात्र्ात्‌ श्रयापमभिप्रायः त्यात्‌ ' श्रद्रपिादिज्ञानत्य चलुषा प्राततिनीपिति ' बपिणामेव तत्प्रा्तिदरणनादिति

एतदपि वुक्त प्राप्तफलो ऽयं भितुः' इत्यत्रापि प्राघ्यभयुपगमात्‌ प्राप्यश्दृस्य चा- व्यश्द्पीयवात्‌ धराये ८.८ श्राचाधार्यनागान्नुनेन प्रतीत्यशब्दस्य '

(०९ (3) तत्तत्प्राप्य यड्त्पत्रे [नोत्पन्नं] तत्स्वभावतः ' ~. (९ (९ ~ (5) इत्यभ्युपगमात्‌ [ततो द्रषणमपि नोपपग्मते ' इत्यपरे = -गचन्यायितं (7) ५. = यञ्चापि स्वमते व्यवस्थापितं कि तर ^ शरत्मिन्‌ सति इद्‌ भवति ध्रस्योत्या- (प) (8) [क (न दाद इ्मत्पग्चत इति इंप्रत्ययताथः प्रतीत्यतमत्पादाधं इति तदपि नोपपग्यत ' प्रती-

1) 2188, ८7001 १८४ ९(2)01 01९5 4000010व 1.9 16लप€ €8४ 0108 4९ ००४- प्य) व्वा 1९ ग. £ भेम रसु रगु मपणसस "= मा

०7४4 (== 54101014 2) ४८४ ४1/१9 तदद्य 2) 70970788 16 (11. 21209/९1/0117105/८ ९४८ पृ गमे 9२ |

38) ५४6 १४०8३ ३१12 81४2.88 प्र) 7४2 28 (क४व्मष्व्द्यःा ४दद्वकयी धक) = एप ४४३2११1४ 71४2, 20 :। 040 णा. 91. 28 1).

4) भविन 9 | गमते गगन $

४) = ०8 8१7९8 . , , ©. 19 0676 {गाप्ा€ 01. 10 & 1 ०6 © ]. 8, १००९ प.

6) 6९ 8४888९6 (0) {क72 , - , 0 वद्वरव्काषणएदवद्छदव) इण [०6४46 णालौ 0878 28108 ?४१1९१618 (90). 489 5) 1४ 2019886 6166 8प४ 2. 8, 1016 ¶.

7--7) €#€ {गणाप्]6 68४ €6116 ¶ण6 प०प8 11808 १३०8 16 & 2 118४8 7988. (0877188 1100 9}: दवद द्वनव्मावुः [ 107 क्च/4501010 कव] 2 270८5400; कव6 श्व [4 ६4८0; कवा 50४, १०१ 20कष्या, 459/010कवल्व चवा ९0वद/९], ‰बद ४4८0! ०१/07 ४4/द् 501015का क्‌). . . . . . 1.68 7018 €0४6 8676868 7907168 16 110.; 118 "भावप€०४ 08118 19 ल{क्प्णा 4 00140. 1. १, 2819 2. - €8॥ १००६66९ एपऽ €071616 १४8 1/1 812२ ४8१ [1. 2885. 7: ‰८द शवक; 9745/4 5क10, ध्वदाा ए7कथव्; १0500 080६0, १९द१7॥ १0 0114४; ‰0905/010दवदकव एवकका ५{10वद्‌6/01८; ‰01045/८ १४५१० द्द्‌ १०९१ १17४ व7/व॥ ४४ , वण्वद्व्यूम छन्‌) 50715 . . . 4 ९6 ४6३४6 86 इपर) [086 001876६ 2 2110172 पि. 11. 68. 96.

1.68 €ड]1168110908, 4 71141. 1६. १, 284 9 €४ 288, 800४ 101616888168.

प्०6् 8ण88 3041016, ४. 307. 9: कद्व? 117145291€0 ‰कव्‌ कडा इव , . . ( {11.८1.13 1 1. 1.4... 1.1 1.211.119 1.10. .॥ 12४0 (0४ १८१८१६५. ~~ 2. 8०401. 9. पा. 27; नं-4९880०8 911. 15 9 101४. 478 (णा. 15)

8) पष लमत यः चि पदेषु; धर या. 314. 4; ०0४१९. 1, ००९ 249. 19; &0114678, 8. १०५. १८८‰0८८व्छ४द; ३४ $ ०४४४ पि. 1. 25; 3११२१४१४7९. 8

21. 1. (४80. 4 ०8६००, 1901, ००४6 188) 1#

10

10 प्रत्यपपपतीत्ता नाम [8४-

त्यपमुत्पाटृशब्द्योः प्रत्येकमर्थविशेषानमिधानात्‌ ' तद्युत्पादृप्य [7;४. 4] विवक्ति- तवत्‌

्रवापि ब्रश प्रतीत्यतमुत्यादशब्द्मभ्युपेत्य शरएएयेतिसकादिवरेवमुच्यति तदपि नोपपन्न ' श्रवयवाधीनुगतस्यैव प्रतीत्यतमुत्पाटृस्य ्राचार्ेण '

| तत्तत्प्राप्य यत्य नोत्यन्न तत्स्वभावतः' इत्यभ्युपगमात्‌। व, ` शरस्मिन्‌ सतीदं भवति करसे दीर्ध पथा प्ति '

इति व्याव्यायमानेन ननु तदेवाभ्युपगतं भवति , क्वं प्रतीत्य स्वं पराप्यं कस्वमपे- त्य दीर्घे भवतीति ' ततश यदेव [8] दूष्यते तदेवाभयुपगम्यत इति युश्यते

इत्यलं प्रतङ्खेन

तदेवे हेतुप्रत्ययापेतते भावानामुत्पाद्‌ परिदीपयता भगवता श्रङेवेकरेतुवि- षमकेततमूतवं स्वपरोभयकृतते भावानां निषिद्धे भवति ^ तननिषेधाञ्च सांवृतनां पदुधानां पथावत्थितं ांवृतं स्वद्रपमुद्वावितं भवति एवेदानीं पांवृतः प्रतीत्यतम्‌-

~~ ~~ 1) 2188. शष्छ्व्वण्; (9. पुष्‌

2) पिर दगुषयनेश्ं . एइ १०९४) 8. १०८. १८८; ०0086 ४४ -

0042 (8. १०८. ‰०0% 8). ~ 871 28291072 118, 7. 543.

9) प. पगम पतेेगु षि, - ©, ए. 7. 1. 44.

4) वप). 11६. वकर 1४) व5४य 704८. . . -- 6000. 1497 8१४ ~ 278 59. 9; पष १8१४८४8 [प्र 1. 39, 1. 1. 41.

8) 6०0}. ए18०११1728९8., प्रा, ४४त. एषः 21767, एतत, 2. 169. -- ^ 11401. 1. १. (2817 7): ‰० ८! , , 0 वचद्वडव्मात्वन्‌ , . ऋ्लुव्लपव्णद्ावण (== ४470177८ क्हवद्वा) पवक एकद्रव्य , ,

6) इषाः ऽवथा उद्व, द. 1 ददार. 8 शफर; 7010. 8. 95; 8०४1९. ‰. 7, 106 8. १०९.; &118. 264. 8; 88811161, 298; €7०) भाण्डा, 127; 114 678, 8. १०९. 50210008. -- &10 1४ ढ7६. 217 (6 दता भण इत्४ 3४. 8

€8{ &1€ 218, (०णण. 1. 10); 82087 (6. 1891) 372. 8; १6५. 10१४7 286. 99; 2 {71 8६९६६१९ ४१११९1४ (€. 1878) 84. 19; 8 ह. ए, 01. 15.14 80 1. 157.

-8४] प्रधमं प्रकरणं 11

त्याटः \ स्वभावेनानुत्यन्नत्ाद्‌ घ्ार्यज्ानापेत्तया नाप्मिननिरोधो विशते " यावत्राप्मिनि- गमो विश्यते ' इत्यनिरोधादिभिरष्टामिर्विेषगिर्विरिष्यति 79.४० यधा निरोधा- द्यो सत्ति प्रतीत्यसमुत्पाद्‌त्य तथा कलशाल््रे प्रतिपाद्‌ पिष्यति शरनत्तविशोषणेभवे ऽपि प्रतीत्यतमुत्पाद्‌प्य ' श्रष्टानामेवोपादानमेषां प्राधान्येन विबादाङ्गभूतवात्‌॥ 5 यथावस्थितप्रतीत्यतमुत्पाद्दषने सति ्रायाणामभिधेवीदिलतणस्य प्रपचचस्य प- वधोपमात्‌ , प्रपञ्चानामुषषमो ऽप्मितनिति ' एव प्रतीत्यमत्पाद्‌ः प्रपञ्चोपशम इत्यु- च्यते चित्तवे्तौनां तस्िन्नप्रवृ्ती ज्ञानज्तेयव्यवद्धार्‌निवृत्ती जातिनर्‌मरणादिनिरव- शेषोपद्रवर्‌ हितलात्‌ ' शिवः॥ | 10 वघाभिहितिविशेषणस्य प्रतत्यतमुत्पादृस्य देशनाक्रियया ईप्तिततमलात्‌ क- मणा निरदृशः खनिरोधम्‌नुत्पादमनच्छे्मणा्रतं खनेकार्थमनानार्धमनागममनिर्मे यः प्रतीत्यतम्‌त्पाटं प्रपञ्चोपशमं शिवं 15 देशयामात तंबुदस्तं बन्दे वृतां वरं ॥'

1) 1५ 86 1866४ १४०३ 1€ 110. 168 62116208 0101668 [0108 ४8४ 7. 4, 5-12. 2) 7020168 110. ५27140८0 ककत्वाव्काव्यव्य$ववमव्6 दका 547४170 11.1.11 8) 21004060, 210100८० 4/4४, &. 108 1. 6, रणा. 9. ~ , 4) ऽणः ९68 व€पड ॥ला7068 €† ]€पा एश6पाः (्लोपावृ €, €. 1009 1870 171 776 (लव, | ९०५50); 4 00140. 1. १, (7 11810178, ए00वत096 9])0218, 1. 5 €४६ 71. 8. 2})-

0604166); 821१ 8027८. 8. 20. 9; पि १३१४01०4 14. 4; 4020422111 84 8121. 8. आ. 2. 9,

8) ¢ २.३०. [ 4. 49. - 77. चिद लुः पकम 9 7. गुप सन ततेययमन्ुर | नषुगुपमेस भपय | कु

12 प्रत्ययपरोत्ता नाम [30-

वथोपवितिप्रतोत्यतमुत्पादावगमच्च तथागतत्यैवैकप्याविपरीतार्थवादिलं (४. 5४] पश्यन्‌ सर्वपप्रवादां् बा[+*लप्रलापानिवावित्य ^ ्तोव प्रतादानुगत ब्राचर्वोभूषो भगवत्तं विशेषयति ' वदतां वमिति रत्र निरोधस्य पूर्व प्रतिषेधः ' उत्याट्निरोधयोः पी्वीपयावस्यायाः तिद्यावं 5 ग्चोतपितुं वत्यति हि ' पूरवे ्ातिर्धि भवेन्‌ नरामरणमुत्तर नर्भहामरणा नातिर्भवेन्‌ जयेत चामृतः इति तस्मान्नाये नियमो यत्पूमुत्पादेन भवितव्ये पश्चाननिरोधेनेति'॥ इदानीमनिर- धारिविशिषपरतीत्यपमुत्पटप्रतिपिपाद्यिषया \ उत्पादृप्रतिषेधेन निरोधादिप्रतिषेध- 10 सोकर्ये मन्यमान राचारः प्रधममेवोत्पादृप्रतिषेधमारभते उत्पादो कि परैः परिकल्प्यमानः स्वतो वा परिकल्प्येत ' परत उभयतो ऽचतु- तो वा परिकल्प्येत ॥'तर्वघा नोपपग्चत इति निथित्यारः ' स्वतो नापि परतो दाभ्यां नाप्यरेततः।

~ (6) उत्पन्ना जातु विच्यत्ते भावाः क्रचन के चन

पेय दगुणेमम | तममेगुन ततृमिमुत || ब्व भगु

यमेः वेः यथुमेय | ह्गृसपतिसनसकुस सुमे | मुम दुत ङगु `

रकयति || 0 7. ` ' मुगुससुद्ुपु पतिर | 2) 4104 == पवय

£ 9) 16४ 7. 3. -- 1058. ननद णद १११० -- णड व, ठम पन, 4. मैय नु न, 4) (10. द्यं तवयपाव च्चणः एव्व तवव्यद्धा१०१द१॥ 0 बदक्. ४) 16 16716 [1066046 १6€ 18688109 1002 उ. 1.

४. यगु्सः मेम बुकुषिस' मेम्‌ | गस ममु भे

(५) [८

4

[~ ~

श. (त.

~

= - प्रथमे प्रकरणं 18 ` तत्र ज्ञाविति कद चिदित्यथः। कचनणब्द्‌ भ्राधार्‌वचनः ' कचिच्छब्द्पयायः। (नस - केचिच्छनद्‌ ^ (1) =. किचनशब्द्‌ श्राधेयवचनः ' पर्वीवः] ततश्चैवं संबन्धः ' नैव स्वत उत्यत्ना जातु विच्वत्ते भावाः कर चन के चन एवं प्रतिज्ञात्रयमपि पो

नन्‌ ' नेव त्वत उत्पन्ना ' इत्यवधायमाणे परत उत्यत्ना इत्यनिष्टं प्राप्रोति प्राप्रोति ' प्रसव्यप्रतिषेधस्य विवक्तितवात्‌ (7). 6०] परतो ऽप्युत्पाष्य प्रतिपेतस्य- मानल्नात्‌ यया चोपपतत्या स्वत उत्पादो पेभवति ' ता

तस्माद्धि तस्य भवने गुणो ऽस्ति कथन्‌ रातस्य बरन्म पुनरेव नेव युक्त^ इत्यादिना मध्यमकावतारादिहरिणावतेया

1 (न + ८१ ~~ ५५

+ | 1 1] गुनु | मम प्न (ममतम | -- ऽ््४ €8४ 6४6 8०016. 2. 1. 242. 4, 347. 3, 368. 8 800 28188. 17. 5, ०६ 18 {7686 68 1००९6९०४ 6187011९. 11 ९8६ 10॥67688३7६ १९ (० 18 प786प्ञशणा वप्र ति एद -8 चा78 [्र. 1. 22; काकाकका0 00 [वव्यदयवऽ४द्वादव्यदकष्; पक्क प्पे - 2}811 1. 4.

४) 7. पुन] रेसःयुः परेः 3 पिगु | सुम रखयु'पःे के दमस गुन्मन | -- 4८100१44, @0फ€09176 १6 21} ०8४ (0० प्या, णा. 34119: ुनुगुं सुसमं पुरस्नरि पनत |

2) गण. भेषु सुगुगुयः पर्हुपय्दददय ; प. 1, ए, 8. १०९. ०४ (2१० 87/47 114115८7, २४४. 2१ २80. 1. 4. 52); 7 ४1०९४ 8. १०९.) १4771 78146 ०1/१7 (प्व 67ब{0 १1४), 57154201 @एव = (@व0 १८ ८ब{4); €. 7 81188. }. 369; 80871211 299. 2; पि एढए ४४. ५2६}. 252. 19, 496. 11, 511. 11; ४. श्र ०६. 199.10; == ०6६9४16 8808 18. -- 2616 81611810 0808 80 ४१1१67४

(01. 488 3); ५५९ रेणे मेसुद्पगुगु ति पि पत्नि | स्पुगुषः पर‰परियैर | 3) == ४418०81१ 2{878 ए. 8. - १०९ धप8८००, 1900, 0. 230.

14 प्रत्ययपरीता नाम [4५--

(1) + वेयध्यी ~ ्राचार्वुददपालितस्ताक्‌ स्वत उत्यम्रते भावाः तड त्पाट्वैष्यीत्‌ \प्रतिप्र- ~ (2) ~~ [9 कु. सङ्गदोषाच्च। कि स्वात्मना [40] विश्यमानानां पदार्वाां पनहृत्पाट प्रयोज्ननमत्ति। खथ (प (न (8) पतप नापेत ' कदा चित्र जायेत ' इति

>~ (4) -_ ७) (6) तरेके षगामाङ्धः ' तदयुक्तं ' चेतुदृष्टात्तानमिधानात्‌ ' परोक्तदोषापरिष्टाराच्।

1) 1.४ 21801 27818१४६} 06 5०८११३7 211४8 (100; ४747811४ १,४]1६8 19 16६6०46 ०९ दक ्८कष 7800, 1. 2. 187) 86 ४०४९९ 0205 78०4}0ण्य 2100 रणा शा. 178--817. (87215102 60081816 प०6 क्ष्मा त€6०1€ @ण॥€ ९6 00८९४ © 81721777 (. 148). 1.6 [४888 &6 7शु70वपा॥ 16 81668116 16्ल €०४ 00 1626 १6 8०१११४7 211४8 0]. 1828 1. 6): 6 १6 मदूणाक्डवक्रलः ०००8

82१0118 (1410212104व517 दद ९४ 19 {106; पयि 1 भेयुसयमः गेपः मे दमे ~ 1.४ 766 06 ५९8 प6९पड़ एष्षा21€8 68४ 6000066 एषाः 8 1 8 ४१११ ९1६8 (101. 4619-4)

पणा कद०तप्र# ए0णा 16 6०02176, 16 79180106060# १९ ०११४8112; रिद्‌ गुणने (= ए८०११४०३11१9) सूस हम पपु गोमु मयस (= श्वाणकू) नै नेमे |" ` | शप सुगुवमेपम, रुननिन | बस इम भरम्‌ | देष देष मपम | ूमक्गुममर

2) 1188. १0881. -- 050 024९ १४०३ 11).

1 पेपर्‌" पयुनयनिदुनः गेम्‌हुषगुसयति छर | सूदमर्ये वरगृषो सपण पय्ुमसनमे 0न्चैपत पूण मेद्‌ रः एथ य्‌ ममम भेग्ुषन्‌ मेनु | |

©] क्ष6ढ 12 त186प881070 16 18, 8१४18 एक, 0808 8 ०१११९. 12. 2. 241; 801 881४2881) 7802 ९४ 4 11020. इ. ए. (9. 2827): पककवड्व ष्का" वव(कथ ‰्‌009/ कादा द्‌/द09 ०1404517 2/01454706ब1 , व४7/८ 11176 154१८ ८१11 2114" ५14

04/2८ ४१/ 15014541. 4) €6 == 80१8१1१6 - 24421.

5) 70. पृमर्गृम मूर सपे सपदि + युढ्षेसः सुसयमि फेम मयसमपनिडनन्‌ | वुभवननयु्सयतिः शु 0मुवरिर | प्मोदमुभसः पन्गपसः पुरिकः पगु पदिनुमुमन्म्‌,

-49] प्रधमं प्रकरणं 15

प्रसङ्गवाकयवरा्चं प्रकृतारधविपर्येण विपरीता्ाताध्यतदर्मव्यक्तीं धर्स्माइत्यनराभ्रावा जन्मताफल्यात्‌ ' अन्मनिरोधाचचेति कृतीत्तविरोधः स्यात्‌

सर्वमेतदरूषणमयुत्यनाने वये पश्यामः कथं कृवा ' तत्र पत्तावड़क्तं केतुदष्टात्तान- भिधानादिति तद्युक्तं किं कारणं ' यप्मात्पर्‌ः स्वत उत्वत्तिमभयुपगच्छन विष्यमानस्य पुनहत्यि प्रपोननं पृच्छ्यते स्वत इति केतुवेन तदेव चोत्य्नत इति ' विष्य- मान्य पुनरत्पत्तो प्रयोननं पश्यामः ! श्रनवस्थां पश्यामः वयोत्पत्रस्य पुनज्‌- त्याट्‌ इष्यते ऽनावस्या] चाप्यनिष्टेति ' तस्मानिहपत्तिक एव वद्‌: स्वमभयुपगम- विहृति [70.6४] किं [तन्मात्रेण] चोदिते परौ नभयुवति पतो सतु ्टा्ोपादा- नताफल्यं स्यात्‌ श्रध स्वभ्युपगमविरोधैचोटृनपापि पटो निवर्तते ' तदपि निलञ्ञ- तया हेतुदृष्टात्ताभयामपि नैव निवत चोन्मत्तकेन सकाप्माकं विवाद्‌ इति

तुव प्रर शुम्भ ~~ न+ प) 51 नुप मन | मुग(सोपपिपनयु नप्‌ दुन | म~ सु गनि ~= ि

नप निजुनन | ~ एभांश्ष16 1808 एए १९8. . शुग पपुपरि्गु १९ [णक76 €वृ्ार्भ€ण 880861४: 2145494०]. 007097९ 168 1४883९68 7812118168, 1008 901. 10४.

6) 2088. ०7 कद, -- 26086 €616 त¶९प्ह6 0701९८0४) 18, ३.

1) 719. == ०४४2. -- 2670086 > ८९४४९ ०76८४०४.

2) 2788. ०४वद्च0, ०९४४2. ~ 700101-0द5 == ०१/०९.

ॐ) 1188. 2८110400110.

\।

4) {10. = 54479८2०; १6 "676 1008 80 14, 5; 7818 812१8१1१ ४; ०६२7५ ~ 14117811170त1ह{ 06 ९0768107 ४8 7. क€-०४ "7 प९(३)-0४.. .: 818१४१1- ४९2 111 17५4-8 ए९€ण 66 2५4-02 (42/05).

8) ¶10. == १८९८४.

6-6) 8०4०९ १४०३ {1}.

7) ए्व्वणण््दम). -- 1188. ६०2०0तव०7. -- ग. ठिमस्गुे रुप,

#; 8) (ष्ण. प्त ८०4९; एभ8, ©816. (षव ४४ ९०८. - (17).

उमृ गीष षडर

9) 1088. ०५47८८04 7040/क, €. 19078 11. 14, 13. 5. - न06ा€ पपकत 0 06709४76 4१] €8† (णान्रद्वाल््ण . , ,9.

नै

10

10

16 प्रत्यपपरीता नाम `

(1) त्‌ ¢ „~ “~ (2) तप्मात्‌ प्रिपानुमानतानेवात्मन घ्राचार्थः प्रकट्यति श्रस्याने ऽप्यनुमाने प्रवेशवन्‌

(8) माध्यमिकस्य स्वतः स्वतन्नमनुमानं कर्त युक्तं पत्ात्तरयुपगमाभावात्‌ तथोक्त

__ (~~ (9

मापदेषेन

सर्सत्सर्‌सच्चेति यस्य पत्तो विश्यते। उपालम्भ्िरेणापि तप्य वक्ते शकाते (9) ~ विपरहव्यावर्तन्यां चोक्त ' [5१]

^~ ^^ `

यटि का चन प्रतितता स्यान्मे तत एव मे भवेदोषः। नात्ति मपर प्रतिज्ञा तस्मात्रैवास्ति मे दोषः॥ यदि किं चिडपलमेपं प्रवर्तयेयं निवर्तयेयं वा परत्यतादिभिधेस्तद्भावान्मे ऽनुपालम्भः इति यदा चेवं स्वतच्लानुमानानमिधापिवं माध्यमिकस्य तद्‌ कृतो ' नाध्यात्मिकान्यौ- पतनानि स्वत उत्पन्नानि ' इति त्वतल्ला प्रतिज्ञा पत्यां सांष्याः प्रत्यवस्याव्यतते (1१.

~न, 1) 2188. 50/५7 11४८०. -- 4 2) 1088. ‰१०४९०४९1%५ %८ ८४. -- 110. (©> वनम 7] म्‌ 801४: काका) ०0५) 4१7 (19161, &6717&प60€0} 3) 10211476 09118 "17. &. 1778 16. 11, 18. 5.

4) ४६] ८४५१6 इश. 25 (78४०) ०प, 14० उणा, 9. 189) ~ ण्ण 17 ०६6००, 1900, ‰, 2. 240.

8) 8181668 29 80 (7 ४०} 0 प, इरा, णि. 828४), १०१९८ 86०१, एवल, 2. 217. == 27110, 1251. -- 11६॥"€ & 1 8.

6) 1188. ६८4९504.

7) 2788. %1€. (०1९८५००8 १6 2. प्र. 86०71).

8) 100. 8. उशा; 0114678, 8. १०९. (क नव्य द्सुववद्छाा) ऽकाद्ुक- {१५11492}.

9 7. गुतः गुरसठुमुपन्गुषोस' उनन्‌ ये पननम 0५०. 47४11711 र86 1916800 १6 81 ४१११९] 2; ००प३ 18 1९70व078008 4818 80 €08€717016:

भ्म | प्रथमं प्रकरणं 17

| चिं ५)

7०], को ऽयं प्रतिनतर्थः ' किं का्यीत्मकात्‌ स्वत उत कार णात्मकादिति कि चातः ' वावात्मक्राचचेत ¢ [न्द्‌ तिद्वताधनेः' (न

्‌ \ कार्‌णात्मकाचचेद्‌ विरदर्धता ' कारणात्मना विग्यमानघ्यैव

(2) रदेन सुपे सगु र्यु्स्य मे मुमान्‌, मुरो मकमहमस कवुगुधिस ज्व भेदय रसम | पिन | प्पेन्य्‌ः ममम

रब | 6

, 9 गुम (0.4 गुतगृरूगृस एमिवषेमु मै मेमनुमेपते" युगुसप्स हिणुत सतशमुपस गुमरगुसपम ममम नम्‌ | मेमयरिब्रिर्‌ मेम ह्गुय मेम्‌ पस रत्‌ सूर समसत तिस प" मे | 0)

रिसुर्‌ गुर्सरुढुसगृुभिस [गहब छगु पयत | पयस ५; (== ‰& 1 07वा्र 11010. -- 1784९: 5410051/00 {4701८ ९दददल्द ४); ९४ €ा8प् +€

शवेन पत्नय मपवे पदगुचिस शवः स्म गुगुगृ पनि [जुरिपम करेयम्‌ पर वगुकरगृमुबुयुसपत्यसः युन श्जैप मवि | जस पवष गु मुसदनिमकमषममर मुवः पसवन पनन पन तिस 1 मेः, 8४ 1 भद्णाा€४ १6 2०११) ४70211६2 10४0वप एष नरे 6 गुक्‌] गे

(*०१९४ ?. 14, 11206 8 १€ 12 11016 1)

1.9 0072986 (2--8) ९8४ 7€70वपं४€ एषः © 87 18111४1 1078 2. 2४. 9-- 26. 1. (४-) = णववाददणक्व वदः कवप$वकणकाकक्दुणावय्ूक्वव्कद्ः १व 76000 ८९४ . ०0 द्छक्व्‌ ९४0 {1410 (१५४८१ {10कव 11८ [18९] 5व#एका1द ९240547. ==. 1/6 [प ए0- 0086, पव्वकदव्मएका, ०7९8 7४8 6, 18766 वपन 06 076 [28 व्या कट फोर 808 १6 €6 [€प 176 भत तप गष $& [8१81४ प) 2012]. -- 4 ९6116 090९८४०१, 110 76000008; 11 ४?ए़ 2 288 - [06008780 तप] फरक {209 [पष 0९६] 126६भरत १९ ८९ [१६४] 77 801४6 १९ 1४ 001 €1816166€ [१९ ०९ भः§8 |: १००९ 1 ४8 ?९९ €& पणां ९४106 16 भा६& [दवार क्पाद्वप़ दक४।३0द्ध01] ९४ ५०९ 61086 [62188016]. | €--€) = #2 ` {कव ए7ददा-दा11, रवद = {कात ९वाद्, तावद गद्द १८४ द{0904- एष्व ०११४८07 च्ल्व ०४ १10 व्क पद्ध ९१/48 (वद्व(धमा6०११८०॥ वकद ल्व 9 40547. == 14 भाद पाला प्ण १९३ इदप ए98 ९81 7ोकषप् ए8186; (दा 10 ०0प8 , 01008 ५०६ पफंा€0६ ¶प€ 19 €)086 ०21886 ९6116 ०6706, 2० व417€ ¶प€ 1४ ©1086 ०1 [72118४7 918#, &€8॥ पालः वपला€ प9४88९ 16 807 0प वपां [लका 16 दह्ाःक19४ 0768६ 106वप्€ कण [द्धा४,) 01 त106ा6॥ वप दहा]. कणश 1266016 ववदध्व्य्छुवध्यय) 1 ९8 [कृष्व्लाश्ा6. . , .

1) 2088. 1 द्वध इव्यव . , , रद्वा |. . . गद्वाव्पव वथः. . . |

= ५१ = [77 ~~ ~ "१. मुग्‌ ॥९। ॥, ॥। 1711 (९! (6) , गु ६।। षै + 1. 5 | रुबरलय नत्रम मुन पम्‌ | म्‌ सल 2) 71 €8४ वक्षि पप€ 1४ ५7०86 ०768४ 2४8 [70तप४6 क'ना€-फटण6 १४0४ वृष्टे 100४९. - &. 21. 9. ~ दमण). [क हपाा6ा2॥00 ति क़ हक ४६ 2०१६४1१, 197. 10. 9

18 प्रत्ययपरोक्ा नाम ७५

^ (2 तिद्रसाघनं सर्वस्योत्पत्तिमत उत्यादादिति कृतो ऽस्माकं विच्मानवािति 'केतुरपत्य [सिद्रसाधनं

विहदार्घता [वा] स्यात्‌ ' पस्य तिद्वताधनस्य यस्याश्च विहदार्थतायाः परिकरार्थ यत्नं करिष्यामः तप्मात्परोक्तदोषाप्रसङ्गिव तत्परिहार प्राचा्यबहरपालितेन ५) व. पनीपः ` |

श्वापि स्यात्‌ ' माध्यमिकानां पत्तकेतुदष्टात्तानामसिदेः स्वतच्लानुमानानभिधापि- तरात्स्वत उत्पत्तिप्रतिषेधप्रतिक्तातर्थसाधनं मा भूडभयसिदेन वानुमानेन परप्रतिक्षीनि- करणं " परप्रतिज्ञायास्तु स्वत एवानुमानविरोधचो्नया प्वत एव पत्तद्ेतुदृष्टात्तरो-

षरङितः पतादिभिर्भवितव्यम्‌ ततश्च तदनमिघानात्‌ तदोषापरिकाराच्च स॒ एव |

दोष इति

नैप सुरः शचुमुयकुमससमु मे कुवम्‌ रुः पड किम जैपनि यै. ~ 818९2४1१68: श€-08-60 ... 110-08-128. -- (भः ०प।९8 1९8 ००8९8

वणां ए7€ा€ा६ 1381888066, एला1९0६ 7818858166 [0९11€8-067168], ए0णा ण+80॥ 4'९11९8 €218॥€0४ 808 12. {0706 १6 ९४०३९. -- 1.४ १०८1९ ०9६८0 १€ 54415247 १९ ०५447211 €8४ €2 8111766 €1-0688008 }. 21. 11.

2) %0{/0101211010क॑ €8४ 0808 110 0011686 तप 6०0४8 ताल€णाः 16 6 १6 €+€ 51011017 तप 21 241 ४701168: 94 दका व्तक्रक४ . , , (16. 11, 26. 1).

9) 719. सुयिपर. मेः रुद्र

4 7. पहुदुपन्युष् पमु |

5) 0ुष्न०ण, 78०8 5-9.

6) 1.6 गए. 11४ कपु, 00 7895 [70 लक ४7९.

१7) पृग्ष्े पुम्परुरपनि नो हेससुषुपगुपस, न्षुयप' वर्हदय्‌

[11.11.111 8) &†‡ 1 2. 21. 18. -- ए९प४-६॥6: ९८०दकहद्ला॥ 50वद , , , <, 9) 7079788 (1. -- 2188. वश न्पव्छवाऽक्ान वन्‌. -- 5९4107 (> १५५) 2,

1€णा' [0४४ १6 एप€.

= प्रथमं प्रकरणं 19

अच्यते 'नेतेवं किं कारणम्‌। यस्माग्यो हि पमर्ध प्रति्नानीते ' तेन स्वनिशयव- दन्येषां निश्चयोत्पाद्नेच्छ्या पयोपपत्यापावर्थो ऽधिगतः वैवोपपत्तिः पर्नीवुपदेषटव्या तस्मादेष तावत्यायः ! यत्पर “तेव स्वाभयुपगतप्रतिजञातार्थताधनमुषादेयं [5४] चायं पटं प्रति [हेतुः] सेतुदरष्टत्तासभवात्‌ प्रतिक्ञानुताएतयैव केवलं स्वप्रतिज्ञातार्थताधनमु- पाएत्त {ति निहपपत्तिकपत्तामयुपगमात्‌ स्वात्मानमेवायं केवलं विपेवाद्पन्‌ शक्रोति परेषां निश्चयमाधातुमिति ! इटमेवा्य स्पष्टतर्‌ट्रषणं यडत स्वप्रतिन्नाताधसाधनाताम- यमिति किमनत्रानुमाम॑बाघोद्धावनया प्रयोनम्‌

1 पे ( (व घ्रवाप्यवश्यं स्वतो ऽनुमानविरोधदोष उद्वावनोयः

1) 6700086, 11068 1--7. 2) 2188. 425101दव ५७८०, -- 11). 1 - (60णश्य€ाः पफ 2१ ४१४1१81), 1968. 18, 666 ५-046880प३ 7. 28. 0. 3, 1. 11.

3) क. पवि = एणप९०१४, 1० पा्)४, -- एणा ५-१०७७००४, 7, 28, ०.३.

(१४ सेत मोप गिग छर कम्‌ | गकम सुर सये मेदुर र, ननौ) दमपररवमिः सुण पन्डगम [पस वकिसयनिः दिसु नतन्सयः रपरविगु' पम्सवणुसि एमे |

वध8 12 फला 191800 07९73{6 798 ला ९९ वृण पल्ल [वता : ]0रलाइभ १९, पणं भीप्ा९, वण एगफल, -- पणा 788 16 11 0 87118; © (४४९ 16 कृष्डडलणलः

8्ष० 60४ €इक€016, 1४ एए€परठ वप 60 ण४६ाप् १6 88 010009० 0161806 पप्€ 801 09- 81108107 2118676, 11 ११०४6 णण वा5द. . . -

8) 10. मेद == 0502001\4४८, ०1 कए,

99, ~

6) 2088. 5एद/07कद्द्ाद(1द5दाकव/कएव = (९९व्यवा॥ = 5४01व पदाता द17000

९१740116. , देस सुमुपगुपस == 014411211€144. 8) 1.6 7. 8णएप 6 4050 ९४ 11४ 5४८0५114 (रने " " ; €. 10078 2. 21. 6); 66

वप 7€ण€ण( 0606; ल] ९00४ दवालणा णादला6 2 0076 191800067016019, - (धनं 68 प्र06 एल्ाक्ाःप 6 तप्र 6०08 वा66 प,

20 | प्रत्ययपरौता नाम

सो सप्युद्रावित एवाचार्ववुपालितेन [कथमिति चेत्‌] ' स्वत उत्यचय्ते भा- वाः , तड़त्पाट्वैयध्यादिति वचनात्‌ श्न हि तदत्यमेन स्वात्मना विच्यमानस्य परामर्शः। [कस्मादिति चेत्‌"! तथा हि तस्य [तेयहेणोक्तावाकयस्यैतदिवरणवाकं 'न ` हटि स्वात्मना विग्वमानानां पुनहृत्पाट्‌ प्रयोननमिति श्रनेन वाकेन साध्यप्ताधनध- मीनुगतस्य परप्रतिदरस्य साधम्यदष्टा्तस्योपादानम्‌ तनन स्वात्मना विश्यमानस्येत्यनेन हेतुपामर्शः। उत्पाद्वैयध्यीदित्यनेन साध्यधर्मपरार्धः॥ = `

तत्न यथानित्यः शब्दः कृतक्ीत्‌ कृतकमनित्ये दष्ट" पथा घटः ' तथा कृ- तकाः शब्दः ' तस्मात्कृतकलाट्‌नित्य इति कृतकलमन्नोपनयाभिव्यक्तो रेतः

1) इपु)18 }. 14. 1.

2) 2188. {70 18 50 ४६4 ८१९4. . . वप). गु ठेसयुप सदेः ञे नबो र्पुफम म्‌ " " " व८-वन 6011९8]001व 2 ८-24-४ (1९१) 19 00986 666- 06016 (८52१ %10240000441170/@}.

8) 2088. {17८2 7४ वक ५९1 = ‰५४व्द/45#4, . . . . + {वद 0४ ६4544. ,.... ६८17द ॥/ 8/८... . -- 1781-1] बाला 110६८ एहक्ष्मा; {454 74761@ == द€ €~ 010१४ 16 70४ ४४९ ? -- €. 18 ०06 16660606. ~ 1.४ 768 ्र॥प्00 68 0१०06५4९ 88) प6 8प्राः 16 (06090;

= ०५.५५५ तरु =. वेसु भुम मदुस्पद्बुपतेः लगु वेनि रमयति नगु एमि == {10 ; १4 1४ 5४01411 ४१व्‌/49102170}॥ ,॥११41410दव< 00वुकावावा॥ च,

54011:5९0 वर 11514540 ०द्ा/45/८ ६८89/क ९९०१४८४9. -- 1.8 7007986 110 ‰४ 50211410. ,,,,,,,.. १००९ 1€द्राट्ढत्णा १6 ६ददव4०4/7 व्य -- (कद्व, = ध. 1108४]. 23. 1: &८{10दद्द0॥ 11094100 5417411/ 0).

4) 810 0. ~ 2188. 4111 ४... . + 7818 ्. 0. 14. 8.

४) एर्€ाा016 पपं १0०6 पा 688 ६०४1९0९; 5747१4८ == 50त7वद ४८द४कद- १८70८; 5271 = ५{240६८४117/८ ; 12111: 16 निं १९ एष्6णताः6 6०0४१6६. 18101.

9) 7. सुस मेदटगु पनिद = एषम 7) 1188. ००४10. 1790168 वभ. ००४१ २66०7 2१९८ प््तव्पकरण्का. तिप, ˆ~ == ०4114/, . ४71 88. }. 265,

-69] ` प्रथमं प्रकरणं 21

एवमिकापि ' स्वत उत्यग्चत्ते भावाः स्वात्मना विग्वमानानां (10. 8५] पुनह- त्यादवेय्यात्‌ ' इर स्वात्मना विन्मानं पुरो ऽवस्थितं घटादिकं पुनहत्पादानपेतं दृष्ठ तथा मृत्पिएडा्यवस्थायामपि यदि [6१] स्वात्मना विग्यमानं घटािकमिति मन्यते तदापि तप्य स्वात्मना विमानत्य नाप्त्युत्पाद्‌ इति एवं स्वात्मना विग्यमानवेनो- नयाभिव्यक्तेन पुनरत्याटप्रतिषेधाव्यमभिचारिणा केतुना स्वत "एव सांव्यस्यानुमान- विरोधोद्भावनमनुष्ठितमेवेति

तत्किमुच्यते ' तद्युक्तं रेतुद्टात्तानमिधानारिति

केवलं रेतुद्टात्तानभिधानं संभवति ' परोक्तरोषापरिछररोषो स- वति। कथं कृला ' तांब्या ठि नेवामिव्यक्तव्रपस्य पुरो ऽवत्थितत्य घटस्य पुनर्मिव्यक्ति- मिच्छति तत्यैव चेक द्टा्तवेनोपाानं सिद्पवात्‌ , घ्नमिव्यक्तदरपस्य शतत. पापन्नत्योत्पत्तिप्रतिषेधविशिष्टताध्यवात्‌ कतः तिदपाधनपन्नोषाशङ्का कुतो वा रेतो. ्विहदाधताशङ्कति।

तस्मात्स्वतो ऽनुमान[वि]रोधचोद्नायामपि यधघोप्वितदोषाभावात्परोक्तदोषाप- रि्ठारपेभव एव ' शत्यसेबदमेवेत दूषणमिति विज्ञेयम्‌

1) 7. -फयोस हस"

2) प्रभ प्र }. 14. 4. -- 0" भुणट2े8 (10. ९व्रवक 0 १५... .) &. 2. 19, 9. 8.

59 देरैपं स्वर, प्य्ैस सु" गुपयतिन्क0मु पतिर, च| 1०००५ 0740471 17९8 128 {1204 पा४.

4) परभष ऽप2 0. 17. 2.

8) न्नी हे ससु'्पतगुपसः निति पठ्‌ (~ == 5०2114001204९14 ०४१०- व104011४41176/ 2 2108.

6) 2088. 40520117४वत, ०7 द्वक४ब्यद. 10. == १0०5210 010447 4.

¶) ब्व: (1). तविं (१०९1) == 168 ¶९प्र ए76पालः€8 ०016८0०8, ©-01€8808 7. 14. 4.

10

~ प्रत्ययपरीत्ता नाम 1 (

घटयटिकमित्यारिशब्देन तिर्वश्ेषोत्पित्सपदाधसंग्रहस्य विवक्तितवाद्नेकात्ति- कतापि प्ादिभिनेव सेभवति [7५0. 9]

श्रथ वायमन्यः प्रयोगमार्गः ' पुहषव्यतिरिक्ताः पराघाः स्वत उत्पत्तिवाद्निः \ तत एव \ स्वत उत्यच्चतते \ स्वात्मना विश्चमानलात्‌ ' पुरुषवत्‌! इतीदमुदारणम्‌- दारार्थम्‌

पग्चपि चामिव्यक्तिवाद्नि उत्याद्प्रतिषेधो बाधकः ' तथाप्यभिव्यक्तावृत्याद- | शब्द्‌ निपात्य ' पूवे पश्ाच्चानुपलब्ध्युपलब्धित्ताधर्म्येण उत्यादशब्दे 60]नाभिव्यक्तरेवा- | मिधानादृयं प्रतिषेधो नाबाधकः॥

कथे पुन्ये यथोक्ताघाभिधानं विना व्यत्तविचारो लभ्यत इति चेत्‌ ' तड़-

1) 2788, 40८1८40209. -- ¶10. 2) 150 == 8476८ {07{5५0कदक7 (वक वदद), १८0४ == 5०19 ०६व/१07ा४ णच्छ) 1511८ == 2010 (८५5१८८१५ 07ब ददवव.

3) 1144040, €. पि ४0194 { 47. 6, 48. 4. -- €€ ००९९४ ००५९ ॥6 व<फ्णा- 81121101 €07[1{€ 16 7280106ा€ा1{; €॥ 1000009० €{&70116 97 16 8 2 10 2 (5६व८ ९104114८ वा) 60116 1€ [1041050 ९४ 168 १68 ववद्छ7द5, 0९7९४ सल्ला 1'ग्लध०ः ५016 72180006ा€0॥ €8{ टएव्यृदा९व&/१) १००८ ९520117 51908, [पांव प€ 16 वक्रय ९8॥ 57४८.» [०16 १6 ॥. प्र. ९०01.] ~ ४71४ 8. 7. 305

4) (10. ०7161 ददद ९४. क्प्ा-] पाक्ष 668 त्प ०8? 60 १०४९. ४) 20188. {१५७८४८८१ ५५4९ ; ०८८व८(१९य१ ५९.

6) 25८ == ८7८४» 11९६0 == 5०014104 %८द्‌/4070क४का) काक्र == 0४ १८50.

7) 10. == १८ एद दाबका, -- 168 70818805 १९ 1 कषण (पका ि8द्क्िण ०0116 61086 वषा 63816 भा{कंहपाला6#) तप 46 1४ २6५९090 06 14107कदद ०९ 168 21610 [28 : 1008 0170718 १६ 1'4एफ्णछक ९९6 पप6 ००प§ ४7008 १९ 1410दवद, 1076 00९0 ग6€ा8 (०४ 27847199). -- €^ 8 ०0016. {. 12. 184, 185; 66 एश - 80016761 €8४ १६१६०76.

8) 2088. &417071ब्‌+ 5४74100 ०1008 5174001 ०१८70. 1.४ €0्पिशं00 अकव == 810 {764प7€1{6. -- 10. (7 दुर्भ [थ ह्विपनदेरुपमेम्‌ प्‌, मम शि = | - बु ~र ~ र) | १0000004700

५1.21. -- ०९/०5८०४१८द/क) 66606 शवहपपालाप्0ा 10 6260807

प्रथमं प्रकरणं 23 च्यते ' भर्धवावयानि' तानि मर्ा्थीनि यथोदितमर्धे संगृ प्रवृत्तानि ' तानि व्याव्या- थमानानि वधोक्तम्ीत्मानं प्रमूयत्त इति नात्र किं चिद्नपाततं तमाव्यते#

्रसङ्गविपरीतिन चर्विन परस्यैव पेबन्धो ' नास्माकं स्वप्रतिन्ञाया भावात्‌ ततश पिदततविरोधासभवः \ पत्य पावदक्बो टोषाः प्रसङ्गविपोतापच्यापग्मते तावदृस्माभिपूमीष्यत एवेति

1) 88. वव च्वलाण श्ण, कप. न्मु रभु म्‌ दबकेयर्येरय्‌, परमुपसः == ,. -पकाभं ऋवा्तवतद्व &0४0कका. . , .. ~ 14४ ९४०86 ९8६

16 ए88०760€ा†# 3 ०११३7 2119) ध-१९३88 7. 14. 1; 16 द्द्छद्कक वण 8676) 6'68॥ 18 णण] 0९ & 7] ०३, 7. 12. 18. -- प्रण 016॥. १6 8६.- ९668090) 8. २०९, क1174एकद्‌द, 17/74. =

2) 719. 8 सप | १. . , 000140कक9द, , , 5010177 दध्या, -- 5॥ध्व

0408.16 7606 €07101, ५80. तप 2010 प, 20 2. 8. 8. 8.

3) ०6 0१678816 €8{ 116 ए6 गण०० वणं, 29 600864८6 10९) €8॥ 60708 वा भ16€ ; 728 ०08, पणा 02070018 1160... ... {+ €]भं तप्र 74540445द- 47474 (€, 2. 15. 1, 19. 1, 6ं-१९88००३ 10{8711160४ 011. 99, 109) ९8४ 6८४ १8०8 18 ४४०१४17, 198. 19: ०1०८01९: 74507445 दव7 4110494 १वद१; = 2705011445@दद74- 26100 %@ 5४८१ ब5057द112020/ 002 क/41९) 14001 ६४ 1745/21045{ 7१021 172009; 472 शकः ९क १८व८०7/0क4क7दधवकाकया" ९४८ क04117दव00 9, (470 दव {0090॥ , {11व 27411106 ऽव वद्" १140615 4१द/क, 14 ९४५1 47व‰ = 11419/4४व5{7 ८१४ काव; ` ववश्द्कदवाक क74191ददद4/0, १274110 5८05१वद7659 ०104 1९50 0770दव/क च४ -- वव ९१८ आव; &६११॥ 10705400450 04000900 @11141019049)8 ६०द०११८दद्‌ ४८ ‰दव्‌/ ०१४, (एत १४0 वि 811 7 111 11111111...

[८/1 71, 1/8... 23 1.1.111 1.1... 1 11.11 1.144.111... 01 ` १९५००07 2/25 4/2 57४5 १/५ 1471110 द14001211051/4 17011८९0 . . . . ,

1.6 7454704 71680 28 पा 52 व747द; 17452770 ‰४ १@ 5दव7474909, 7९/07" व्फ7कछक् ; ४०7: 4546 7054940 १0 12509445@24710914701 (क फ़ ४१ 7६. ६847. 407. 97).

16 27840 8711718 06 60€ाल€ वप फरट्6 800 ३087176 ९०08 वालप्णप ४१९५ 1पा-76706; 1] ०28 77 27 वाद्वुद 9/९ वणं [ण इना 0700168. ©€8॥ 0 ९८] ०6. 69०07811 1600८586 1€ १4४0०4५ १6 8) ४१1४९12 (. 16. 12 17172 7. 25. 9). ˆ 82१8९1१९] €६ 801 €6०16 (कष्व्वधा प्र) [160९046४ 6907 18 1686 १८ कका (पि हद] ०१४) €1-168808 12. 18) एधः १९३ शाहपपा€ा18 [0678001618, 5एव{क४11-द. ` 8०११) 2} 211४8, ५0 १९8 2164114 9:45, '€काम€ १०९७ 16 793०ाप्6ाला६ 9 17820- श706 (८105/21946{ 04904). 1.68 १९३ €601९8 १०११९५४ 16 0०7 ६6{6 0]ए0शंप्िण हणा 16 (लकं 10&14प९. ©1€8॥ 66 ¶,४ एप 88811167, 7. 820 (381) 90, 1718176 १०९1१०९8 16818108.

णा 16 १5१4८, #. प्र प६५. 199. 116, 8४1४8१27 48088, (४४. १४०३ धप- 8607 1901-2) 7. 13 ४५6 भ्र.

4) एाप्ड 1४४ (द्द (7. 15 ०. 4) ९०४6 16 व्रा,

24 प्रत्यपपरोत्ता नाम (6४- ` कतो न्‌ वल्वविपरीताचा्नागात्रुनमतानुाहिण ब्राचा्नुद्धपालितत्य सावका- ~~ 4 (1) शवचनाभिधापिवं यतो ऽप्य पटो ऽवकाणं लभेत निःस्वभावभाववादिना पत्वभावभा- (1) (न्य विपरीत ^ (2) . (3) ववादः प्रपङ्ग श्रापग्बमाने कृतः प्रङ्विपरीताधप्रसङ्धिता दि शब्द्‌ ग॒एडपाशि- . 4) ~~ कि (४) ~. ~ का वक्तार्मस्वतललयत्ति " [10. 9९] किं तं सत्यां शक्ती वक्तर्विवततामनुविधी- £ यत्ते ततश्च परूप्रतिजञाप्रतिषेधमात्रफलवात्प्रतङ्गापाद्नत्य नास्ति प्रसङ्गविषरीता- ` {~ [न ( ~ धीपत्तिः। ` निमदेतै , कि क्ष (न, तथा चाचायो भूवता प्रतङ्गापत्तिमुखेनेव परषनं निराकरोति स्म ' नाकाशं विग्यते किं चित्पूर्वमाकाशलत्नणात्‌ ५4 .॥ (प) श्रलत्तं प्रतम्येत स्यात्पूव यदि लतणात्‌ 10 दपकार्‌णनिमुक्ते पे पं प्रप्यते

नक (न (8) शरहेतुकं चाप्त्यथः कथ्‌ हेतुकः चित्‌ तय्वधा \

1) 2188. ०१740१7, ०1177१2 ; रा. 8040116. {, 190९ 8. १०९६.

9 ग. सुयपतरस' पंगु पति" दुरम रु - पुनिम गवि चुः = ११०- 3411९000 १७८१ 7व॑21014501440 ८९ ; 80710, 1607600६ 168 67068 61010768 एण्ड १६६ (0. 28. 8): 1व5ककरक दाक 54१04१7 द0145470् ब,

3) == नाप्त १€ प्रप, प्वपयलयं १४०8 16 06८7०. 2.99, €. भ. 1. 7. 8. ४०८६, 44१0000 7{414, 41470८0८.

4) 2188. कडध्वककााव/ का, -- (100. सपनमापमेपर येष 6 परमस |

8) 91188. }. 338.

6) एिण8 18 + ९तक ४2 (28.4) = ८. 7104 ०0170८ (24.8) == ४,

लः पु नुपप; १6 1161706 28.4 ८/८ == निव. -- ८711४,

षणः पढ 20158521. 2. 1: कव्व क्का) चक्कर . क, 709, 210 80141 . &41170704दा7/40120८ (7४71८ (1140 1117 1705 द् 4/९) 50 11174179.

"10... 0.9: :

8) == 1४. 2. ~ 1/9 1९लपा'€ १6 (078 168 188. 68६ क्ालौष्कका) कान चदद; 06 71676 17119. -- 281४. २१२१९१४३ 18. 9 (7८ (66 एष्य 4. च. 87067९१, 4१४ 19८81819 76. 1016 9). -- 894705त111219 14.89, 288६7870 21270811701९८९८१ द्ग 16.18, 21217 ठ} ढ7 2712 256. 18, 278. 9, €॥८.; क्छ (उक).

-79] प्रधम प्रकरणा 25

भावत्तावन्न निवापो रामर णलक्तणम्‌। , ^ परसव्येतात्ति भावो हि रामणे विनां इत्यादिना ्रार्ववाकयलादाचार्यवाकयानां मकार्थते पत्यनेकप्रपोगनिष्यततरेतुवै परकि- ल्य्यते ' ब्ाचार्थबुदपालितव्याष्टानान्यपि किमिति तेव परिकालय्यतते श्रध

व्यादृत्तिकाराणामेष न्यायो [7५] पत्प्रयोगवाकयविस्तरामिधानं कर्तव्यमिति

एतदपि नात्ति ' वियरव्यावर्तनया वृत्ति हताय प्रयोगवाक्यानमिधा- नात्‌॥ श्रपि चात्मनप्तर्वशाल्रातिकीशलमाजमावि[धिकरर्षया).घङ्गोकंतमध्यमकदूर्शन- त्यापि यत्स्वतन्नप्रयोगवाक्याभिधानं तद्‌ तितहमनेकदोषसमदायास्पद्मस्य तार्किकस्यो पलत्यते कथे कला [तन्न] पत्तावदेवमक्तं ' [धरत्र] प्रयोगवाक्छे भवति ' पर्‌[मार्धीत] `

1) = उडष्. 4.

2) 18 ण4€पाः 46 1४ 76867016 प्र. - " " = प्‌४९.

3) गरुग = ०/५,

4) {96 806 ¶ण्€ ०076 214०८ (6-१९88०प8 1. 9) 8010 ण्ड्06. -- ९8 16 करवाव) 50 द्ध एद एए672) पण 2 19 08016. - तासु == भद 22/4191€,

8) 2006106 5970188 16 (19.

6) 2088. ०4११४४20, ~ परण 2. 16, ०. 8. - 1.8 4४19100 रपा, णि] 188-186, ९8४ १९ 2287} ०४.

प) ए. 09५. गुव्छतवः, (वण, वक = गप. मैर्‌

8) 0858. गाकु 0०. ग, रमेन्‌ पशुम प, निर्य == ०१९1८१04 (001८८५14 द.

9) 2188. $ (क्छ्व्व्‌ कव $ धद्व 20 वु०ववशच्छकए्य वद एक्क, वप. वु सोश्३ | तेर पुव डु | मुव पत य" + पदेषु वसदस परम्‌ | छिन 06 ए15१78१1१९18४,

760700४ 6-0688प8 7. 17, 1. 1 १6 18 ००६९. %*#

26 प्रत्ययपरीत्ता नाम "क

श्राध्यात्मिकान्यायतनानि [7४.9४] स्वत उत्पन्नानि ' विग्वमानलात्‌ ' चेतन्यवदि- ( विशेषणमपाटी ति किमर्धे पनत परमार्धत इति यते

लोकसेवत्याभय॒पगतस्योत्पादप्याप्रतिषिध्यमानलात्‌ ' प्रतिषेधे चामय॒पेतवाधाप्र-

^ भङ्गादिति चेत्‌ तरतशयक्त तेवत्यापि स्वत उत्यच्यन*य॒पगमात्‌। 5 यथोक्त सूत्रे ' चायं बीतरेतुको ऽङ्क उत्पख्चमानो स्वयेकृतो परकृत नो- भयकृतो नाप्येतुपमुत्पन्नो नेश्चरकालाणुप्रकृतित्वमभावंमूत इति तथा बोनस्य पतो यथाङ्कृरो यो बीत चैव बरक श्न्यु ततो चैव तदेवमन्‌च््‌ श्रणाश्त धर्मता इति 10 इहापि बत्यति

प्रतीत्य यग्चद्वति ङि तावत्तदेव तत्‌ ~~ ~ ~ ~ (5) चान्यदपि तत्तप्मात्नोच्छत्रं नापि शाश्रतं इति ~ (6) ~~ न~ (1) परमतापेनं विशेषणमिति चेत्‌ ' तदयुक्तं ' संवत्यापि तदोयव्यवस्यानमयुपग-

1) 2188. @2{010/0४दव४४. 2) प्रणी 1002 उ. 8.

3) 0808 16 &ढ 118 ४87 088४78४; एणी 8041116. {4 20 12. 142 @. 370. 23). 1188. 219. 10. -- 1.6 (0. [६ (नुवर १क व्रदावककाद्छा0. , , (०6 16 © 2118४.

4) 1,2.11 ६8९18876, 210. 8-४; ९66 8166 €8६ ०६६6 2 1. 28, इषा. 20; 11८8 8. 288. 10, 239. 4 ९४ 168 एला्ापृप्€इ # (0८. 606 2112177 ४. 4९७ इप्ा8 17692016 वा 16 ¶प४प्पल€ हत8 (188. ८7८वव१४ वदद्ुषवीद)) 2 0008 १९ 1176 %((०५व711१बगद -- 6८ पणं ०6 ए४ [98 8808 010€णा€.

8) = रणा. 7 (श्र, १०८९८द0). 0 ०; गुम 1 प्रि गृग्षे 7) गर्बृभे

-7४] प्रथमे प्रकरणं | 97

मात्‌ सत्यदयाविपरीतद्नपरियिष्टा एव दहि तीधिका पावड़भयधापि निषिध्यते ता- वद्ण एव संभाव्यत इति एवं परमतपेत्तमपि विशेषणामिधानं यन्यते

चापि लोकः त्वत [7] उत्पत्तिं प्रतिपन्नो यतत्तद्पेत्तयापि विशेषणपाफल्यं त्यात्‌ , लोको छि स्वतः परत इत्येवमादिकं वि[79.10५चाहमनवताघं कारणात्कार्मु- त्यत इत्येतावन्मान्नं प्रतिपन्नः ' एवमाचर्वो ऽपि व्यवस्थापयामात ' इति सर्वधा विशे षपएविपाल्यनेव नि शीयते

श्रपि पदि सवृत्योत्पत्तिप्रतिषेधनिराचिकीर्षृणा विशेषणमेतइपाटीपते " तदा स्वतो ऽतिदाधे पत्तदोष घ्राग्रयातिदी वा हेतुदोषः स्यात्‌ ^ परमार्थतः त्वैतथतु- तरव्यायतनानामनभ्युपगमात्‌ '॥ सृवत्या चतुरादिसदवावाद्रोष इति चेत्‌ पटमार्घत इत्येतत्तरिं कत्य विशेषणं सांवृतानां चतुरारीनां पर्‌मार्घत उत्पत्तिप्रतिषेधाद्‌ ' उत्प-

तिग्रतिषेधविशेषणे परमार्थपहणमिति चत्‌ एवं तरछेवमेव वक्तव्यं स्यात्‌ ' सादृ

1) (7. प्मृतसकेम पमुप, गृष् वां द्०ािप्ा€ 1४ (16५४९ 4५१८

(४6 श€णनण४ः &%104 द८व = ०54४४९1 वट). 09 एणा त्द्वपाः€: . . , ४ण881 101 &0}8 118 (10 ०6 ५०६ १४ 0160. -- ५१7८2/ब7 == १] 9 १] | > 2) 2802१8ए1१618?

3) 10. == ५१४५174१. 4) 27495९द7@ 0214 १808 ¶10.; €ण्वटणाा€पौ [एय वाहय,

8) 1/9 1९6९ १९8 1188. 21681 88 ९0818716, ¡6 1708 30. 10. 15 (०57वता@- 004०, ९45६4100 1८५८९). 11 विप, 16 6018, 176 वक्दकान्कान्लवय्‌, 25८० (€. 28. 4

०051470 धद €. 911 88. 309; 8 ४0. { 68. -- 1110. "7 | ५१०१

| दुख सपर | गनि मनुपयनिः गृ सगरे चुत | च्‌,

2 90 १७ एण€ तप्र कत्वा ष्णा३. 6 ०१८९७१८ व्व्रका-वद ०6 ए€प( पषण १९ ९5/0८ 84०९ 18 61086 1162318516 [28 07071क्द्द}; १७ 616) १8०8 12९28९1 6188814९) 4०44१ 1६ 10४४8 प्र6 ०0-61086.

6) 19. नबो, मुम्‌, १५ ¶) 200 प्र€ 49018 (1.

10

28 प्रत्ययपरेत्ता नाम [7४-

= @ ~ [क ( )>~ तानां चत्ादीनां परमार्थतो नास्त्युत्पत्तिरिति ' चैवमुच्यते उच्यमाने ऽपि पर्वस्तु- ५०९ परतो सतामेव चलुरादीनामभ्युपगमात्‌ प्र्तप्तिततामनम्युपगमात्‌ परतो ऽपिद्धाधार्‌ः पत्तदोषः स्यादिति युक्तमेतत्‌

सरथ स्यात्‌ ' यथानित्यः शब्द्‌ इति धर्मधर्भिपामन्यमेव गृछते विरोषः।

1) 2188. , , , 7४९0 5200 , , , 0 दु वठरः कीद्कालद्छ$ष्वदकन्, शमु धर पन््वयर्थषुगेष `" हसः एमपकरेदुत्‌' प्ुरसपिदिम्‌ मर | ग्गुसपर एमुयन [पसमप्ुरसनिदठेर्‌ | गुभुमुषि "^

१0245 == ४५5८) ९१९४८ (1. 2), पालि, 7681 इप्र8197166, एतमा (उ ४8९१1६९

8, १०९.); 8011 ४व५३क नृ0शंप्नना @ [0 प्प्रद5क; 0010108 0 प्॑दणिंह ¶प6 एडम (. 81. 12) {78वण# [ृष् > -- 1404018, ४. शष &88. ]. 229 (1176 8208 १०९

ग्गुस 0208 16 28826 0180016 16 17.) 6 281. `

वव == 2170८141, 14. प्र ०४. 245. 98. 94. -- ए0 पाः 16 8608 4०९ 16 10101 [0168606 १8४०8 0076 [028826) »०17 ¢ 11६28. 257. 7. ¢४व्ण्वल्याव्काद्ाा द, @- शकदाल्ुककााकाा) उवट) इक्क) [र द्विवयूद्ावाा. -- 197६ ४६272. 30.16, 39. 5 (०72). -- 80०4016. { 270. 6 ((श्वणाल्ाद). - 01६0४ त. 12. 58. ४८द 0 (दः [045400कर [041 4१0/0 10८४०द्छक [कच 40174८0 ४०7४ वदऽ वा४ 1४. -- 1111049 25. 11, -- 0]. 168 01688108 %७2व2/ 11/70, ददद 21/90/011८, 6 -१6880 0३ 701060४ 011. 65 9, 840, 909, 102 2-} 8१ > ४. 3 (01. 1659).

4. ९6 पणा ०,& ¶पप6 €ढ186066 06 7818010, १6 ६०0१७0०0, त'€गालकषन्०ा, 80 7०86 16 ववद वह वयं) 7४/कक्क, ०८३08 (फर 888, 281, 81 27207 13. 11).

2) 0" 168 ३68; गुममेन = [00 108 20९61881768; पनयित (५. 18 1016

©1-468878 29, 7, 8). ~ णः [भा [00114066 १6 12 {44410 अवक १6 19 5०० 78044704, ९017 19 01860881071 &-06880प8 01. 97.

१०१९2 1४ 101 (पि 2 $ ४४. {. 68) 45/45 कवदाच 54 1९५ 4. प४. 199. 88 844.

3) 1. भाप 6181107 (च्छ-ष्कएव्या$व) ए6€णा 86 ए€8प्रफटाः धणं; पक्षात १०८४६ 7706: 411४८, &०एवव्न, 11 2760 16 कावा 16 काका १88 16 पाः 2८८कृप्भा 26061816 (16 801 == ५€ पणं 8€णलात्‌ . . . &०एकवव्८८ वः &०एवन), 18 व186प88०0 €8 7008016 फक6 ४१९५ 2056788176 वृं क्ण २, 11व्य्रक४क चप 807 168 ०४€- 50१८& 01061608: 16 “52 16 न5८वा४१ 11८ 8076 5१44745 ; १6 10606 088 16 688 ३८०६]. ~ ऽणः 19 »816प्रा' १68 ५€ा7168 5दा100/0 6४ ४६९७ १०१९४ 168 ©. 20 3 दपर - ६) ४8 ६7४ 1. 138; 5210९102 ६दकएकद 11109 ०४दव0 14क514) ०८८७८ ‰४ ०५४दव० *¶क ०४0०0 ४४ द्वद धदव, . . . , , = {10616 13 . . . 00 वाशुप6 भ०प( 66 नण

-89] प्रधमं प्रकरणं 29

विशेषणे ठि सत्यनुमानानुमेवघ्यवदाराभावः स्यात्‌ तथा हि ' पदि चातुर्मरामी- [न (1) ~ (न + (न (2) तिकः शब्दो गृ्छते परस्यापिदधः' घ्थाकाशगुणो गृ्छते बोडस्य स्वतो ऽतिदः। वे्चेपिकत्य [4 (3) तथा शब्दानित्यतां प्रतिजनानानत्य यदि कायः शब्दो गृ्छते परतो ऽपिद्धः ' (4 ~~ = = [1५0 100] व्यः स्वतो ऽपिद्धः। एवं पथापंभवं वि[8भुनाणो ऽपि पदि सकेतुकः ~ ~. ॐ) निर्देत (6) ~ ~ बौदस्य स्वतो ऽतिद्धः। घ्य निहेतुकः परृस्यासिद इति तस्माग्यधान्न धमध- ्ित्ामान्यमान्नमेव गृद्छते ' एावमिद्ापि धर्मिमात्रमुत्पृष्टविशेषणं यदीष्यत इति चेत्‌ चेतदेवे '

9 8617 28 8४८} (5दा१21१॥/€102 (द४व्व्‌ दद 10 ००९ददद) 0 06 ताश प+6 18 [०01] 200 1#8 €्८णाभा॥68 (०१(९§क)) फ7दप्ालाः 1४ 96 फपात्रिप्ताठपड गा ०6 -- 0 10- 81८0४7८) [९ 1580९02] 60०९8 1011068 9 816) 8प्ध॥ ०0१1६९४, [इणातलापा पाः 06 016 41४, ऋ1€ 02886106 छप त९णाप€ा 181]. .,. ,.

1) ए०णाः 1&व१ला8 276 2०001816. ~ €लप्ा€ (6०066 97" 16 ¶1). द्‌ वियः मुपपति

2) 0190728 16 (१0. 5८ ए0वदा5छकऽ्ददाव्‌॥, 7278 10112, 1. 5 सल्‌ | प्‌ => 3 प्‌ म्‌ | -- 001४008 वप &०एवत १६०8 1९8 01१67868 €60168, एण कए ००४३8१२ 11. 2. 12, 27488६४7 84800. 287.

3) ए0ण' 180१6788116 वप ४९९४7८४. -- ¶10. 6०णाा€ 1णड 13प्#॥ (. 28, 0. 2);

मु गुढननि मगुकपति 4) ए0ण 16 भद6््ाा ४. -- ४४०7४ (= व्ण कनदका१वद) &0 वव], 10686 0४ णद्8क (ध. 214. 8. 11. 2. 28, 30).

8) 1.९8 6९0०168 76 8१606060 ऽपः 16 दका (&कवद)) इणः 16 काव (०६१74). २0 168 ०पतत}18168, 12 १९४९० €8॥ व्कलध्द, कदका-१८, 01॥ 1008 कदा, 4 (©. श. 4). - ^ 01140 87781 ए. (018. 06 1४ 80८५. 48.) 2699 6. . .५10411}/- कककाककं त्का, (कद्वव , कवर ्र0 07 दद्द ०४१7; ०1251 दव- एवदव ककशव, वकलदन्द्वक कब , उद्वा दद्द; ब८0 च्व, ०774 दद्व, ववभवछकक्छ्वरव, -- ऽप 12 76800 46 10्रणम ०700०866. -- 20110 106. 3, 37. 19 (वि ढ़ 8०0817 78). -- तक ४१४7६. 12४7. 388. 19 5ध्वप2८१द्व 01/01 21070 ०११८८४५० 7/८, (णकएवा0 णठ; सवका ९९१, छतत? 2108 7९17 लाव, , ,; कण्ककरका-व (क, , , -१द59/त वद ५(कव्ा" 0४ (0 (णद्‌) ~ ६५५१. -- 410 १8 ९101 ४१४. 786. ~ © ४701978 81211098 त्त ६४788 1. 2. 28.

6) 1188. 50 41410 155दव0#ब\. (प. पनयरतष्य मुप पिमं

30 प्रत्ययपरत्ता नाम `

- पैप्माग्बहैवोत्पादप्रतिषेधो तर साध्यधरमो ऽभित्रेतः ' तैव धर्मिणत्तदाधारष्य विपयापमान्रातादतात्ममावस्य प्रच्युतिः स्वयमेवानेनाङ्गोकृता भिन्नो ददि विपयीपावि- पीती तवद विपर्यातेनातत्सदन गृदधते तैमिर्किणेव केणादि" तदा कुतः सद्रूतपदा- धलेशप्याप्युपलन्धिः यदा चाविपषीताट्भूतं नाध्यापिते वितिमिर्किणेव कणाद ' 5 तदा कुतो ऽतदरूतपदायलेशप्याप्युपलब्धिर्ेन तदानीं सेवृतिः स्यात्‌ श्रत एवोक्तमाचार्यपदिः यदि किं चिडपलभेषे प्रवर्तयेयं निवर्तेयं वा। ्रत्यततादििर्यः ' तद्भावान्मे ऽनपालम्भः इतिं" यतश्चैवं भित्तौ विप्यापाधिप्ाती ' श्रतो विडषामविपरौतावस्यायां विपतेत- 10 स्यापेभवात्कुतः सोवृतं चतुरयत्य धर्मि स्यात्‌ ' इति व्यावर्तते ऽतिदधाधि पक्तदोषः श्रा्रयासिद्धो वा सेतदोषः५ इत्यपरिद्दार्‌ एवापे [70.119] निदृशनप्यापि नास्ति साम्ये तत्र दि शब्दसामान्यमनित्याता] सामान्यं चाविव- ज्तितविशेषे योरपि सेविष्यते वेव चलुःसामान्ये शृन्यताशून्यतावादिभयां संवृत्या- ङ्ीकृते नापि परमाधतः ' इति नात्ति निषृरशनत्य साम्यं 15 यश्चापमसिद्दाधारपत्तदोषोद्रावने विधिः "एष एव सादित्यत्य केतो सिद्वार्धतो- दावने [ऽपि] पोच्यः

1) प. = (पल.

2) ०10०7425, १०77 8 ०4016. {. 239. 10 (== ऽवथा, ०८१्द/क, १10) ; 16 कण16 068 ६८11001-24८5 (1200111८, 7818016 १९३ €) €8॥ 6188814९, &. १५५4. 2485. 8-10, 248. 7.

3) ४०7 ]. 16. 9.

4) @&† 2. 24 0. 5.

8) 7188. ९80 ९४ 5वद{्क्दाए79/बा+ 5०7९०. (10. देरस्‌ (मरिन. ट्स उपति ग्ुद्धगुस नुतिः मुदि मु प्यति पर सु

== - . .05244740०5०461210८ (&. 7. 82, ०. 4). -- ऽक्षयं == ०१वुव१दाव्द४्छ @. 26, भ)

विरा ^,

-89] प्रधमं प्रकरणं 31

इत्ये चैतदेवं यतस्वयमप्यनेनाये यधोक्तार्यो भयुपगतस्तार्विकेन सत्येवाध्या- त्मि(णकायतनोत्यादका केवाट्यः \ तथा तथीगतेन निरलात्‌ ' यद्धि या तथागतेना- त्ति निर्रिष्े तत्तया ' तव्चधा शात्तं निर्वाणमिति श्रप्य परोपत्तिप्तप्य साधनत्येरं हष- एमभिदितमनेन ' को हि भवताममिप्रेतो ऽत्र हेव्घः ' सेवत्या तथा तथागतेन र्द शात्‌ ' उत पपमार्थत इति सेवृत्या चेत्‌, स्वतो रेतोरसिद्र्थता। परार्वतयेत्‌' पत्ना्तनन सद्सदर्मो निवतते पद्‌ | सद्सड़भवात्मककारयपरत्यधवनिराकरणात्‌ ' तदा ' कथं निर्वर्तको केतुरेवं तति वन्यते नवासी निर्वतंको देत ' इति वाकार्धः। ततश्च परूमार्धतो निर्वत्यनिर्व्तकलासिदः ' घ्र पिदधर्घता विहदधर्धता वा हेतोरिति | यतश्च त्वयमेवानुना [70.110] न्यायेन केतोर्‌ तिदिरङ्गीकृतानेन ' तस्मात्सर्वे वेवानुमनिष वत्तुधर्ोपन्यस्तरेतुकेषु त्वत एव छेवादीनामतिढवात्सवीपएयेव साध- नानि व्यान्यतते त्यया \ परमार्थतः पेभयत्तत्परत्ययेभय ब्राध्यात्मिकायतननन्म ' परलात्‌ ' त्यया पटस्य श्रव वा \ परे परमार्थेन विवक्तिताः चतुरायाध्यात्मिकायत-

1) 2. 2०४९४ 10217678 2 €20086 168 7010168 वप्र 70107; 19४ 0270768 ४०१११ ३६०३४, ¶. 2. ^. 8. 1898, }. 108 844. पए }. 106 (80०8 16 % 6) 18 21086; 14:7४ ४{४/तक ८7 द्क० [8 ०7 ९३1४१. 59. 81, 66; €. 2078 7 2₹18)} 19108९8, 40 ०0९, 78 ००४९ 2]. -- गणप वणं छ€०८९ा (कह प०28

^ 716०417 2718४16, १. ए. 7. 8. 1888, . 7) परणं १0९९१२८४ 2 ^ 7272

10९8: 117 5द/4१॥ वनवा 9214110 1080/4.

2) ४०३ १०0९द प०€ 18800 वृषा, व180768 १०6 कणो0 61९) 07621816 28.

3) 719. == 1114/‰/41070.

4) = 1. 7 (ग. 249).

~~ = ~ ५\/ ~~~

8) (१४. 3 > त्म प्रिमैन्छनु + फेिमति ससु " ": ९५७५-1 1९1 -10/25६4 ८0160124.

6) > 60४]. ०द/4{0१21710 °

7) 19. = 61८.

~~~ [नी न~~ [र 8-8) (0. पपम्‌ मम मन, गमनम अप तननपुमुत मतय मवति

10

82 प्रत्ययपरीत्ा नाम [8४-

ननिर्र्तकाः प्रत्यया इति प्रतीयते" परात्‌ ' त्था तच्नाट्य इति परवादिकमन्र स्वत एवासिद पथा चानेन \ उत्पन्ना एूवाध्यात्मिकां भावाः ' तद्विषयिविशिष्टव्यवङारकरणाद इत्यस्य पराभिकितप्य रेतोरपिदर्थतामुद्वावपिषुषेद्मुक्तं 4 श्रय समाह्टितप्य योगिनः £ प्र्ञाचत्तृषा भावयायात्म्यं पश्यत उत्पाद्गत्याद्यः सत्ति पमार्धत इति साध्यते ' त्च तदिषपिविशिष्टव्यवराएकर्‌ णादिति केतोरतिदय्थता , गतिरपयु[9त्पाद्निषेधस्वि निषेधादिति एवं स्वकृतसाधने ऽपि ' [पर्‌मा्घतो] ऽगतं नैव गम्यते ' शरघलात्‌ ^ गता- धवदिति , श्रधलंदेतोः स्वत एवातिडार्धता पोग्या नं पट्मावीत]: [साग्रय] चन [उप] पश्यति ' चतुरिन्तरियतात्‌ ' त्यया तत्सभागे +

ल, ~, > मये (9 ~

यनि गुरबुद्चैमकेदु भमुप्फपकेतुपमगु मु मपमुर्‌ सपे | = ०४० 1.4... 71111... 1/1, 7. 1 11/11. (11... (1.1.113... 05८८९00 १८८८. -- 1.2 1द८प्ा€ 4 €8॥ 10166888016. -- 1.6 119. 8०९६६०6 18 1९लप्ा€ 741८ (== १८/1९); 70818 १०१९ 16710106 वप्र प0०॥ 1व४व&/व, 887 ४४.१४7 ¢. 8.. 21. 1--2. 178 ०016 80 1. 2. (01. 229).

1) {19. == द्वव ४४द्वव, -- ४० 16 09. 68४ 0186066 18 ०0 ४00 वप्र वणय

2) 10. == ४10८४

8) 1088. व्व, पप र्गृषृ पुग भं पर उदुप, सषयेप पमन

4) गष. = वश्व.

8) ष. ""' परहुदपननिदुत्पस | (भ) तिमित कभुुमपनः दग्र

6) ¶10. == ५५१, -- €. 1016 5.

¶) 1188. ४४ | क70 1०7 5०८० 2 5व 14०. (10. (++ गृतेमङगृ [१1 ९॥

रेप रपति मुवि "^" 8-8) 1088. "00 174[14 | 54४7041 ९6४7 ॥4क (व5 कथ 44/77 ६57८4001, (10. सुमु दम्पन वमप दरुसायति मेषे ग]ङगृमः

निः प्रुष, मेठेमे | मेषगे कवये पमेव | सुवेन्नु वे मुरः मृहुनसः

-99] प्रधमः प्रकरणं 38

तथा \ चतुः [109. 129] पर्त द्रं ' मोतिकलात्‌ + यवत्‌

वर्‌स्वभावा मक ' भूतवत्‌ ^ तथ्चघानिलं इत्यादिषु रेवाग्यतिदधिः स्वत एव पोव्या॥ |

सतनादिति चायं हेतुः परतो भेकात्ति किं सतत्‌ , चैतन्यवनराध्यात्म- कान्यायतनानि स्वत उत्पश्वत्तां ' उतो घटादिवत्‌ स्वत उत्पश्चत्तामिति घटादीनां & पाध्यसमलाननानिकात्तिकतिति चेत्‌ ' नेतदेवं तथानमिधानात्‌

प्‌ यष | -- 211 1१7५४८४८) = वद४८; = क९-क 20574115 -0व == 14547१८,

8८002192, ०58}

16 ५€इ{6 एका भौ, [शणल्लात6धि०य ९8६ तािला€. ~ प्ण #. प्रप, 109. 43 कष्नशकश्द्रककद) 44 5) 51 २547 दक) 114. 6 5८07 द4८८४. -- 4 00101377 80 ¢ ४1.) 278. १6 12 80९. 48. 8599 1 (४प (०णाः§ त'प0€ 0786९प्$शं० इपर 168 ॥018 @0€णा 78, 8886) 7768601, ये, एठाा7); दद्यादा ११ ९6८12११ 4५१८८ - शव्व्रष्छ, शच्रलककद्याः 5८९१वा वकलक दद्ध , कव्‌ ९९49४ च्ञ कव, , ४ववा वका ०४८८३17 धद) (०४१११) ८८547 द5॥/८ दव 1450}॥ = द्ा्१५१४१ ४नद वक्वव्$कवी उवददव द्वा दव॑रवएकाद्यकाः दवाव, ६8/0९ १5४ ्रक्मीः वव्छ(वकव्यदववाष) कवा {क 21 4/1410007471 कद्वद 5/2व 2 ४४ ०४४- , 0व्यदवन्कावदषकवाद (2) 9४. ६4८ ववण 5४०४८ वव्न्‌१ 21010) वक्व, 21 व्दा वब्वद्, ११5/८ाबव 0 व्का॥ १८४१५ ववदद् 7४5 वदद्ाक7 वपा ९४ . &८द‰/ 8 दकादव्कद्काचा १८ दरकका0६४) कवं ४१ 01वद7 दरका०४

1) 709*]1८8 ¶10. ~ 2४88. ऽ८शच्छवध्य, -- प्र18०११1 १४६४ (8. 7. 8.) 18. % (वप्रद्ा +च्रदा)॥ १00 2व55व) कद्वद; लव १2 2485व४, वदवरनद्रकत(द == प्र 21760 297 == ^ ४४1 8821107 400. 1 (प 1४ 00लप्भ्णा €8॥ 106016608). ©. 87. ४7त ए,

^ 8००81) 419.

2) 70"%70188 10. -- 2788. {44/८7 १८6१८.

3) ©07. 16 ए४१80पा6ा7160# वृप्€ व०ा06 1121 & 8 60706 €ड 67716 114४4 5व४४कवदाद (प 6४8] 2४171479, 7 ४१217 ४१. 31.1) कद्ाव्छव्कद इव्छकन, प्प्पवण्व्य, ०१८4१४५८. -- &101 १. 365.

# चै + कै = चै चै ०, ~ कै थ्‌ #ै # #ै ॥। ङः ४1

4 0." गुम कगुस नरु पनः वमिति बम्‌ |'' | वेस मेस परमत 0600 0/8 व0॥ 0 ककलट्वाय व्यः5८ | का . , | १4 ऋ्लवम्‌ाः = ता धहप- 7160४ (50{{षट्) 7168९०४९ [0ण४. १९ एण6 १6 118वरलाइ 76 16 वहविपणौ वव्कवमल्लपभव्म॑द, 6४7 19 पप्र€श्णा दक्ाए. , , , चवक वलपाः6 व्लाणां ०66 (241८ == गजम्‌ = परव).

34 प्रत्यपधतीत्ता नोम ¦ [99--

ननु पथा परकीवेषनुमानेषु षनुक्त ' एवं स्वानुमाने्पि यथोक्तद्षगाप्र-

पतङ्गे पति एषातिदयाधासिदहेवादिदोषः प्राप्रोति ' ततश्च उभयोटोषिों तेनै.

कश्चोखयो भवीति सर्वमेतद्‌ षणमयक्तं जायत इति। उच्यते स्वतत्तमनुमानं त्रबतामयं दोषो नायते वयं स्वतत्मनमानं प्रथमत 5 पप्रतिन्ञानिषेधफलवए्स्मदनमानानाम्‌ तथा दि ' पं चनः पष्यतोति प्रतिपन्नः तत्प्रसिदेनैवानमानेन निराक्रि ते ' चज्तृषः स्वात्माद्शनधमं मिच्छमि ' परदशनधमाविनाभाविवं चाङ्गीकृतं ' तस्माद्‌ यत्न यत्न स्वात्मादरशनं तत्र तत्र पटृदू्णनमपि नास्ति ' तव्यधा धटे श्रस्ति चततुषः स्वात्मादर्णने ' तस्मात्पटूद्थनमप्यप्यू नैवास्ति ततश्च [10.190] स्वात्मा दू्थनविहद 10 नीलादिपरदणंनं स्वप्रसिदधनेवानुमानेन विहध्यत इति एूतावन्मात्रमस्मद्नमनिहदाव्थे [9४]त इति कुतो ऽप्मत्पते पथोक्करोषावतासे पतः समानरोषता स्यात्‌। किं पनट्न्यतरप्रसिद्धेनाप्यनमानेनाप्त्यनमानबाधा श्रत्ति पाच स्वप्रतिदे-

1) © १४/द्यू/क €8॥ €1॥6 8 97 ४४7 ¢ 8.1 ४.8. 142. 9 &4( ९०४7४०7 54010 त050. . . . -- 1.४ 76116 €086€ €8{ €7166 १४०8३ 16 ए९718 लं(€ [का ^+ 17०१११8, 2 3डढप्रो- 110४-8. 1. 6. - ४०7 98 &1०1६११. ]. 841 (81०९९ 252).

2) नवप हेसु. -- ५. 988. एण्ववा. 7. 320. ` 8) 2188. }१८//201ब76€.

4) 088 1€ (10. 704047९ ००5१८द्‌९

ए) 108. 1414८ ९:5५. 1.6 +भ (गुषमे मगा ( दस प, पु म) 06 60077716 [98 7€ध्लाा€ा† 12 द0्९लना: 00 91{€ाव्‌ ॥॥) तरि १89]7&8 19०४ 10्!€ 6 €€ वपं इप

9) पष्हुपुपन्ुषप परमुयस. 7) 110. == 04/८1 (9128 ४8९१९}. - &. 4. एप,

8 प्र." ठञ्‌

9) 2188. 051 5द्छा द.

-9ण] प्रथमे प्रकरण 35

नेव केतुना ' परप्रमिद्ेन ' लोकत एव दष्टवात्‌। कदा चिद लोके ऽर्धिप्रत्यर्धिभ्या प्रमाणीकृतस्य साल्तिणों वचनेन बयो भवति परान्नयो वा ' कदा चित्स्ववचनेन ' परवच- नेन तु जयो नापि परा्नयः। पथा लोके तथा न्याये ऽपि ' लीकिकस्यैव व्यवहारस्य न्यायशाल्े प्रस्तृतलात्‌ प्रत एव करैशिड़क्तं "न परतः प्रसिद्धिबलादनुमानबाधा ' परसिष्रेव निराचिको ितवादिति यस्तु मन्यते \ एव उभयविनिधितवादो प्रमाणं द्वषणं वा नान्यतः प्रतिददिग्धवाची ' इति ' तेनापि लौकिकीं व्यवस्याम- नरुष्यभीनिनानुमानि। पयोक्त एव न्यायो ऽभयुपेयः

तवा हि नोभयप्रतिदेनेवागमेन श्रागमवाधा ' किं तरि स्वप्रतसिदधेनापि।

त्वधीनुमाने तु सर्वत्र [7;0. 199] स्वप्रसिद्धिरैव गरीयसी नोभयप्रतिदिः

1) 7. पनम 19 (भ 3 2417070574द761.

2) &45 {५ %व्व८. , . . . 8808 १०८४९ 11088, ण्ठाः 1170 प8 1018४. © २87४0 98818 10171478 08708 क़ ४780278, }. 289 844. 1.6 ४००११816 6200868 €6॥6 {7€&86 46 12 414101457वका४ ऽपरि४ 1४ २211116 तप 7818000€ला६; १८१४८ 8012000 0749 {5१वदा14101 142/९वद1॥ 577८0400 11702 00141171 १1दव58ववा7/@ ४९८८१1 एवमनाक्ताद व्वा 2... 20140170 दव् {74000 7 ददा 41949) 14व्‌ 5/८ 141 @- अववा" 4050) १4 5धव्क्वदाा" ९८४. -- 1 पण 71118 16000: , , 71417100 १09 द/ कषद ए१4- ४7१? दक्ष ९5दव7व१द४व१। प्रधा 17457वद7459८ द८०/०' क089 2. . , ए0वण्व्दनादव्व ९४५ 1४ 72 ४१24 2 कावा" ४0 एद्वभ 1९११ 54 5१709 ४१/ १्वा1.. == 1४ ४8 01 ०३९६2, 274४बद वदद, 10 20016 ४86 कषय [6 1016) 18 2001४16 07 00४0 9९8 10 > 18608810 1097 ०९८९४९६ 28 600 ४06 68180186 9 8 ए0००्भ्०ा १. (1. ए. 2४६३, व. 200 48. 306.) 1). ~ ति ए३१४0170प{. 68. 1 का70 7 कलरव्काद्छवकुः 10 24504 58वकााव॥ ऽव 1८00 भवदव. 1.8 46091600 वपर एश्द्ा पाद्वह 287 0108822; 4 000910007 ६४ 5०7 5{व् 7८ - 110 (= 2787 11 28871८९8. $ 1, 1) ऽण})0086 12 8१ 90788100}01: 5९०1 क- १1400 ९८८ 217(1041९070४41 117व00दवदा06/4101.

3) 2088. # ९४८ 2074४५५.

4) त, रदिगृ्रैमड षदे हुम्पपुगुष = एथर-शुवत्पत०-१७८- ०5172.

$) 110. पेसु मस्‌ == 271४0 == ११५१५८५7 ८11 11611.

6) 1188. ८7 1 110074/411145व4द4्‌11 6144 १द्4411604. -- 24010147 दद1ढ == नि गस गुप == 4401९100 24116.

36 प्रत्यपमनेत्ता नाम [१४--

^( ५4 (2) _ विस्तद्नमि (3) शरत एव तर्कलत्तणामिधानं निःपरयोतनने ' यथो्वप्रतिद्वपोपपत्या बुदधत्तदनभि- क्षविनेयननातुयरात्‌ इत्यलं प्रसङ्गेन ' प्रकृतमेव व्याण्यात्यामः `

परतोऽपि नोत्पग्यतते भावाः ' पराभावारेव एतच्च ' नदि स्वभावो भावानां प्रत्ययादिषु विग्यते * 5 इत्यत्र प्रतिषाटपिष्यति ' ततश्च फामावादेव नापि पर्‌त उत्पग्यत्ते। रपि घन्यत्प्रतीत्य यदि नाम परो भविष्यत्‌ जञापेत तरि बज़्लः शिखिनो ऽन्धकार्‌ः। सर्वस्य जन्म भवेत्वलु सर्वतश्च तुल्यं परलमविले [ऽनके ऽपि यप्मात्‌ 10 इत्यादिना [10] [मध्यमकावतार्‌त्‌] पत उत्पत्तिप्रतिषेधो ऽवपतेयः श्राचायबृद्रपालितस्त व्याचष्टे " परत उत्पश्यत्ते भावाः ' पर्वतः सर्वसेभवप्र- सङ्गात्‌। घाचार्यभावविवेको हषणमाङ्‌ ^ तदत्र प्रतङ्गवाकयतात्‌^ पाध्यपताधनविपर्ययं

1) &. 21188. 2. 361 इपर.

2) क. ररन्यि. हिष्रर गुषुखप'

3) ¶). गेल्‌ मतस्य == 0101100 80. 4) == {. 3 (7४ 0]. 22) 1ण४०).

8) 1081168 16 क्ण. -- ©€॥6 81466 €8॥ 1४ 14० तप 9). णा; गणाः न- 06888 ]. 18, 7. 3.

6) १० हणा, 91. 1829 1.8 (€. }. 14, ००४6 1); प्श०वपा( 0978 2818९881 ४९1४ ({0]. 499 8) ४१६८ 168 एका 181168: 200 1दक॑0 ४. , . ; 4544 2९400; ऽव्वण्वन , , .

7--7) 2५६ १6 8108१ 9१1१618 मखु देति घुवनिष्पर नयुगपतः नगु पमु पदर | 0 0

अप ९8 प्र 21 पुग्‌ प~~, > | धि | गमम गुम # 9 सन 2/१ (मुम्‌ | पन नद~ १^ | व) ५) न्म न] ४। वननु

-10] प्रघमं प्रकरणं 37

कृतना स्वत उभयतो ऽरेततो वा उत्पचत्ते भावाः कुतथित्कस्य चिडत्यत्तः इति प्रा कूपत्तविरोधः। घ्न्य धर्बतः सर्वसभवप्रसङ्गात्‌ ' इत्यस्य साघनद्रषणानत्तःधातितरात्‌ ' मरतेगतार्थमेतत्‌

एंतदध्यतगता्घे \ परवमेव प्रतिपादितिबात्‌ ' हषणात्तःपातिवाच्च परप्रतिज्ञाता-

धट्रषणेनेति यत्किं चिदेतत्‌ इति पुनर्यत घरास्थीयते

सनिर्‌ दगुस्नमः मर नगुग्न नुन्न | गृष्दरमु पन पमसस्य्‌ भस कमसत जवन पुयतिडन | देयम्‌ 9 मेप कपय गुर ¢ सुम न्धेबुयकठेम भेदुयनिदधर | देमि कमु पतेन मेषु पमन | ००४७ ७08१०.

४1४९१४६8 (90). 499 5) 16 ५६26 7168606 068 81127६68 १6 प्र कवप८्टणाः; (४ 89 (पम्‌ = >+ " @ शः (८ स~म (ध ठस 2 (८९ पणः ९७॥ ए1०5 [द ])

ॐम१ञ्‌> 4

8) 1.68 फणा€इ १८ 5४८८ ५{4व$/क८ ए0द्४द्) दा कव , , , , 80०४ १९३ 274 - 8410६ ्कड (गण 6-4688प8 2. 15. 1), (वा 61९8 प्रक्षा 168 ९011864९०८९३ 1001468; 0९१०३४४ 6 0208 ४8 61020४ 16 07, १००८ 1 78086 ९०१2०४1४ पप्रा. (एमा

` $ 2700. ०४6 2. 24, ०. 6) - पि 2 ४४. 12 ४7. 463. 19: ‰/001415९व 1174507744- 8दद्ा\८104101 1१4{45८ब7/4000 5द ०/४,

1) ४४ ४०१०6 १8०8 16 (9.

2) ¶. == 11/47 द्यू४.

8) "9728 ग0. , , , कव ऽददावय- वद -407क४द्.

4--4) एन रढरतग्पः मेद्य परम | बर किरः यष मदि [1४०] प्र | गुने" मृमपरुषमने' दुम सुगृतयेमुपः, यदुप प्ेम 1 11 ॐ) 58. कव्व काण क, 1.6 पमष तमणृम० पणठ फहुणण लंव्द कृ ०९०१ पक) १250 (व == 168 कभंडणछला!8 6 8०१११7१ इ11६2, (नणय 1. 3);

0818 €0}01€041€; धतं == 66 १०6 ए02*8 ४1१62 ?16४ १6 १६. &. ध. 0688008 }. 89 1. 4.

6) अं कण्‌ ००९8६ 88 (2४४ 08908 16 पक वपं 00006 वावत (१११) [1-०४-92].

38 प्रत्ययपहीत्ता नाम [109-

[न षे भिहित ( ४८५१ दाभ्यामपि नोपत्रायतते भावाः ' उभयपत्ताभिद्ितरोषप्रसङ्गात्‌ 'प्रत्येकमुत्पादाता- मथ्यीच्च वत्ति हि ' 0; न~ .< (9) स्याइभाभ्यां कृतं इःखे स्यद्केक।कृतं] पटि इति।

शरङेतुतो $पि नोत्पग्बतते" £ हेतावतति कार्ये कारणं विग्वतेर इति “वत्यमापदोषप्रतङ्ा्‌ हः गृ्येत नैव ्गब्यदि हेतुग्रलये त्याग्चदरेव गगनोत्यलवर्णगन्धौ 1” इत्यादिदोषप्रपङ्गाच्च। | 10 घराचार्थवुद्रपालितस्वार्‌ ' शेतुतो नोत्पग्यत्ते भावाः सदा पर्वतश्च सर्वप्भव- प्रतङ्ात्‌॥ | रत्राचार्थभावविवेको ्रषणमाह \ त्रापि प्रसङ्गवाकयलात्‌ ^ पदि विपरोतपाध्य-

1) 8०११2811 गु 6 2१ सुचुषन निनपन्‌

2) = शा. 9

8) = "7. 4.

4) 110. == ४2८92.

ॐ) ४१1 $ 87) 81६ ए४{78, ४. 99 (01. 258४ 7); एणाः ०86००, 106. ल.

6) 8०११४९१8 11४8 (901. 1829 1) भ]0प्6 ऽव्ाए्व्वव्णषाद४क 170405८ ९2. &{†. 61-06880४8 }. 89, 1. 2

गग गृतने ुवमत मु कुषम बु ुमन्मिपमवदुपम्‌|मरक नितुश्‌ म्‌ |प्रसरकदुपस जचस ुवम नुनप विमुन्षुरि [र्षु जस गा शफम्‌ चुप यन | इम निसु यरय पर) 91१. मे मे रवृ | हसने धश नयुगनदर | भस सुमृन्वुषुपर्‌ भरर | 1.५ काष्

-101] प्रधमं प्रकरण 89

ताधनन्यक्तिवाकाार्घ (1) ~

इष्यते तैल इक्तं भवति ' हेतुत उत्पश्चतते भावाः कदा चित्कत- शित्कप्य चिडत्यततेः\ प्रारम्भसौपल्याच्च इति तेये व्यौव्या युक्ता प्रगुक्तरोषा- दिति॥

| तदेतर्यक्त र्वोदितपरिरारात्‌' इत्यपर

(५) = शि. यच्चापीश्ररादीनामुपतंयहार्थे तदपि युक्त ' ईरषीनां स्वपरभियपततषु यथाभ्यु- ` पगममत्त[10४]भीतरादिति [70.149] तत्मात्प्रताधितमेतत्‌ ' नापत्युत्पाद्‌ इति उत्पा- दासेभवान्च सिद्धो ऽनुत्पाशारिविशिष्टः प्रतीत्यसमुत्पाद्‌ इति

रत्रा ' चययेवमनुत्पादादिविणिष्टः प्रतीत्यपमुत्पादो व्यवस्थितो भवद्धिः ' यत्त- रिं भगवतोक्तं प्रवि्याप्रत्ययाः संस्काराः ' घ्रविन्यानिरेधात्संस्कार्‌ निरोध इति तधा ' भ्रनित्याश्च ते सेस्कार्‌ा उत्पाद्व्यपधर्भिणः। उत्यग्य कि निरुध्यते तेषां व्युपशमः तुलः

800 १6 1ब<10व्ध:§८ €०ा 7९९6 १818 12 १२१1 १९1६8 9]. 509 5, 7४ 9. 529 8 णप 8001 19४0 पां 1€8 8 1६1 ४8 (१181८00 १€ 171४४ €६ १९ 10१५४५४). -- 1.6 7016867 72888९6 1०846 €८} 96 7168 1660676116€8.

8) ‰नव४. . ... . (९५ €8४ 16 त€श्लगु€ वव 01989728 षदा (षणं 2. 15. 1 €॥ 7. 87, ४. 8). ^ 27€0व१्८ (नााप€ 5दब7१८११४ 1४ िाप्रा€ कलत १0100द0/4701८ द्ध) (== 5247#५ १९७ ३०१११} 211६9}; ०0 ०0६ दपद ववव्कष९,

1) 719. = ५१75४८1९. €}. 15. 1.

2) 2188. @000107450वए01 दद्व ४, ०5८11007 द४द्द ०४.

3) ©९8{-ब-त116 1४ ०४८८ ¶प6 व०ण6 8 ०१११ 811६8 पप 7 दछद्यः १९ विद्द्य] पा.

4 छन्द्यं यनपचमुपनि>. > ~ भ्र (गुठु्गु), ष्ण 7,91.6. 9 79. गुर एर" "^" पप मश्च पनत वसुव पपर"

6) ए०फप्ा€ 28शवृण€ तप एति ४8 20४.

7) ©४6 ¶808 8. प््टफा 6 पमा8, ©" 44 (86०४६) प, 4.8.) 8९]४. 1898, 7. 300) ४१९८ रका ४०६९8 १४६८८ ®दद , , . | ५02 ऋक्व क्रकं ६८5८ ९५९०८१० 5१.१० ॥)

10

40 : प्रत्ययपरोता नाम [10४

(1) 4 9 रि {^ 4 (2) तथा ` उत्पादादया तथागतानामनत्पागादा तथागतानां स्थितेवेषा धमाणां धमता 5 ~ (४) क्री थापन्राप्यं एको घर्मः प्स्थितये पडत चवारं ब्राहाराः दी धर्मो लोकं पालयतो क्ीश्चापन्राप्यं चे- (4) त्यादि। तधा ' परृलोकादिषहागमनमिनहलोकाच्च परलोकगमनमिति = जितो (5) एवे नितेधादिविशिष्टः प्रतीत्यतमुत्पादो देशितो भगवता ' कथे निहध्यत इति

2) भो [न्‌ र्‌ (7) क्क यत एवं नित्ेधादयः प्रतीत्यतमत्पाटृस्योपलभयत्ते ' श्रत एवेदं मध्यमकशाघ्

1) प्रण 881१४१87 218४8. 21.8 (४2. 0. 141), 8041016. £ 8412. 150 .877.7) 4 01101877 8.1. १. (३०९. 48.) 2310 (३१९८ 18 1€नणा९: ४९॥/व१ , . ,), 1888. 286. 16; [0णा 1४ गिाप]€ ५द्वद्व दक. , &11§28. 16. 18, 27810 8. 273. 21. 1.6

~ €\ ~~ ~ न~ १1. (ममन सर, ये 61 किमि) ८0007716 18 1९6॑णा€ ९ढ; 11190616 ण86€ {72८00 १6 60प््टो (९§क४) १०६ 646 ४800066. -- 2. $ ०४. 94, 15 81६14850 4041740 ५5409492. -- 149 0 प्रा€ १6 19 50 द॑द 468 व71 7145) 1086766 0818 16 @ 8 118 9.7 0 8.8 ४78, (०ाप्€ १९8 दना €ा+४॥९प78 18071904 प€8, 9

एष्{16 वप शवाढाहा व7व17१वएव् कद्व; पणो पकाल 4 7&. प. 1. 286, 6 (आ, 184), 8४१. प. 11. 25. 19, ४1108९४४ पा. 2 ९४ दपा.) 1.91 18 १४६8178 144 1 0०6.

2) १9. १0०।९ डुस्युःप,

3) 7018, ¶प४76 छप लण्‌ 0०६8. &. 7087728, 1.22, आ. ४०५. 118, 0110९78 20४, फर 21760 248, 70. 890. § 68, 71, १६18१. 509, 21110. त. 1. 261. 4 (व८द० 001८ एद्धद्द्ाद४ 07 द्धक ४८ = 51421020 {0 ४{द4क = 811074८5 = ४द

५५९१ क/८, ‰&१1€ व॑ क0. ,,.,.. » 4 01111. 1. ¶. (8०९..4.8.) 01. 2509 7, # 0१. 1. 68. 17, 81-40-10- 420० (ण86€ @पं९॥) }. 126, €(८.

4) पणा 1४1 प] कः 42. 72०८-१ एकच 5द्ाक काद [नदा अवन 4201८ ९८2 त्च ८८ ०वव्यव9 ८८. 47 £. प. 1. 2. 51, 1४ ]. 116 ९४ ^ ५0988119

§ 818 (५१९५८ 18४ 1€प्ा€ 547 [== (ष्द््‌] 7400002). -- & 11 88. 105, १. 2, 136. 1,

192. 1, 210० ‰&1$8 7४१1१48, 7200.-81, 7. 20 7016, 1१. 1. 462.

8) 1/6 (0. एप प€ 16लपा6 766४016; ००५ काव (न 1.6 8€08

708191४ 70 ऽद्रा०10व7ब. 6) 2788, ‰्॑व ९९का४क) &८व (णद्ध. १) 7). (हप पुस्‌". निनय 1105-0 == (५५, 62768801 [पऽ ५९८-

14०९. -- «0७७४ [09.66 ¶प€ विलप 6 क्ष तप 700०. ,,,१

-119] प्रघमं प्रकरणं =

नोतार्वपत्रा < (स प्‌ प्रणीतमाचर्थिा नेष॑नतार्थूत्रात्तविभागोपदर्शनार्ये। तन्न एते प्रतीत्यपमुत्याद्‌प्यो- त्पादाएय उक्ता ते विगताविश्चातिमिराना]ल्लवविषयत्वभावपेक्तया ' किं [7). 149] तर्छखविश्यातिमितेषकतमतिनयनन्नानविषयापेत्तया

न्‌ = (2) (न [9 | तवर्णनपिनया तूक्तं भगवता ' एतद्धि भित्तवः परमं सत्यं पड़त श्मोषधम 4 ~ (8) निवीणं ' सर्वसंस्कारा मृषा मोषधमाणः ' इत्यादि (4) ~~ ~ ~ _ (&) = (6) तथा \ नास्त्यत्र तथता वा ' श्रवितथता वा ' मोषधर्मकमयप्येतत्‌ ' प्रलोपधमंकम- त्‌ (र = (7) प्येतत्‌ ' मृषाप्येतत्‌ ' मायेयं बाललापिनी ' इति तथा ' ` केनिपलोपनं फेनपिए्डोपमं उषं वेदना बुहुदोपमा मरीचिपदृशी संन्ना संस्काराः कदली [119]निनाः।

( ( मायोपमे विज्ञानमुक्तमारित्यबन्धुनां [इति]. "

= (र 9 # ^ (२९ ]

1 नपर" दुदर मदु; रसन कृञ मदु. 0६००.48.4 ०६०4 2.11 (01. 832 16); ४. ६. 74. 4, 8०41016. ‰. 1, 8. १०८. १९४्7कद, 2१0. 2१२४ - ४ढ 78, 91. 2589. - €. १३९002{ब12101878 1. 12

2) पम 1708 शा, 1; ५६ 9 ८०4४01९. 12. 2 0. 244. 13) ४१९८ 0"17201718810168 166९३. - &. ॐ. प. 245. 907) 908 2115द 91050द14170010ब78.

3) 2788. ४६४ |

4) ००076 भः (7 मे =< 1 प्लु %२, (=-= ५४८१८८17 ब४द)

8) &1§ 8. 261. 8 2015द१1050त7 1101८ एब; 21. ०४. 245. 906

एव्म का; 19110. 11. 261 ८११८ब्द्‌. , , दह {१८८९१ ११8 210414ब्‌79499012, १792. प्रका ९८१) ०7८४८, एद्दब्बद्य१49; ६४801} 8४8 757

6) 21४०4०९८ १४०३ 16 112. ~ 1811४४१ 18{87> 2909. 4, = 7) 719. ११ (ण1€]). - €. 8४१. त, 1. 148. 5. 8-8) (€ १४०३ 88 ०५१8017६ 8 [. 142 (22, 95) 15) -- १९५ 168 एश 12068; वनद (€. 0. ०४. 139. 2), दव्वन्द्च११द, वदरा ५८००.

9) एण 2. एफप४. 189. 15 द्व्वव्कडद्रबकाक) 3०१1९. 1, 192, ९70, 10६८8 2. 141; 8716 ०१17 2018४16, 81. 58 (ब. 2. 7. 8. 1886); 17९910400कत, ®५47%वक, 0८) 0. प्र ०४, 139, 94. 14. 5,

10

10) 1.6 (9. 2०6 नसनुततन == 1, (्माक्तप्र€ 7086: दकः एीष्5ौ" -

3 ५.

8

10

42 प्रत्ययपरीत्ता नाम ` [119-

एवे घमोन्‌ वीत्तमाणो भिततुराहन्धवीर्थवान्‌ (दवा वा पदि वा रत्री प्रज्ञानम्‌ प्रतित्मृतः प्रतिविध्येत्यदे णातत सेस्कारोपशमं िवे इति, नि्रत्मकलाच्च धर्माणामित्यादि। यस्यैवं देशनाभिप्रायानभित्ततया संदेहः स्यात्‌ ' का शत्र देशना तचाव का नु खल्त्वामिप्रापिकीति यश्चापि मन्द्बुद्धितया नेयाधीं दशनां नीता्धीमवगच्छति ' तयो- हभयोरपि विनेयननयोर्‌चार्पो युत्तयागमाभ्यां संशयमिष्यान्नानापाकरणार्धमिदमारन्ध-. वान्‌ ¦ तन्न स्वत इत्याटिना युक्ति हपवर्षिता तन्मृषा मोषधर्म यद्रगवानित्यभाषत वे मोषधर्मीणः संस्काराः ' तेन ते मृषा ॥' पूवी प्रज्ञायते [7\0. 159] कोष्नित्युवाच मकामुनिः। सतासो ऽनवरामो कि नास्त्यादिर्नीपि पशमे

2/0 470८४41 साकषा कए 727४ = वाव्ाद्ध 1,101.17. (रसि ससनन्‌ ) १1411 54105017081 10 -1010064014-0044901

11171174... सल्‌ समनु) 2/4 व.

1.४ 88166 वृषणं 77€८६6€ (7९114014) ९९ ४88९6 -- १०९ 1€ 608 1086 808 10111081 [16 248 ९४८११ का7141100द्॥ ¶्60101100 €8॥ {78 17607661] ~ 8076 6168 179. 8 इए. 8 1€ ४9. 01686016 प6 12606.

1) 2188. }१7८६११९१1४८ व९, 2747४०410/4८4९. - &. & 1६ 88. 1985. 19, 317. 10, 214 1. 5; एषा : 2न{7४८ब70, ०९११1४ (च. 2. ¶. 8. 1884, 2. 72, ^ 28. न. 1४१. 228. 9 1०062).

2) ए" 16 7980ण्लाला६ €४ एषषा 1्लत्ा6€; एणी, ए०पाः ९९6 गि ्पा€) च. ^.) 1902, [1 2. 2535, ०. 3.

3) ४५0} (2514191. 4) &-06९88४8 14. 1. 8) 1178 शा. 1. 6) 101४ 21. 1.

149] प्रथमं प्रकरणं | 43

कात्यायनाववदि चास्तीति नास्तीति चोभयं प्रतिषिद्ध (1) प्रतिषिद्धे भगवता भावाभावविभाविनां

इत्यादिना श्रागमो वर्णितः

उक्तं चा्यीत्यमतिमूत्रे कतमे सूत्रात्ता नेयाधीः कतमे नीताः पे सूत्रात्ता मा- गीवताराय निर्दिष्टा इम उच्यते नेयार्था चे सूत्रात्ताः फलावताराय निर्दिष्टा इम उच्यते नीताथीः पावय पूत्रा्ताः शून्यतानिमितताप्रणिङितानमिंस्कारान्नातानत्पादाभावानि- रात्मानिःवचलनिन्ी्निशद्रलास्वामिकविमोत्मुला निर्दिष्टाः " उच्यते नीताः इवमुच्यते भदत्त शाएदतीपुत्र नीतार्थमूत्ा्प्रतिशर्‌ णता ' नेवार्धूत्ात्तप्रतिशरण-

ता इति।

1) 1008 ष. 7 (0188; . . 4 ०50 225८... .).

2) पणी 888.) 70. 327, 328, १०४ 18 80166 ५०€{&1०6 66 114 18 27 2४1 - 0174649: 06 उपलाः) 10 कलाल एठा व) ल-त, फ6 [ला पण्णा एदा 86116066 ^ प5त706द€ा एला 77, ग16 : 160, 818६602, 16060, 1676046 ९0860 2००६०18, १€7 2०१९1०५९) वा 0०4९०१6 प. 8, फ.) 1686 प्रलाः €00&६€0 प९४

8८012 €ा 9709 ` 16 श्ण कषटद९, 7. रम्‌ ४. पयुप] म> | भनमम रम म> |

सुगु | गुप | सयुर | गुर चपप| गैरसश्नसपुरः | मैस पुष | ङगवः | दसत | रु दमय दगुमसु रमय | पगम कुकुरः परपर, मुय दे्गुभु इनि दुम भुस" युत्‌ | ५८

ता1९5४ = क014-5०{ ४८१९४८0 05 4-0१5-14 - १0471१41 -214 00054 - {द्द 102-४८वव्द शक्द्ुववव व्वा #द/411९, ‰९5१ ८तदरधक्कपवा7 5वडधद्छाष्ददयटटाचद 9 वा(का0, {८ १९४7 द.

4) 2188. दाक, ०8. व. गुरु मेमनः | पमगुर्धेमेत्पस ५. | हुम पपुरयति 4 गुरगुमि -- 1.9 30836 १९ ९९४९ 11886 0978४ ॥0प01€€. ~ २९०६-0, एणा, 10 (च ४8९१1६९), 1742704, 2४, दवा 0,

व्वक्वता, कद्व (0. ३.)) ऽका (@ 2118४. 8.). -- पण्रणडकष्यकद 20. प्रप. 78; @१४{2, 0110101101द101, क070107709(व॥.

9रमुय ४० 719८6 ९००१९०९९, 0 7९] ०४. ~ 1.68 १०४९ 18 प्ऽ88.788, 4.

षप. § 74, 0087088४ प)27808 ना, ^ ०0140. ए. ४, (शि8, एप. 4789), ५४6 य, ^+ 8, 1902, ६. 0. 269.

44 ` प्रत्ययपटीत्ता नाम धि

तथा चायतमाधिर्‌ल्नूत्रे।

(नीता्सूत्रात्तविशेष जा[11४ुनति पथोपदिष्टा सुगतेन शृन्यता स्मिन्‌ पुनः पुद्रलपत्पूरषा ~ __ (~ ~(1) ~ (9) , नेयाधताो जानति सवधमान्‌ [7४.15] टि (3) = तप्माइत्पादाद्दिशनां मृषाधां प्रतिपादपिते प्रतीत्यसमुत्यादानुरंशनमारन्धवा- नाचार्यः ननु चोत्पादादीनामभावे सति यदि सर्वधमाणां मृषाप्रतिपाद्नाधमिद्मारृन्धवा- ४4 [न्क [न नाचार्यः ' नन्वेवं तति यन्मृषा तदस्तीति सत््यकुशलानि कर्माणि ' तदभावान्न सत्ति 10 इर्गतयः " सत्ति कुशलानि कमापि ' तदभावान्न सत्ति सुगतयः ' मुगतिडर्गत्यसेभवाच्च [न्वा ¢ ~ - नास्ति पंसा इति सवारम्भवेय्यमेव स्यात्‌ "जः व्‌ = =+. . मनिवेशष्य प्रतिपत्तभविन उच्यते सेवृतिपत्यव्ययेत्तपा लोकप्येदेसत्यामि प्रतिपत्तमावेन मृषार्धता {त (6) कि चिडपलभत्त भावानां प्रतिपायते ऽस्माभिः। नैव वायाः कृतकायाः किं चिडपलमतेपन्मृषा ्रमृषा वा (ख ध) १२ त्यादिति शपि "येन कि सर्वधमाणां मृषीले परिज्ञाते , किं तत्य कर्णि सत्ति 15 संतापे वास्ति \ चाप्यतो कस्य चिदर्मस्याप्तिबे नास्तिवे बोपलमते।

1) 1088. १९४21742, ०८2१; व). रपति म्‌ 2) ©€॥€ 81866 €8४ 6166 17४ 8 2 ए. 11 (828 19 70९); €्‌]€ ४6 86 ॥४0ण?€ 88 0808 19 296 बल॑प्रधाल्फलण एषफा16€ तप 8970 21172} 2 (28९, 1); 12 0916; 214 5०४०41101608, €8॥ ©०पाणप्ा6,

8) 1.6 (10. 8 16 एण्पथ्‌.

4) 2188. ०५१५५८८१; 70. हेससुभुय 9 ममेमे"

6) 7127076 १४०8 1€ (1).

7) 70. = 2115717.

8) ¶10. = 1411004.

- 129] प्रधमं प्रकरणं 45

योक्त भगवतार्थतकरधमूतर चित्तं दि काश्यप परिगवेष्यमाणो लभ्यते षन लभ्यते तन्नोपलभयति : यत्नोपलभयते तंनेवातीते नानागतं प्रत्युत्यते ! यतरेवातीतं ना- नागते प्रत्युत्पन्ने तस्य नास्ति स्वभावः ` यत्य नास्ति स्वभावस्तत्य नास्त्युत्याट्‌ः ' त्य नास्त्युत्पादस्तत्य नाप्ति निरोधः ' इति विस्तर्‌ः। | यस्त॒ विप्ातानुगमान्‌ [प. 169] मृषावे घनाणां नावगच्छति प्रतीत्यभावानां त्वभावमभिनिविशते ' [12२] सं धमे धिदसत्याभिनि विशादमिनिविषटः सन्‌ कमाएयपि बारोति सतारे ऽपि तेसरति विपयीपावस्यितवान् भव्यो निवाणमधिगततं |

कि पुनर्मृषास्वभावा रपि पदाथाः संन्तेशव्यवदाननिबन्धने भवतति तधा मा- याघुवतिस्तत्स्वभावानभिन्नानां " तथागतनिर्भितिशचोपचितकुशलमूलानां।

1) पम्वण षष 3700, 10४1. 562. ~ एम" &115 28. 258. 15 (285, ०. 1); €}. 261. 4; ०016. { ड. 106 (. 388. 16).

2) 9) द्मषृसप्प 4) ©). ५१४५०८0.

1 11 निः >) (मनन, तिगृच्रनत् मनन्‌ नमम | 9 7४. कसमस तनु पदेषपर्‌, भमन्मपनदेमपकपय मस मनम्‌, पर. दमु नुन | 9 थिपसम - 0. 1888. 209, ०.7 (४-२४-29) © एषां व्णान्छ४० (4६. प.प. 870. 9 2०४४. 7. 1. 13, 14)

8) 10. = . . . * एावण्षुवकय १177 %षद्द . . . . 50१ द्रवी एकव, ६वद7द- ५९. .... १०४८११८१ ८५१. -- 50170९८ == गुम मस्व मनस्य; /८४०व ==. ममन

9) (त. - &. ४1१. 1 2. 521; 212} ह}. 442. 14; €720, ,०४०३, 2. 225,

0. 1; 1.४7. 22.8; 01१. 166.7; 0. प्रण, 189. 8; ४४0. उणा. 2 ब्ज 20410111046 48110.

46 प्रत्यपपरत्ता नाम [1२०

उक्तं रि दकध्याशयपरिपृच्छमूत्र तच्चा कुलपुत्र मापाकार्‌नाटके प्रत्युपप्थिते मा्यीकारनिर्भितां लियं ष्ट्रा कञिद्रागपरीतचेताः पर्षच्छार्वभपेनोत्यायातनाद्पकर- ¦ मेत्‌ ' सो ऽपक्रम्य तामेव ल्ियमशुभतो मनसिकुात्‌ ' श्रनित्यतो इतः शून्यतो ऽना- त्मतो मनतिकर्यात्‌ ' इति विस्तरः

विनये ' यल्नकारकारिता पन्नयवतिः सद्रूततपवतिशन्या सद्तयवतिद्रपेण प्रतिभासते ' तत्य चिन्नकारृस्य कामर्‌गात्यटीभ्‌ता तथा मृषास्वभावा श्रपि भावा बालानां पेक्तशव्यवद्‌ननिबन्धनं भवतति

#

1) 91 व्‌ ' " "." == ०7/८८/44९5 1५. © 28886 ९8४

61४6 2१६८ १11211९8, 0470788 16 १४३९४ १६०, 1008 ४१ रश्ा. 14 (म. वरव ९९). -- ^ 417 8 ९४ए 888 ८०१९०१३ {78 एण & 11 888.

2) 24. ८४. 245, 886 450 १/० ११९४ त71{८८क७ ४९. -- 8०416 18. 81 (. 271. 92): 17त/25८710/210॥ 72445 ददवा ९८१" दद

3) ८५४८५ == 2811 52१द/4, €. 1114९78, 8. १०९. @&11 $ 28. 296. 7 ९४ 8 ०4016. 2. शा. 118; ववक्क(0म्द = क० कव्व, उष्वा्काद्यू/ 4९व्माएव 454८कककद/द- 2१/10 0 104116८4 041145/0क 7 == €68॥ पाप्म 4 एकग #8 > 60088676 800 007) 0 ¶०€ ९८ 6८16 . , , * ,, -- 104 ९‰ब5 80{ €ापा€168 7 1.-8, 1. 21, 1818 168 16610168 १६९8३ }2788., €016 ८९61168 १९ 1€वा+€णा) 800४ 10८0116668; 14 00149. र, ए. (8०९८. 48, 9. 3079 8) ००8 01106 19 0606 11816: द्यच्छ्रल्छवछव, वद्माण८ (== (प1०), 11647 7वद्‌ ४/० (= 5वएकद््व्या ऽकाष्लः$व17)) 4५.4१०, १141414०, -- 1.6 (गणा०6६०६४776 १७ 8०1९. फा. 118 फलं 86 ४8 ला 887086६. ए०णाः 8ण+{ १०९ 1266046 19 »९78100 ॥96{8106, 11 ०००८ वलट 6९४08: 18, एएलणाला6 ९०116800

2 ८९116 14 ०149. ए. (मनत == 50110241) ; 19 8660106 &1086 दिन्प'

(5बव) 9 नरयुत' €&४ नहगाहेमुपः == (4४, 5८०, 10८. ~ @प‰€ पिथदणा३, 2८९९९189. (ण. 8 7, ॐव (08188 7 1.-8. 2. 50): 4५८0८४६५) ०६८०, ९९, ५2५ ४०८८०. ~ 7 धृ€प्8 (वप पापा 16, €1८.) 4.7. प, 1. 406. - 11888. 198. 7-11; 296.

4) 719.

5) ०४४८४८५ ११०९ 020 १88 ¶10.; 86 79006 66६ 2 16606 16 ५60१6०४

120] प्रधमं प्रकरणं 47

तथार्थ लनरूमूतर घव वल तानि पञ्मात्रापि भिततन भगवतो धर्मदेशना- मनवतरृत्यनवगादमानान्यनधिमुच्यमानानि उत्यायासनेभयः [7). 160] प्रक्रात्तानि श्रध भगवान्‌ [तत्यां वेलायां] वेन मार्गेणिते भिन्नवो गच्छन्ति स्म तस्मिन्‌ मार्गे दी भिन्रू निर्भिमोति स्म

रथ तानि पञ्च भितुणतानि येन (मर्गे) ती दौ मित [निर्मित तेनोपसंक्रामत्ति स्म| उपतक्रम्य ताववोचन्‌ ' कृत्राष्मत्तो गमिष्ययः निर्भितकाववेचतां ' गमिष्याव श्रावामरएायतनेषु ' तत्न ध्यानपुख+रस्पर्शविकरीर्विकरिष्यावः। वे कि मगवान्‌ धर्मे देशयति तमावां नावतहावे नावगाद्टावके नाधिमुच्यावके उच्नप्यावः संत्रातमापय्या- वहे श्रथ तानि पञ्च मितुशतान्येतद्वोचन्‌ * वयमघ्यायुष्मत्तो भगवतो धर्मदेशनां नाव- तरामो नावगाष्छामके नाधिमच्यामके उच्तप्यामः संत्रत्यामः संत्रातमापग्चामरे तेन वय. मरृपयायतनेषु ध्यानमुलत्पशविकरि विकरिष्यामः निर्मितकराववोचतां ' तेन चायु घ्मत्तः संगास्यामो विवदिष्यामः। ्विवाद्परमां' हि भमणस्य धर्माः। ५५५५९ का- त्यायुष्मन्तः प्रकाणाय प्रतिपन्नाः तान्यवोचन्‌ ' रगदेषमोकरानां प्राणाय वयं प्रति-

1) 1). रगुण मङ्ग पडेगृस गिदब्खु' ~ पण 16 पला ६९216 लं€ 1002 24 उणा. 33. 2) 1.6 प. शण पसमनुृम्ेपमः = 0192000 10769, €. 1९ ४11 ए, 9. 88. 8.

3) 1.68 110४8 €0{16 [0 916€006868, 0210188 1€ ॥€् 18 लो४द प्रा णा. 383. -- १714८, 28108 0. 442. 14.

4) ऽ्ाकसवा्क धमवाव) एणः 0. एकप 245. 649, 255.8. 5 11888 200. 18 9. 86०१४11 816०216 1४1.-*. 357. 18 11 ₹. 1. 628

8) ०४१४८८४. (7. @&11§ 8. 268. 18 १८ श्ववदं ६८८ ९7401010 12001 १145410४ (€. 195. 7, 281. 14) - 1. $ ०४. 245. 1189 -- 1.०६प8, ए. 58: 1 शा 0 पर्ल एशिा€ कणत; कीक णि ताशृूपतीाद् (ए१३१३, 76701266 १४०३ 16 218. 09 ११802) 800४६ 1४; #6€ 86€166 ४16 1810४ 18 9९१ ०त 16280110, -- ८४४४८व८ == व८का८ १6007 १8०8 16 8875४१४२ ९. (15, 11): कष्कच्छवरछक्को चः. -- 1.68 8 एष्धक्वव्क्वः,) 2121} 0. ति. 1. 245. -- 10प४ 16 0006 86 078ए।6९, 0718 168 71010९8, 90८. 2. 1260.

6) . 1078 01. 1003. के०6 {९६16 681 2017606.

10

।#

48 प्रत्ययपरीत्ता नाम (12४

पन्नाः [79.179] निर्भितकाववोचतां \ किं पनरायुष्मतां संवित्ते रागदेषमोका वान्‌ तपपिष्यथ ( तान्यवोचन्‌ " ते ऽध्यात्मं बिध नोभयमत्तरेणोपलभ्यत्ते नापि तेऽ्य- रिकिल्यिता उत्पस्यते निर्भितकावतोचतां\ तेन खायप्मत्तो मा कल्पयत [मा विक- ल्ययत] ' परा चाघष्मत्तो कल्पपिष्यथ विकल्यपिष्यथ तद त्यथ विरत्यथ '

8 यश्च क्तो विरक्तः शात्त इत्युच्यते णीलमायुष्मत्तो संसरति परिनिर्वाति '

समाधिः प्रत्ता विमुक्तिर्विमुक्तिक्षानदूर्षनमावुष्म्तो संमति परिनिर्वाति एभिशा- युष्मत्तो धर्मँतिर्वाणं सूच्यते एते धमीः प्रन्याः प्रकृतिविविक्ता "प्री तितामायुष्मत्त संता डत परिनिर्वाणमिति। मा संतापा “संता का ' मा स्तायां “घतत परिता- सिष्ट \ यो हि वेत्तायां सत्ता परिनानाति सेन्ताबन्धनमेवास्य तद्व [।१०]ति संत्ञावेद्‌-

पितनिरोध॑समापत्तिमायष्म 1 विद्‌ निरोध 10 य्॑मापत्तिमायुष्मत्तः तमापय्यध्वम्‌ संन्विद्‌ पितनिरोधसमापत्तिसमापन्रस्य मि-

तोनीस्त्युत्तरोकररणीमिति वटावः॥

तेषां पञ्चानां भितुणतानामनुपादाीभ्रवे*यशिततानि विमुक्तान्यभूवन्‌ तानि ` [ए)0. 17] विमुक्तचित्तानि पेन भगरवास्तिनोपसक्रात्तानि ' उपसंक्रम्य भगवतः पाक्त िरसाभिवत्येकातते न्यतोटन्‌।

1) ©€ 801६ 1€8 €19व्‌ [0101{८1451418व7 5 ; ?०17 7 0.-8. शा €४ 80 पा ८६8 61668 ‰% 10८. (1116 ४. ए़प४. 4.)

2) 1088. 541097/क ; (0. २२.मेसय

3) 09168 16 (19. 51497210 7४० 147000द100,

4 79. नमु नस" दुरः कन्दः नगगु पति पमसनपमनइ्गुप = अकि 0४०१0040, © 0114678 288 9 4.

ठ) = एदा (काणाः दव्यव्य्छक = > २.

6) 1. 1. (लछफापा6 वणं 0. 100 9); वडा क्ल कका क्द्यूएवा॥क$८ @7दक/व= `

20219€ ६९६5217५ 147८0020. , . . . 7) १/0 7दव्‰/८; (119. विमुपभेद्प्‌, == ८१९८५. -- 1.16 [17688101 €8६ 716

€0100्९, १०7 1. $ ८४. 129. 8.

ऋ, चा- + >

प्रम प्रकरणं 8...

शरधावुष्मान्‌ सुमूतिस्तान्‌ भिनूनेतद्वोचत्‌ ' कत्रायुष्मत्तो गताः कृतो वागताः तेऽवोचन्‌! कविद्रमनाय कुतश्चिदागमनाय भतत सुभूते भगवता धर्मो देशितः श्राह '

` को नामाचष्मतां शास्ता घ्राङ्ः ' यो नेोत्यत्नो परिनि्वात्यति श्रा \ कयं वुष्मा-

(प्‌ ( ) = भिरधरमः ग्रतः घराङ्धः \ बन्धनाय मत्ताय राक्‌ ' केन युवं विनीताः घ्रा: ' यस्य कायो चित्तं श्रा ' कय युवं प्रयुक्ताः घाङ्धः ' नाविच्वप्रहाणाय विच्योत्पा्‌- नाव श्राह ' कस्य यूं भ्रावकाः } घ्राङ्ः ' पेन प्राप्तं नाभिपेनुदं भ्रा ' के युष्माकं (9) [न त्रेधा नोपविचर्‌त्ति [न्व्‌ (न [न्क तत्रद्धचारिणः। ब्राङ्कः ' पे त्रेधातुक्रे नोपविचर्‌त्ति भ्राक्‌ ' कियच्चिरेणायुष्मत्तः परि- निर्वास्यत्ति श्राङ्ः \ यदा तथागतनिर्मिताः परिनि्वास्यत्ति श्राह ' कृतं युष्मामिः करणीयं ब्राङ्ः ' बरहेकारममकार्‌पार ज्ञानतः श्राह ' तीणा युष्माकं त्केशाः। ब्राङ्ः ' ~ 0 ~ (4) मरत्यत्तत्यात्सर्वधर्माणां रार ' घर्षितो युष्मामिर्मारः ्राङ्ः ' स्कन्धमाहनुपल- म्भात्‌ श्रा ' परिचरितो युष्माभिः शास्ता [1. 189] घ्राङ्धः " कायेन वि्चोएि यष्माभिरट्‌ि [क [र (5) ^ - वाचा मना श्राह ' विशोधिता युष्माभिद्‌ ्िणीयभूमिः [13१] ब्राङ्ः ' ब्रमाहहतां $्रतिातः घ्राक्‌ ' उत्तोणो युष्माभिः संसारः ्राङः' षन्‌च्छताऽशाश्चततः॥ घ्रा! ( ) ष्माभिटृत्तिणीयभमि रि हि किमगा प्रतिधन्रा य॒ष्मामिर्दतिणीयमुमिः घ्राङ्ः ' पर्वमरारविनिर्मुक्तितः घ्रा किंगा- ध). ~ घ्रागतनिर्भित [भ एत मिन घ्रायुष्मत्तः घ्राङ्ः ' पंगामिनस्तथागतनिमिताः इति खायुष्मतः सुमूतेः परिः

1) 28.192}. 22. ११(/701015451/2 एधा . - , ०८47000 पद्वक४.

2) & ४४8१. ४. 39 10 06: व६८ एाप्फकाकल्वम/ ककड ११यद्ब्एदछवण्ड 62 10 - दद ९४.

3) 00 08००6 16 ०, 16 १० 1 व्कच्न्छवन्वाव (00. 8101; 4011411. 887. 0808 ¶, ?. {. 8. 1884}.

4) प्रण &1॥६88. 198.10 &४ 11१. 1. 278. 2 281. 7, प€ €पप्ाक&ः ४०0 १९ ४५९ दः अआवदकद्ाद, 6०, ११११६४०) 4८८८८१५०. ए0णाः 168 8001668 2081168) 11468, 2. 241 (वए्करकद्-९).

ठ) प. पमगृगभये सुरससम्‌, प्रभः 0ापात९२७, ९, १०९. वणक वन्द; &11 8 28. वब १४/५. 6) १५1११५14 =-= सुगु ¶) १. 1. 206.16 कारणदा एकव, , ^ दवकडथद् ०९/ब१॥ क0४, कका कवकृद्, . ~ ६४४४१. 9. प्रा. 8 कारडकाारकका१्/त.

10

15

80 प्रत्ययपरीता नाम [13४-

पच्छ्तस्तेषां भिन्रूषां विसत्रयतां तत्यां पर्षदि श्रष्टानां भित्तुणतानामनुपादायाश्रवेभ्यशि- त्तानि विमुक्तानि दात्रिशतश्च प्राणिसक्त्नाणां विरतो विगतमलं धर्मेषु धर्मचततुः वि- शुडे इति

इत्येवं मृषाप्वभावाभ्यां तधागतनिर्भिताभयां भिक्तःयां पञ्चानां मितुशतानां व्यव-

5 दाननिबन्धने कृतमिति!

उक्तं चायवज्जमएडायां घारएयां त्था मज्ञग्रीः काएडं प्रतीत्य मधनीं प्रतीत्य पहषस्य हस्तव्यायामे [च] प्रतीत्य धमः प्राडर्भवतोति ' अरधिरभिनिरवर्तते ' चापरिसेतपो काएडसेनिभितो मधनोपेनिभ्रितो पुरूषदप्तव्यायामतंनिग्रितः एवमेव मज्जुग्रीरपदिपयासमेहटितत्य पुहषपुद्रलप्योत्पग्बते रागपरिक़ो देषपरिदन्ो

10 मेोपरिदादहः परिदारो नाध्यात्मे बहिर्धा नोभयमत्तरेण स्थितः

पि तु मजच्रर्यडच्यति मोर्‌ इति तत्केन कार्णेनोच्यते मोक्‌ इति [10.18] ्रत्यत्मक्तो कि मञ्चप्रोः पर्वधर्ेमेरित्तेनोच्यते मोर इति॥ तथा नरकमुला मञ्ुीः स्वधां इं धारणीपद्‌ ग्रा कथं भगवननिट्‌ घाटणीपट्‌ घ्राद्धे नरका मज्ञुप्ीना-

1) १९७६-४-0176 ०१18 16118606 16 व7द11€ क111104वक1(व. 2) ४०7 &-068878 46. 6. 8) 1. [म सरतयिस = ५८८१८१द्‌द्॑, -- एगंए 20110, 372, 378

(587, 524 ^. 7.); 81107, 11१० ॐ, 01. 455-474 (4. #. 6. 11. 250); 8 प77.; 10४71. 2. 548. पिष््ण€0; १७ (८६४४6 लोष्छित्मा €8॥ 7670 1708 9 ह, 13. - डिप्राः 18 रभ्रा पप 0४ 4‰कृक 1808 16216881 2०4701410क@, व00४ लना 1611१66) ०१1८, 1.) ए. 58, 0016 8. ~ 77 द्याव) एणं ९1, 10108, 311, 7006; 8पदढ 1, ^ ९१8६1०28 0)8८०पा ३९... ,, 186. ०. 3: लप्रला6 कक्षा 0९98 अं णु दष्ाभ्णा2४6 एगृ6भेप्मा क्णंला का]] इलधए6 28 9 6 ४० ४€ १९०) शंह्णां0५४०८९ {€ 006४1069,

4) 27616 6000 918180 [४11४8 211. 8-4. ए) 2088. 50111090, ०108८ र्ठ; 10 र. 1. 483, 486.

6) ९१] १6 160 पा्प्रप४86 हका 9176 0पा 9] पकु€ाः 068 6०668 वषा ०6 १४2161४ 2288 7116पड्» (एप््ाछप).

7) «.. ८६४ &106 १6 18 द्ध्य (एप्पण०प).

--14] प्रधमं प्रकरणं 51

लपृधग्ननैरसदिप्ीतविटपिताः त्वविकल्पमभूताः श्राह कुत्र भगवन्नरकाः समव- स[॥4भ]रृत्ति भगवानाह प्राकाशपमवतरणा मज्ञ्रीनकाः तत्किं मन्यते मज्ञप्रीः स्वविकल्यसेमूता नरका उत स्वभावभूताः श्राह स्वविकल्पेनैव भगवन्‌ सवंबा- लपृधणनना नर्कतिर्यग्योनियमलोके सेनानत्ति ते चासत्समारोपेण इलां वेदनां वेटय- त्ति इःखमन्‌भवत्ति त्रिष॒प्यपायेषु 8 पया चाके भगवत्नरृकान्‌ पश्यामि तथा नारके इः्खे तव्वथा भगवन्‌ कशिदेव पुरूषः सुप्तः स्वघ्रात्तरगतो नरकगतमात्मानं संनानीते ' तत्र कायितायां "प्रनचलि- तावामनेकपीरषायां ' लोकूकुमथां प्रततिप्तमात्मानं सनानीयात्‌ , तत्र लां कटुकां तीनां डभ्वां वेदनां वेदयेत्‌ ' तत्र मानसं परिदा तंनानीयात्‌ [70. 192] ' उच्नसेत्‌ स्नातमापयेत तत्न प्रतिविवुदधः समानः धरो डःलमको उ'खमिति ऋन्देत्‌ शोचेत्‌ 10 परवेत्‌ खय तत्य मित्नक्ञातिसालोकिताः परिपच्छ्युः' केन तत्ते डःवमिति ता- न्मित्रज्ञातिपालोदधितानेवं वदत्‌ \ नेरेयिकं इःखमनुभूतं तानाक्रोशेत्परिभिषेत्‌ ' शरदे नाम नैरयिकं इःखमनुभवामि वृधे मे उत्तर 'परिषच्छ्य केनेतत्तव इःखमि-

1) ©. ०५१०012 (11. प. 245, 887, 10. 3) = ०174092 (प. 1६. 7.); ०१ 11988. 180. 4, 2356. 1; (पवण्णुष्य्वएव) २४१6८8४ 202; 1, त्र. 1. 18.

2) प्रभो 4. १०४. 245. 17४४-6. -- 2918 (7व्/द@्@४ == ५१००४ ०0 9.16 णण (8 ००),

8) {4५१५484 == 1४ 6028706 पण्णा 0006 ए6€प/ एगध (?. प.). - व). षम्‌ \ = (एश ]116 1077689.

4) (ण), कषक; दषस ; एद्ा४१९४१ च9 9.5, तः. 75. 8, 8०416. ए. णा. 89.

४) 8401794, €. १7०. 101ए8 409, 21१. 4 १, 681. 6 (२. प्र.); 16 ४४. 11४ 5द- १1104 (=-= ४१९6 ०7&प्थ]).

# 6) 1088. ०८९०४०४; (9. 4) ५५८५४, 0१. 1. 896. 9,

10 कल्पसहस्राणि नरकेषु डःवां वेदनां वेद्यमानमात्माने संन्ानाति।

52 | प्रत्यपपरक्ता नाम [14४

ति श्रथ ते मित्रन्नातिसालोरिताप्तं पुरषमेवं वदेयुमां मेः पुरूष सुप्तो हि बं "न मितो गृाति चिन्नि्गतः॥ तत्य पुनरपि स्मृतिरृत्पग्चते सुप्तोऽमभूवं वितथमेतन्मया परिकल्यितमिति + पनएपि सोमनस्ये प्रतिलभते

व्यग्रा भगवन्‌ पुहषोऽपत्तमारोपेण सुप्तः स्वप्रात्तरगतो नएकगतमात्मानं संतरा-

क्‌ (2) ¢ नीयात्‌ ! एू[14ण]वमेव भगवन्‌ सवबालपृथगना श्रद्रागपयवनदाः स्रीनिमित्ते कल्पय-

त्ति। ते ल्रीनिमित्ते कल्पिता ताभिः सार्धे रममाणमात्मानं संनानत्ति तस्य बालयध- ग्जनस्येवे (1. 190] भवत्य पुष इं त्री मनेषा त्री तस्य तेन च्छरागपर्षव- स्थितेन चित्तेन मोगरप्येष्टि चितं क्रामयति ततोनिदानं कलविमविवादं तनन-

(५) ~+ भ, = [ने कषप ४००१ यति तप्य प्रइ ेन्नियस्य विर संनापते। तेन पंज्ञाविपर्यातिन कालगतः समानो बह्कनि

तग्वधा भगवन्‌ तत्य पुष्य मित्रत्नातिष्ालोकिता एवं वत्ति "माकरः माङः `

~ = 4 (न (6) चनन ~

भोः पुरूष सुप्तो दि वे " मितो गृद्धात्‌ कतशित्निगंत इति एवमेव भगवन्‌ बुदा भग- (7) पिविपर्वत्तानां ~~ (नद

वत्तश्तुर्विपर्था्विपर्यस्तानां सद्लानामेवं धर्मे देणयत्ति ' नात्र स्त्री पुरषो तलो

्ीवो पुरषो पुद्रलः वितथा इमे सर्वधर्माः श्रसत्त इमे सर्वधर्माः विठपिता से

1) 2188. 1८प्व006110५07 06204 ४४. 2) ककव == पेयेयमगुस् == 45८14, ४१6५ पलवृ्€ 286.

ॐ) 01201९59 ०54४९७४ 117 71410द ९7१वत, 11701९5" १20 (4 90100. 1. ए. 800. .4.8., 286 8).

4) 2188. अनष (= = 8160९*. ~ ए. स.). 098 (19. दयप == 01676706. एरसःसु' " " " == 10९50194.

४) 1104514 == गड्गृम, 0006 १6 $ €४ 00 १6 व.

6) 96 1188.

¶) ऽपः 168 ¶प््6 ००१४755, एणी प8€ ००, 1900, 2. 286 १०६ 28. 7. 5 4.78. प. 1. 52, &11 8 8. 198. 11, 7116915 7018116, 81. 48, 4 0914}. 7. ए. (8०८.

-15२] प्रधमं प्रकरणं 938

सर्वधर्माः ' माघोपमा इमे सर्वधर्माः ' त्वप्रोपमा इमे सर्वधर्माः ' निर्मितोपमा इमे सर्वधर्माः ' उटृकचन्द्रोपमा इमे सर्वधर्मा इति वित्तर्‌ः इमां तथागतस्य धर्मदेशनां भ्रुवा विगत- ` गान्‌ सर्वधर्मान्‌ पश्यतति ' विगतमोकरान्‌ स्वधर्मान्‌ पष्यति श्रस्वमावाननावर्‌णान्‌ [17. 209] ते ्राकारात्थितेन चेतसा कालं कर्व ते कालगताः स[159]मानाः नि- हृषधिशेषे नित्राणधाती परिनिवीत्ति एवमकं भगवन्नकान्‌ पश्यामि इति उक्तं चार्पोपालिपरिपच्छाां ।'

भय दशित नैरपिकं मे सवमह सवेन्नित नैके

विष्यति किक सब यो च्युतु गच्छति घोरमपायं

कार्‌क्‌ कारण सत्ति पेद कृता ्रमितोमरशत्राः।

कल्यवशेन तु पश्यति तन्न कापि पतन्ति श्रपापित शत्राः॥

1) 9. पप. 10. 14. 16. 2) ¶7४. = व्ादश्कलावााः 1१7९४. 8) 1. = ४८ प्रल्यद॥ क्व इद्याष्वककापकीवाा. . ,

4) 66 #४हा0९0४ 68६ 6४6 2१ णा. 19 शा. 10. ~ प्ण क्ण 1. 7, णा. 12. 1078117 9117०५०१ भं€6€ 1908 (111८8 8. ९8४ 08९. (4. 19 ०016 १७ 1. 86० - 0811, 164. 8). - 0676 7 ०१४1४, 17€्णाल) 1९8 8085 17108178 71686 16 8606706 -~> | -~“ | -~~ | --.

8) 1088. 47019/07द/0971, 4701401. . . 19. == (१ कध्वक्कट 2१८ १144८ वा थतां उच्वरवव्डात्क वृण्ड, , .

9) गुरसगा नयगो मदनकल्‌/ मक्तमु ९दवेमुपति | परवरः सेय एमपम्मुे | ्गुणतै सृफमगोस न्स ब्ग | दुख तिवत मुर दगु ममु मेत्‌ ||

801८; #€ 454-10000-4-451170-15९09१५- दव लद द्त्वा, [१८] उक; प्मकवदतवः 0५104145 ६6 1द/८ [वकत [वक] [वदत काद (वसद १८ ऽवा,

84 पत्ययपरौोत्ता नाम [159-

चित्रमनोरमसन्नितुष्पाः ध्वर्ीविमान जलन्ति मनोक्ताः। ^ तेपि कारक नास्तिद्ध कथि तेऽपि स्थापित कल्यव्चेन कल्यवंशेन विकलं लोकाः सं्ञगंरेण विकल्यितु बालः सो भको घ्रगो श्रतमूतो मायमरीचिसमा दिः विकल्या॥ इति

5 तदेवमेते ऽस्वभावा भावाः स्वविप्यपिविढपिता बालानां सक्तेणदेतवो भव्ति संसार्‌ इति स्थिते #' | यथा मृषात्वभावानां पदार्थानां सं्तेशव्यवरानहेतुवं तथा मध्यमकाबताहा- दिस्तरैणावपेयं

त्राह ' पदि स्वतः पर्त उभयतोऽहेतुतश्च नास्ति भावानामुत्पादृस्तन्न कथम- # = ~~ ~ ~ (8) . 10 विग्ाप्रत्ययाः संस्कारा इत्युक्तं भगवता उच्यते (10. 20४] सेवृतिरेव तच कि ~ ^ = ~ (9) = + = मिदिर्‌भयुपगम्यते किं संवृतेव्यवस्थानं वक्तव्यं इदप्रत्ययतामात्रेण संवृतः सिदिर्‌*युषगम्यते तु पत्तचतुष्टपन्युपगमेन सस्वभाववाटप्रपङ्गात्‌ ' तप्य चायुक्तवात्‌ ' इप्रत्ययतामात्रा-

1) 098, ककादुषिठि, सूद कचान्‌; त. भगु [पये्‌र ऽद = 15764?

2) ण्व्‌014 = दमन, ग्छगुम

8) 1188. ण्वम्‌, एवन्‌. -- 710. यसः दमन (एद). ~

4) 2188. 210 ©, काद, 5८ ©, 50 ०८. ~ वप.

8) 2088. ०50, , , शद्वु; ०54१1द , , , गवन.

6) ४०7 ©-0688प8§ 46. १.

¶) एणा भ-46880्8 18. 7. 8.

8) 1088. 5८70४ @४द १८... , "9788 16 10. कद्व दण्ठ इवकषछा9" 10 144- ०११ ९व. -- ©०00. 178. (10. 01. 26.

9) ४० ५-4688४8 9. 0. 7 8,

15] प्रधमं प्रकरणं 95

भयुषगमे हि सति हेतुफलयेहन्योन्यपेतवरात्नात्ति स्वाभाविकी सिद्धिरिति नास्ति सस्वभाववाट्‌ः श्रत एवोक्तं स्वयं कृतं पर्‌कृते दभ्यां कृतमरेतुके तारकिकैरिष्यते ४. = > प्रतीत्य ~~ ( ) तार्किकरिष्यते डभ्व लया तुक्त प्रतीत्यत्र इति इ्छापि [157] व्यति 5 प्रतीत्य कारकः कम तं प्रतीत्य कारकं (क्पे दविकारणो (2) कम प्रतते नान्यत्पश्यामः पि इति

भगवताप्येतावन्मात्रमेवेक्ते तत्रायं धर्मकेतो यडतास्मिन्‌ सतीदं भवति ' श्र्योत्पादादिदमुत्पग्यते ' पड़ताविग्याप्रत्ययाः संस्काः पेस्काप्रत्यये विन्नानमि- ~ (8) ^ त्याद्‌ 10

त्र के चित्यरिचोर्यत्ति श्रनुत्पत्ना भावा इति किमयं प्रमाणत्नो निश्चय उता- प्रमाणन्नः तन्न यदि प्रमाणन्न इष्यते तदेदं वक्तव्यं ' कति प्रमाणानि किंलनणानि किंविषयापि किं स्वत उत्पन्नानि किं परत उभयतो ऽहेतुतो वेति। ्रधाप्रमाणननः युक्तः ° प्रमाणाधीनवात्प्रमेयाधिगमस्य (70. 219] श्रनधिगतो शर्धो विना प्रमा- णिरधिगत्तं शक्त इति प्रमाणाभावादृथाधिगमामावे सतति कुतोऽयं सम्यगनिश्चय इति 15 युक्तमेतदृनिष्यन्ना भावा इति यतो वायं निश्चयो भवतो ऽनूत्पत्ना भावा इति भविभ्यति तत एव ममापि सवभावाः सत्तीति " यथा चाये ते निश्ययेऽन्‌त्यन्ाः पर्वधरमां इति तेव

1) न्क्षत्णा ०00 1वलाप्ि066) 7918 (60720. 16 शचा शा. 1.

2) = णा. 1.

8) ४०7 ऽप}7४ 2. 9 9.7.

4) प्रण ९01. ¶४८०४, [४ पपि १०१३0211, 2. 80 द्व्वाणढे १९४८.

$वका; ३४1१8487. 8. 8. 13 - वद्या द्द 19 000१ १८ 5दव744९४; 8 ४४३7४. 845. 11.

86 प्रत्यपपरीत्ता नाम [187-- `

ममापि सर्वभावोत्पत्तिर्म विष्यति श्रध ते नास्ति निश्चयोऽनत्पन्नाः वर्वभावा इति " तदा स्वयमनिग्तप्य परप्रत्या।पनापतभवाच्छाल्नारम्भवेयघ्यमेवेति सत्त्यप्रतिषिद्ाः सव-

भावा इति उच्यते पदि कश्िनिश्यों ना[मा]प्माकं स्यात्‌! प्रमाणन्नो वा स्याद प्रमाणतनो ^ 5 वा।न बत्ति। किं कारणे इद्धानिश्चयपेभवे पति त्यात्तत्प्रतिपत्तस्तद्पेनो निश्चयः यदा लनिश्चय एव ताव्‌ स्माकं नास्ति ' तदय [16] कृतस्तदिहाविहदो निश्चयः स्यात्सेबन्ध्यत्तर्‌ निरपेनतात्‌ खर्‌विषाणप्य ्रस्वरीघतावत्‌ पदा चैवं निश्चयस्या-

1) €ए०प्र$ 18९८ [88 १९ [071६९९8 ? 7008 & 0881 1008 ०08 €) 98861008.9 (९8 17] €0 1100०86८ 1 72.४१ १2118117, 880८९ 18 (== ४व्वा एाव्वयन्ला, 46४य- 0१४८ 5४८१7४/१५6९व0 वक = ऽद्वकाक) वडकद्कुद्का) 10४ १८४८९7४८ 5०7 ऽका $नद) €॥ 7600166 8४. 69.

(०). ४६१४३४८४ [. 1. 8 प्रर.) पाणौ 168 11८४५०08 १€ 2 ~ ८980 2.{171412 (72081 ४१. 248. ॐ): इव्ए्वद्ः ९४व धद्व = ऽध्वडव्वद्ाव्छषन४४क- ८811०५१4 170411@10219/ ५९११८4५१ 10४, {०4८00४८ {व ४०००६१0 वक ~ 1 . &48%/व ६४ 5८0ब5द ९८८ १5) १25८ [दधद १८ कद्वद; ४४/ चावयव ९९5१0047. -- 1.1 21706 १९३ 011108001€8 ०८401468 €81 €य1वप्€€ ४१९८ ए९न- 8100: ४८१ {१८ "१6410 = 212द14/ 450 200045490 कध; ‰४८्व्‌/ व्य = आवक 11111111 71111110 112... 11.11.111 11/17 1111 1.111.111 8८7201९: 50 "204 {1८१11019 ०0 4100 &0४ 5८४९१०4९ ४१/१८ कव्य १८1८ ४४. -- 2. 6 8706 9 768प्रा0€ 12 01868810 १९8३ §दप10 ४8 61 १९8 द्वक क्षाा11 88, 016 811४-7 01108070016, 7. 208. 20

ल\ © [> ( पपनम युपय सरपनिःमै-र = २५2 09, 2) 70. गमु द्ुरपर्येपु मे सदमन 2 मद्ण्वो०द्मोकक एणा 8611117्]) 8. १०९. वदत, 20. फ़ प. 246, 749 (रकाय), 30०4016. 0. षा. 101, 20 0. |

8) 001५. कव्वकाढ; (कण). एषय)३ काश्ववाढ. व. देस, परसदुसः स. पृगृषमेपुषन, 0 परमते = ए. ९००86वृप्लणौ {08 168 6९8, फण 788 0168, 6818160४. किणः ~ गुते सिवगुष नेय बेगञपः ुगनेग छु ~ 1044-2744, €पा€पा' ए0पाः 744.

5) एभप्ते 10 प. दव्द्^ददा० कुत्वम्‌) = पुर भवानि

- 169] प्रधमं प्रकरणं 87

भावः \ तदा कल्य प्रतिद्यरये प्रमाणानि परिकल्ययिष्यामः। कुतो वेषां सेष्या लनं विषयों वा भविष्यति ' स्वतः परत उभयतो [ऽहेतुतो] वा समुत्पत्तिरिति सर्वमेतन्न वक्तव्यमत्मामिः [7)0. 21]

प्येवं निश्चयो नास्ति सवतः ' कथं पुनरिदं निथितच्रपं वाक्यमुपलभ्यते भवतां ' स्वतो नापि परतो द्यां नाप्यरेतुतो भावा भवत्तीति उच्यते ' निधितमिः्‌ं वाक लोकस्य स्वप्रतिद्धयेवोपपत््या नार्यां

किं बल्वार्याणानुपपत्तिर्नाप्ति वेनितडक्तमस्ति वा नात्ति वेति परमार्थो चार्व] तूष्णींभावः, ततः कुतस्तत्र प्रपच्चतेमवे धडपयत्तिरनपपततर्वा स्यात्‌।

यदि च्चारयी उपपत्ति वपीयत्ति केन वत्तविदानीं परमार्थं लोके बोधयिष्यत्ति॥

ल््वार्था लोकपेव्यवद्धरिणोपपत्ति वर्णयत्ति ' किं तु लोकत एव या प्रसिद्धोपपत्ति-

०८८ ९.७ (3) ^~ ~ ~ [न [न्क

स्तां परावबोधाधमभ्यपित्य तवेव लोकं बेधयत्ति पंयेव हि विख्मानामपि शरीरप्र-

विपर्यातानगत गः ४८ ^ 3 च्वि षतत

चितां नगता रागिणो नोपलमतते प्रभाकरं चाभूतमध्यारष्य परि

~ ~ 4 नतो न~ ~~ (4) न~~

` तेषां वैरग्याधथ तथागतनि्मितो देवो वा प्रुभेन्तपा प्राक्‌ प्रच्छादितान्‌ कायटोषानुषवर्ण- (प्‌ ~~ न~ (5) रस 3, (8)

येत्‌" सत्यस्मिन्कापि केशा (रत्या]दिना ते तस्थाः घ्रुभज्ञाया विमुक्ता वरेहाग्यमाताद्‌-

1) 1188. 7४45 176१701०; (19. तिदगुसद्ुमसयो- -- ^£. प. ए. 158. 9

^ + ११/११ 1477८ १द/१00007 द, ^+ 66 81666 81000086 1४ काका प्रवाह. -- 1.6 74170717 ९8४ 1तालणा6) व्पहव्याकश्क्धठ, -- 00 881४ 0 भलया १०९ 1९8 19117. 088 &870671 16 81161166, 1.87 एए. 17. 15 80५९७ ५६668 च. ६. ^. 8. 1909, 0. 874, ४. 1.

2) 7070168 16 111. £4510लव्‌ १५८१0000 {१/१ 04100 610/450001014045 ६व१क 2704 460540007@एव1# ६०.

ॐ) 288. १10508८, ११११८९०८. व10. देषपुयस्‌

4) ४७8. इक्क, क. तुसु

8) (णक छः 80०4116. ‰, 295. 4 ‰॥ 2}}0. प्र. 1. 90, &118 8. 298, ९॥९.

6) 2088. ०5१07 द/20 ४१5८८; (710. पुरुरपनिः ९स्‌.मेसः सन पु.पस्

4#

10

98 प्रत्यपमठेत्ना नाम [16४ `

पेयुः एवमिदाप्यर्पिः सर्वधाप्यनुपलम्यमानात्मकं [16४] भावानामविष्यातिमिरोषदहत- मतिनयनतया विपरीतं [7)४. 2४०] स्वभावमध्याेप्य विच्च कं चिद्िशेषमतितरां परिक्किष्यति पृथणनाः तानिदानीमायीस्तत्प्रतिद्यैबोपपत््या परिबोधयत्ति ' वधा विश्चमानस्य घटस्य मृदादभय उत्पाद्‌ इत्यभयुयेतमेवम्‌त्पादात्ूर्य विष्मानत्यै विश्च. ` 5 मानन्नान्ना्त्युत्पाद्‌ इत्यवतीपतां वधा पभूतिभयो व्वालाङ्गादिभ्यो ऽङकर्योत्प- तिरन्तीत्यभयुपेतमेवं विवत्ितिभयो ऽपि बीबादिभ्यो नात्तीत्यवसोयतां। ` `

्रयापि स्याद्नुभव एषोऽप्माकमिति एतदप्ययुक्त पस्मादनुभव एष मृषा * घरनुभववरात्‌ ' तेमिरिकदिचन्द्ाग्बनभावावदिति ततश्चानुभवस्यापि ाध्यसमवात्तेन

(

( प्रत्यवस्थाने युक्तमिति 10 तस्मादृनुत्पत्ना भावा इत्येवं तावददिपरीतस्व्रपाध्यारोपप्रतिपततेण प्रधमप्रकरृणा- रम्भः। इदानीं चिवः कथचिदिशचेषोऽध्याप्तेपितत्तदिशेषापाकरणार्धं शेषप्रकरणारम्भः' (4) | "कक, ^ 9 - 1 प्रतोत्यममत्प त्ये? गत्तृगत्तव्यगमनारिकोऽपि निरवशेष विशेषो नास्ति प्रतोत्यसमत्पा्येति प्रतिपाट्‌-

१५ नाध

न~ ~ . ~ भ्रव स्यादेष एव प्रमाणप्रमेयव्यव्ात लोकिकोऽप्माभिः [79.221] शाल्रेणानुव- @ = = (6) ककि ^ नाशितो 15 णित इति॥ तदनुवर्णनत्य तरिं फलं वाच्यं कुतार्विकः नाशितो विपरोतलतणा-

1) 1.68 2188. भ0प्॑ला† 14454) वपं 7801476 १४०३ 16 ¶10.

2) 10. == १1521110.

3) 1/6 (19. 1966 16 168 7018 10107056 वत14/०6००1 097 ०4४८४. (पमा | भ-0688प8 1. 8.)

4) 01४701४6 1.

६) 76 06 8278 06 पपत] (क्क 11 ९8४ ¶्ट8#0ा, णं पणा ९४॑ 107]€५१०४. -- (१0. रिकिस्गुगे पमपरुमसु == 08101 द:4101 (75८16.

6) ग, गने 1

--16] प्रधमं प्रकरणं 59

भिधानिन तस्यास्माभिः म्यलक्णमुक्तमिति चेत्‌ एतदप्ययुक्त यदि हि कता वििर्विपरीतलततणप्रणयनं "कृते लक्यवेपरीत्य लोकस्य स्यात्‌ , तदर्ध प्रयता. फले स्यात्‌ ' चैतरेवमिति व्यर्थं एवावे प्रयत्न इति शपि \ यट प्रमाणाधीनः प्रनेपाधिगम[(7भत्तानि प्रमाणानि केन परच्छ्ष्तत इत्यादिना वियरव्यावतन्यां विहितो दोषः। तद्परिरारात्‌ सम्यग्लक्षणग्योतकलमपि नास्ति। किं यदि स्वपामान्यलत्षणदयान रोधेन प्रमाणदयमुक्तं " यत्य तल्लतणदये किं ल्त्थ॑मत्ति ' श्रथ नात्ति प्रस्त तदा तदपे प्रनेयमस्तीति कवे प्रमार्षयं श्रध नात्ति लके ' तदा ल्नणमपि निराश्रयं नात्तीति कथे प्रमाणदंय वत््यति दि ' लक्तणापंप्रवत्तौ लत्यमुपपग्चते। लह्यस्यानुपयत्तौ ल्तणप्याप्यसेभवः इति

1) पप. ्गुगेन्मय = का.

नां 2) "9078 110. %10१4४वद (2; " ' " उम. +~ " "` ~ 3) प्रणा 2. 16 ४. 5. (0 भानः 0 पाः 16 8€08 1 8. 31 १6 18 ४181808१ -

४878117 (== ४वा एवछवयक्ाा १1092) 101147दवा ९० 5४दा 4141८) 2१८९ 017001द10द४पु/ 0४ द्वव सद्व दवद). 0४6 ग्लाशं०ा नकक्ष०6 (वपं व०णा6 11001680

यगु पप्यस) 0768६ 288 7 17166. 4) एषा, (णो, प्र पमा; पम प, मकमुषुढे

8) ६44410414001. , . = सुुप्यसः गन्म गृ्षमि्ु्परुणस == 1/0 ०0514 101411९0 दरदः . . .. - 8118 67086 1४4०९116 भु 9्{1601606 16 5धव्द5१८ 16 55१04 ९8 1०5४८, 1 710प8 शिप्रा 9108, ०प४6 16 क्षारा) 8 पपं 6071- 081 16 5४ 5द१@ (19 1401९004) ९४ (लोपं वणं (नण 16 ऽद्वप 64१@ (2७ 704- ऋ€94), प्या ॥078्ा6 74170 पणं ६0081586 18 ९1086 >, 1४4४6116 90916006 168 06 [51045 (३2०५ 7व7९४व). (८०60 १०८ 821४-1] वहप्ड 11८71045?»

6) ४०7 ©0-0688008 90]. 209 (10. 269 च१्.). ~ 21 कद्नव) प्रद्तप्ं एण्ड 08४ एष्य रपुम, 2 16 0णः €वणार्श€ण४ मरम्‌ म्‌-

¶}) = ए, &

10

60 प्रत्यपपरोत्ता नाम [179-

श्रय स्यात्न लत्यतेऽनेनेति लक्तणं ' कि तरि कत्यल्युयो बलमिति कर्मणि

+ (प ~ 9 तेनेत (3) = [3 ल्युट कुर्व लत्यते तदिति लत्तणं एवमपि तेनैतध्य लत्यमाणतासेभवायेनैतल्लत्यति तत्य करृणप्य कर्मणो ऽर्घाततरवात्‌ \ एव रोषः (7५. 28१] |

श्रथ त्यात्‌ ' ज्ञानस्य कणवात्तत्य स्वलत्तणात्तभावाद्यमदोष इति उ- च्यते इक भावानामन्यासाधारृणमात्मीयं यत्स्वद्रपं ततस्वैलत्तणं , तख्यथा पृथिव्याः काटिन्यं वेद्नाया विषयानुभवो विज्ञानस्य विषपप्रतिविक्प्तिः तेन कि तललत्यत इति कृता प्रसिदवानुगतां व्युत्त्तिमवधू वर्मताधनमभ्युषगच्छति विज्ञानस्य करण- भावं प्रतिपग्यमानेनेतयुकतं भवति स्वलत्तणस्यैव कर्मता स्वलक्तणात्तरस्य करणभा[79]-

1) 8१. ना. 8. 118. -- गष, ठेपयमुतमेषनिरत 2) 1088. ६८110 ९४०११. -- {९11८ 11846 १४०३ 119.

3) 0 ध]0168 (10. ६९११८४४व.

4) 06001४00 6128814९: $ 8017100 {. 15. 19.

8) 768 णा्08 ©128814०९8. -- एणाः 16 कु" १6 16€फलणौ ६76, एणाः 70१7760६ 881२४३7९. 8. 21, 5, 8०41016. {. 827. 19, &11 8 8 8. 245. 8 (पकए ९868 9101068), 72111. प. 1. 188. - ^ 01140. ६. ए. (8०८. 48.) 241 0 7: श्ध्वककाछ- 40व ४४; &11 888. 288. 10. -- 4 01140. ए. ए. (8. 87००४) 28 8; श्ुद्धावाः 70" पदु१द१5141147 444 , . , 0700" ४0511047 , १/0 १र/ ०१७१४५११ 77 क् 0101141, 80९. 48. 2899 8 भ्ठ 00 वव्थद्िद्" ११०११ द्कटक्ावा॥ 62 10४.

6) एड 600]. -- 2088. {९180 {वक 110 [ब60/416. -- (0. पपृपपनउ्र | = © =, ७.१ ७८1 तो $ ५९४ न. छप सुर |'''त्रर पदुगृकिपै' रगो हक" गुर पमुप देषु रनबौमकमु पो एषम | र्यतु गुगुसप' सुर दे ससुषरुतयनतति """ = पणव 1० १0 १072 1९040 ६८ [वय59/1९, [. . 11170007) ] [द्79१/१, ०९दद१द/द १११1486, , . , , ४४८) 71170 $ध्वाच्ूक॥ , , , 9८ एकां 3रव्‌न6१210, 27058द्‌द7द॥ ०१४ कद१॥ ८८, , - + -- ९72९१7१४

1168४ 88 {790६ ४78 16 ग.) एषभः ९०6 7८-278 (कद्व) 78706 0908 1४ गडा 88786116 6 08 8९008 [70[00866.

7) == 6

17] प्रथमं प्रकर्‌णो 61

वयेति तत्र यदि विज्ञानस्वलत्तण करणे तत्य व्यतिरिक्तेन कर्मणा भवितव्यमिति एव दोषः |

श्रध त्यात्‌ ' त्पधिव्यादिगते काठिन्यादिकं विज्ञानगम्यं तत्तस्य कर्मीप्त्येव तच्च स्वलत्तणाव्यतिरिक्रमिति एवं तण्डिं विन्ञानत्वलन्नणप्य कर्मलाभावात्प्रमेयतं स्थात्‌ ' कर्मदरपत्यैव स्वलत्तणत्य प्रमेधतरात्‌ ततश्च दिविध प्रमेयं स्वलक्षणं तामा- न्यलक्ञणं च॑ \ इत्येतदिशेष्य वक्तव्ये ` किं चितस्वलतं प्रमेयं यल्लत्यत इत्येवं व्यप- दिश्यते ' किं चिप्रमेषं "यल्लच्यतेऽनेनेति व्यपदिश्यत इति श्रथ तदपि कर्मसाधनं ' तदा तत्यान्येन करणेन भवितव्यं ' ज्ञानात्तरस्य [). 28४] कर्‌णमभावपरिकल्यनायाम- नवत्थादोषश्चापम्यति |

्रध मन्यते स्वसंवित्तिरस्ति \ ततः ध्वसेवित््या म्रहात्कर्मतायां पत्यामस्त्येव

| [अ = ५०९१ ~ ) ~ वित्तिनिषे ~ ्रेयातर्भाव इति उच्यते ' विस्तरेण मध्यमकावतारे ` स्वंवित्तिनिषेधात्‌ ' स्वलक्षणं

1) 16 70. ०6 प्ाक्वृणठ 298 16 इला (गवाय) = ९व६५१८5व). = 788. ०5८५८४०, ०8114, ०8८: न्ब ५) ग्‌ विस्म परमः न्मे मठम्‌ गुम्षमे येरि द्व परमम्‌ == 5४८16१८0 = ९८८ = 11171द{द , 4१/८४ 804154१4 दता 4१0407क०व8, -- 21) == ८4.

2) # 00४}. -- 2188, 5क्कद्ाव्यवः5१८११ 10074 दकव०८८5४८, ,.,..., . प. डति मप्‌ वेषमन] रगो मः इुरकमडेगुभे गु" """ सह्य गुरपमपदः विस उवप नमेः उमदुगु शहुपुयन्यु सुसनस == 52१1 ब54१410॥ ९क , ४४ 50 वदकवा)॥ 01 ॥70166/41. , , , ४४ ०१० दात + (1.111.111. 11.311...

3) 1188. ११ ५(४)॥१५०. 11). गर्नु परम 4) 10898. ववक्ना1४74०50 सुग पमरप ४) 0470188 (110. {८5 ४44/द 5४८०.

6) प्रभौ 5८12 }. 18, 1. 3. €}. 01. 282 9 2. == गुन, न्ना एर

10

62 प्रत्यपपरोत्ता नाम | (नि~.

प्वलन्नणात्तरेण लल््यते तदपि स्वपेवित्या इति पुश्यते पि ' तदपि नाम ज्ञानं

£ | स्वलतणव्यतिरेकेणापिदेसंभवाल्लत्याभावे निराप्रषलत्तणप्रवृ्यतभवात्‌ तर्वथा ना- स्तीति कृतः स्वसेवित्तिः

तथा चोक्तमायर्‌ लच्‌डपरिपृच्छापां चित्तमतमनपश्यन्‌ [189] चित्तधारा पय-

^^ ^ ^^

घते कृतय्ित्तस्योत्पत्तिरिति तस्यैवे भवति श्रालम्बनें सति चित्तमुत्पग्यते तत्किम- न्यदालम्बनमन्यचितत ' श्रथ पदेवालम्बनं तरेव चित्तं पदि तावदन्यदलम्बनमन्यच्चित्ं

~ ~ ५1 ~ ~.6) तदा दिचित्तता भविष्यति श्रय यदेवालम्बनं तदेव चित्त ' तत्कथं चिततेनं चित्तं समनुष-

(7) ननं (8) ~ श्यति चित्तं चित्तं समनुपश्यति त्चधापि नाम तवैवातिधारया तैवापतिधारा

४. \ मरन्‌, == ६0871कव 050४८ 5०8411९0६५९४, -- णः 1४ 5045070 06४ (== ९5११४८-

04012), १०६०6 €88671€] १68 ०६688, १017 8007668 €668 0. 62, ०. 3, & ०07६ 11876000 827१४१४7 ९8०8; (08600 1901-2), ०0168 70--72; १९१३०४४. 91702127 298. $

1) 110. == ६८व 0 140/क 5045101४ 1469464 ४. . . 2) 2788. {4047 - 1). गृष्

8) @प६1806 प१९प्लि1€ #816 वप पर्गदपडेगृस' (2४६1812); पपश्पद९

01018100 तप्र ४1101. ^. #. 6. 9. 218, -- (066 नंपव्0 9 66 ४9४९ 08" - 10४, 10४1. 561. -- पर 2804116. 2. ४4 12. 18, &119 88. 288. 1, 76068 (9 1686. 76166 124 7 1101. ए. ४. 4०९ णा6 04. 8 60१11 681 16 ग€ऽपाक ्०€ ९०0 8100). -- 0. ०८. 65. 88; पि ४0110 28. 4 (4. 7. 265-516).

4) 1188. ` एप्ाा०र्णा लवण! 540९. -- ग). ८पनपुगुप हे सनुममत्तर पसः 8) 0/2 = ९/४ -6880प8 श) -- 071]. 1.४0 ४६. 51.10 100 (कव 8४८८१८{५९०1ब[0व7 (४८47 दढ 41450000; 59. 16 5४4०4} /व72४1(८4द7/ 1104101, , -- प100 प: 16 ्रभालाश्ाा १6 19 60866 ०प 16 1'€श1, - @4बदव्द == बढ

(== ५-468808, 68. 4) -- 47 == 5८01214 == 2१५९८ ; एण 4. 4.8. 1909, 11. 260, र,

6) 816 1088. -- &11 28, (285. 8) 80०4016. ॥.. , , ०१201 कवा. , . ¶) 316 2788, - &1 828. 6४ 8०१16, 7. १८ कवा, 8) 08}1£8 110. (4.

- 189] प्रथमं प्रकरणं 63

केतं [र (र ~ (1) ~ न= {निनन शक्यते देत ' तेनैवा ङ्गल्ययेणा तेवा ङल्यमं शकते प्र ' एवमेव तेनव चित्तेन ~ 9 (2) य्‌ तदेव चित्तं शके द्रष्ट त्येवं योनिशः प्रयुक्तस्य या चित्तस्यानवस्यानतानच्डदाणाश्च- (3) [३ ~~ ~ (4) तता [५४.२५५] कूटस्था नाहेतुकरी प्रत्ययविहद्धा ततो नान्यतो सिव ना- ~ (5) ~ ~ 4 न्या तां चित्तधारा चित्तलतां चित्तधर्मतां चित्तानवत्थिततां चित्ताप्रचारतां चित्तादृ ष्यतां ~ ~ ~ ~ ~~ (9) 1. ~ चित्तस्वलत्तणतां तधा नानाति तधा पश्यति यधा तथता निरोधयति तां चि- त्तविवेकतां तथा प्रतनानाति तथा पश्यति ' इयं कुलपुत्र [बोधितच्चप्य] चित्ते चित्तानुप- (1) मिति ष्यना स्मृत्युपत्थानमिति तदेवं नास्ति स्वपेवित्तिस्तद्भावात्‌ किं केन लक्त्यते ` किं मदेन वा तल्लत्तणं लक्त्यात्स्यदिभेदेन वा तन्न पदि तावद्धेदेन तदा लत्याद्वित्रबादलन्नणवल्नत्तषणमपि लनणं लत्तणाच्च मित्रवादलत्यवल्ल्यमपि

1) &€९8 €&€1}0168 80०४ 1041468 9 2 ८४802६1 (21278४1 379. 8, पिए ४.१. {22. 255. 28, 466. 19. -- &118 88. 285; ०. 5. - 3 प्र 27 £ 21 ए1188. 235 1९, -- &10 ४१811. 287.

2) 1088. ०8१2144 @1100९10८द ८९. ~ च€ 0१086 (601द€ाः . = . . {25/04 ११४८510 द, 101८660 1142, ०(@(0क६क, , . ; 19 १678101 1106476 70३ 178१116 6616,

3) 8 10४8. ४]. 18; 1 व€णड €8[६८९8 १९ १४४८: प्व514(4 कद, छन्ना 219. - पग 01218; 7 26) 8787६४19. 1. 105; 014९१. 9€1&, ८००११४३ }. 879. 106

4) 1188, १054800 = गे गृ मए,

8) 1188. १7, शमठ, शमएककवाठ. -- (0. रतिपतेः.

(0 देप, दपततुन्प' तिणि == 01710 &17द एव72 नव्य ठद्यणं धणलाकदछद2 01प्ठ- #क, {कत नव, ४८१४. , .

7) 1188. 4/४ १677६/0, 1640 वणं 8 प्र ०06 8१०. ~ (10.; ससु रिप सुमुयकरपन्सगुज्गु परि मुम प्स सुगा पतः = ^. भात १6107 १५वव77. -- ©}. 01. 8. (ए; ९7} 1911781 248, 255; &11 ६88.

09. उ, 0. 228. १०४९6 2; ४8८11९6 1899; ८०416. 1. 1058-6; ४18०१4१) 1- 1 ४&&४ (4. २. 7. 8. 1886, ए. 1092-4, 151. 158).

10

64 | प्रत्यपपरीत्ता नाम [189

लत्त्ये तथा लत्याद्विन्रवाल्लत्तणस्य लत्तणनिरपेत्तं लत्यं स्यात्तत तल्लत््यं लत्तण- निरपेनवात्‌ खपुष्पवत्‌ [1 8] श्रधामि त्र लह्यल्षणे ' तदा लतणाटृव्यतिरिक्तबाल्न- लणप्वात्मवदिकोयते लतत्यत्य लत्यता लत््याच्चाव्यतिरिक्तवाल्लतत्यप्वात्मवल्लत्तण- मपि [10. 240] लत्तणस्वभावं पथा चोक्तं '

लत्याल्लतणमन्यन्चे्‌ स्यात्त्लत्यमलन्तणं

तयोरभाव्रोन) न्यते विष्पष्टं कथिते बया इति" विना तत्तवान्यतेन लक््यलतणपिद्धावन्या गतिरस्ति ' तथा वत््यति '

टकोभावेन वा सिद्धि्नानाभावेन वा पयोः। |

विच्यते ' तयोः सिद्धिः कथं [नु] लल्‌ विश्वते इति

प्रथवोच्यते ' [अरवच्यत]या पिर्म विष्यतीति चेतरैतदेवं श्रवाच्यता डि नाम परस्परविभागपरिज्ञानाभवे पति भवति यत्र विभागपरिज्ञाने नास्ति ' तत्रेदं णमिदं लत्यमिति विशेषतः परिच्छापेभवे सति दयोरप्यमाव एवेति तघ्पाट्वाच्य- तयापि नास्ति सिद्धिः।

म्रपि च" यदि न्ताने करण विषयत्य परिच्छदे कः कर्त " कर्तारिमत्तरेणास्ति

1) 8181166 000 14666. -- 27812}. 10. 91 1८450१0500078४619व 15८१९८१ ९॥41124111) [ब:5४5४८07क४४य [0154400 ००य धद. -- प्राः 168 1800048 तप्र [व5कव तप [वा ४/८, ण्ण पि ४३7०१817 (२४८28 19]) 24800887 2) 1. 28. 1.6 807९ १००4714 460४; ॥वऽददाठ( नल 4वद्11द १4 15006४८0; वा कक्दव्ााद 1410 ` 71/28... 14.11.10

2) == 1. 21.

नि

8) न) 1 नुन ~न, मै -- 00]. 80~ 116. {. 297. 9 . . , 87८1 ९07/८5 ६८४१०४११४४न१४८द१7/20 ४९/2१ ॥धवद्व्काद्छापकका १1211400 १९९१८४४. -- 1211 21 2101४ (ए दण कहा) 1. 238. वनवा ४व१॥ 5कएव 1८164१८९८6 ९०९८व 1 11701 7057द 4101, -- 21 91810 ६97 284. 5. 04वह- 1 1.111.118. / 14.11.110. 1111. 1. 11/18. 1/1... (111 {८94 , ६कद्‌ ८४ १पका, 27९15९7८ -76वद्धूवटला" ५77८41045८ 11८ ए1८व 9125 04ब्व 11.91. 4.8... 2.1. 111. 1.1;

199] ` प्रथमं प्रकरं 65

करणादीनां संभवः ददिकरियायामिव श्रव चित्तस्य तत्र कर्त्र परिकिल्य्यते \ तदपि युक्तं वस्माएूर्थमात्रदशनं चित्तस्य व्यापारो विरोष।दर्णने] चैतपानां। तत्रार्थदष्टिर्विज्ञाने तदिोषे "तु चैतपाः।

इत्यभयुषगमात्‌ एकस्यां दहि प्रधानक्रियायां साध्यायां याप्वं गुणक्रियानिर्व- तविदारिणाङ्गीभावोपगमात्‌ कर्‌णाटनां करणादिवं [79.25१] चेक त्ानविज्ञानपोर- का प्रधानक्रिया ' किं तर्धर्धमान्नपरिच्छत्तिर्वित्तानत्य प्रधानक्रिया ' ज्ञानप्य वर्धवि- शेषपरिच्डेद्‌ इति नास्ति ज्ञानत्य करण(19 भृते नापि चित्तस्य कर्तृं " ततश एव दोषः

शरध स्यात्‌ ' घ्रनात्मानः स्वधर्ा इत्यागमात्‌ कतुः सर्वथाभावात्‌ ' कर्ताएमत्तरे- णापि विग्चत एव क्रियादिव्यवक्हार्‌ इति एतदपि नास्ति ' घ्रागमस्य सम्यगर्घानवधार्‌- पात्‌ एतदेवोक्तं मध्यमकावताे

1) 1088, ऽककरल्वव. -- वा. योरपि सगुसयुमस पस्य (1८. मिमे

9 दुः इरया श्रये 9 ७०४७. 7. तेन" दुढुमतुरः दुमो | दतः उरस सेमसयिस्‌ | == , . .{4व7(९5ब्ध ६५८ -- 011" 61-0९888 11, 1016 4

४०1११प६. 14. 4; ऽणवरकीणटवकाद्ः कक कद; (का १111 0१४, ४०९७४511 19101 5५24441. -- ९१३१६११1] 2६870 278. 26. - 9१02४४४४ णा. 8. ~ ^ 0119411. 1. १. (8. एप८००प) 9. 289 शद्धा ०108 वाध" ४८5१८11द7(014114104101; ९८९०१ द१/45 ६४ ९व वड ९१८९७०१1 ब१८द्क्‌व््‌. -- प्रणा १०६२३४८४ 1. 48--44 (माद्दा द्5क (क एणदव्द््) उक्ष; कलव्कव्द- वावाव्वना 0 वावकादाकद४द. . , , 171 7411097 क४ ‰054 71 (810 धा द] 3).

०). ^ 9011411. ए. ए. ल€ 701.-8. पर्णा (. 41) कारन्दाव्माककद कटय [54१02] . 777161149॥ ८८54५८10 ^ ४८57 क(९$० १व्रकहदवह १५8० द्‌क14114१011 74११८८१ ८दव, ~ 07 ^ ##123811017 291, 308 1€8 10168 १€ ४" 210 8 ४१148 701. 8४1 - ९1 4, 8. -- 1.6 धद ्१५ €8॥ 1806 49211, &-१९880प३ 8 ¬ ४. 16 ४६द- 11.1.11 1

80161 168 €वण१०1९0९68; © == ४9211100 == 10070प्व्क्दयु१िा१द११ =-= का~ {कात्वा दवसकत पिद्लष्वा) == 5वधव्‌0वमक्‌] १2101 == 09{10४1(९5 49 क.

एग 61-46880प8 }. 74, 7. 6.

4) 7027788 1€ (7. == 1८4१ दका१द्) ४५125४८9 01८१4, , , करक्तालच्क दद , , ` ,3द्दा वकाद्छ्नवदवककषदं पकी क्दद्ा(शव)).

$

10

66 प्रत्यपपरौता नाम [19४-

श्रथापि स्यात्‌" यधा िलपुत्रकस्य णहीरं रोः शिर इति शरीरशिरेव्यतिरि क्तविशेषासंभवेऽपि विशेषणविशेष्यमावोऽस्ति ' एवं पृधिव्याः स्वलक्षणमिति स्वल- तणव्यतिरिक्तपृथिव्यपेभवेऽपि भविष्यतीति नेतदेवमतुल्यवात्‌ णरीरशिदशन्दयो- बुब्यादिपाए्यादिवत्सर्माविपदा्त्तरतपि्ताप्रवत्ती शरोरणिर्‌ शब्दमात्रालम्बनो =. वुयुपंनननः तरचारिपदाधत्तिपाकाङ टव वर्तते ' कस्य शरीरं कप्य शिर्‌ इति इत- केऽपि विषेषणातररसंबन्धनिराचिकोरषया शिलापुत्रकराक़विररेषणध्वनिना लौकिके. केतानुविधापिना प्रतिकरतुः काङ्ामपद्धततीति युक्तं इर तु काडिन्यादिव्यतिरिक्रिपृधि- व्याग्तेभवे [10. 257] तति युक्तो विशेषणविरेष्यभावः।

तीर्धितिर्व्यतिरिकतंलच्यायुपगमत्तद्नुरोधेन विगेषणाभिधानमडइ्टमिति चेत्‌ '

1) ४. ४१४. 245. 1109. -- 122} 30211813, 1. 9. - 8109018१. 00.

84. 27, 148. 1: १०१ (कव्य, (्वक्छष्ावछव (व्यद्रव्ा) 1054590 (वक्वा; ९0768 8008 176{8]70114प९8 [णं] 817४] : 0 7916 वला ऽकापट कवलः कणालेलः 06 कत्‌ [048 088९88१९ ए€पीप्रा॥णं ३8] तपाल] १४३ तल [वला सं्छडकथपणशाफपणद्] कंवल 1९९1, ४९161८8 १९४० &€0€081971त 10 8लं€ा' 2९08612 [१. 1. १€ ¶1268860€, १४88 1९006 व16 81(प९ 18४, ] लााप्९०१९0 [€], पणत्‌ 1681910 116 [7 8016060 8९] णपा €ो06 4 प8व7प्८रइक्€ा8€ एणा, शलालाहा १16 ॥02089€01€1€ 10€०४॥४॥ 1 १४8 6 कशत

` १६8 0886880 एला ्धणा३8९8 2९16166 कपत. पला काचा कलाः 88{: पल म-

"4 0 2) 1138. 2१0¢2410141°. -- ¶10. ' ' ' सगुखयान्न्‌ रुग्‌ ` 8) 088. ६५44100 क्‌ 4१47, २५2 द2/1000°. -- खमन पगृ सपति ९॥ रङ्ग | गृरणू नु | स्वारभस {4-50 ए€ण॑ प्लणाकष्ट्ल |

2044-2, 1०-10-21044, 11 8'07070०86 > [6 ]-(08 (धधा == €] -4818), €† ००३ 808: लप 10716 1161]7ह€०४ (10-8८-02 एवदाक्द् {ब ) €ण+6€ात [7100066 16 ००४ 1616 8€ 4611806: 19 {€€ त€ वृप्?. . .9

4) (कि नि २पुगि"प ' ' " &209९-}8 (0) 0०९६-9) 7760606 १6१९-१ == "0517414 -- स्‌) 2083 16 67 त€दक{ला' 12 [60866 ¶०९ [16 "0॥ ४€।€ | €8 6€- ताक्लाला 18000 ३१९९ पण वल्लक.

5) प, रवकव्तनः ९. ग, नकेमुगुदि' सुपुमपर, [पसश्वरसनि

-190] प्रथमे प्रकरणं 67

नैतदेवं हि तीर्धिकपरिकल्यिता युक्ति विधुरः पदार्थाः स्वतमपेऽयुपगतत न्यायाः प्रमाणत्तरदिरप्यमयुपगमप्रतङ्गात्‌

रपि पद्रलादिप्रज्प्तिवत्‌ तैशरीरोपादानप्य शिलापुत्रकस्यीपादातुलों किक - व्यवकाराङ्भूतस्य विरेषणस्याविचा्‌प्रसिद्प्य 'तद्वावात्‌ ' शिरउपादानत्य राक- हषादातुः [19४] सद्वावादृपुक्तमेतनिदर्थनं

शरोर शििव्यतिरिक्तप्यार्घात्तरस्यातिदेस्तन्मात्रप्योपलम्भात्‌ तिदमेव निट्शन- मिति चेत्‌ ' नतेवे लौकिके व्यवार्‌ इत्थेविधीर्‌प्रवृत्तेरविचारतश् लीकिकपदार्था नामत्तित्ात्‌ पैव ठि बरपादिव्यतिरकेण विचार्यमाण घ्ात्मा संभवति श्रपि लोकेवृत्या स्कन्धानपुदायात्याप्तिवं ' एवं एाकणिलापुत्रकयोरपीति नात्ति निशं नसिद्धिः॥ एवं पृधिव्यादीनां पश्चपि काठिन्धारिव्यतिरित्तं विचार्यमाणं लच्ये नास्ति 10 लत्यव्यतिरेकेण ल्त निरभ्रं तथापि सेवृतिरेवेति ' प्यर्‌ पे्तया तयोः तिया सिद्धिं व्यवत्थापयांबन्‌वुराचापाः ्रवश्यं चेतदेवमःयुपेयं श्रन्यथा हि तेवृतिहप-

1) 0णड 8प्पमा§ 27616 8प€8 [एकह 88 ¶प्6 16 1व4/क6त 6४ 114191८ १1190, 88१07 16 {47 (?). -- 011 ५1-१688०8 69. 1.

2) सगुन, १.

3) 1088. 5, 5४८, 11€8{ 88. {78वप्रा{£ १8६०8 19 १९६18700 ध068106€ €४ [€ €॥6 €०४146 (0. &४-ए7०). -- 1१10. = 2 @१‰८-दद2114 -०(€54१4 [58/4] [वषप्ा2९४/०- = ` एववा -4८ 1014514 4104 [5/4] दव -67[0 १7 [१/५], = &०८-12 4144 - [8/५] "दवक्} 11106 2ववाद-दव४-072 7@04-णवयं 5दवए्लएदा॥ 10141 {19क0॥ {कव्‌ ०४५4101.

4 पष, वणण्ठावाव्कदकन्कृकव्दर, -- का. मु'टुगुसष गुयषय "^" एम्‌

१० 1 पविः

5) णच = दुम

6) १०" 6091८ श्ण.

7) # == 00015200121१८१९.

68 प्रत्ययपङ्ता नाम | [19४-

पत्या विद्येत \ [10.96१] तदेव तत्त्वमेव स्यातन सेवृतिः॥ चोपपततया विचार्षना- णानां धिलापुत्रकादीनामेवासभवः \ किं तरपि वत्यमाणया युत्ता उपबेद्नादीनामपि नास्ति सेभव इति तेषामपि सेवृत्या शिलापुत्रकादिर्वनास्तित्वमास्येे स्यात्‌ + ैत- देवमित्यदेतत्‌॥।

रय स्यात्‌ ' किमनवा ृत्ोलतिकेधा "नेव हि वये सर्प्रभौीणप्रनयव्यवन्हारं सत्य- मित्याचत्महे ' किं तु लोकप्रतिदधरेषामुना न्यायेन व्यवस्याप्यत इति।

उच्यते। वयमप्येवं ब्रूमः ' किमनया सृत्मेत्तिकया लीकिकव्यवक्रिऽवतीरिकया' तिष्ठतु तावदेषा विपर्ामात्रापादितात्मभावततताका पेवृतिरममतूणां मोत्ावीक्ककुशल-

1) छम = नितु्' = एष.

११ विम. नुने गुद भण

3) 2188. ०0071070 १०त510{०८0॥ 2517९0/4001. -- पष. गेषृ कयत सगुः पतमेर्‌ गुहु एमपमपमयदेम दुः [सपरमयनपुनप |

4 1 रय्जण् तालम भृण्यटः दसूदुस' वगु इुमयन्सयकुृमः निप्प पयुमतररह्गुपयस्‌ कसय, कमुपस देपुनिस' एरसदुःवहनि' पन्यम | = चथ वा पव्वनवककतककाणुषव्छतक्वक्‌) ककन णदाषका्द- {77८ १/*दा514001 कषित 2) £ {04 ९४८ /4०व5 ९/1,

8) = णाः 168 {णाकप्०08 ला प्त (एकक, सल्दवधल,

क्कणद, प्क); एणाः 8041016. {. 378. 9 ९४ 2 पा. 54; &11॥ 58. 82. 18, 191. 6, 267. 15, 269. 9; 11४. 330. 9. ©. 11 ₹. 1. 522, 11. 498.

6) 2788. ककव 01400042. ~ ग). पुम्‌ गनि याद्वियु ष्म (01 1.19

पर) 1188. 17057दद४४" ९5द, ९४८. गप). = 2 तृगुशरत ६)

8) प१९४४ शह0९16 (२, छ.) १०९७ १88 16 ९०70086 #व&4९.

9) 2188, 11015०440वाक, ०व् दव (रदुखुपयेय).

9 प्रधमं प्रकरणं 69

भूजलोपचयेतुर्यावनन तत्त्वाधिगम इति भवांस्वेतां सेवृति[९0०]परमार्सत्यविभागड वि - टग्धबद्धितया चिडपपत्तिमवतावान्यायतो नाशयति सोऽरं सवृतिपत्यव्यवस्यावि- चत्तएयाल्लोकिक एव पत्ते त्था सवृत्येकदेशनिराकरणोपक्िप्तोपपत्यत्तर ्रमुपपत्य- त्रेण विनिवर्तयन्‌ लोक वदध श्व लोकाचारात्यरिथिश्यमानं भवत्तमेव निवर्तयामि तु तवति तप्माग्बदि लोकिको व्यवद्धारस्तदावश्ये [1;. 26४] लत्तणवल्लत्येणापि 5 भवितव्यं " ततश्च एव दोषः। चरथ पर्‌मार्थस्तदा ललत्याभावाल्नत्तणदयमपि नाप्तीति कतः प्रमाणदयं

शरध शब्दानमेवं क्रियाकारकपंबन्धपूर्विका व्युत्पत्तिनद्गीक्रियते तदिद्मति- काष्ट \ तेरेव क्रियाकारकतंबन्धप्रवतिः शब्दैभवान्‌ व्यवदति शब्दार्थे क्रियाकरृणादिकं नेच्छूतीति ' श्रो बतेच्छामात्रप्रतिबदप्रवृत्तितो भवतः | 10

यदा चैवं प्रमेयदयमव्यवस्थितं तदा [स्व]ामान्यलत्तण[]विषयत्वेनागमादीनां प्रमाणात्तरवं

किं घटः प्रत्यतत इत्येवमादिकप्य लीकिकव्यवकरष्यातेमरद्‌ नार्षव्यव- काएाभ्युपगमान्चाव्यापितौं' लन्तणस्येति युक्तमेतत्‌ |

1) गप, == कवुकाषकाका ११०.

2) वषा. = (नाक्वाल्वदष्छदतता -- [कावा = येम

= ~ 4... ~

59 गन वुनविकगुसय नन मर श्न मकनुकरेतये पुडमे धनुषे सुस करम गुणयेत मपरमुय मदमु | = शण 71111171

4) . . 45001447, एण 61-4९8808 71. 8. -- वक्व == निवृत 0 पति" 9 मठपयषेषन्‌' ननु | नेषु स्मे भेरगससि -- = चणम्‌

== 06514.

70 प्रत्ययपरीत्ता नाम [२0१--

प्रथ स्यात्‌ ' घटोपादाननीलादयः प्रत्यत्ताः प्रत्यततप्रमाणपरिच्छपतात्‌ ततश्च ययैव काणि कारयोपचौरं कृता बुद्धानां सुल उत्प इति व्यपरिश्यते ' एवे प्रत्यतनी- लादिनिमित्तकोऽपि घटः कारये कारणोपचा कृता प्रत्यत इति व्यपदिश्यते नेवंविधे विषय उपचारो युक्तः उत्पादो हि लोके मुखव्यतिरेकेणोपलन्धः ' पस्कृतलने- 5 एस्व[१०णुभावाद्नेक इष्करशतद्ेतूबाद्‌मुल एव \ सलं (1, 279] इति व्यपदिष्य- मानोऽसंबद एवेत्येवेविषये पुक्त उपचारः घटः प्रत्यत्त इत्यत्र त॒ हि घे नाम कञ्चि- पयोऽप्रत्यत्तः पृथगुपलन्धो य्योपचाहात्प्रत्यतवं स्यात्‌ | नीलादिव्यतिरिक्तप्य घटस्याभावादीपशारिकं प्रत्यतवमिति चेत्‌ ' एवमपि सृत- ` शमुपचासे युक्त उपचर्थमाणत्याश्रयस्याभावात्‌ हि लर्विषापतैतपयमुपचर्पति। 10 चपि ' लोकव्यवहार्‌ाङ्गभूतो घटो पदि नीलारिव्यतिरिक्तो नास्तीति कृता तप्यौपचारिकं प्रत्यततवे परिकल्प्यते ' नन्वेवं सति पृथिव्यादिव्यतिरेकेण नीलादिक- मपि नास्तीति नीलर प्यीपचाचिकं प्रत्यवे कल्प्यतां यवोक्तं।

1) 70. ४०४. 245. 571--578.

2) 1188. ९10244०. -- 11). भनककुदुमम ठे ^~ पम ठस -- प्ल ]016 €1४881प८€, ४18०१010. हणा (प्र 21160) ३०११187, 194); एक 18 68116 @18{67८6 16८86 1४ ००868 666९, वण 2 6 एणी, 0.8 पतत्‌) 8 8 ९४11९ 18] ९८१86 1६ 1€8प्1#8 10 17711688. -- -4 0 11101. 7. ए. (8०९. 48.) 2418 2; 800014८ंक = 5410100100क(८ 5411वएद्‌/€ {274१८ 4४०८ व, 501क 8; = $ककरद 5०16 "वबा {द्वच ८४. -- 17808666 १९ ९५4400८ कवव ९8६ प्र = ब5१क (1 0.- 8.

1. इर) एषा 6व्ला८८९ः एष्वकानकद० (४0400107 (०१०1५, 2. 10. 8). -- 1468 2] 0116४008 तप्र 700६ 58%{7व, 4 १४1 ४821. § 99 & 301.

3) ४०7 (0 शध्6 णा.

4) [६ पुषः ठस == {0521400 51८1101 ४४ == 5८ 5074 ४४, `

8) 70. एप, 248. 688. -- ^ 0114 1. 1६. १, (806. 4.8.) 3899 7; (4८2८ 0400 2 111...

6) 2188. {4610500} १५१८८०0४ -- 710. नवर्भुर

7) == ११] ९४६०९1४, 417४१९१९, शष. 14 (प86००) 1900, 2. 240); 616 0218 16 (०. तप ४41 क़ ४7 81३2१३६. 344) 5.

-200] प्रधमं प्रकरणं 71

पादिव्यतिरेकेण पधा कुम्भो विश्चते। वावुदिव्यतिरेकेण तथा पं विग्यते इति तप्मादिवमादिकप्य लोकव्यवद्ारृस्य लत्तषणेनापं्रद्ाद्व्यापितव लन्नणप्येति तचविद्येलञपा हि परत्यतलं घटीनां नीलादीनां नेष्यते लोकेवृत्या लभ्युपगत्त- व्यमेव प्रत्यत्तवं घटादीनां यथोक्तं शतत पर्वं एव ऽदृष्टो ढे दृष्ट दि नायते। यात्‌ कस्ततलविन्नान घटः प्रत्यत इत्यपि एतेनैव विचारेण सुगन्धि मधर मृड प्रतिषेधपितव्यानि सवापयत्तमबदधिना [70.270] इति श्रपि चापरोताधवाचिवात्प्रत्यत्तशब्द्स्य मात्ताद्भिमवो ऽधः प्रत्यत्तः ' प्रतिगत- 10 मत्तमत्मिन्निति कृवा घटनीलादीनामपरोत्ाणां प्रत्य्तवे सिद भवति तत्परिच््‌-

1) &€ व61-6101& (2) ९8 {18 पा† 7086 १४०३ 16 (10. -- एना पि एषद्फषए्द. 42. 15 844. 1 018८088101 १९ 19 16001107 तप 1क्व्§८ १०१०६८९ एश ३३0 87त्‌1 प्र, 750 वाक४व 17414/ वऽ §102 (2). पि ४१. ५३६४7. 154. 91, 352. 18, 100. 18 घ्व 1... 1.21 12. 11/11. {४८5१0 11451९4 . च? 47459 ४४/०८ द(0/क९) 20 ६४ {210 00 द्द @0वष्कए: ६80 ९८दा 2574142 = 4704001711745411४द07 ८११, = 50000101द{96वा0 = ०१८१ = 7 वल्वववण्च्छाच्छन्. 0) -- ४० 1002, 2. 74, 0. 6. -- 1.6 8९] दवएन्द्ध०कृव (आण णव्य- कब), €88९0पलााह€॥ 1णाता718016 (20 १04541005470 6/0), €8॥ 74{1/ब1:58व.

(४) == {८० ^ १६१दव्‌ ° १2१८१ = 74141598. (9) 1.6 कवक ०९ उप]ग6 ४8 1९ धफल (एदल 2-28३18, १०77 }. 67 1. 7); 11 16581816 ¶प€ 0918 1४ 10 व1त5४वदा (कणा 2. 74 9. 1), ९९8 व7१८ वण्व्दद्ादाका. -- 1/6 5क01वडक, 16 शापा) ०९ एप ९९ 5/4 १९ 19 €0108188&766, ८9 16 अंणपा+806€ 11681 [४8 {722 ; एला वप्र एप - 606 शव्द ०७/८1 (8 ०१11९. 0. 12. 22).

2) (9016 शा. 1. 2. ~ एमा 288111९1, 332 (864) 8008 § 8.

3) 1188. 07040 5/0 . . . . 0 ६८ 3/4 1 १1८ (दव्य कवत 9) ,,.. कव” एववाऽव व. -- ५. युम ठे | वमस, विम्‌ मर भेतुर | सुमायाः ममु सुम' वेसु | देेपुरेगुषय सुगु र|

4) प्रणा 41१61868 0116५008 701014९8 १४०३ दि 2 ४1०८४) प0कफााला 219८३8६} 808701. 186. 19 (5व१ ब6८1 0 काच्र/०0बदुव९); पि चकष. 30. 4

72 प्रत्यपपरत्ता नाम , [9४

का[शभृस्य त्तानस्य तृंणतुषाधनिवत्प्रत्यनकारणलात्‌ प्रत्यत व्यपदिश्यते पस्वत्ततत ' प्रति वर्तत इति प्रत्यब्दं व्ुत्पार्यति तप्य ज्ञानस्येन्द्रिपाविषयता विषपविषव- ला]च्च युक्ता व्युत्पत्ति \प्रतिविषये तु स्यात्‌ प्रत्यर्थमिति वा प्रघ स्यात्‌ ' यघोभयाधीनापामपि विज्ञानप्रवृत्तावाग्रयस्य प्टम्दतानुविधानादि- ^ 8 ज्ञानानां तदिकार्‌विकारिवादाधपेणिव व्यपदेशो भवति ' चतुर्विज्ञानमिति एवं प्च- ्यर्थमय प्रति वर्तते, तथाप्यत्तमत्माभरित्य वर्तमानं विज्ञानमाग्रयेग। व्यपदेशात्‌ प्रत्य- तमिति भविष्यति दृष्टो साधारणेन व्यपदेशो मेरोणब्दो पवाक “ति | नेतत्पूर्वेण तुल्यं तत्र हि विषयेण विन्ञाने व्यपदिष्यमाने ब्पविज्ञानमित्येवमा- दिना विज्ञानषटरस्य भेदे नोपटर्थितः स्यात्‌ ' मनोविज्ञानस्य चुरारिविज्ञानैः संरेक-

(15८5४ व्848/८ 7018 ४54१/द11 ९११८४ = 11474540. . , ; 107व4क ०१1 कका" 7 व- 15401); पि ४१. 120). 64. 26; 68. 6. 19. (00. पि ढक 2010. 7, 15 [ककव दधवा! 80, , ,; द्१।५1५१॥ ९व १४९ ब11100000011द001 (0 वद59/व) १4 0 {- 10000861द90: 4१९धव 1४. , , 11वक्धइद्व त्त [ब5941९. -- 45@ == 0109016 068 8608) एण 1462 तप 218 86871४8 (१208 व. ‰. 4. 8. 1899 }. 507).

1) (70. {144४, ("5044४, 2111. प. 1. 259. 28. 30. 9 मैस मे' सृप्रि पसम म्ेमवतिदर यु | पुवः पुचस्म्‌

€\ "म्‌ ~न == 1.6 (दरेण 122 [28 [0 एव 1९8 868, 728 ला 168 शक, >

~~ ~~ ~~~ "~~ ~~~ ५५ ~~

3) एवच मबव निमि वक्म <म्‌. निनयन +भ 11 8... . 1.8 ०6वणा €8† ता0िला€ €द्पााावप्ला.

4) 2८ == पु -- १14114८ == भुम

8) (ण}). ११३11. ५३४}. 74. 16: ‰4102 (वऽ इद = ककाुववीरलाद ततव) ४/८ (लाइव धद, . , ,; ९९00 /क17क क्रनद्ल7१त ९१ववकक्कत 49 क्क १007101 ४. ,..

6) 1188. 2144284, -- (11). पदे यस.

7) एह ४१४. 34. 16 = ?1एद्वद्१५8 00171 दद्दा 1१24१014 क16 ?{श्दवाए7 9" ०४०4दह(४/८1९, 19 {४ ०5 दवा 2ा4१९द एद९१द १४ववकवक(व वणक्छपनव

8) 2088. 841126८.

-४४] | प्रथमे प्रकरणं 73

1 त्‌ जत्तानमित्यकति (9) विषयप्रवृत्तत्ात्‌। तथां कि नीलारिविज्ञान [79.95१ विज्ञानम त्युक्ते साका एव श्र ~ कितितनरपो ~. (3) नमाकोस्विन्मानस (> क्स त्ययान्ञायते किमेतद्रूपीन्दरियनं विज्ञानमादोप्विन्मानसमिति प्राश्रयेण तु व्यपदेशे (4) नवर तिद्ध मनोविज्ञानचतरािविज्ञानविषयप्रवृत्तिसभवेऽपि परस्परभेदः सिद्धो भवति ~ (5) इह तु प्रमाणलन्नणविवत्तपा कल्पनापोहमाज्रस्य प्रत्यत्तवाभ्युपगमे पति विक- (6) . न~ तदिशेषलाभिमतवादसाधार्‌णकारणेन ~ (द =^ (8) नवि ~ (५९ ल्पकादिव तदिशेषलाभिमतवादाधारणकारणेन व्यपदेशे सति किं चित्प्रयो्नमुष- लत्यते प्रमेयपरतच्लायां प्रमाणसंब्याप्रवृ्तो प्रमेयाकाहानकारितामा[। णुज्रतया (9) ~~ = न््रिपे ~. चिं तमासादितात्मभावसत्ताकयोः प्रमाणयोः स्वद्रपस्य व्यवस्थधापनानरन्दरियेण व्यपदेशः किं चिडपकरोतीति सर्वथा विषपेणिव उ्यपंदेशो न्याय्यः

(10) ~

सेके प्रत्यतशब्दप्य प्रतिदवादिवतितेर्थे प्रत्यर्धशब्दप्याप्रतिदवादाभ्रपेणिव

1) १88. 10व7 15 शल्काणडवुवञाद ०४०, -- नरु खम यप सगु हर समसन" सुषुय दम पग.मेसनयः बस पहुपुममि | 9 मेय" रेपः सुर परस्य पेद-द्‌' विशु

8) 0&णाप्०ण १6 7011817 8 त7 ४1; वक्ष्यतः दव्पूव्कव्नकृद वतव. ष्णाः धिह 90194प 108. 3, 8. 20; 28191, 07 {16 ४१४10181 01116 तिणढड- 14, च. 4. 3. ए०णफभ्क, 1. 56; एणः 168 अप्€8 80८९8 881९ 2१274813; 0०८५०10, ००४6 152. ~ ४, ०४. 199. 69-68.

6) दुमवगु पयसः = ण्पणएव्य.

7) (000). १५4०(९548/0. -- ग).

8) 0०06 [09 008 {7018 ९0168; 7४146 5४०8 (0.

9) 1188. 50१1१५०, 54१92१2०. -- रय = 1021. -- पभ 68. 8.

10) 2788. वान. . . . . 11.11. 11.11. (11.14.111 11.21 11.11.911. १७५५... -- प. पदिनुदेयषु वहेमवनपवदुमपनिः नुमेच मनमृसुमछे ङगु स्य हुगुषसप ठम सूर | दुमन्षस वसुपते गुषृषनि ठ" मुमि 0

74 | प्रत्ययपरीत्ता नाम . [४-

व्युत्पत्ति प्रीयत इति चेत्‌ ' उच्यते , घ्रस्त्ययं प्रत्यतशब्दो लाकर प्रमिदधः। तु यधा लोके तथा्मामिहच्यत एव पथाप्थितलोकिकपदार्धतिर्‌स्करेण तु तद्युत्पदि क्रिय- माणे प्रतिद्शन्द्तिर स्कार प्रि स्यात्‌ ' ततश्च प्रत्यतमित्येवं [न] स्यात्‌ एकस्य चतुर्व्नानस्यैकेन्कियत्तणाग्रयस्य प्रत्यत स्यादीप्ा्मिवात्‌ ^ एककस्य प्रत्यत्तवाभावे बह्हनामपि स्यात्‌ | कल्यनापोषत्येव त्तानप्य प्रत्यतलभ्युपगमात्‌ ^ तेन [7५0. 98४] लो- कस्य सव्यव॑कारामावात्‌ ' ` लीकिकत्य प्रमाणप्रनेयव्यवक्छार्‌स्य व्याष्यातुमि- टात्‌ ' वर्रेव प्रत्यतप्रमाकल्यना संन्ायते चतुरवितञानसामाङ्गो नीलं जा. नाति नो तु नीलमिति चभिमस्य रत्यत्लत्तणामिधानार्याप्रस्वतवात्‌ \ पञ्चा-

^^ ^^ +^ +^

1) 2745६वदद = 0फा8 प9्ा8 16 10. -- [नव्धावरव्वकहं == कलानाला€ ^ पाश्रूाा6, ९1616 ४18 ^ पइवाप्लाः 2९९12886) 17, ०7 शालला 896 [ल्€ 6 ल€णक्षपां हाल 10 अल 081४ (फ 888. 882 == 564. 1).

2) १७8. 27010/4170409 ९४९११ शुका, -- वृ. गुनि. मतमु सुमः (+ निर मेः भुम |

3) पमष पढ 2010१. 12. 2 844.

4) नहिगाेमुपति ्र3गम मेदुपिठुन -- (010१५४५7 == फल्‌#- 161€ 86वाणद्पाहट (क 288. 882 == 864. 3).

5) घ्रः |

6) 1188. ४४ ९204171454. -- 1.8 166 नण @ 6०९ &76 ९0716616, (97 एत १० द्दकाष्व. -- तभ, भेगुे हुम पन्मेसः गुर मयस समय गेम तभर्ये भ्र, परमते विसु नुन पनः" =... श्वकः (अकण-तप)

2041150४. 061 व्टभा४ €8॥ 6116 4'9]188 114 11141 2178 088 एए 20174प 0 चर 2}0 91 -

8 8881] 1६869 (४४१. 2740 ©, 01. 10690) ४१९८ 18 एशाक्षा1€ सिमरि १3 (5111) प्र 8 प76 79 मत ढ्‌ ममे ससु रमु-मस्प ९॥ परु

== ८7८ (7174000 कद्छद्ं श्व कट काका उवशरष्रक्ष्ल) द०पाालाकषिाटः शरक

-229] प्रघमं प्रकरण 78

नामिन्द्ियवि्ञानानां जउवप्रतिपाद्कलाच्च , नागमाद्पि कल्यनापोषस्यैव विज्ञा नस्य प्रत्यत्तत्मिति युक्तमेतत्‌ तस्माल्नोके यदि लल्यं यदि वा स्वलत्तणं''सा- मान्यलत्तणं वा सर्वमेव सात्ताइपलमयमानवाषपरतं ' घतः प्रत्यत्तं व्यवस्थाप्यते त- दिषवेण न्ञानेन पक दिचनदराटीनां ततिमिर्िक्षानपेतयाप्रत्यत्ततं ' तिमिरिका्यपे-

तया तु प्रत्यत्तवमेव

परोत्तविषयं तु ज्ञा[2९०]नं पाध्याव्यमिचारिलिङ्गोत्पत्रमनुमानं तत्ताद्तोन्निया- धविदामाप्तानां यदचनं ब्रागमः। पादष्याद्ननुमूतार्घाधिगम उपमानं मीर गवय इति यधा^

तेव प्रमाणचतुष्टवाल्लोकध्यार्थाधिगमो व्यवस्थाप्यते |

तानि परृष्परपित्तया तिध्यत्ति ' सत्मु प्रमाणेषु प्रमेयाधाः ' सत्तु प्रमेपर्ेषु प्रमाणानि [70.29१] नो तु खलु स्वाभाविकी प्रमाणप्रमेययोः िदिरिति तस्माल्ली- किकमेवात्तु पथादृष्टमित्यले प्रसङ्गेन ' प्रस्तुतमेव व्याघ्यात्यामः ' लोकिक एव एर्ने

स्थिव बुद्धानां भगवतां धर्मदेशना

वला, 7८ 11740 तदा्दा४ १४ ९1207201 = वशव्छाक॥ ००१/00(4४54/0741907त2- 9कव (वतका [07 वुकदऽदाा] ५८छ४व, १८ शका च, १4 व7व171400 ऽव प्द- ४६ ९12270/91 व४कए7दक४ एवद्‌ १0515 110441-47 4707 45ल्का त्दम्‌न१ह- 209 ५९४८. (एणाः दिक द्क2017त प) 9. 10.) -- 4 01140. 1. ४. (8०५. 48.) 241 8 5. १८११०८१1 शवदााः पदुक्कषद/ ८0774710 णथदकव्त/ 17ब7; ऋद्रका ४४

शद्माप्का/ 8/2 17451/९व900 2177168 पद्व, -- दा ककव == 9111197 511.99 0), शद वक्क == कापारादवभद्वक्रा. एणी लं -प९8808 2. 68 0.3 ९४ 2. 71 १. 1. -- {40188. 21. 6; 1€पषटाडाणा दवकषाण्पुिद्ताकरव कह == ०६८१4१४द(0010

1) १., 1०67 [. 396.

^ फण 6 भपटणाः 716 4७ ९९॥ द्सूकााल 68011886 16 1171४ व्ाऽक्यएक तप इ९पा कण्- 20400.

7) 97998१८ == ुपसमपमप ढम्‌

1) 1188, 447 %क 1द154१८17 5८८5 207211/व्‌दः5 4१02000 ०द.

9 गेन एुयस्मे.

3) ववाणा प्रद्र क) 4०) 30०१016, { 248. 9, -- ०7 ल-१९४४३ }. 30, १. 2. 4) @0णाक€ा' 168 0601४008 618881९8. -- कि. ०६४. 199. 5. 6.

10

76 प्रत्यपपरोत्ता नाम ` [शव

खनत्ाङ्ः स्वधृध्याः ददुकतं स्वत “उत्यव्यतते भावा इति त्नुक्तं स्वत उत्पत्तिेषर््यत्‌ यञचो्तं न“ दाभ्यामिति ' तद्पि युक्तमेकांशविकरधात्‌।। श्रेत स्वेकात्तनिकृष्ट इति तत्प्रतिषेधोऽपि युक्तः यत्तु वल्विद्‌मुच्यते नापि धरत इति ' त्युक्त ' पस्मात्पर्‌भूता एव भगवता [भावा]नामुत्पाटका निर्दिष्टाः ' चलार्‌ः प्रत्यया केतुशरासम्बनमनत्तं तैवाधिपतेये प्रत्ययो नाप्ति पञ्चमः॥

1) <न शेय्षु @. 8०१1५. £. 249. 9 (द. 4) ९८ ल€, वव8 18 ०प९]6€

त्च (0णा€ाा{€पाः 7820}1 कृ क्ा01179, 1681806 168 0 2१३7108. - 8041016. प्रा. 5 8४०/{7/@9 11710/490700दक0985 ईए क्वकरादवछव १0क 0कद्व5 ? -- द्वा एव्व, दवद कथक ‰7/ 2 . ११ = 5बत = एद्यतदकवड(कद्/का॥ 0क४7क59दव्क णवा, - 1.14 1६०६001४ 9 00716 कप दरण इतत 16 8दणल कद (601४6 19 1९८00 १९ 1€क्णा 0९8 188, 1१० णा, 1९8 कप॥९8 (लपणलाक्(दाः३) ; एव८ कफाष्दाकाद्षिवधः १८९९क{८ः (कए 14112. , . . १११४7 211४9 (182) 2), १०४४ 8108176 शंंए1€- 6४ 70176 कप्राहप्रा) 9 शणालला(; शाः 88-[29 == /61/046. -- 18 ए8 ए1ए 61६2 (58) 1); १४४ 2101 5००४५7४.

2) -१688प8 14. 1.

3) @-0688प8 38. 1.

4) 088. वक्व, - गप. पपलुतगुषृसगु सकनप - ए०4- व7०721019 टुगुसबवु कमस तिन

5) €1-06€8878 88. 4.

6) -0१6888 86. 8.

?ठेगहमस सन जुम पे | समेगुषय मः पे मेम्‌ |

1. €प्010शं€ वप ०६ [एकत्र 2 ९8॥ ९0०0866 8८१४१९९४ 21.1, 8187030 (2 [1. 2. 19) 354. 28, ३०११. & 18127 278. 18. (र्षा 0/7 7 व¢/ ०4८ 00८लाक वव वदक्ए्थः ११्४0 1८४१ 07/०4, -- 79/40/0८11 5401 0४८४), & ०8048177 द्यावा) 1/८ तव्कयावएटाद व्क 110/0क- ८८5१८ १९1१८५०८४४४०१.

प्रा एपण्ल]€) १९१ == 17 द/व. 4. 01100. ए, ए. (ए 7707) 1889 7 क्रथक 1741/46/ 07171 द्रव 11क१४१(९5व , 2 ‰ठ( कव्‌ क्त , चका! कए एकद्कधक: कथठथ 7९ व४८% 27४ 34010416 1ददद्‌(/८ , , , - 9८४५१ 11711/2/0 10११ (काठ

-22४] प्रथमं प्रकरणं 77

तत्र निर्वर्तको रेतुरिति लक्षणात्‌ ' पो हि पस्य निर्व्तको बोनभाविनावप्थितः तस्य केतुप्रत्ययः उत्यश्यमानो धर्मो येनालम्बनेनोत्पग्यते तत्यालम्बनप्रत्ययः का- रृणस्यानातरो निरोधः कार्यस्योत्यत्तिप्रत्ययः ' त्था बोनस्यानात्त्ते निरोधोऽङ्क्‌- स्योत्पादृप्रत्ययः यस्मिन्‌. तति, यद्ववति तत्तस्याधिपतेषमिति एते चचार प्रत्य- याः॥ ये चान्ये पुरोौतरनातपशान्नाताट्पस्त एतेषेवातत्ूताः ग्ररादपस्तु प्रत्यया एव संभवत्तीति श्रत ए[2९४]वावधार्‌पति ' प्रत्ययो नास्ति पञ्चम इति तस्मादेभ्यः परूते*यो [7;४. 297] भावानामुत्पत्तिर्‌स्ति परत उत्पत्तिरिति

श्रननोच्यते \ नैव हि भावानां पर्मूतेभयः प्रत्ययेय उत्पत्तिरिति यस्मात्‌ '

१५१0 वा 10014400 १041705बद ४८४ 741४. -- 21918 473 8 4 1€{41" 254१0901 11/40, ०११ व5व5 ६९ = 7व2/दव = दध्द्ुकव0 १९1, = 17411/4/त5 ६४ ता८77१द - 7170 (2?) १।४/ 0001९; 1/7 ४४ १९. -- 1569 9 दश्वा ‰४ = 17419/न/न वव्कतद्ुः दद्यवकव्कुद् ९, 1१0१107 क१/ब‰/त (लुवकदद्रव व्क, चक क{7 कए. , . , 1८00 कव्या वद्यमानः ९. -- पि ९६५10 १1६४1218 1. 4 § 15. णाः 1. पष्प. § 115 (८१) उद्वाव्काकाद, द्द 04त, वकाय). -- 120 - 18१2१872 (8. 7. 8.) 85 17 €श्यादकला तप 86द्प6€ लाप ए7४60/बवव८ 7. . . लध्व 1१०६. . .; 5वफक्दाादकल १. . व्लकएवकव क्वान. , , ; {ब54१7क-

76. . - कव्व. . ,; (क्वन्‌ . , वदाककुव्काशक्लप्यकः 100... -. लवतत; ०४०7९... ; 05९१. . .. -- 86. 14 164४८१८ आवक ल्वा कषम /४कव १7. . . . . ्िवक्ाकथ १0०वदुव्, , . . , &004व

१010०4/१४1९. -- 87. 3 १10 1%/ {70104८1८ (0 तथं 7 कव्व" १10 १007१८47 9/ब९. -- प्18११1३९९8 (प्र 877९610, च. ?. 7. 8. 1898) 7. 109 १०४९ एक 2728 (१९३ (क्षा - 78{{0@088) : 1071010, @{{द, 21 कच, १६०५; 1. 138, 1181९ १6 र7६।-व्४€ [एकक 28 06 [शशव , १०४०४ 168 ¶प४६6 लाा९ा8: ९६५४) = क्च१११५१८ , = कक्कर, = त१दक८; 16 लंणव्लिा€ : ऽवा कवाक. -- 2४0 हर. ४. 1. 2.

णीः 15 ‰&10 १8 09१18, 7010. 82728101 }. 274 7<९५-7€५, 174/4/५ ०, ९- ६१११५५०, ऽद का दा१०८०.

1.68 4०४९ 78 तध ४8 १6 19 €007081888066, 887४१४7८. 8. 20. 9 (नकतप्लण 17०86०१, 1016 122). ^ 1140. 1. ». (8. 3 0110 ण) 901. 139 10 दवण)" द्व 0४ 70/40/क/= 7€९{८5द00101100101त71170097द 4790 ्017क 12/40 (व्टकद(त = 10दव(/4001790द {0444111८ . {९5 का = कुवव्याकशवव्य/८ 9/१ कल्‌॥ , उवकव्वावयरधव्य-द}01 चच च४वद ~ प्रभल्व ०0९. . . .

1) ष्णा पिए २8. 1४. 1. 14.

2) ९8९6४ ण्लाा€ा४ 10, 6 11 18 18€ पप प्18प११1178 ६९४ 7. 109.

78 प्रत्ययपहीत्ता नाम ` (श

स्वभावो भावानां प्रत्ययादिषु विग्यते

न~ न्‌ [क्प (1) श्रविख्माने स्वभावे पर्‌भावों विग्चते इति

यदि हि रेलादिषु परमूतेषु प्रत्यवेषु समस्तेषु व्यस्तेषु व्यप्तपमस्तेषु हेतुप्रत्य- याम्य न्यत्र वा क्त चिद्रावानां कर्याणामुत्यादातयू सच्च स्यात्‌ + स्याततभ्य ॐ- 6 त्पाद्‌ः। चेवं पडत्यादातपू्वे संभवः स्यात्‌ पदि स्यादत चोत्पादवेवण्यं स्यात्‌ , तस्मान्न चास्ति भावानां प्रत्ययारिषु स्वभावः रविश्वमानि स्वभावे नास्ति पर्भावः। भवने भाव उत्पाद्‌ः ' परेभ्य उत्पाद्‌ः परभावः " वि्यते तस्माट्यक्तमेतत्‌

पर्‌(भूतेभ्यो भावानामुत्पत्तिरिति श्रध वा भावानां का्ीणामङ्कुराटीनां बी्ादिष प्रत्ययेषु पत्स्वविकृतद्भपेषु ना-

10 त्ति स्वभावो निर्हैतुकल प्रसङ्गात्‌ तत्किमपेततं परव प्रत्ययाटीनां ' विष्मानयोरेव कि तैत्नोपर्मारकयोः पस्प- पत्तं पर्वं ' चेवं बीनाङ्करयोर्धोगपययं तप्माद्‌विग्यमाने [11.309] स्वभावे कार्याणां परभावः पर्‌बं बीजनादीनां नास्तीति परृव्यपदेणाभावादेव परत उत्पाद्‌ इति तस्मा- दगमामिप्राानमिज्ञतेव परस्य ' हि तथागता युक्तिविहदं वाक्यमुदारत्ति श्राग-

15 मस्य चामिप्रायः प्रागेवोपवर्णितः॥

ममयम रनम वे | ठेमपक्ुमम दसनत | सवृ पृस परमेषुद्‌ | गुनु प्पसयः मपृत -- पणर भाव०३ 86. 8 -- (णण). &118 88. 358. 8 ककव 0व17॥ 14 इव, 5१्वदाद1 क्रा 054८ 0 ९4४? -- 148 7101100 वप ववद €8† 0186४66 0). ४,

2) 1188. 520001४1. (11). सगुखपयसः यामुुरकगुषि 3) 5१74047 5 ठः == एरय नणुनय

9 = गक हुुपसगृष

8) 04170 (ठ रस्ुमः) 8671016 10९९६.

289] | परथमं प्रकरणा

तरेवं प्रत्ययेभय उत्पादवादिनि प्रतिषि क्रिपात उत्पाद्वादी मन्यते " चततू- त्पा[४३१]यः प्रत्ययाः सातादिन्ञाने जनयत्ति ' विन्नानबनिक्रियानिष्पार्‌कवातत प्रत्यया | ता चं क्रिया विज्ञानं जनयति तस्मात्‌ प्रत्यपवतो विज्ञानञनिक्रिया विज्ञान- निनं प्रत्ययाः यथा परिक्रिया शरोदनस्येति

न्यते,

(5) क्रिया प्रत्यपवती

पदि क्रिया का चित्स्यात्ता चत्तरारिभिः प्रत्ययैः प्रत्ययवती विज्ञानं ननपेत्‌। बस्ति कधं कृ ' क्रियेयमिष्यमाणा बाति वा विज्ञान इष्यते भ्रनाते वा बाय- मानि बा तत्न नति युक्ता ' क्रिया हि भावनिष्याद्का " भावश्ेतिष्यत्नः किमस्य क्रियया '

जातस्य जन्म पुनरेव नेव युक्तं " इत्यादिना मध्यमकावति प्रतिपादितमेतत्‌ ्र्ातिऽपि युक्ता

कर्जा विना जनिरियं [7,४. 80४] युक्तद्रपा '

1) प्रभौ 6-१९888 7. 77 7. 7 1. 2.

2) 1188. एकरवकाछत. - वमा, युप म्स गुर"

3) 01788. (वक्ाब12०. - (9. पयेमय परमुरो टम वे ^9| | 4) रिपुसकमुेः रकिदुयति खत ~ 10१5-6 द१# == प८९-फां०९) प८८-एष्लः ४8९16), प्रा्ं8 == इदालाषला €ं8 (8८10711४) = एंड ९णं+ 9 [ल्प (7 688०4709). ~ ॥४5/॥८4-0@ 0 ‰1810व-00 == 0 ९००1६ 7 एमा फाला, -- कद्र =~ 14.141.

-- ©€8॥ 18 ९88०१ वृ (16 6पा४, आना ४8 168 1१द१द/व5 १९ 19 (8801; {€ €॥६,

8) ए6ण167 248 वप पच्ट16€ इत्॥४.

6) प्रणीष -4688४8 18. 8. -- (9}). २78} 8 ]0., ५१६६6 118 28. 262. 19 १दा\८१॥ ^ + * १११११८९ वाब /0कीव{871 १८८१११४ ९2१८110411110459/4.

80 प्रत्ययपरोत्ता नाम ` (शह

इत्यादिवचनात्‌ '॥ न्ायमानेऽपि भावे क्रिपा संभवति ' जातानातव्यतिरेकेण नाय- मानाभावात्‌ योक्त" ायमानार्धत्नातवरान्नायमानो तायते शरध वा जायमानं सर्वस्यैव प्रसव्यते इतिं 5 यतश्चेवे त्रिषु कालेषु जनिक्रियाया घ्रपभवस्तत्मान्नात्ति सा श्रत टवाद क्रिया प्रत्ययवतो \ इति | विशेषणं नास्तीति विना विशेष्यं इत्याटिना प्रतिपादितमेतन्मध्यमकावतर रि बन्ध्यायुत्रो गोमानित्युच्यते ग्येव- मप्रत्ययवती तष्टं भविष्यतीति एतदप्ययुक्तमित्यार ' 10 नप्रत्ययवतो क्रिया यदा प्रत्ययवती नास्ति तद कथमप्रत्ययवती निर्हेतुका स्यात्‌। हि तत्तुमयः

पदो युक्त इति विर्‌णमयो ऽभयुपगम्यते तस्मात्‌ क्रिया [१8०] भावन्ननिका

पत्रा ' यग्चेवं क्रियाया श्रसेभवः प्रत्ययास्तरि नका भविष्यत्ति भावाना- मिति। उच्यते " 15 प्रत्यया नाक्रियावत्तः। यदा क्रिया नात्ति तदा क्रियाररिता श्रक्रियावक्ते निर्दैतुकाः प्रत्ययाः कथं ज- नकाः श्रध क्रियावत्त एव जनका इति उच्यते |

1) 7 ४१12181 ११४78 पा. 19 (21786०0, 1900, 0. 282). 1.# 81966 6166 (प €#€ 6168808 (0108. 2 2 ४1. 1 (01, 172 9).

2) 8१866 01 1046066६.

3) ए. 57. -- 2188. ०१९७५१५१ "दकं ९०४द एष्टव्या, . + ,०११द ४९९ ऋ, -

4) 70616 782 तप पृपश््ला€ इत्र ४.

8) 1.68 10188. 1681160४ 61076 र्‌) (1/९) णा१४ (0०५१८) 3970. प. पा, 187. 9) = म्‌ == 86111661168, &70068 6188 (8 ८10 710४). -- 1४71३ ए8६818

88. §: , , , 4740 (कषक; ९०५१ (711 बब, ०८१८४१४, वद, . . (ष्णा €1-068808). 6) (708६706 808 पप्र ऽत्र.

-23?] प्रधमं प्रकरणं 81 %1) 41

(1) क्रिपावत्तश्र तत्युत्‌ 8

नेति प्रकृतेनामिसबन्धः उतशब्दरोऽवधाटणे तत्र क्रियाया रभाव उक्तः ' कथं क्रियावह प्रत्ययानामिति यथा [7}. 319] विज्ञानन्ननिक्रिोक्ता ' एवं परिक्रिपा- दृषोऽपि भावा उक्ता वेदितव्या इति नास्ति क्रियातोऽपि समुत्पत्तिमावानामिति भवत्यु त्ादाभिधानमर्धशून्ये

रत्रा किं एतेन क्रियावत्तः प्रत्यया इत्यादिविचरिण यत्माच्चतुरटीन्‌ प्रतत्य प्रत्ययान्‌ विज्ञानाद्‌यो भावा नावन्ते' तस्माच्चतुरादीनां प्रत्ययलं तेभयश्ोत्पादो विज्ञानादीनामिति एतदप्ययुक्त मित्या

उत्प्यते प्रतोत्येमानितोमे प्रत्ययाः किल

(र || "~ (8) पावन्नात्पग्यत इम तावन्नाघ्रत्ययाः कथय

यदि चज्रादीन्‌ प्रत्ययान्‌ प्रतीत्य विज्ञानमुत्यग्बत इत्य्येमे प्रत्यया उच्यते ' ननु पावत्तदिक्नानाव्यं कां नोत्पग्यति तावदिमे चत्तरा्यः कथं नाप्रत्ययाः भ्रप्रत्यया टृषेत्यमिप्रायः। चाप्रत्यपेभय उत्पत्तिः सिकताभ्य इव तिलघ्य

9 उब हेममयः भत्‌ | हैमने उत मे | उपोष्य टे म' पव्‌ | उपशमे एम तमेत ||

2) िवस्गु रदी == @९ १0५5 17700116...

9 नुक्गु शेम मयस म्‌ देति पदग्‌ डमु उम गुगुम | दिव, ओ. 9 1 | 1 नमे, 29 भे || 8०१0१ ढ11४2, 1859 1; 802१9१1१९8, 578 7; 4 [४००१ 2, 408, एपा४ 19 एकाक; रर मेयम == ४४५१४ 10८ 24/011171016.

06 १९8 07168 6818616718114 68 १6 ९6 80701876, नर १6 ₹०१४€ १९ 19 त191९८- ४१०6 फटता कणा, 80116814 दए. [द. 114; 294 (९४ १८ णद [ष्, 2 {7050 3411107वहव१ ? 2%41/2ए0क४८ दं १7570, 17 द5क९व१॥ ६०४०1 ९०/०7, एमा 1४ प. 348. 20. -- 7४३४728 11. 1. 41, 1४. 1. 39.

10

10

82 प्रत्यपमेत्ना नाम : (शक

श्रथ मते ' पु्वमप्रत्ययाः सत्तः किं चिदृन्ये प्रत्ययमपेत्य प्रत्यय प्रतिषग्यत्त इति (1) ४५१ एतदप्ययुक्त पत्तपरत्यात्तमप्रत्ययस्य प्रत्यपवेन कल्प्यते ' तरपि प्रत्ययते त्यस्य ~ [नपि जापि ~ (2) ^~ ~ क्प प्रत्ययो भवति तत्राप्येषेव चित्तनेति युक्तमेतत्‌ किं चेहे[२५भमे चततराटयो विज्ञानस्य प्रत्ययाः कल्प्यमानाः ततो वाल्य कल्प्ये- नप्ततो वा ' सर्वथा युत्यत [77). 31] इत्याह - ~ ~ ~ निवातो नेव सतः प्रत्ययो ऽध्य युब्यते।

कप्मादित्याद्‌ [नक (8) ग्रतः प्रत्ययः कत्य सतश्च प्रत्ययेन कि

श्रततो सछवत्याविग्यमानत्य कथे प्रत्ययः स्यात्‌ भविष्यता व्यपदेशो भविष्यतीति चेत्‌ नेवं ' भविष्यता चेद्यपदेण इष्टः शति विना नास्ति दि भावितास्य ४. इत्यादिनोक्षदोषवात्‌ सतो ऽपि विश्मानत्य लन्धनन्मनो निष्फलैव प्रत्यय- कल्पना

1) 7020168 (19. 17/45 {5/८ -- 1.6 ००प्१९दप 27 ४व‰/८ 4०७ 100 80])70086€ 10 1671416 2747244 (९6४ 1017ब4//, . . , . =:

2) 2183. ८914 व६ १५. , . (10. > == 0८८, १४ १0८१८... . प्रण ^ ६८९ 8. ४०८. ८१10१.

मेमनः छम दम पर | ठे भै उर्व मषक | मब गरब ठै नयु | पसि टुमेस' बेग | ०० श्ण ९५ ०४६ ०५ प्या. 20, -- 8०११९४7 8&11४8 185 6; 818४2१४1४62 588 1. -- 07098 19 8181166 87 - ४४१. 8. 14. 18; १८ 5@{व, ॥4१व्ना$द. . .

4) @०. 4 00100. ए. ए. (80८. 48.) 2288. 2: . . . एालण्यण्छुद ऽवश्र्वक . . . 2१००5 १/ ४/४ = 5411072 = 2017 व९(व7 12/द८ , , ,; 1९8 दए76881008 ऽवशः वध 8011151८0"048, ०4497 वल्कं 8006 0011668 60776 शा [0168.

8) = 14४१ 27४1१४१४, ए. 58 (8४066 01186 ०००8 14111616 &॥€ वप 27८8६००) ~ 00 ह्ण = नकु युर. एण भ. ६, ए. ऽण]016€४४.

-24 २] प्रथमे प्रकरणं 88

एवं समस्तानां प्रत्ययानां कर्पोत्याट्नातामर्घ्ेनाप्रत्ययलम्‌द्राव्य \श्रतः परं व्य- स्तानामप्रत्यपवं प्रतिपाग्यते

श्रनरा पय्यप्येवं प्रत्यपानामसेभवः ' तथाप्यस्त्येव लत्नणोपटेशात्प्रत्ययप्रति- दिः। तन्न निर्व्तको केतुरिति" ललणमुच्यते रेतुप्रत्ययस्य \ चाविश्यमानस्य लन्नणो- पदेशो यक्तो बन्ध्यासुतस्येवेति उच्यते ' त्यद्ितुप्रत्ययो वदि तत्य लत्तणं स्यात्‌ ^ घ-

त्मात्‌ ¦ # तत्नापनं \) †/॥ ५/0 = (~ (~ सन्नासन्न तद्‌सन्धरमेी निर्वर्तते यदा

निवतको 9 + ~ (~ =~(2) कथं निर्वर्तको हेतरेवं सति हि युश्यते

तन्न निर्वर्तक उत्पाटकः ' यटि निर्वत्यी घी निवर्तित तमत्पाद्‌को हेतुहत्याद्‌- पेत्‌ ' तु निर्वर्तते ' सदतडभयद्वपत्य निर्वत्स्याभावात्‌ तत्र सन्न निर्वर्तते विग्यमा- नवात्‌ श्रसन्नप्यविग्यमानवात्‌ [79. 9२५] सद्पन्नपि पर्‌स्पर्‌विहदस्येकार्थप्याभा- वात्‌ " उभवपत्ताभिरितदोषलाच्च यत एवं कांस्योत्पत्तर्नाप्ति केतुप्रत्ययोऽप्यतो नास्ति ततश्च यडुक्ते ' ललणेभवादि्यते हेतुप्रत्यय इति ' तदेवं तति युन्यते इदानीमालम्बनप्रत्ययनिषेधार्थमाक्‌

1) 4 ०५००४१४ बुर रपति दरे == १९0८1474 44१८~ 71 11.1./2

9 गॐ 1 पसि स्र | भेर सुर पमेर भेगुप् >

[ष क्व पये यु लुम | मम्‌ मेःरषुसस || ०९ वण्णणट 12 16८पाटः द्वक १५८1द0 06" ९४१] 52 1८ & 441९. -- ०7 6 -46880४8 1. 13. -- 06 इत्च ९8६ 616 €-4688४8 7. 31. 6 ४१ पा. 20.

3) प्रणी 2. 76 7016 ¶7. -- 41६०१0४४: समेषु" लम्‌ ढे रमे

[नी देशस : [दवाव 2 ए0पा प्र ह्6 एनंणौ वगुणप. -- पि 21 -

110, 1173. 1174. ~ 7212०2९४ 68 18प्€पा' वणा ॥&16. पा लगा ४8 41401 0५१0 च्र$ढ (12०१०) 140 26४9) ९४ 06 88 पू; 11 9 0०6 षड १6 प्1०1- ४४१९ १४ (०1१2४108), 249 (ह्वा. 1.४ १०८०6 ९8४ 0प४6€ 146 91181€ : 91 168 8101168, 01 168 €0}00868 4400068 ०6 }€प्रर्€ा४ €॥6 ०}€४ १6 18 €08188806€. -- ऽणः 19, 166- पपा ब्१2५१८ (एदा काद११170द)) १०7 11 १, 1. 470.

84 प्रत्यपपोता नाम . [१५४-

(1) ~ परनालम्बन एवाधि तन्‌ धमं [५०] उपदिष्यते

1

~ 4. . श्रथानालम्बने धर्मे कुत ब्रालम्बनं पुनः॥

इष्ह सालम्बनधमांः कतमे ' सर्वचित्तचैत्ता इत्यागमात्‌। चित्तचेत्ता येनालम्बनेनोत्प- `

त्ते पधायोगे बरपादिना तेषामालम्बनप्रत्ययः श्रये विग्यमानानां वा परिकिल्प्ये-

5 ताविग्यमानानां वा तन्न विग्चमानानां नार्धप्तदालम्बनप्रत्ययेन ' धर्मस्य स्ुत्यतच्यथमा- लम्बनं परिकल्प्यते ' चालम्बनात्पं विग्यमान एवेति शरविवमनालम्बने धर्म स्वात्मना परसिदे किमस्यालम्बनयोगेन परिकल्तयतेन ' इत्यनालम्बन एवायं सन्‌ विष्मानो धर्मः चिततादिकः केवले सालम्बन शृतयुच्यते भवद्विः स्वमनीषिका, वस्यालम्बनेन क- शित्संबन्धोऽस्ति श्रयाविग्यमानप्यालम्बनं परिकल्प्यते तदपि युक्तं ' ्नाल-

10 म्बन [7)0. 82४] एवायमित्यादि। श्रविग्यमानत्य हि नाप्त्यालम्बनेन योगः।

1) 7188. 5 वाव, ककावदकनत.

9 पमन दषः तु समेषु | मेरुम म्‌ कष सष | ङसः ठे" रमेगुस मे | दमेगृसएसिपर्‌ गुचः नदयुर्‌ || प्यारा एवष एषः तोप्तणा 068 ह्य ६8, १० उणा, -- 41१4०019 7४ गु सते (80 7१९३१ 788 प्रकत; 8०१११ ०7811६४ पमु वि कसे (८४7 ०९४४ 798 पपा,

2) १९ 18 88 1060106 ९९४ ढ&808, 4७ 616 988 812 ४४1१618. -- 000}. 1) 1.- 821 1185. 1508. (8४168 08६ 02१6 ०८०7180४ ०0}€6॥ कण्ण == ऽद्वा

११५१९). {€ 1809 १९ 19 7 0.-871 ९8 लं॥€, 0 भण ९8 16 &३ 8178 (श्म पठमभिस)

एधा 818१४१1 १6€]६४ (101. 609४). -- 41६६००2 9 (400 8) == . . . 9८ 741101@ ९175, 1८ /ब100047 द्र. -- पणा 2८02१200 12. 3. 5.

4) == 2126068 @&पतवप्ताप्टा. (3 27111027 , १. र.). 5--8) ऊषः पमेगुसयः भेर, मे | परमत रिषन. तप पढ |

बखपुर स]"तु'गि' == ५११104१4 ९४द्‌४/द१॥ 5८1009 ९४०वव१(४/व्वत धल्व,

- २4४] प्रधमं प्रकरणं 88 भ्रनालम्बन एवायं सन्‌ धम उपदिष्यते ' भवद्धिः सालम्बन इति वाकवरोषः। ्रधानालम्बने धर्मि कुत घ्रालम्बने पुनः। भरधशब्द्‌ः प्रभरे ' कत इति केतो तेनायम्ः ' श्वैवमनालम्बने धर्मे ऽत्यविग्यमाने मचः कुत घ्रालम्बने ्रालम्बनक्रामावादालम्बनत्याप्यमाव इत्यभिप्रायः कथं तष्टं सालम्बनाित्तचे्ताः ' सावृतमेतल्लन्तणं पाटूमार्थिकमित्यरोषः॥ इदानों समैनत्तरप्रत्ययनिषेधार्थमार

श्नुत्पत्रेषु धर्मेषु निरोधो नोपपग्यते।

0 | 5

(४ 5

1 , = | (4) नानत्तरमलो युक्तं निर्दे प्रत्ययश्च कः॥

1-1) र्ेगुखममेद न, | परमयः $ युय ठे ठम, ठेस केवन्वद्मते | रमिगुस्पयुरयससयनः वेसदवनुः गुण श्ुगुमते

== 41८01010 410 १द[417104197 5८0४ 21 ९४व ९7484009" १4वद(४व८; ३द्यद११८११द ४४ ००८९5.

2) 1.6 710# लाक7एवकवप (रमेगुसपमयेम प) | 000१९्४प्. ` 8) ०16 ६९३४९ ०6 8110८ 48 5८7142104101472 (मद्धस्पनेमकतगृप) ववावाद; ए्णा7 0. 76 ०. 7. - 61०86 १6 114 ४००18१8; देमगुपति | रठ

य्न मद्यते दुमथेसइ न= क१ववाद01द/व/0 900कदवा कषा. -

0270728 1४ १60 पाप्म १५ ००४८ ६९३९, == द८१८३४/ 2111110 24707, (णपा कश्हर ४०1088१४ 1४. 1. 14... 9 वटव एद्गवकाव्मःत० दधवा, व11040100व€ 0 एवकार ४/7 ४८. एधि ४000 15 इपार.). -- 210१. इ. 1 (4 {{12- 2४08, 2. 183); एण्यः 16 54171 {ब1१1८८लद0, 10प्क्लणुध्00 १९ 19 86116 १९8३ 10706018 101९11६ल(पा३, 1९8 41079188 76076 अप्व प्र्डा€ा१ 18 ¶०९६॥०0 : © ९6 81214188 21186 भ]€ 176 ९6 211९४ 81186 2१6 110 ९८३8९? (7 $ 8 7 8१148, 8600018 017 38०११18५ 8611€1).

4 देसहुसस शरैस म' धमम्‌ | नगुगृप नविरपन मः रयु | गदर तेमु रेसृष | शुग छम धर गरि धम |

86 प्रत्ययपरीत्ता नाम ` [४४-

तन्न पश्चिने श्रोकत्यर्घे पादृव्यत्ययो द्रष्टव्यः ' चशब्द [59] भिन्नक्रमो निदे चेति तितैवं पाठः ' निरे प्रत्ययः कः ' नानत्तरमतो युक्तमिति श्रोकबन्धार्थे वे. वमुक्तं तन्न काएणत्यानत्तरो निरोधः कार्यप्योत्पादृप्रत्ययः पमनत्तरप्रत्ययलनतणं 5 शरन विचार्यते घनुतपत्रषु धर्मेषु कार्थमूनेषङ्करादिषु निरोधो नोपप्यते कारणस्य [71. 389] बीनदः यदैतदेवं तदा कारणस्य नितोधाभावाङकरत्य कः समनततएप्रत्य- यः॥ श्ानुत्पत्रे ऽपि काये बीननितिध इष्यते ' एवं तति निरुडे बोननेऽभावीमूतऽङ्कर्य कः प्रत्ययः को वा बो्निरोधघ्य प्रत्यय इति उमयमेतदृरेत॒कमित्यार ' निरे का प्रत्यय इति चण्दोभुत्यनशब्दपित्ः तेनातुत्यने चाङ्के बीनाोनां निरोध 10 इष्यमाणे ऽप्युभयमेतर्‌रेतुकमापग्यत इति नानत्तमतो युक्तं श्रथ वा स्वतो नापि परत इत्यादिनोत्पाो निषिद्धस्तमभिपैधायाह श्रनुत्यतेष धर्मेषु निरोधो नोपपय्यते।

नानत्तमतो युक्तमिति शरपिच 15 निरे प्रत्ययश्च कः॥ इत्यत्र पूवंकमेव व्याव्यानं

[र्य [क (1) (~ 8 (न (2) #- {~ इदानीमधिपतिप्रत्ययस्वद्पनिषेधायमादह [बोनारोनां] भावानां निःस्वभावानां पत्ता विग्यते पतः।

( . {~ त्प (~ ~ (3) सतीद्मप्मिन्‌ भवतीत्येतनेवपपय्यति ९०

1) 5०५१८ 68६ [88 धव प्रं४ १६०३ 16 (1061.

2) 70270168 16 {106॥810.

9 सुस्त रन पदिममेदद्वमसयै | एत्य बुरडर पसमेषद्‌| रु पस पुः वे | उप वेव मपय

-25१] प्रधमं प्रकरणं 87

इक यत्मिन्‌ सति यद्ववति'तत्त्याधिपतेयमित्यरधिपतिप्रत्ययलत्तणं भावानां प्रतीत्यतमुत्पन्नवात्त्वभावाभावि कृतप्तब्बदृस्मित्रिति का एवेन व्यपदिश्यते ' कुतस्त- श्चद्दिमिति कार्वलेन तस्मान्नास्ति लन्नणतोऽपि प्रत्यसिद्धिः

त्रा [77. 880] ' त्नाद्भयः पदादिकमुपलभ्य पददस्तच्चाद्यः प्रत्यया इति [25४] उच्यते प्ाद्फल प्रवृत्तिरेव स्वद्वपतो नास्ति कुतः प्रत्ययानां प्रत्ययवं ते- 5 त्स्यति यधा पटादिफलप्रवृत्तिर्‌सतो तथा प्रतिाद्पन्नाद्‌

व्यत्तप्नमस्तेषु ्रत्येष्विति तत्फलं

र्‌ = (4) प्रत्यवन्यः कथ तच्च भवन्न प्रत्यवघु पत्‌। १९

तत्र व्यस्तेषु तत्तुतुरीवेमततरणलाकरारिषु प्रत्ययेषु पदो नाप्ति ' तत्नानुपलम्य-

~

मानात्‌ \ कार्‌णबज्ाच्च कार्यबङतप्रसङ्गात्‌। समुदितिष्वपि तल्नादिष नास्ति पटः " 10 ्रत्येकमवयवेष्वविव्मानलात्‌ ' एकस्य कार्यत्य लएडण उत्पत्तिप्रसङ्गात्‌ तस्मात्फ-

~ (5) ~ लाभावान्र तन्ति प्रत्ययाः स्वभावत इति

मरव्रा्दपि तत्तेयः [प्रत्यपे*यः प्रवर्तते ।]

1) ०११४7211 20९: ‰45701170 ककव ‰470 200 ए7वण्व४.

2) ८0 ्0व मुष, ८१ ५८८/401 गुरव (1888. 28. 14. 117. 8: 2 2811681 201 त्रला{0 7016 10 88४037४). -- परभष 2. 76 ०. 7. - ^ ५०१8४१४ 4 सुन योरपि, ्मखेस् == ०८1१0001107ब४ 4/0 ` काद्वावद्ल 1704171.

3) 5४८१0 07681 88 0 प्रा 805 16 {1).

4) लैषडमस ०५16 | (न्स तु दे भे ढे | ठम कमस शि मेप | ्ं टमुपयिसः दिर | 8०११६४१ ३111४ 00 (18827) रि = (ध 801४ 12 16€6पा€ 9४८ ४१/५७८०.

2) 5४८ दवय ०१68४ [98 {180४ १४08 16 (19.

88 प्रत्यपपरोता नाम [७४- इत्यमिप्रायः स्यात्‌ कि [न ¢ -) ) घ्व्रत्ययेभयो ऽपि कप्मान्नामिप्रवर्तत फलं ॥१२ ~ पानानि = = ~ (2) [तराभिप्रवर्तति रप्रत्ययेष्वपि नास्ति ते ' श्रप्रत्येभ्योऽपि वीरणादिभ्यः कस्म

पट इति नाप्ति फलप्रवृत्ति स्वपतः 5 = श्रत्राह्‌। य्नन्यत्फलं त्याद्न्ये प्रत्यवाप्तदा किं प्रत्ययेषु फलमस्ति नास्ती- ति स्यार्चिता , नास्ति तु व्यतिरिक्त फले , किं तर्क प्रत्ययमयमेवेति उच्यते। फलं प्रत्ययमये प्रत्यवाश्चाप्ववेमयाः [719. ३4४]

~ 4 4 ~ (5) फलमप्वमपया पत्तत्प्रत्यपमयं कथं ९३

| पदि प्रत्ययमयं प्रत्ययविकार्‌ः फलमिति व्यवत्याप्यते तद्‌युक्गं पस्मत्तेऽपि घ्र- [9 ~ ~ ~(6) = _ 10 त्यया श्रस्ववेमपा श्रप्रत्ययस्वमावा शइृत्यर्ः तततुमयो कि पट इत्युच्यते स्यात्‌ पठे यदि

1) 1088. वा7द5दव द्यू एथ दलद्कुः वध्वमट 27० वाकव्व्ः $. 00704/40/९5 4. , . -- 7079078 7106 एला8ं0 0619176, 16 ऽत्र 2 (0 वम 7766606 19 17986 $ 4779011], 50/द) 194प्था1€ ४016860 ९४ 76 06 वृप्ठ इणः 168 व€पड ए7लणा€ा§ 8088.

07970168 0006 ग€ा8700) 176वाध्०0 168 1 11188 (00 एना) & 18 पदवप्रहण

1९ 8०१११०7 81148 (1887 7): र, रेपुस"यु भेम | रे दुगुष्यस | ^^ | रममेमेपस निगुतु | 78 मेनेन | 1.4 1४०४११४ (418 5) 818९8१1१ 618 (620 8) 119€0॥ 16 एष्ट 8208; ज, मे भेद्प, र] 8808 1५ 7606600 वप्र फणौ वाद.

2) ४०८१४ == २5

8) 5४८47 ०४4०९ १४०६३ (19.

21 पमस ठु

तपषु ठम -र्वूमय्‌ | ठेगमम' सगुण पवग समिसथिस सुः गुम | मेषि दिष्म नैम पव्‌ || पणय प्वण्णौण 11४ 2 प; व९-19 व९-11क . . , ~ 7010-0 == 5407 ४८. -- 174 1 १४०१०0४ 2; पत- १४] 11४8 81 हए १७६8 18९0४; 11/15 70949) १091458 १0/40.

6) 1. = {८८ {05 {414741144/2 १४५.

-6 ५] प्रथमं प्रकरणं 89

तत्तव एव स्वभावसिदाः स्युः ' ते कोशमया(श्रशविकाा स्वभावतिदाः , ततश्च तिभ्यो- ऽस्वयेमये(भयो स्वभाविभ्यो यत्फलं पटाण्यं तत्कथ तततुमयं भविष्यति यथोक्तं [२५ पटः कारणतः सिद्धः तिदे कारणमन्यतः।

तिदिर्थप्य स्वतो नास्ति तदन्यन्ननपेत्कथे इति

तस्मान्न प्रत्ययमयं | 1

फलं सेविग्यते शरप्रत्ययमयं तर्छस्त्‌। +. नाप्रत्यपमयं फलं सर्विधते।

इति तत्तुमये घद्‌। पो नास्ति तद्‌। कथे वीरृणमयः स्यात्‌

रत्नाङ्‌ मा भूत्फलं ' प्रत्याप्रत्ययनियमस्तु विगते तथा भवान्‌ ब्रवीति ! 10 थ्चतत्फलं प्रत्ययेभ्यः प्रवतत श्रप्रत्यपेभ्यो ऽपि कत्मात्नामिप्रवतत इति चासति फले पट्कदाव्ये तनततवीरणानां प्रत्ययानां प्रत्ययलं युक्तं , श्रतः फलमप्यस्तोति [1,0. 341] उच्यते स्यात्फलं यदि प्रत्ययाप्रत्यया एव स्युः ' सतति टि फल मेऽस्य ्रत्यया डमेप्रत्या इति स्यात्‌ तच्च विचार्यमाणो नास्तीति

1160५

(7) फलमावत्त्रत्यवात्रत्यवाः कृतः कृतः ९8 18

1) 2188. १06५१4४2, ९१४2, (100. रमसे पढम समृ „+

2) #6€7ा€ न्धना १४०३ ०११०४} 811६8; 1899 1. - ए0पाः 168 व€ण्ड वथ 01678 2088, ९071}. & १०१ ४६३8४ ४२४1, १० णा, 279 5.

8) कुस"पमु्‌ = ‰/ 210.

4) 1.6 ६6४९ तप्र इत्र 2 €8॥ 6189017 १9017165 16 ५06४. 9) वेति न्पुयि न्मु मति पवि ्मनयु = ४005 ०५१४ १५41८४१४. . . . . 6) ‰५{५ == रश, €&(०€ १९ 20118 १९ एषः €॥ १९ ल0देए6€. = ~ ठ... 0 (८. 9 „४ 79 बेर दैवेन यनमं भेम देवम रमं सुः यै| दमभे त्मवुमेगयमन्‌ | केमममे हेमः गुष तुर |

6 नैः

10

90 प्रत्यपपरौना नाम [९6४

~ (1) प्रत्यया्ाप्रत्ययाचेति समासः तस्मान्नास्ति भावानां स्वभावतः समुत्पत्ति रिति। (०९ [9 ~ (2) पथोक्तमायर्‌लाकरसूतर शून्यविश्य हि विग्यते क्र चि ' प्रत्तरौति एकुनस्य वा पद = ~ (5) “~ < १: यो विग्रति सभावतः क्त चि ' सो नातु परृरेतु मेष्यति [रप्‌ (6) यत्य नेव दि सभाव लभ्यति ' सो ऽतभावु पर्‌पच्चपः कयं (7). ^~ (स (~ परस्वभावु पं किं जनोष्यति ' एष देतु सुगतेन दे शितः ~ ~. (8) ~ ~ ~~ वं घमं श्रचला दृं स्थिता ' निर्विकार निह्पद्रवाः शिवाः। शः (9) ~ ५४ ्रत्तरोत्तपधतुल््य ऽन्नानका ! तत्र मुद्ति लगे घ्रत्नानक्र [> ¢ (10) „५ ^~ [य शेलपवत यधा श्रकम्पिया ' एवे धम श्रविकम्पियाः सदा

~~ 011... त~ नो च्यवत्ति पि चोपपय्ययु ' एवे घमणा निनेन दशिता]

1) 5४वफकदटवव‰ ०18 १४०३ 1€ (119.

2) 1६ 9०१}०प7, 74०, णा. गि]. 338--456 (९९१, 0. 218). - प्रणए ५।-4९8- 8008 8४4 ४1171. 6. - 2,४17@६कषा४ ९81 प्रा १६8३ 8८;2€ [गा€8 १€11प्९प्रड <€ प्रा€768 १४०३ 16 11०४३, ८08}. 1 (1९८०, 2. 4). ~ 0616 2 ६१०११8४३ ----~----~~ |

3) 2088. ४९४९. (110. बुत्‌ ग" श्रय शगु भे मे == 5901800 (४८17) ०0४ (१4/४४ ००/४९. 4) 1088. ०78९, ०18९, 5४; €. 211१. 11. 341. ऋ. 8) पुतन नि वेर रि पस-मेमुय == 45000420 व0£ 100 द्व © 5४० १४० ५६व/ब{९. 6) 1188. 070101410/04/41 ; १€ 7616 5ध्वएदल्छव €ग1796 [0णा' 16 76016. 7) 2188. ८५) 2414101. -- 07217? 190. 8) ©९8४-४-411€ ¶०€ 1४ ०४{प76 726 १९३ व71110005 €8{ 0676 बलवद. 9 मस्य भेदः एणः 0१. 1. 84. 19, २9) 9 7. 275. 19 ‰0वढ. , , , 90१४ 41८11002 व्युद्धमद वदद्, द८्वह. . . . 10) ९४९1 १904. 11) 188. ‰४, & (&. 12011316 एवा), ४५११. 12) 1188. दाव 7वक; = +वार; 0, रसाहुमसः + == ९४५१ ११४५११४.

-26१] प्रधमं प्रकरणं 91

इत्यादि तथा योन पि ज्ञायति ना चुपपग्ची ' नो च्यवते पि नीति [6१] धर्मः तं जिन्‌ देशयती नरसिंहः ' ततर निवेश्िं घवशतानि॥ ` पल्य प्भावु विति कथि ' नो पर्भावतु केन चि लन्धः। नात्ततो पि बाद्धिितो वा ' लभ्यति तत्र निवेशपि नाधः 5 शात्त गती कथिता सुगतेन ' नो गती उपलभ्यति का चि। तत्र वोर्सो गतिमुक्तो [7. 85०] ' मुक्तक मोचयती बजसलान्‌ इति विस्तर्‌ः॥ इत्याचार्वचन्दरको्तिपादोपर चितायां प्रसनपादायां मध्यमकवत्ती प्रत्ययपरीत्ता नाम प्रथमे प्रकरणं 0

1) 1.6 6706 7867६ 68 6१४६ 8 7. 6. ~ #€॥1€ 7 ०१1 81४ -------~~- | 9 देन" वरग - एयर (व दा, 6): पवन मणय पवकः

3) 1.९6पा€ [0167901९ (ला7€ ¶प€ प०पऽ 2018 20166 7. 1.

92 गतागतपरोत्ता नाम (-

1.

गतागतपरो्ता नाम दितोयं प्रकरण

तरार \ यग्रप्युत्याप्रतिषेधात्प्रतीत्यतमुत्पाद्‌स्यानिरोधािविशेषणसिद्धिः तथाप्यनागमानिरभमप्रतीत्यसमुत्यादतिद्यये लोकप्रमिदगमनागमनत्रियाप्रतिषेधाधि किं ` चिड़पपत्यत्तमुच्यतामिति उच्यते पदि गमनं नाम स्यानिवतं तद्गते वाऽ्वन्नाति परिकस्प्येतागति गम्यमाने वा सर्वधा युव्यत इत्याह गतं गम्यते तावद्गतं नेव ग॑म्यते

= + ~ (8) गतागतविनिमुक्तं गम्यमानं गम्यते

ततरोपर्‌तगमिक्रियमध्वनातं गतमित्युच्यते प्राविश्यमानं वर्तमानगमिन्रिधवा

10 गम्यत इत्युच्यते यद्रतमृपर्‌तगमिक्रिषे तदतमानगमिक्रियायोगवाचिना गम्यत इत्यनेन शब्देनोच्यमानमतेवदमिति कृवा गतं तावद्गम्यत इति नं युव्यते तावच्छ्देन प्रति- पषेधक्रमं षपति

1

1) ए०११४१ह1119 1908 1,

2) &1-068808 }. 58. 10.

8) भेषु समि मे ९, | मद्रि नर कुप भेद्‌| सरः सूर सन" मनिगुसपर | कमसमम, मर" रजु || 1 वव्णष० तव %@} €॥ 000 व.

4) 7188, 01द/वछक १८१८०210. -- एणा 1708 8 ए. 14 (01. 469 श्ण 06४४).

-2] दितीपे प्रकरणं 98

श्रगतमपि' गम्यते श्रगते खनुपननातगमिक्रियमनागतम्‌च्यते ' गम्यत इति ` वर्तमानं , श्रतोऽना[99]गतवर्तमानयोरत्यत्तमेद्‌ाद्‌गतमपि (7५४. 5४] गम्यत इति यत्यते पश्चगतं कथे गम्यतेऽथ गम्यते तद्गतमिति गम्यमानिऽपि नाप्ति गमने यस्मात ' गतागतविनिर्मकतं गम्यमानं गम्यते 5 इ्ह हि गत्ता पं देशमतिक्रात्तः तस्य रणो गतो ' यं नातिक्रात्तः सोऽस्या- नागतः। गतागतव्यतिरकेण तृतीयमपरमध्वनातं पश्यामो गम्यमानं नाम पतशचैवं गम्यमानं गम्यते ' गम्यत इति प्रज्ञायते ' तस्मान्नास्ति गम्यमानं श्रतो तद्रमि- क्रियया विश्यति गम्यत इति नास्ति गम्यमानेऽपि गमनं त्या्रतुर्गच्छ्तो यश्रणाक्रात्तो देशः गम्यमानः स्यादिति नैवे ' चरणयोरपि पटमाणुांवौतवात्‌ 10 ्र्गल्यगावत्यितस्य परमाणोः पी देशः तप्य गतेऽत्गतः। पारपयवस्थितप्य चरम- पमाणोर्यं उत्तरो देणः तस्यागतेऽ््गतः। परमाणुव्यतिरैकेण चरणमसिति तस्मा- न्नास्ति गतागतव्यतिरेकेण गम्यमानं पथा चेवं चरणे विचार्‌ ' एवं परमाणुनामपि पू्वापरदिग्भागसबन्येन विचार्‌ः कार्य इतिं॥ ्रथार्धगते गम्यमानं , उक्तमुत्तर लायमान- विचरे तप्माद्रम्यमानं गम्यत इति तिद 15 तन्नाद् [10. 369] गम्यत टव गम्यमानं ' दि चेष्टा यत्न गतिस्तत्र गम्यमाने सा पतः।

(ल्‌ ~ [र्‌ (5) गते नागते चेष्टा गम्यमाने गतिस्ततः॥

1) 2788. 0८4व{वक॥ ४४.

2) 2188. 5217141द॑वण्ठा, ऽदीक्वद४्ल, -- ?. भ, +*52101407का0.

3) 38०१४1९. 1. 47.

4) ४०7 6-१९88०8 2. 80. 8.

9 गरम गु बदु च्वि] दे पर गुरेन कमपि] गु्क्रः भेषु मर्षः मेस्‌| रेन प्म स्प एत्‌ |

94 गतागतपरीत्ना नाम : * [नि

तत्र चेष्टा चरणोत्तेप।प]रितेपलत्तणा। यतो ब्रन्रतो गततर्यत्र देशे चेष्टा गतिस्तत्रैव 1 प्क = (त टे ' सा चेष्टा गतिऽध्वनि सेभवति नाप्यगते किं तु गम्यमा[ध णन एव ' ततश्च गम्यमाने गतिः पन्न दि गतिहपलभ्यति तद्गम्यमानं ' तच्च गमिक्रियया श्राव्यते [न्ख ) [न्स मि्तनि (1) ^ (वाः ~ तस्माद्रम्यमानमेव गम्यत इति एकोऽत्र गमिज्ञानाधः ' घरपर देणात्तपंप्रात्यर्धं इति 8 एवमपि परिकल्प्यमाने गम्यमानं गम्यत इत्याद ' गम्यमानस्य गमनं कथं नामोपपत्स्यते

(स दिगमनं [ऋ ~ (2) गम्यमाने दिगमनं पदा नेबोपपग्यते

इह दि गमिक्रियायोगदेव गम्यमानव्यपरेशमिच्छेति भवांस्तच्च गम्यत इति ब्रवीति एका चात्र गमिक्रिया ' तया गम्यमानव्यपदृणो भवतु क।ममधनो ' गम्यत इति 10 भूवः क्रियासंबन्धो गम्यमानप्य पुन्यत इति ॥. गन्यमानत्य गमनं कधं नामोपयपतस्यते कारणमाद्ह गम्यमाने दिगमनं यद्‌] त्रैवोपपग्यते इति गम्यमानमिति गम्यत इत्यर्थः ।*दिगते गमनं दिगमनं एकत्या गमिक्रियाया 15 गम्यमानमित्यत्रोपयुक्तवाद्धितोयाया श्रमावाच्च ' गम्यत [7५0. 96४] इत्ययं व्यपदेशो

1) (०णाफश्ष€ा 116070010&16 १९8 70018 {वद्यूकठ, 5१८1. [वी नयौ => ~) 9 ररम स्तत (मुपम्‌ व| हिश्मुमु कवपुपरच्छुर| गुरुक सिं २७१ > एवा [न्न नगु ममत | पमुमत निसु भेर | == ०८१1१, 14 वव 240 ‰ववद् १८९०००५ व४क८ (1 १० णा 168 (06768). ~ 1 विण एएहि 6616 1600. -- प्र भंए 168 0168 8प्रो १811168 €† 1४ 1086 ९११८ (८१06014 (7. 98. +).

3) 1.6 पएक€क्षण ॥्8व पं (०06 धं -1688प्8 (एणा? 106 2) ९४ भं ०४6 रनुपमेप्‌,

पुं मे नव्य 151 पयत = शका वका्दककादीदका, उप ककाणकाप्ावा

4--4) 66४6 1011886 12९8; [88 ६20 प्र ४6 त878 16 पभ) €भ्ण,

-28] दितीपं 95

विना गमनेन पदा नैवोपपच्चति ' तदा गम्यमाने गम्यत इति परिपूणी वाक्य नास्ती - त्यमिप्रायः गम्यमानमित्येतावन्मात्रमेव संभवति दितोपक्रिाभावात्‌, तु गम्यत इति शरघ गम्यत इत्यत्रैव गमिक्रियापंबन्य इष्यते एवं सति गम्यमानव्यपदेणे नात्ति तरिपातेबन्ध इति परपूर्णतौ वाकार्ध्येत्यारः 5 गम्यमानत्य गमनं पस्य तस्य प्र््यते

= = = ~ (9) शते गतमेम्यमानं गम्यमानं दह गम्यत 8

वल्य वादिनो गम्याभुमानस्य गमनमिति पत्तः ' गम्यमान संन्नाभूते गमिक्रि- पाशन्ये यो गमिक्रियामाधेयमूतामिच्छति ' तस्य पत्त कते गतेगम्यमानमिति प्रसन्यते ' गतिर्‌ च्ितं गमनं स्यात्‌ यत्माटृस्य गम्यमानं दि गम्यते हि शब्दो यस्मादर्थे प्माद्‌ 10 गतिर्‌ितमेव गम्यमानं सत्तस्य वादिनो गम्यते ' गम्यत इत्यत्र क्रियोपयोगात्‌ तप्मा- इतिर्‌ हितं गम्यमानं प्रपव्यते श्रधोभयन्नापि क्रियासेबन्य इष्यते गम्यमाने गम्यत इत्यन्न एवमपि गम्यमानस्य गमने प्रसक्तं गमनदयं |

एष्य ( ।, पन तङम्यमान वच्चान्न गमन पनः 15

1) 20974प€ 1298॥€18व १४०8 2361110 & ४; एणाः 16 8678, एग 7१८ - 00) ०१{7व.

2) गुरो रमयन रप देए वरमुमत मेष्यन | भुग्न नुने गुःगेडर| ग्नम रवर पञ |

9) पर, वान्छाचात, - 10. सनरस्य (= श्ववच्च ऽव ा८ ; ०१ ९768९1९ 16 इरण -क -- अकष == १0१-९९8-79.

4) पुम न्युप एसुममे नेयुष प्रेस सुय रुन्> | गुरणेसः दु कामु गुर | वर स्नुत गुर ममते

96 गतागतपहोत्ता नाम ` (७५-

येन गमनेन पोगाद्गम्यमानव्ययदेशे प्रतिलमतेऽध्वा तदेकं गमनं तत्र गम्यमाने ऽधिकरणमूति दितोयं गमनं पेन सोश्ा गम्यते एत्मनदं गम्यमानस्य गमने तति प्रसक्तं |

भवतु गमनदयं ' [1,0. 87५] को दोष इति चेत्‌ श्रयं दोषो ' प्मात्‌ '

दौ गत्तारी प्रप्येते प्रसक्ते गमनदपे `

किं पुनः कारणं गत्तदयप्रसङ्ग इत्याह

= ~.(2) गत्ता 1 तिरस्कृत्य गमनं नोपपश्चते

क- ४4 + ¢ ¢ पंवस्थि पप्माद्बश्यं क्रिया ्वप्ताधनमपेत्तते कर्म कतारं वा गमिक्रिया चेवं कतपवत्थि- ताभ्तो गत्तारमपेत्तते नास्ति चैकस्मित्ेव गच्छति देवदत्ते दितीयः कर्ते ति रतः कर्त

10 यामावान्नास्ति गमनहयं ततश्च गमरनानं | म्यत इति नोपपग्यते ।रेथल 8 "आ, > ~ (3 < ^~ 3) [र्‌ $ # तद रव स्यात्‌ ' यदायं देवदत्तः स्थितः त॒ नानु] भाषते [ननु] पश्यति ' नान्‌] तदेको

ऽनेकक्रियों दृष्टः एवमेकस्मिन्‌ गत्तरि क्रियादये भविष्यति इति [४8४] नेवं शक्तिं कारको द्रव्यं ' क्रियमिदान्च तत्साघनस्यापि शक्तेः सिद एव

मेद्‌: हि त्थितिक्रियपा वक्ता स्यात्‌ दरव्यमेकमिति चेत्‌ भवत्वेवं " तु दरव्यं

0) पुप्यति गनिरयुनपते स्म्य दुत दया कषामा ववकावा- 200०207८. -- षृढ = बवदा, त, 6-1०8००8 97. 4, 99.11.

2) नब" गुम "स्युः युनि निुनम | नेगुध्प ठ" ८" गपि ह; नन | गरम वुपमेुम य| नुत त्वरय मेनयुनड्‌ | १७०५१४० 20 कव वा- क.

8--3) @&##€ 72886 8006 0808 18. श्छाशंला चएकक्षण€ वपं ४: सव्व) प्रमद. ,., -- 1188. . , , अक 50 १4 ९1 द्54/८ वष्वतं शव (ववद. , , .

-28४] दितीयं प्रकरणं 97

कारकः \किं तर्द शक्तिः ' ता भिवत एव श्रपि सदृशक्रियादयकार्‌कत्वं नेवदि- कस्य दष्ट, रतो नेकस्य गतरगमनदयं श्त्रार्‌ पग्यप्येव तथापि गत्तरि देवदृतते गमनमुपलभ्यते देवदत्तो गच्छतीति व्य- पदेशात्‌ ' ततश्च विगश्यत एव गमने गमनाग्रयगततृपद्रावात्‌ उच्यते स्यादेव पि गम- नारयो गत्ता स्यात्‌ ' [न लिप्ति। कथमित्यार्‌ (१. 970] £ गत्ता चेत्तिरस्कृत्य गमनं नोपपग्बते

गमनेऽप्तति गत्ताध कृत एव भविष्यति

गत्तामत्तरेण निराश्रयं गमनमपरित्यक्तं ' ततश्च गत्ता चेत्तिएस्कृत्य प्रत्या- ्याय गमनं नास्ति ' श्रतति गमने कुतो निर्देतुको गत्ता परतो नास्ति गमने त्रा विगत एव गमनं तदतस्तेन व्यपदेशात्‌ इद्ध गत्ता गमनेन युक्तः तव्यो 10 गाच्च गच्छति यदि गमने स्याद्रमनवतो देवदत्तस्य गच्छतीति व्यपदेशो स्यात्‌ ' दृणडाभावे दृपिडव्यपदेशाभाववत्‌ उच्यते प्याद्रमनं यटि गच्छतीत्येवं व्यपदेशः स्यात्‌ स्मात्‌ ' गत्ता गच्छति तावटगत्ता नेव गच्छति

५५६ तीयो [न्न (५) न्यो गत्तुरगततुश्च कप्तृतीयो हि गच्छति 15

1) 1088. ्रकाव्पधकाण; 10978 0008 87008, (०ााप्रा€ [ण 03४, येपर्े

2) कव्वद(व) 700४ ०0१९६. -- पारेगु सेषु 16116 18 1€ल॑प्र€ १०१. {९४86 (2५5 = द्यम).

9 दषे मेपत्‌|

4) गभे द्युः मेदुर रयु" रुरव, मे प्युन> | रबी मेषम्‌ शु््| एमयकरषद्‌ः गुध च्छन्‌

9 रेकेगु शति मे त्वद नबुवयमेद्‌ ननुप भेष्‌| निगुय शं यमिमे गो गमम गुरकेगु पुर |

98 गतागतपरोक्ता नाम ` (श9-

इक गच्छतीति गत्ता ' तावन्न गच्छति ' पथा गच्छति तथोत्तरेण ्रोक- ज्रपेण प्रतिप्वि्यति श्रगत्तापि गच्छति शरगत्ता हि नाम पो गमिक्रिपारितः। गच्छतीति गमिक्रियायोगप्रवृत्तः शब्द्‌ः प्च[2भुतावगत्ता कथं गच्छति ' शध गच्छति नासावगत्तेति तडभयव्यतिरि क्तो गच्छतीति चेनिवं ' को ठि नाम गततुरगततु-

5 विनिर्मुक्तस्तृतोयोऽप्ति यो गच्छतीति कल्प्येत तस्मात्नाप्ति गमन

त्राह नागत्ता गच्छति नाप्युभयर ङितः [70. 38१] ' किं तरिं गततैव गच्छर-

तीति एतप्यतत्‌ किं कारणं यत्मात्‌ ' गत्ता तावद्रच्छतो ति कथमेवोपपतत्यते

नेच) ~ (1) गमनेन विना गत्ता यदा नेवोपपग्यते

10 गत्ता गच्छतीत्यत्र वाक्य एकैव गमिक्रिया ता गच्छ्तोति व्यपदिश्यते गत्तेति तु व्यपदेशे नास्ति दितीया गमिक्रियेति गमनेन विना गत्ताऽगच्छन्‌ गत्तेति यदा सैभवति तया गत्ता गच्छतीति युव्यते कामं गच्छतीत्यस्तु ' गत्तेति तु सेभ- वतीति तद्युक्तं

श्रथ गतियोगात्सगतिक एव गत्ता तथापि दितीयगमिक्रियाभावाद्च्छतीति

15 उ्यपदेशो स्यादित्या पत्तो गत्ता गच्छतीति स्य तस्य प्रसत्यते

^ (8) गननेन विना गत्ता गत्तुगमनमिच्छ्तः॥ ९०

0 गरक सतु भेदुयन्पे| त्लोव रवपुकम मेनछुर द| रे नतु नवतिः केष| दिश्य र्‌ः छुर्‌ |

9 गुरगोः दगुणः सरवेवव| सवत देन रलुमेदपदि| सुरते पम पर घपप्यु्े| नुतं फर न्न्‌

-29१] दितीधं प्रकरणं 99

` वादिनो मिक्रि (न तानि 1. (1) स्य वादिनो गमिक्रिपायोगादेव गत्तेति पत्तः ' तस्य गत्तुगमनमिच्छतः सागमन]- गत्तव्यपदेशादरमनेन ४, > = 8) ~ गत्तृव्यपदेशाद्मनेन विना गत्ता गच्छतोति स्यात्‌ ' दितीयगमिक्रियाभावात्‌ श्रतो गत्ता ~ ~ ~ त्‌ ४०५९ ~ (3) गच्छतीति युब्यते गच्छतीत्येतप्याव गत्तेतिशब्दो गमनेन विना गत्तेत्यन्र वाको शरघोभयत्नापि गतियोग इष्यते गत्ता गच्छतीति एवमपि

गमने दे प्रपव्येते गत्ता पग्यूत गच्छति |

गतेति चोच्यते येन गत्ता सन्यच्च गच्छति ९९

पेन गमनेन [1,9. 88४] योगादर्ेतयुच्यते व्यपदिश्यते तदेकं गमनं गत्ता भवन्‌ यच्च गच्छति यां [29] गतिक्रियां कोति ' तरेतद्रमनदयं प्रसक्तं ' रतो गत्तुदयप्रसङ्ग ४अ गच्छतीति इति पूववदूषणं वक्तव्यं तप्मान्नास्ति गच्छतीति व्यपदेशः

्त्राक्‌ यग्बप्येवं तथापि देवपत्तो गच्छ्तोति व्यपदेशपद्वावाद्गमनमस्तीति 10 ४. (5) | [ टि नेवं प्मादेवदत्ताग्रयेवेषेव चित्ता किमतो गत्ता तन्‌ गच्छति उतोऽगत्ता गच्छति तद्य- तिरिक्तो वेति सवधा नोपपग्मत इति यत्किं चिदेतत्‌

` अरत्राक्‌ विग्चत एव गमनं तदारम्भद्वावात्‌ इर्‌ देवदत्त स्वित्युपमदेन गमन-

1) रिव पतरि' पहः रिमुपष्दनपरुस"्पस ग्‌

2) ©. 10 &411६दं (वल्लव १८ 4४८१९. 4८८ कह १८ & १४१८ . 4०८८१४८ द्ध ९45411९, . . . 2918, ©216. 40 वव८लाकत् १40 2/2.

3) ©°९8४-४-4116; १8४०8 18 0101886 (१0419671 ०१११द (0012, 16 700४ वव्मण्यद > 16 8९8 06 ९९ परा0 वटक (१९ 19 7286 (412 ववन्थक).

4 गविने न्ववं "वुं शयु] सुप पुरिसु धम ज्छुमे| गुर बो[स] नविम मन्मिय सुर | नतुपियुरसस गुर नुप

8) 2188. ०@(१/4१00 १4000 ८१५६2 == > मे

100 ` गतागतपरत्ता नाम | [29४-

नकर्महभेप्रवाहारिकमारभति ~ (1) _ (त मारभते चाविश्यमानकृर्मरोे उच्यते स्याद्रमनं यदि तद्म एव स्याग्रस्मात्‌ ' | गते नारभ्यते गतत गततं नाएभ्यतेऽगते

(ष्‌ (2) नाएभ्यते गम्यमाने गत्तुमारभ्यते कु ९२

5 पदि गमनाहूम्मो भवेत्तदते वाध्वन्यारभ्येत ' [प्रगते वा] ' गम्यमान वा तत्न गते गमने नारभ्यते ' तद्धि नामोपर्‌तगमिक्रिये पदि तत्र गमनमाएभ्येत तद्रतमित्येवं स्याद्तीतव्तमानयो्विंधात्‌ श्रगतेऽपि गमन नायते ऽनागतवर्तमानयोर्विशेधात्‌ नापि गम्यमाने तद्भावात्‌ क्रियादयप्रसङ्गात्‌ [10.99०] कर्तृदयप्रपङ्गाच्च तदेवं सर्वत्र गमनाहम्ममपश्यन्नार्‌ ' गतुमाएभ्यते कुरेति |

10 यथा गमनेन तेमवति तथा प्रतिपादयन्नाह पूर्व शमनाएम्भाद्म्यमानं वा गतं।

प्‌ (द # (4) पन्रार्भ्यत गमनमगते गमनं कृतः ९३

इर देवदत्तो यदावस्थित घ्राप्ते तदा गमनं नाएभते तस्य गमनाएम्भात्ू् गम्यमानमध्वत्नातमत्ति गतं यत्न गमनमाएभ्येत तस्मादतगम्यमानाभावदिन-

इ:

1) 3५ पत्मन्‌ तनि, -- 2188. 1१८०71८, 10८71#@ -- 270९दक/क == + 0116068 2€ण (2. फ़) = 9 पकृकटाः 0 0पालाष्षातालाौ प्रऽप्श्च]़ (०णा -- 01676 0070008781801 ए, 8प व6ोण्; उ. 2, एणा. 25 (कश्य ४९ 72४01474}. एमी

81248181 81008018 240188४१. 1. 475, ए. 240; 0. 1488, ए. 624; 1 ॥2१8४- 8118१810 472, 0. 726 ((०पणपवृण् एषा क. 6. 4. ४९०४).

9 सेनः रपम" दुम मेपुदे | मसर" ०९" सुम भेम | पपुमनि' वमन 0रपुममृम्‌| गुर्‌" निर्गुणः इमपम देत्‌

8) 1188. 04084 (01471091 क. | ,

4) नुषः इम्तिः हम्‌] गम्‌" रुपः ईमन्ययुरय| पनम मपु मनप मेत्‌| मनर सनुत गुनि एत्‌ |

-80१] दितीषं प्रकरणे ` 101

योन गमनार्‌म्भः घव त्या्यव्यपि [309] गमनारृम्भात्पूर्वे गते गम्यमानं तथाच्य- गतमस्ति ' तत्र गमनारम्भः स्यादिति उच्यते श्रगते गमनं कृतः श्रनपत्ातगमिक्रि- पमनारृब्धगमिक्रियमगतं तत्र गमनारम्भ इत्यतंबहमेतदित्याद ' श्रगते गमनं कृत इति |

यच्यपि गतागतगम्यमानेषु गमनारूम्भो नास्ति गतागतगम्यमानानि तु तत्ति। चाति गमने एतानि पव्यत्त इति उच्यते स्याद्रमने पग्येतान्येव स्युः तति हि गमि- क्रियाप्राहम्मे पन्नोपरता गमिक्रिया तदरतमिति परिकल्प्येत ' पत्र वर्तमाना तद्रम्यमानं ' यत्रात्नाता तदगतमिति यदा तु गमिक्रियाप्रारूम्भ एव नास्ति \ तदा

गतं किं गम्यमानं [7५0. 99४] किमगतं किं विकल्प्यते

(1) खरटृष्यमान श्रापम्भे गमनस्यैव सवधा ९8

प्राह्मेऽनुपलमभ्यमानि कि निष्याध्वजे परिकल्प्यते \ कुतो वा तच्यपदेशकारृणं गमनमित्ययुक्तमेतत्‌

श्रत्राक्‌ विग्यत एव गमनं तत्प्रतिपक्ततद्रावात्‌ यत्य प्रतिप्नोऽप्ति तद्‌- स्ति ' श्रालोकान्धकारवत्‌ पाहावार्वत्‌ संशयनिश्रयवच्च श्रस्ति गमेनस्य प्रतिपत्तः स्थानमिति उच्यते स्याद्रमनं यदि तत्प्रतिपत्तः स्थाने स्यात्‌ कथमिरेदे स्थानं गत्तुरगतुस्तद्न्यस्य वा परिकल्प्येत ' सर्वधा युत्यत इत्याक्‌।

| गत्ता तिष्ठति तावद्गन्ता तेव तिष्टति घन्यो गततुरगनतुश् कस्तृतीयोऽ्य तिष्ठति \। ९५

0 ननुम इमपदतमसरपत्‌| भे स्प एम | अनयः रे कुं कमम 3| मक डेवेगु द्मपकग्‌|

9 रेणुं पव मै चरमे] न्नुपवमेमं सूय भेय्‌| श्लु सुय मितम गुक| गायुमस गुरनगुं दुग पनुरः |

10

18

102 गतागतपरोत्ता नाम [809-

यधा गत्ता तिष्टति तथोत्तरेण श्नोकेनाष्यास्यति॥ खगत्तापि तिष्ठति" कि तिष्ठत्येव ' तस्य किमपर्या स्थित्या प्रपोजनं एकया स्थित्याश्त्ता श्रपर्‌या तिष्टती- ति स्थितिदयप्रसङ्गात्‌ स्थातृद [80]यप्रसङ्ग इति पूर्ववदोषः गलगत्तुर कितशान्यो नास्ति | | $ त्राह नागत्ता तिष्ठति ' नापि गतुरगत्तशान्यः , कि तरिं गतैव तिष्ठती- ति नेवं ' प्मात्‌। गत्ता तावत्तिषटतीति कथमेवोपपत्स्यते [70. 409]

~ [ष्‌ +). गमनेन विना गत्ता यदू नैवोपपग्यते ९६

यदायं तिष्टतीत्युच्यते तदा त्थितिविशोधि गमनस्य नास्ति ' विना गमनं 10 गत्तृव्यपदेशो नास्ति चरतो गत्ता तिष्टतीति नोपपग्चते घन्राङ विच्यत एव गमनं [तान्निवृत्तिद्वावात्‌ इक्‌ गतेर्निवर्तमानः स्थितिमा- रभते गमनाभावे तु ततो निवर्तित उच्यति स्यादरमनं यदि तन्निघृत्तिरेव स्यात्‌ [न स्ति] यस्मात्‌। तिष्टति गम्यमानान्न गतान्नागताद्‌पि।

15 तत्र गत्ता गतादृध्वनो [न] निवर्तते गत्यभावात्‌ ' श्रगतादपि गत्यभावदिव गम्यमानाट्पि निवतते तदनुपलब्धेर्गमिक्रियामावाच्च तस्मान्न गतिनिवृत्तिः

गुरढ नर्वुपमेपुपर्‌ मे| क्नु नवम्‌ भेनदुर द| सेषु भुव कुरर वेष दष 0ववयषम नुन |

"= ©

2) दमभे एप्॑-6प6 8्ण8-710प्8 1011 46 76शा 4808 16 (6४6 ९९6 णि.

7116 पणा »४ १6 80).

3) 1.2 166्णा€ १व एकव 68४ वलाला6 [षा 16 #एकद्षण 1400-0 पपं (०68- एणा काठकं १6 प०प्र€ (णाल ध76. 1 ९8६ वारिना वणतछवणा९ 19 ०6६४० (१८ १070८ वादक); पा8 19 8701836 068 (६ 711 88 06 1268146 98 11}06- एलपञछाना ६, -- ४० 6-0168808 }. 104. 8. 15.

819] दितीयं प्रकरणं 103

श्रत्राङ्‌ यदि गमनप्रतिदन्दिस्थित्यभावाद्तिर्‌सती ' एवं तिं गमनप्रपिद्यये ल्थितिं साधपामप्तत्सिद्धो गमनतिद्धिः तप्मादिग्त एव स्थानं प्रतिदन्दिसद्ावात्‌ ! स्थिते प्रतिदन्दि गमनं ' तस्ति ' ततश्च स्थितिर्‌पि प्रतिदन्दिसद्वावात्‌ एतद्‌ प्ययुक्कं * प्मात। [गमन] से प्रवृत्तिश्च निवृत्ति गतेः समा ९७

रत्र हि पद्रमने स्थितिसिद्ये वर्पितं तदरत्या पमं गतिद्र षणेन तुल्यमित्यर्थः यथा गत्ता तिष्टति तावदित्यादिना गतिप्रतिद्ये स्थितेरहेतत्वेनोपात्ताया [7,0. 40४] दरषणमृक्तं ' एवमिकापि स्थितिप्रिद्ये गमनस्य) केत्‌त्वेनोपात्तस्य स्थता गच्छ्‌ ति तावदित्यादिना श्नोकदयपाठपरिव्तिनं रूष वक्त [91भव्यमिति नास्ति गमनं तद्‌- भावात्प्रतिदन्दिनी स्थितिरपीति एवं तावद्गमनं गत्या तुल्यं प्रत्याव्येयं ख्व स्यात्‌ ' विद्यत ट्व स्थानं तदारम्भपदरावात्‌ इह गत्युपमदेन त्थानमा- ए्यते " कये तन्न स्यात्‌ उच्यते संपरवृत्तिश्च गतेः समा वाच्या तत्र पधा पूर्वे गते नाएभ्यते गत्तमित्यादिना गमनारम्मो निषिद्धः एवमिरापि ' स्थिते नारभ्यते स्यात्‌ स्यातं नाम्यतेऽस्थिते नाट्भ्यते स्वोयमाने स्वातुमारम्यते कुर ॥"

पुमनस' विगुपन मेत्छुते| सर सुर ससस एर मोठ | नुव युर मे र्गृयः मूर | हग पपन मे तु द्र भद्रम्‌ |

2) 820४110 & ए: प्रणा. 72४8९. 7160४ 0€]श्ह्॥^

3) ©€8॥-2-0176: 57 द्द 44८ ढणवद वडद्द %व८व (वल्क, १1/८४ दा ०51776४ ९@ ८5 1710 (८7 ०८८ व४ ; 517 ढः ६द्४्य्द्‌ दकव 7408 ९४०- ०5 /41९, 5112016144 (7?) ९११५ 57 दक वद १८१४०६८९.

4) == 812१1451 460, ₹०77 €1-46880प्8 2. 104. 1,

8) 1. 19.

6) © $ ४, 60076 €6पड़ पपं शप्र्छाौ (@. 104. 8 6{६.), 88 1प्ऽ पप ¶्८णड ०९ 008 १078 76811068 ४०8 7016 7666606, ०6 (० 0॥€ श्रां 168 कल्क ध्रः25 1611688

4०९ 19 एथा80॥ ५061क्ष०९ तप त्ा9 7४] 2०818 1€ (नगगा ००३ 168 {0 ८०००३१४९,

10

15

104 गतागतपरोत्ता नाम | [8॥४--

इत्यादिना श्रोकन्नयपरिवर्तिन स्थानप्रवत्तिएपि गतेः समा स्थाननिवृत्तिरपि

गतिनिवृत्या समा प्रत्याव्येषा यधा गतिनिषेधे ' | तिष्टति गम्यमानान्न गतात्नागताद्पि ' इति गतेद्घषणमुक्तं ' एवं स्थितिनिषेधेऽपि ' 5 गच्छति स्थीयमानान्न त्थितात्रास्थितादपि

इति गत्या तल्यं [11. 419] दूषणमिति नास्ति स्थितिः। तद्भावात्कतो गति प्रतिपत्तत्थितिपद्राववादिनां गतेः सिद्धिरिति

श्रपि पदि गमनं स्याद्रतुव्यतिरकेण वा स्यादृव्यतिरकेण वा सर्वधा वि- चायमाणं सभवतीत्याद

10 पटेव गमनं गत्ता एषेति युत्यते

~~ ~~ ~ (2) श्रन्यटव पनगत्ता गताछनतन युत्यत ष्ट

कथं पुनन यु्यत इत्या पदेव गमनं गत्ता एव दि भत्ेषदि।

(8) एकीभावः प्रत्यत करतुः कम॑ण एव ९९

\ 15 पेयं गमिक्रिपा सा पद्‌ गत्ताव्यतिरिक्ता नान्या स्यात्‌ ' तद्य कर्तः क्रियापाशचै- कत्वं स्यात्‌ ' ततश्चेयं क्रिपां कर्तेति विशेषो त्यात्‌। च््दिक्रियायाण्ङकतध कत्वं श्रतो यदेव गमनं एव गन्तेति यत्यते

1) 1.6 पदवप्लाहणः पहक्षंण [प एवाव == (40 ~~,

१११० 0 1 सर भे शवत| गवि 3१

9 गाधिनः पमु गुर पबेम| रेषे स्वव पेमप्युन्‌| उेदवरथं चमत ठर गुनु नपु |

4) 1188. ९149, ०८८१५१९. -- 7 9 2४ प]. 7, 3: व्व" कवक १९.

-31] दितोषं प्रकरणं 105 मरन्यत्वमपि गत्तगमनयोर्थधा नास्ति तथा प्रतिपाट्यत्नार भ्रन्य एव पुनर्गत्ता गतेर्यदि विकल्व्यते

¢ ~ (1) गमनं स्यादृते गत्ग त्याद्रमनादते २०

दि हि गत्तगमन[81 णृयोरन्यत्वं स्यात्‌ ' तदा गमननिरपेक्तो गत्ता स्यात्‌ ¦ गत्तु- निरपेत्ं गमने गृ्खेत पृथकिसद्रं घटादिव पटः गन्तुः पृथक गमनं गृद्छत 5 इति श्रन्य एव पुनर्गा गतिरिति पुब्यत इति प्राधितमेतत्‌ तदेवं

ट्कोभावेन [7४.41४] वा सिद्धिनानाभावेन वा ययोः।

चनन ~ + ^~ (9) विग्यते तयोः सिद्धिः कयं नु खलु विग्यति २९

य्ो्गत्तगमनयोर्यधोदितेन न्यायेन एकोभावेन वा नानामावेन वा नास्ति तिदिः! तयोरिदानीं केनान्येन प्रकारेण सिद्धिरस्तु श्रत घ्रा ।तवोः सिद्धिः कथे नु बलु विग्यत 10 इति॥ नास्ति गत्तगमनयोः सिदिरित्यमिप्रायः॥ `<

भरज्राद इर देवदत्तो गत्ता गच्छतीति लोकप्रपिदं तत्र यधा यक्ता वाचं भाषते कर्ता क्रियां करीतीति प्रसि ' एवं या गत्या गततेत्यमिव्यत्यते तां गच्छतीति यघोक्तदोषः॥ तदप्यसत्‌ यस्मात्‌

गत्या ययोच्यते गत्ता गतिं तां गच्छति 16

4 4 11 19911 मेसुतः सुप सुर | न्तु पमेपतिः ननुम चुर ||

9 कृं सि शूहिपुम द| गमस गृकुनपदपरः१| गु वनु एस्मेगुर | देस 5.४1 > ८९ | लं-१९३७8३ ]. 64. 8.

106 प्रत्ययपरीत्ता नाम ` [भ

न~ गत्तत्यभिच्मत्यति {.1.(1) यया गत्या देवदृत्तो गतेः गत्ता संस्तां [तावन गच्छति प्रा- प्रोति पटि बा करीतीत्यर्धः।

यस्मान्न गतिपू्ीऽत्ति।

गतेः पूवी गतिपूर्वः यदि गत्ता गतेः प्व तिद्ध स्यात्‌ ' तां गच्ैत्‌। कथ 5 यस्मात्‌ ( 3) कि (4) कच्चित्‌ चिद्धि गच्छति २२

कशिदेवद्ततः किं चिद््धात्तएभूतं मामं नगर वा गच्छतीति दृष्टे चेवं यया गत्या गततेतयुच्यते तस्याः पुवं मिदव्रपो गतिनिर्पेततो गत्ता नामाप्ति यस्तां गच्छत्‌ शरघ मन्यपे पया गत्या गत्तेत्यमिव्य्यते तामेवासी गच्छति ' किं तरिं ततो. 10 ऽन्यां गतिमिति एतटृष्यप्यस्मात्‌'

गत्या ययोच्यते गत्ता [व 42१] ततोऽन्यां [४२५] गच्छति

(5) गनो दे नोपपग्येते यस्मादेके प्रगच्छति २३

~ अनन

1) भम >म्‌]व "7 -- 1.९ रवप्लालट्णाः पएलवाण [पः . , . ४४ द/त८ 5 120 १८ (0९वव४ १0 17071018.

9

द्‌ देर रपर ्खुनवेगु | द्रः नम्‌] नरग3र| शु्विषुं पुरु रनु, रुर |

8) 14 08]7&8 168 2788.

9 तुः गुर बोस" तनुव महद्‌] ननु य्‌" दे" पु मेद्‌| गुरः 3 वु पिः हम मे| गुर बेग गुरु पु |

1 गु तनुत गृसव' यु] श्यः गुिससु' मे' >वप१्‌|

-32०] द्ितोपं प्रकरणं 107

यया गत्या गत्ताभिव्यन्यते ततोऽन्यामपि गत्ता तन गच्छति " गतिदयप्र्- ङ्गात्‌ पया गत्या गत्तामिव्य्यते गत्ता सन्‌ यां चापरां गच्छतीत्येतद्रतिदयं प्रसक्तं चैकस्मिन्‌ गत्तरि गतिदयमित्ययुक्तमेतत्‌ एतेन वक्ता वाचं भाषते करता क्रियां करो- तीति (1) ६९ तोति प्रत्युक्तं ` तदेवं 5 पद्ूतो गमनं गत्ता जिप्रकारं गच्छति

ति ^ ~~ (2) नातद्रूतोशप गमनं [न्प्रकारं गच्छत २8

गमनं [तद्‌] द्रूतः त्रिप्रकार गच्छति

तन्न गम्यत इति गमनमिकोच्यते तत्न सद्भूतो गत्ता यो गमिक्रियायुक्तः.। घत- दूतो गत्ता घो गमिक्रियारद्धितः सदसदरूतो उभयवत्तीयन्रपः। टवं गमनमपि िप्र- 10 कारं गमिक्रियासेबन्धेन वेदितव्यं तत्र सद्रूतो गत्ता सद्रूतमतद्रूतं दसद्ूतं निप्रकारं गमनं गच्छति एतच्च कर्मकारकयरत्तायामा्यात्यति एवमतद्रूतो ऽपि गत्ता त्िप्र- कारं गमनं गच्छति ' सदृपद्रूतोऽपोति तत्रैव प्रतिपादपिष्यति पतथेवं गत्तगत्तव्य- गमनानि विचायमाणानि सत्ति " ५५ तस्माद्तिश्च गत्ता गत्तव्यं [19.420] विगते २५ 15

1) ए978, ©216. 2170 पवा; (कण), एकव प्कुकाा, (9. सनत्‌

9 नवमि पिमे | श्वि इसगङधमय्‌, कतं मे उत| मपपम समेषु रे धर| स्तु मनुम्‌. (तुभे

3) 2188. 11117171}

4) 971४6 णा,

9 परमुर्रमणेङ्ुय पनः | श्तु दमवृहमद्‌' तुं मद| २8 स्ति सूर प्यं सृ | क्तुपछत' एस्‌

108 प्रत्यपमरोत्ता नम [8४०

पधोक्तमर्ातयमतिरिदशमूत | घरगतिरिति भदत्त शाएदतीपुत्र संकर्षणपद्मेतत्‌ गतिरिति भदत्त शाएदतीपुत्र निष्करषणपट्मेतत्‌ पत्र सेकर्षणपद निष्कर्षणषदे तदार्थाणां पद्मपट्योगेन ्ननागतिरगतिश्ार्याणां गतिरिति यदि बीतमेवाङ्करे क्रमति बीनमेव तत्स्यान्न पटकः शाश्रतदोषप्रसङ्गश् 5 ब्रधाङ्करोऽन्यत ्रागच्डरति [32] ' | प्रहेतुकदोषप्रपङ्गः स्यात्न चाेतुकत्योत्पत्तिः र्‌- विषाणस्येव परत एवाङ भगवान्‌ बीजस्य सतो यधाङ्करौ पो बोन चेव शङ्को श्न्यु ततो चैव तदेवमनच्ेद श्रणा्नत धर्मता इति 10 ` मुदरात्प्रतिमुद दृश्यते मुदरपेक्रात्ति चोपलभ्यते तत्र चैव तान्यतो एवं सेस्कार्‌ भनुदेदशाश्ताः इति [च त्था ्रार्णपृषटे तथ तिलपात्रे निीतते नारिमुषंमलकृतं |

9

`: 1 ऽपरा 16 0वनकड1व, एणी &11§ 88. 278. 4 ९४ 8006९

\ &11€€8 }. 11, 0. 6.

2) ¶6 €&098€ा*€ 12 1९66 068 1188, 60077166 797 2. ०४. 228. 15. 16 80०411९. 2. 7. 9 ष्कष्वकी © द्यू कवकाददकााद्छाषः , , वारकदध्व्ाक्ा/ १21" ¢20वद४१/करव ९5४ कददाः, -- ऽपः 18४ ऽव का, १०7 16 78६९ & 11 - 8187088 प्#18 06 व. 4 8. 1902, 17, 2. 272 ०. % 6-46888 7. 25 १. 8. 1.6 80001112019418 ९8 60010१6 0४०8 271 ए, (. 442) ए0णः प्ाक्षःप पला 16 28886 १०८०९ एतना 2 ०6 भ्(16.

3) = 1४11४४१. 210. 4-४; भा 6106888 2. 26, ४. 4.

4) == 1४11४8१. 210. 8-9; न४€ 2804116. {. 342. 8 &11§ 88. 229. 3 १०१०४ 708 2011008 18 16€नौप्ा€ © [पला ए76द्प्णा फहपवप्ठ (@ पण 0669] [7टे8; उककरडक्छव ^१५५८/८द८(कधव॑द्य॥ 2प 16 १6 ३4 अदद" / 2190676८ बद्व). -- १४410 60168700

न, 8 प्क्ष ५.५ (== 0102/0116}), 4।। == 417८. 00 08606 18 कथवादहक्क्ाम

11 0878 16 ६६८}6॥, 01 0878 17€ल06.

8) ©€8 १९ 8180668 (61668 (9). रा, न्द 9४.) 807 62781068 वप 8 8718 - 011" 8]8, 2. 29. 4-9 १€ 126वा्०ा 1४ 3. (1, 8.

6) द्धद्व) व्द१व1) 166पाः€ 60116606. 16 + €8४ १००16 ऋआ ९०५४5व 09788 18081016 तप 76व0प्लणलण( 06 % €0 880861६ 8768 १० धा€ 066 060१ १०१०6 (09867५0० १6 4, 67०).

-82ए] दितीपे प्रकरणं 109 ~ ¦ (1) ~. प्रधाविता ~ नप सो तत्र एागं ननपित्व बालो प्रधावितो कामि गवेषमाणो (2) चिन ~ ^ (५ मुलस्य संक्ात्ति यदा विग्यते बिम्बे मुं नैव कदाचि लभ्यति ) = ५०५ मूषो यथा सो नयेत गं तथोपमान्‌ जान सर्वधर्मान्‌ इति

तथार्यतमाधिरीसूत्रे ऽपि]

तद्धि कालि सो दशबलो [ख्रानघो = माधि निनु भाषते दमु पुपिनोपमा मवगती सकला (7) ~ (8) नद्ठिकशिन्ायतिन चो म्रियते॥

सु लभ्यति नोव नरो

इमि धर्म^'केनकटूलीपद्शाः [५४. ५३०] मायोपमा गगनविश्युतमा

ट्कचन्दरसेनिभ मरीचिप्तमाः॥

1) 1.68 2088. 001160४ एव. 2) दुन = {17८ 3) दसद " " " == द्द ‰411क४८ 1104918 १4471.

4) 6116 10व16कप्रन = €8॥ एप्प 9 16 भ0€ध्रध; त81116पा'8 168 81811668 वपां 801१९0॥ 8071 76760668 €0प्रा§ तप (966 (09. 12, रश, इत्या वव 0.) ९६ 19 80८6 ९8४ १०९14078 0007166.

8) प्र 9206; व्यद; 7218 {1}. म्बु 6) 2188. 21044४८; "1४18 110. सुपुपतिरतुपः -- 5वदुव्यद 01681 [088 8016.

#। 7) 2१, == 114.

8) 2188. ८4, ४०, ©. 9) 2188. ४१1९८, ९1100, वाव, वावा. 10) ककव == ४वकत, एणं (धोवदद्द, (९)1419/4) (०)54% (2), 118 88, 57. 9, 204. 15) 329. 18; 210४. 1, 463. 4.

10

110 प्रत्यपपीत्ता नाम १५ (32)

श्रप्मि लोकि मृतु कथि नकते पटृलोक संक्रमति गच्छति वा कमं नश्यति कदा चि कृतं पलु देति कृष्णशुभ स्तो

शा्यतं उङ्‌ पुमो कर्मतेचुं चापि स्थितिः तो पि कृत पुनरास्पुशति श्रनयु कव पुन वेद्यते

संक्रमो पुनागमनं

सर्वमस्ति नास्ति पुनः। नच दषटित्थानगतिषुदिरि

ततर चारसुपशात्तगति

1) = क्व कव्व. -- 5, तम्वा, आवन्वन) शा, नितुस" तु" == 21८1९१0 144.

2) 24100 (== ५111) 0681 ४8 {180४ १18 1€ ४०९।११.

8) =

4) 2-804८. = [नना एशप्री€ा (860४1191).

8) 2188. 4११४ व, (व. -- 1.6 पलक 8 ठु मुतु) काणुका (०0०86 & 9 06 19 1106 [766606016€}.

6) व05(4 0114५.

7) 1188. ४2, #० = स्ति

8) 2788. ८०५०. -- (1). सेमस'रठ, सर्युप्य न्य न्ह्गृुप भेर | 0

5011४०१८ 0170(20614 4107. -- र्दुस्य (9768 70०८९३४ पड} == ८८८, १०००६ 7 168

1621468 व्णणा€ 6वृप्रएक्ल्णौ (वाल == ए6भुल्नाप्णहु, णन्ला6वपह (2 6011108).

~

-88४] दितीयं प्रकरणं 111

पुपिनोपमं रि तिभवं विक्र लघुमण्नम ----- मायताध्भुमे 4 श्रागते इोपगतं शूल्यानिमित्त तद्‌ संततियो॥

्रनुत्थाद्‌ णातत ्रनिमित्तपद्‌ पुगतान गोचर्‌ निनान गुणा बल धारणी दृशबललान बलं बधानियं वृषभिता पमा

1) == ध्व == ?146 == रयम == ०52८. (> 2) 1088. 2114401100101041{/6112 १० ॐ3 रिपुः मप्णु सपम्‌ जनं {8

0१५०१५१५ 0१४४4001 १५25१140 == {44100701 4017200001 01076 १०१?

3) 088. 5041011<79#6. (४ ईप्‌ त्रः (श ०९ (| ०९ == 50१1- (1.1.111... 14.1.11. 11171

4) 8८४९८: ८१#४दवद.

8) 088. 5८41200, 420८; (1). किमिः एठनम्‌ 1806 19 [6€ल्पा९: 4४02. १711 (80105147) 0५१7.

6) 6९6 116, 4818 16 +€ 80, €8† 1४ [7लणांट'€ 18 81866.

7 शुपस' पुर गदु दमस पर मे ददस"यदुनि पस = एकः भाम १०११४४८ ९वक४क = वककएकवकाक! 2, -- १९ 8इण]०86 ¶०९ 1066 तप काप्यं वका 0९ इपोण€ 16 पा० 5075-2 (दव व्ठ).

8) = एववा ^ १0/40 == ए४ववद्तका१ ४40 == र, स^सकुस्‌'

8

112 प्रत्ययपरीत्ता नाम | (88० ` वरशुक्तधर्मगुणसंनिचयो / गुणक्तानधारणिबलं पमं कदरीविनुर्वणवि्धि; परमो वर्पञ्चभिन्नपतिलाभनयः। इति विस्तरः इत्याचार्थचन््रकीर्तिपादोपर्‌ चितायां प्रप्तपादायां मध्यमकवत्तौ गतागतपरौक्तं

नाम दितीपं प्रकरणं [४. 48४]

1) 1188. ध्ववदु्छद्रक, ९१८८ ४प्रक, ०४१४दृक्द. 2) 36800078: (८1042144.

3) , ५6 एण 11१. 1. 425. 4) ९/४ == यु

00एषए६(7ण0प्रऽ

[11506 [70्3०7९.]

1476 दव वक व४९ 9 0लन्‌-क < ` १2०१८६॥१५8० 15१वदा१ ४० वा ११११... 21.8 9 [९ 4९ 18. 3 (1 11 410८1९2 36.18 ५१६ ` » €. 36. 19-39.1 14176 28. 4 8प ]6प 16 14. 5 9 18.7, 21.18 2 16 16 11.14, 13.5 ५: वद वद्‌ चु कलाव | 1

=

| अका 11209271 & ¢ 1९४५; 1. 11, 76676066 11622616, ( 274/940/वकवकढ = (9 एाणा0ः [वाक्व] | ०५१५17८7 १.५५ ‰/4,45701"4/ 5‰/दव 427€वधव्‌ 9 दः 40९2: एम 65.8, 719. 1

= 2 & &

:।

;# 1 ¢ ) (5 9 + > ` ^ @ ५९ ॥,२ (44 |

- 38९] तृतीयं प्रकरणं 118

1.

चलतरादौन्द्रियपरो्ता नाम तृतीयं प्रकरणा रत्रा यग्यपि गतिश्च गत्ता गत्तव्यं विश्रते ' तथापि प्र्वचनिद्यपेतया रष्दरष्टव्यदृशनादीनामस्तिमास्येयं तथा चामिधमं उच्यते दर्शनं श्रवणं घाणं रसनं स्पर्शनं मनः।

इन्दरियाि षडेतेषां टव्यारीनि गोचरः ॥९

~ [कष्‌ (3) तस्मात्सत्ति दशनादीनि स्वभावत इति उच्यते सत्ति इद दि पश्य- तीति दर्शनं चतुः तत्य तरपं विषयतेनोपदिष्यते पया दर्षनं उं पष्यति तथा ` प्रतिपाद्यत्नार्‌ + | ^ ` , + [र [न (4) स्वमात्मानं दशनं दि तत्तमेव पष्यति

पश्यति यदात्मानं कयं दरत्यति पश्यति यदात्मानं कयं दरयति तत्यरान्‌।

1) 21406204 == 1 ्वलतपा९. -- 28} ९०१79119 179 ्र8वफ४ 16 ९०. 16066760 ॥€ €€ ल08 70४6 १88 ०१११18६ €. 1.1४. 2. 1760.

शङ्क दमय च| छनपनडष पर निगु पेत सृप दुषु दुर्गुण | सुम जुयन्गुस | उराः कल्वन-508 9 रिगु मेषु ने रिकम्‌ व्िपन्युपय प्ेमुष्य = भान व्ण कष ९८१४९ 10/1४.

4) 2188. 5८ द्वफक््ी४. , , . - {011९0 ९४८. . .; ६३16० ८21512 [1४ दैक ९व, {176 प्प 018 का 86109.

= (= + 0. 9.9 गु?

9 द्व रलो सगुणे मे| वे द्रैप मनकरत| गुरमेगुं पद|

नि म्प | गुकवेगुगुनि # रः | 1१० उणा: -क8 ए1144-96द, 1५-20 (८0-2794 दव -1द + [14-एवल.

10

114 चतुरादीन्दरियपरीक्ञा नाम ` तत्र तदेव दर्शनं स्वात्मानं पश्यति स्वात्मनि त्रिधाविरोधात्‌ ततश्च स्वा- त्माूर्णनाच्छ्रोजौिवत्रीलािकं पश्यति तस्मात्रापिति दशनं यथ्चपि स्वात्मानं दूधन पश्यति ' तघाप्यगिवत्परन्‌ ब्रत्यति तधा स्लधिः पर्‌त्मानमेव टरति स्वात्मानं , एवं दषा णान परानेव उत्यति स्वात्मानमिति 5 एूतदृप्ययुक्तं यस्मात्‌ ' पयाप्तोऽगिदष्टातो टृशनत्य प्रसिद्पे।

योऽयमपनिृष्टात्तो दृशनस्य प्रतिद्धये भवतोपन्यप्तः ' पर्याप्तो नालं समधी युव्यत इत्यरथः यस्मात्‌ ' (र (4) पदूर्शनः प्रत्युक्तो गम्यमानगतागतिः [7५. ५५५]

10 दह टूर्धनेन बतत इति सदर्थनः। योऽ्यमप्िदृष्टात्तो द्शनप्रसिद्धये भवतोपदि टः सोऽपि सदह एृशनेन ाष्टात्तिकार्थेन प्रत्युक्तो ह्‌ षितः केन पुनरित्याद ' गम्यमानग- तागतिः। यथा गतं गम्यते नागते गम्यमान ए्वमयिनापि दग्धं द्छते नाद्धं दृश्यत इत्यादिना समं वाच्यं यधा गतं नागतं गम्यमानं गम्यते ' एवे '

दृष्ट दृष्यते तावद्‌ नेच दृष्यते

16 दष्टादष्टविनिर्क्त दृष्यमानं दश्यते^।

इत्यादि वाच्यं

1) 66 1061706 8 पर ४8. १.) 1. 48; 8041016. {, 1. 18, 2. 261. 8. 2) (९४४6 (णण 9४807 72006116 1९ +वडवन्का ५१११४ (8 ०१01८. भा, 61).

3) प" 60-0688प्§ 84. 6 9 श्त स्वातन्त्र मेः येम मेः मुष" सपम्‌] मः, मुर मर पुमयप्स| रेमे व्रम्‌ चमु त्‌

) ४०77 6-468808 11. 1

6) प€ १०१४ [४8 ९6 ९00186८ (०णाा€ प€ दच्छद, 06 98 8 त्08 27490 रणा (कचाक्ण तकृ 8 ३111188).

34४] ततीषं प्रकरणं 118

यथा गत्ता गच्डृति तावदित्या्कत एवं द्धी एरति तावदित्यादि वाच्यं एषं द्रष्टा पश्यति ताबरित्यादिनािदृष्टा्तेन सह गम्यमानगतागतिर्थस्मा- त्समं द्र्षणमतोऽपरिवदर्शनतिदहिरिति युब्यते ततश्च सिद्धमेतत्‌ ' स्वात्मवदशंनं परा- नपि पष्यतीति पदैव तदा ' नापष्यमानं भवति पदा किं चन दृ्ने। ..

तेवं ~ (9) दशनं पश्यतीत्येवं कथमेततत पुष्यते 8

यदा चैवमपश्यन्न किं चिदर्शनं भवति ' तदनीमपष्यते दृ्शनत्वायोगात्‌ त्तम्भा- द्वित्‌ पश्यतीति दृर्शनमिति व्यपदेशो पुत्यते यश्यपि दणनशब्द्‌दनत्तरं शरोकबन्धा- नुरोधेन (1५४. 4५४] दर्शनं पश्यतीति पाठस्तथापि व्याष्यानकाले पश्यती{94१ति र्णनमित्येवं कथमेततत यु्यत इति पदितव्ये 10 किं चान्यत्‌ ' पश्यतीति दृशनमित्युच्यमाने दर्शनक्रिया दृ्णनस्वभावस्य वा चलुषः संबन्धः परिकल्प्येत ' श्दर्शनस्वभावत्य वा उभयथा पुन्य इत्यार्‌। पष्यति द्धनं नेव तेव पर्यत्यदृरणनं।

(4) र्शनस्वभावस्य तावदु शि क्रियायुक्तस्य भूवः पश्यतीत्यादिना सेबन्धो नोपपग्ते' टशिक्रियादयप्रङ्गात्‌ " दर्धनदयप्रतङ्गाच्च श्रदृशोनमपि पश्यति टृशोनक्रियार्‌ दित- 15 लादृङ्ल्यमवदित्यमिप्रायः पदा

1) पभ -4688ण8 11. 8.

2) 188. 110 00041121 व9/क८ कद , , , ९००1 20 व47{व14001 4/८ च्छव, -- 7४. रेषु सगुक मे सेषु शै" रिगु प्रैकमे त्र

8) गृरक डुनत्प भे र| ्िपप्वेय परमे (0 ये. रेसयुर | दे रर रेबृसन्पन स्युर्‌ ||

4) ०7५" 21454१८ (7 ३४}. 1, 1087).

116 चतुरारीन्दियपरीत्ता नाम

पश्यति दर्शनं नेवं नैव परुयत्यद्शनं। तदा" , दशनं पष्यतीत्येवं कथमेतत्त पश्यते

इत्यनेनेव संबन्धः ये तु मन्यते निर्व्यापारं ₹ीदं धममा्नमुत्पश्चमानमुत्पग्बत इति '

5 नैव किं चित्कशिदिषयं पश्यति क्रियाया अभावात्तप्मादशनं पश्यतीति सिदमे- तत्प्रताध्यत इति श्र्रोच्यते पदि क्रिया व्यवक्राङ्गमूता स्यात्‌ ' तदा धर्म- मात्रमपि स्यात्‌ ^ क्रियाविरकितवरात्‌ लपुष्पवदिति कुतः क्रिपारदितं धर्ममात्रं भवि- ष्यति तस्माग्यदि व्यवदारत्यं घर्ममात्रवत्‌ क्रिपाप्यभ्युपगम्यतां ' रथ तच्चिन्ता तदा क्रियावदर्ममात्रमपि नास्तीति भवताभयुपगम्यता वधोक्तं शते

10 क्रियावान्‌ [70.45०] शाश्चतो नास्ति नास्ति सर्वगते" क्रिया।

| निष्क्रियो नाप्तितातुल्यो ^ नेरात्म्यं किं ते प्रियं इति। तस्मान्नायं विधिबीधक, परस्य ' नाप्यप्माकं सिद्साधनदोषः॥

1) 1] ण९्ा36 788 06 कावा, १6 १८९४८ (कणप 6-१688४8 7. 96 1. 18) 1०46. 6040९0६ १6 18 1/2. ०7 18 8180606: क्य 54०४८७० अज्नद वक्वाः {व 1110/क, एष" 4852000 (व इकछव द्वद इवाव ९०८४व्॑ट (6६6 ०4016. 7 18. 6, नरह १01० १प एच ए२7 ४३8) 110 9. 1189, एभथा्चणलाौ १००8 81217217, 861. 8 ५९१३०१81] ४१४7, 278.9, 2०78१ ह7118 170.10, ए09४- १९९४8३३ 18817, . 809) == «(08 168 81) श्छ्वा88 8011 70076ा#2768 (6000९60४ अत्त - एप्ला 12260009 श्च फनशा6ा+&06? 16पाः त6€णयः (®) ९१68४ 1266 (= 16 0606 16 16812 वप ९0001९56 [52401] १६8 6३868), &168६ 66 4०० शृना6 अपं 19 कषंऽ- 88.166 (16 8४ १67९७ १68 60ील्€0॥8 तःप €ी€( 008॥6ा6ण) >. 8 १९६१४०९१ 1971 (600. 9. 3.) 184 121८1041} 5०९४ व८ ४४ ४८८६१, २74४८ 1९5 (त्वा क्काा) द४क10द0क¢क८ 21410400 १४४ (९४, , , -- 149, 16लप्ा€ दद्वप! 116 97211 600077066 87 16 "060 ४९८02; ए४९वद-24-0 0 ए४८व-00 = प्ल कव

00 16616606 18 7621106 (दव्यरवलत्णद, ४८८क/द), 11 शिप्रा १06 णलः 19 068 5001872/व5 (== व7८11000401 कद); €18114 4547045) 118 76 800६ 07 (ब868 (4) ०) ९०868 (272); 8 1070६ 06 एप १6 19 ए्€ा106 १6 1९ सु€1९०९6 (४व्णकीन्छदस्वा क) 00041010 == 1102. ~ ०7 1 67100 8४1१४४74. 8. (४४. ०0६6 87) (वव 1४ 00कणव61८0॥ 6६ च. 4.8. 1908, 2. 376.

2) ॐ. 17. ~ पणं ०8६०४, 1900, ॥. 239. 2 गुहु सुः युप मेषु 4) 1188, १4 १५140; 1878 #0 6 भे म्‌ मदु्सः

४) 1088. ४९४ 14 ८०. ~ (0. = 45द्व वका 454@ पष्क 204 एक | 14.13 |

89

-34४] | ततीयं प्रकरणं 117

श्ना त्रैव दि पर्यतो[94४]ति दूर्शनमिति कर्तसाधनमभ्युपगम्यते \ किं तिं पश्यत्यनेनेति दूर्णनमिति करणताधनं ततश्चोक्तरोषाप्रतङ्ः पश्चानेन दृणनेन करणभूतेन पश्यति दरष्टा ' एष विग्यते विक्ञानामात्मा वा ! कर्तृतद्रावाच् दृणन- मपि सिदमिति उच्यति व्याव्यातो दशनेनैव द्रष्टा चाघ्युपगम्यतां

यधा स्वमात्मानं दरशन कीत्यादिना दर्नस्य द्वषणमुक्तमेवं षटरपि दर्णनवदरूषणं वेदितव्यं त्धा ' स्वमात्मानं नव दरष्टा दशनेन विपश्यति पश्यति परात्मानं कथे तत्यति तत्पर्‌न्‌ इत्यादि वाच्यं ' तस्मादशनवद्रष्टापि नास्तीति तिद ` - ` शत्रा विग्बतं एव दरष्टा तत्वर्मकरेणपद्वावात्‌ इद यन्नास्तोति तस्य कर्मकरपो विग्येते तग्बया वन्ध्यामूनोः चस्ति द्रष्टुः करणं टर्नं दरष्व्यं कमं तस्माच्छेतवदिग्यमानकर्मकार पो विच्यत टव र्टेति उच्यते ' तैव हि ्रष्व्यद्शने विच्धेते तत्कृतो ष्टा त्यात्‌ द्रष्टसाेते हि दरष्टव्यदर्धने (10. 45४] निद्प्य- माणाः! | [तिरस्कृत्य] द्रष्टा नास्त्यतिरस्कृत्य दशनं

इद दष्टा नाम यदि कश्चित्स्यात्‌ ' टृ्नतपित्तो वा ्यानिर्पे्तो वा तत्र यदि दर्शनतपित्तोऽतिरस्कृत्य दृनमिष्यते \ तथा तिदस्य वा दृशनापेत्ना स्यादृ्िदप्य वा तन्न सिद्धो दरष्टा दूर्धनमपेततते ' किं सिस्य सतो द्रष्टः पुनदूषनापेतता कुर्यात्‌ '

ब्य कषु मे| ब्रुप्मेवुय मेनन क| ब्पकरपुठस ब्त पर| दंमदन्सयमृपुपन मपय | 2) भ" -१4688४8 1, 3.

8) 7081728 16 ४96€॥भ. ~ 1.6 ग्ला 681, 0 16 प्रमं, 176.

16

15

118 चतुारीन्ियषतते्त नाम (8५०-

हि पिद पुनरपि साध्यत इति। श्रथातिद्धोणेततेत ' घ्सिद्तादन्ध्यापुतवदर्ने नपित्तते। एषं तावद्‌ तिरस्कृत्य ट्षं[9 भुनमपेत्य दरष्टा नात्ति तिरस्कत्यापिदर्शननिशयेतता- दित्युक्त प्राक्‌ तेवं तिरस्कृत्यातिरस्कृत्य] वा दृर्नं पटा दष्टा नात्ति तदा '

व्य दर्णनं चैव दरष्यसति ते कुतः ६“

दष्टपति निरैतु रष्टव्यदृने संभवत इति कुतस्तत्सदरावाद्रृष्ट प्रे त्स्यति॥ | प्रन वियते एव दरष्टव्यूथने तत्कार्यतद्वावात्‌ तत्न ' प्रतीत्य मातापितरौ यथोक्तः पुत्र्भवः।

= प्रतीतयैवमक्तो ~ ) चते प्रतीत्येवमुक्तो विज्ञानपभवः॥

= सि 10 इति ष्टव्यं टृ्नं प्रतीत्य विन्ञानमुत्यथ्यते जाणा सेनिपातात्ता् (6) (प) 1 [ते (4 ¢ ( ) वर्श स्यर्ततन्ा वेदना ' तत्प्रत्यया तृष्णेति ' एवे चार्थपि भवाङ्गानि इष्टव्य-

1) 96 2088. ~ 14116 08168 16 ४५०6५४४ 01051 100 544८४

9 मश्ुरस ब्रं एतमेव | ब्रत सुनसयन्युर छन व्रि भमु 1.1.911

दिक मव. भेषु सूर गुकुगुस र्ेमुसस| दुमपननसन्य रनुरपर वमत |

4) ४011 ध-१688प8 , 6, 7, 4.

४) @०€18 801६ 668 708? 70918 16 8प्द्ा धा &7118 008 10 कवाश्व्ल- 110160१८, 20 ०१210015) 30 ०८4१० वप51. (4 90141. 1६. १, 2412). - 02118 प्८९8 १०८६५९78 10 16 1114-2 का/क १९/*४ददद, 2० 16 (अच्छरन्वे) 80 16 14100020 ४६०९]; 807४ ९३३68; 2014104 -910व17/द, १; 681 66४; १4000 ०४११८.

¡ 9) रगुप परब्र - 4. ४०५. 109. 59 कवय, 106 इदशादणव)

106 ५12574४८. -- & 115 28. 221. 3 7016: 5दकदएव॥ १4110४द्द्१क१ा. -- 1 > प्णो8 7570४45 (एद्धा2, 011998, 2१19), 119. § 56.17. -- 1.7 23616 कद्वव ९8६ 86116 (क५- द्यः); 4 0111011 1६. ४. (80०6८. 48.) 01. 808४ 6. ~ ८0 ऽत्र 61४6 1914. 276 9 8; ऽद कणव काव्याद 1440006 &कश्वव ९४८ (क ‰2४बव ९५ #च्दध १००९ [प्र 0186088701

-35४] तृतीयं प्रकरणं 119

[10.46 भुदूषनकेतुकानि विश्यतते त्मात्कार्यसद्वावाद्रटव्यदृषने वियते इति उच्यते स्यातामिति यदि विज्ञानादिचलुष्टपमिव स्याग्यस्मात्‌' ्रष्टव्यद्शनाभावादिज्ञानाद्चतुष्टपं नाप्तोति। इह दष्टभावादृष्टव्यदू्नेऽपि प्त इत्युक्तं ' श्रतः कुतो विन्ञानारिचतुष्टपं विज्ञानस्पशंवेद्नातष्णाष्यं तस्मान्न सत्ति विज्ञानानि

घ्न्रादह सत्येवेतानि तत्कायपतदरावात्‌ इद्ह तष्णाप्रत्ययमुपादानमित्याद्ना उपादानभवनातिनर्‌मरणारिकं विनज्ञानादिचतुष्टपाडत्पचति ' तत्मात्त्ति विज्ञानादीनि तत्कार्यद्वावात्‌ उच्यति स्युकूपादानादीनि पदि विज्ञानादिचतुष्टयमेव स्यात्‌ यदा त्‌ दष्टव्यदू्शनाभावादिज्ञानारिचतुष्टयं नैवात्ति तद्‌ ' उपाानाीनि भविष्यत्ति पुनः कथं ८"

सत्युपादानादीनीत्यर्ः इटानों दर्णनवच्देषायतनव्याव्या[ॐ४]नातिदेशा- माद |

70008 १७ 14726: 16 ऽकदककक्द्दः १च०0 १6 11471091 (लवा लकाः वदद) © 16 €2{6176 (018, पप्रा) 807६ 4112674045. -- 1.6 ९००४४८४ €8{ 52574४ब ०४०६ 16 र्‌] 0ह)४ €8४ 570४2102) व्९(2१द7 1016144/4.

7) #. प४. 245. 1140 (दवष व्ढ ०८८०११2. 4 01141. 1, १, (242४. 3) ९०७१५१5 410157007 (८711 21{‰०८दद्‌/व९: (व6 ११540180 ४८९५१९१, -- 81 19 ०८वव्द 0810 तप ऽव) ८०60४ [0€ण+-दा]€ 676 5005 द०णा€ 16 त६ ००४८ ६62४९? 1.4 9 0140377 81०९४ व186प्८९ €ी€॥ 16 ऽव्ानव्म्व एव (अपराप्ा४806116) 16 44१/4- वव्व्ब्फाद्छक (लक्षण १6 ९४०86 ९6४): 1 गपा 1 व्मद्क ९8६ शाप्ा४क४1€6 २, 11५४८ वणा ९8६ 88, (8४०86 (1606 तप नए).

8) सप्तिः + 9 यदे. ~ एणः ^ 01147. ४११६०1४ (7. ए. ¶. 8. 1884) श, 12, 16 एकवणवकाद्नप्नः न.

प्रर भेदि ©> | देम'पतेस सगस्प" पवि पुमन्‌ ठे तनविमृभरगुस | दशप पगुपमनयुन ||

2) पन प्रग" ६८770104, 5. ०८.

10

120 चतुरारीन्दियपरीत्ता नाम | 11

व्याव्यातं श्रवणं प्राणं रसनं स्पर्शनं मनः।

2 (अ तश्रोतव्यकारि (1) ! ˆ दरधनेनैव जानीषच्छ्रोत च॥ इतिं

उक्तं दि भगवता।

चततुः [1५9. 46] प्रतते वरे मनो धर्मान्न वेत्ति च। 5 एतत्तु परमं पत्यं यत्र लोको गाक्ते सामग्या दृशं यत्र प्रकाशयति नापकः। ्राोपचाशमूमिं तां परमार््य वुद्धिमान्‌ इति तथा"

चतुथ पतीत्य पतः चलुविजानमिरोपनायते

10 नौ] चततुषि निभतं व्रत्रातति चैव चतुषि नेत्म्यश्ुमा्च धर्मि ये तेघात्मेति शुभाश्च कल्पिताः। विपप्ैतमपतदिकल्पितं चत्ुविजान ततोऽपि तायते